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जातिवाद का जहर और दलित उत्पीड़न

आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार की पत्नी ने उन पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया था।

जातिवाद का जहर और दलित उत्पीड़न
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हरियाणा में आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कु मार का अंतिम संस्कार इन पंक्तियों के लिखे जाने तक नहीं हो पाया है, वहीं हरियाणा सरकार के दो मंत्री, मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव जैसे बड़े अधिकारी पूरन कुमार के परिजनों से मुलाकात कर उन्हें अंतिम संस्कार और पोस्टमार्टम के लिए मनाने में जुटे हुए हैं। इस मामले में हरियाणा सरकार ने रोहतक के पुलिस अधीक्षक नरेंद्र बिजारनिया को हटा दिया है। आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार की पत्नी ने उन पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया था।

बता दें कि पूरन कुमार का शव 7 अक्टूबर मंगलवार को उनके घर पर मिला था। पुलिस ने इसे आत्महत्या बताया। अपनी मौत से पहले दिवंगत अधिकारी ने एक नोट छोड़ा है, जिसमें वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा जातिगत प्रताड़ना और अपमान के आरोप उन्होंने लगाए। पूरन कुमार ने लिखा कि 2020 में तत्कालीन डीजीपी मनोज यादव ने मेरा उत्पीड़न शुरू किया, हरियाणा कैडर के अन्य अधिकारी आज भी प्रताड़ित कर रहे, तत्कालीन एसीएस गृह राजीव अरोड़ा ने मुझे छुट्टियां नहीं दी। मैं अपने बीमार पिता से मिलने तक नहीं जा सका। वर्षों तक मुझे मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ा। मेरे खिलाफ छद्म नामों से दुर्भावनापूर्ण शिकायतें की गईं। सार्वजनिक रूप से मुझे अपमानित और शर्मिंदा किया गया। अपने उत्पीड़न की एक लंबी फेरहिस्त देते हुए पूरन कुमार ने लिखा कि- मैं और अधिक प्रताड़ना बर्दाश्त नहीं कर सकता, इसीलिए मैंने सब कुछ खत्म करने का निर्णय लिया है।

यकीन करना मुश्किल है कि 21 वीं का चौथाई हिस्सा निकल गया है और भारत में दलित उत्पीड़न खत्म ही नहीं हो रहा है। कहा जाता है कि कमजोर वर्गों को शिक्षा की शक्ति से लैस किया जाए, तो उनकी स्थिति में सुधार आएगा। लेकिन यहां ये तर्क भी नाकाम दिख रहा है।

रायबरेली में गरीब हरिओम वाल्मिकी को पीट-पीट कर मारना, देश के मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई पर जूता फेंकना और फिर सोशल मीडिया पर उसे सही ठहराया जाना और एक पुलिस सेवा के एक वरिष्ठ लेकिन दलित अधिकारी का उत्पीड़न के कारण आत्महत्या करना या उससे पहले वैज्ञानिक बनने की चाह रखने वाले छात्र रोहित वेमुला का आत्महत्या करना, तमाम मामले इस बात की गवाही चीख-चीख कर दे रहे हैं कि दलितों की स्थिति में तब तक सुधार नहीं आ सकता, जब तक इस देश से मनुवादी सोच का पूरी तरह खात्मा नहीं हो जाता। लेकिन अभी तो हाल ये है कि मनुस्मृति को ही धर्म बताकर संघ और भाजपा के समर्थकों का बड़ा हिस्सा उसे संविधान में तब्दील करने की तैयारी में है। राहुल गांधी ने इस बारे में संसद से ही देश को चेतावनी दे दी थी कि भाजपा मनुस्मृति को लागू करना चाहती है, संविधान को नहीं।

लेकिन उनकी बात को राजनीति कहकर टालने की कोशिश सरकार कर रही है। हालांकि देश देख रहा है कि राहुल गांधी एक बार फिर सही साबित हो रहे हैं। पूरन कुमार की आत्महत्या मामले में आरोपियों को बचाने की कोशिशें हुईं, लेकिन उनकी पत्नी अमनीत पी. कुमार जो कि खुद 2003 बैच की आईएएस अधिकारी हैं, उन्होंने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई और मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि, 'पुलिस की एफआईआर में नाम हटाए गए और एससी एसटी एक्ट के सेक्शन कमजोर किए गये।' अमनीत कुमार खुद प्रशासन और कानून की बारीकियों से वाकिफ हैं, इसलिए वे समझ गईं कि आरोपियों को बचाने की कैसी चालाकी चल रही है। अगर उनकी जगह आईपीएस अधिकारी की पत्नी साधारण पृष्ठभूमि की होतीं या इस बात को नहीं समझ पाती तो शायद इस मामले में पीड़ित को ही दोषी बताकर मामला दबा दिया जाता।

अब तो विपक्ष ने भी इस पर पुरजोर आवाज़ उठाई है। मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने सोशल मीडिया पर इसके खिलाफ लिखा, वहीं सोनिया गांधी ने एक कदम आगे बढ़कर अमनीत कुमार को ही चि_ी लिखी और इस संघर्ष में उनके साथ खड़े होने का यकीन दिलाया। आम आदमी पार्टी ने भी इस पर सवाल उठाए हैं कि कैसे आज भी दलितों को मध्ययुगीन प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है। विपक्ष अपना दायित्व निभा रहा है, लेकिन राज्य और केंद्र में सत्तारुढ़ भाजपा को इसमें राजनीति नजर आ रही है। क्या भाजपा यह नहीं जानती कि विपक्ष का काम उसकी गलतियों और कमजोरियों पर ध्यान दिलाना है, बाकी जी हुजूरी का सारा काम मीडिया तो कर ही रहा है, विपक्ष के दल भी अगर ऐसे ही सरकार की चापलूसी करने लगें तो फिर लोकतंत्र को पूरी तरह खत्म हो जाएगा। क्या भाजपा यही चाहती है कि इस देश में लोकतंत्र और संविधान न रहे।

वैसे भी एनसीआरबी का डेटा बताता है- 2013-2023 के बीच दलितों पर अत्याचार 46 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति पर 91प्रतिशत तक बढ़ा है। 2023 में 57,789 दलित उत्पीड़न के मामले दर्ज हुए हैं। जिनमें उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 15,368 मामले फिर मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार जैसे भाजपा शासित राज्य है, इसे महज संयोग माना जाए या फिर मनुवादी सोच पर आधारित सरकार और प्रशासन का परिणाम। अपराधी बेखौफ हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि यहां आज भी ब्राह्मण के आगे देवता लगाकर बात करना समाज को अजीब नहीं लगता। बाबा साहेब अंबेडकर से पहले, उनके काल में और आज तक दलितों की स्थिति समाज में जस की तस है। समस्या शिक्षा की कमी नहीं, नसों में जातिवाद के फैले जहर की है, जो दलितों के लिए उच्च स्थान कतई बर्दाश्त नहीं कर पाता है।



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