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हरियाणा की तरह महाराष्ट्र और झारखंड हाथ से न जाने दे विपक्ष!

2024 लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री मोदी जो कमजोर होते नजर आए थे उसकी कुछ भरपाई उन्होंने हरियाणा जीत कर कर ली

हरियाणा की तरह महाराष्ट्र और झारखंड हाथ से न जाने दे विपक्ष!
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- शकील अख्तर

बूथ मैनेजमेंट आज के चुनाव की सबसे बड़ी जरूरत बन गए हैं। मगर कभी सुना नहीं कि कांग्रेस बूथ मैनेजमेंट, बूथ के अंदर पोलिंग एजेन्ट, मतदान के दिन काउन्टिंग एजेन्ट के प्रशिक्षण के लिए कुछ करती हो। मतदान के खत्म होने के बाद किस तरह ईवीएम के नंबर लेना है। ईवीएम का क्लोज बटन अपने सामने दबवाना है। इसके बाद उन फार्मों पर जिन पर पोलिंग बुथ पर कितने वोट पड़े की संख्या होती है साइन करना है। उसकी कापी लेना है।

2024 लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री मोदी जो कमजोर होते नजर आए थे उसकी कुछ भरपाई उन्होंने हरियाणा जीत कर कर ली और अगर अब महाराष्ट्र, झारखंड में इंडिया गठबंधन उन्हें नहीं रोक पाया तो वे फिर वापस 2024 लोकसभा चुनाव के पहले की मजबूत स्थिति में पहुंच जाएंगे।

यह दोनों विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए मुश्किल हैं। मगर हरियाणा तो करीब-करीब असंभव था। लेकिन कांग्रेस हारी। समझने की बात यह है कि वहां भाजपा नहीं जीती बल्कि कांग्रेस ने खुद अपनी गलतियों से हार को चुना। और यह गलतियां कोई नई नहीं हैं वही पुरानी गुटबाजी, अतिआत्मविश्वास जिसने पिछले दिनों राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ हराया उसी की पुनरावृति है।

अगर याद करो तो आप इनसे पहले पंजाब, उत्तराखंड भी इसी तरह हारे थे। गुजरात भी। 2017 में गुजरात में भाजपा को सौ के नीचे रोक दिया था। खुद 182 में से 77 सीटों पर जीती थी। और 2022 में कांग्रेस ने वहां बेमन से चुनाव लड़ा। राहुल केवल एक बार वहां गए। नतीजा बीजेपी ने रिकार्ड 156 सीटें जीतीं। और कांग्रेस 77 से सीधे 17 पर।

यह बैक ग्राउन्ड बताना इसलिए जरूरी है कि कांग्रेस ने इन हारों से कुछ नहीं सीखा। वह लोकसभा में 99 सीटें लाकर और भाजपा को 240 पर रोककर बहुत इत्मिनान में है। बीजेपी कमजोर हुई। प्रधानमंत्री मोदी पर इसका असर पड़ा।

लोकसभा में राहुल गांधी उनके सामने गरजे। यहां तक कि जो मोदी कभी दखलंदाजी नहीं करते वे भी नेता प्रतिपक्ष राहुल के चर्चित भाषण कि देश को कमजोर किया जा रहा है, नफरत और साम्प्रदायिकता फैलाई जा रही है के बीच में उठकर बोलने की कोशिश की। मगर राहुल ने उन्हें सटीक जवाब देते हुए कहा कि- नो नो नो! हिन्दू नहीं भाजपा और संघ हैं जो साम्प्रदायिकता फैला रहे हैं। प्रधानमंत्री जी गलत बात मत कीजिए।

राहुल के उस भाषण ने राजनीति की दिशा बदल दी थी। उसके बाद राहुल ने कहा कि 56 इंच की छाती खत्म हो गई है अब वह मेरे किसी भाषण के दौरान मेरे सामने नहीं बैठेंगे। और निश्चित रूप से उसके बाद जिस तरह लेटरल एंट्री वापस लेनी पड़ी, वक्फ बिल जेपीसी को देना पड़ा, ब्राडकास्ट बिल वापस लिया, बजट में लाया कैपिटल गैन टैक्स वापस लिया उसने बताया कि मोदी जी अब कमजोर हो रहे हैं।

