कांग्रेस की परीक्षा में फेल हुआ संघ
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने विजयादशमी पर नागपुर के रेशम बाग स्थित मुख्यालय में अपना शताब्दी समारोह मनाया

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने विजयादशमी पर नागपुर के रेशम बाग स्थित मुख्यालय में अपना शताब्दी समारोह मनाया। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इसके मुख्य अतिथि थे। श्री कोविंद ने अपने भाषण में जहां महात्मा गांधी को याद किया, तो वहीं मोहन भागवत ने किसी राष्ट्रप्रमुख की तरह भाषण दिया। इस भाषण में अर्थनीति, विदेशनीति, सरकार की जिम्मेदारियां, इतिहास, वर्तमान, भविष्य सभी का जिक्र था। वैसे भी मोदी सरकार ने जब संघ का शताब्दी समारोह जनता के खर्च पर सरकार की तरफ से मना लिया है, तो उसके बाद श्री भागवत के इस तरह भाषण देने के अंदाज पर आश्चर्य भी नहीं होता। मोदी शासनकाल शुरु होने से पहले संघ का स्थापना दिवस, दशहरे पर शस्त्र पूजा, ये सब मनाए जाते रहे, लेकिन उनका ऐसा प्रचार-प्रसार नहीं होता था, मानो ये कोई राष्ट्रीय आयोजन हो। लेकिन अब संघ का स्थापना दिवस राष्ट्रीय पर्व से कम नहीं रह गया है। अब तक तो मोदी सरकार ने ये लिहाज किया हुआ है कि इसे घोषित तौर पर चौथा राष्ट्रीय पर्व नहीं बनाया है, लेकिन अगर संघ के महिमामंडन का सिलसिला ऐसे ही जारी रहा तो फिर श्री मोदी इसे भी मुमकिन बना देंगे।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने राष्ट्रवाद का कितना पोषण किया है, देश की उन्नति में इसका बड़ा योगदान रहा है, ये सारी बातें तो पिछले कई अर्से से चल ही रही हैं, अब ये भी कहा गया है कि आजादी की लड़ाई में भी संघ ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। जबकि इतिहास गवाह है कि संघ ने आजादी के लिए संघर्ष तो नहीं किया, बल्कि भारत छोड़ो आंदोलन जैसे ऐतिहासिक आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों को चि_ी लिखी। इस भूल को संघ सुधार सकता था, बशर्ते वह आजादी के बाद गांधीजी की बातों को सुनता, उनसे नफरत का इजहार नहीं करता। जो संविधान बना, उसे स्वीकार करता। उसकी जगह मनुस्मृति की वकालत नहीं करता। लेकिन संघ ने अपनी देशभक्ति साबित करने के इस मौके को गंवा दिया। 2 अक्टूबर को संघ को यह मौका फिर मिला, लेकिन इस परीक्षा में भी संघ फेल हो गया। दरअसल 2 अक्टूबर को नागपुर में इंडियन यूथ कांग्रेस के पदाधिकारी और कार्यकर्ता आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत को संविधान की प्रति सौंपने के लिए सड़कों पर उतर आए। यूथ कांग्रेस के नेताओं ने 'महात्मा गांधी अमर रहें' और 'यूथ कांग्रेस जिंदाबाद' के नारे लगाए और आरएसएस के कार्यालय की ओर मार्च शुरू किया, लेकिन पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया।
इससे पहले इंडियन यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय भानु चिब ने इस प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए कहा, 'आरएसएस ने पिछले सौ सालों से देश के संविधान के खिलाफ काम किया है। उन्होंने संविधान की विचारधारा को नकारा है और देश में जहर घोलने का काम किया है। हम आज आरएसएस को संविधान की प्रति सौंपना चाहते हैं और उनसे आग्रह करते हैं कि वे इस संविधान को अपनाएं। अब यह आरएसएस के ऊपर है कि वे इस देश के पूरे देशवासियों के स्वाभिमान के प्रतीक संविधान को अपनाते हैं या हमें बीच में ही रोक देते हैं।'
बता दें कि इस प्रदर्शन में सैकड़ो युवक कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। उनका मार्च शांतिपूर्ण ही था और वे संघ प्रमुख को संविधान की प्रति देना चाह रहे थे, कोई विस्फोटक सामान नहीं, जिससे संघ को डर लगे। इस प्रति को स्वीकार कर मोहन भागवत देश की व्यवस्था में अपना यकीन ही जाहिर करते, लेकिन महात्मा गांधी की जयकार और संविधान लेकर चलने वाले युवाओं को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इस प्रदर्शन के बाद राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है कि क्या आरएसएस संविधान की मूल भावना को अपनाएगा या उसकी आस्था मनुस्मृति में ही बनी रहेगी। और यहां दूसरा विकल्प ही मजबूत नजर आता है।
वैसे मोहन भागवत को भाजपा के पूर्व सांसद और अब कांग्रेस के नेता उदित राज से भी चुनौती मिली। 2 अक्टूबर के भाषण में मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू समाज की शक्ति और चरित्र एकता की गारंटी देते हैं। हिंदू समाज में हम और वे की अवधारणा कभी अस्तित्व में नहीं रही। इस पर उदित राज ने लिखा है कि भागवत जी हमें एक कुआँ, एक मंदिर और एक श्मशान की जगह एक तरह की शिक्षा, जाति विहीन समाज और हिस्सेदारी चाहिए। दलित और ओबीसी अब जाग गए हैं और आपके झाँसे में नहीं आने वाले हैं ।
बता दें कि भागवत कहने को तो बराबरी की बात करते हैं, समरसता कहकर दलितों और पिछड़ों को सवर्णों से पीछे रहने, लेकिन मिलकर चलने की नसीहत देते हैं। अब तो भागवत मुस्लिमों के लिए भी अच्छी-अच्छी बातें कर रहे हैं। लेकिन उदित राज ने सीधे कहा है कि कुआं, मंदिर, श्मशान, शिक्षा सबमें एक जैसी व्यवस्था दलितों को चाहिए, कोई भेद नहीं चाहिए। जाहिर है ये मांग मनुस्मृति के खिलाफ है, जो दलितों को शेष तीनों वर्णों की सेवा में देखना चाहती है। दलित न पढ़े-लिखें, न उनका आर्थिक ओहदा ऊंचा हो पाए, और समाज में वे हमेशा दबे-कुचले दिखें। यही सोच मनुस्मृति ने समाज पर बनाई, जिसमें सदियों से भारत चल रहा है और जो थोड़े-बहुत सुधार हुए हैं, उनके लिए काफी संघर्ष करना पड़ा है। संविधान के लागू होने के बाद भी दलितों का शोषण खत्म नहीं हुआ है, लेकिन इसमें संविधान का दोष नहीं है। संविधान के हिसाब से शत-प्रतिशत चलें तो सारे भेदभाव खत्म हो जाएंगे। मगर समाज की इस बुराई को खत्म करने में वक्त लगेगा, बशर्ते संविधान बदला न जाए। भाजपा चाहती है कि संविधान बदले और कांग्रेस संविधान को बचाना चाहती है। इसलिए संघ मुख्यालय तक संविधान की प्रति ले जाई गई, मगर युवक कांग्रेस के लोगों को गिरफ्तार कर भाजपा ने बता दिया कि वह देश को किस राह पर ले जाना चाहती है।