लेकिन मोदी का कमजोर होना और कांग्रेस का ताकतवर होना दोनों अलग-अलग बातें हैं। मोदी को कमजोर हुए मगर कांग्रेस अपनी सेहत बनाने के मामले में लापरवाह ही रही। उसकी जीतते जीतते हारने की कमजोरी दूर नहीं हुई।

कांग्रेस जम्मू-कश्मीर पर थोड़ा इतराती है। मगर भूल जाती है कि अभी तक की सबसे कम सीटें उसे इस बार मिली हैं। केवल छह। वह तो नेशनल कांन्फ्रेंस ने इज्जत बचाई नहीं तो वहां कांग्रेस कुछ भी नहीं कर पाई। जम्मू जो उसका पुराना कार्यक्षेत्र था वहां वह बुरी तरह साफ हो गई। केवल एक सीट मिली। पांच कश्मीर ने दीं। जम्मू में कांग्रेस 29 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिसमें से एक राजौरी सीट पर जीती और भाजपा ने यहां आज तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 29 सीटों पर जीत हासिल की। और एक मजेदार तथ्य यह कि नेशनल कान्फ्रेंस ने जम्मू संभाग से 6 सीटें जीतीं।

मतलब 2024 लोकसभा के अच्छे प्रदर्शन के बाद कांग्रेस हरियाणा में सरकार बनाने में असफल रही और जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने में ऩेशनल कान्फ्रेंस की कोई खास मदद नहीं कर पाई। 55 विधायकों का समर्थन है। उमर अब्दुल्ला के पास। कांग्रेस के 6 के बिना भी 90 की विधानसभा में बहुमत। 49 विधायक।

कांग्रेस को सोचना होगा। ईवीएम की गड़बड़ी है। बहुत सवाल हैं मगर सारा दोष उस पर डालकर खुद की गुटबाजी, सही फैसले नहीं लेने, केजुअल एप्रोच, चुनाव पूर्व तैयारी न करने जैसे कई मुद्दों पर भी कांग्रेस को सोचना होगा। वोटर लिस्ट में गड़बड़ियां होती हैं। बीजेपी विपक्ष के वोट कटवाती है, अपने वोट बढ़वाती है यह आरोप पिछले दस सालों से लग रहे हैं। लेकिन कांग्रेस चुनाव से पहले वोटर लिस्ट पर ध्यान नहीं देती। भाजपा के पन्ना प्रमुख पर व्यंग्य करती है, खिल्ली उड़ाती है मगर यह नहीं देखती कि वे कितना काम करते हैं और भाजपा के लिए उपयोगी साबित हुए।

बूथ मैनेजमेंट आज के चुनाव की सबसे बड़ी जरूरत बन गए हैं। मगर कभी सुना नहीं कि कांग्रेस बूथ मैनेजमेंट, बूथ के अंदर पोलिंग एजेन्ट, मतदान के दिन काउन्टिंग एजेन्ट के प्रशिक्षण के लिए कुछ करती हो। मतदान के खत्म होने के बाद किस तरह ईवीएम के नंबर लेना है। ईवीएम का क्लोज बटन अपने सामने दबवाना है। इसके बाद उन फार्मों पर जिन पर पोलिंग बुथ पर कितने वोट पड़े की संख्या होती है साइन करना है। उसकी कापी लेना है और मतगणना से पहले तक स्ट्रांग रूम जहां ईवीएम मशीने रखी हैं उनकी निगरानी करना है। यह सारे काम अब करने की जरूरत है। चुनाव आयोग पर आरोप सही हैं। लेकिन विपक्ष को अपनी तरफ से भी कोई कसर छोड़ना नहीं चाहिए। पहले भी बताया कि कांग्रेस ने तो 2018 में दिल्ली में हुए अपने राष्ट्रीय अधिवेशन में ईवीएम के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था। मगर उसके बाद दो लोकसभा चुनाव हो गए। और कई विधानसभा। तो जब तक बीजेपी की केन्द्र में सरकार है चुनाव के तौर-तरीकों में बदलाव होना संभव नहीं दिखता। सुप्रीम कोर्ट ने भी ईवीएम के खिलाफ कोई राहत नहीं दी।

तो अब दो ही रास्ते हैं। एक जनता को ज्यादा से ज्यादा मोबलाइज करके वोट ज्यादा डलवाना। और दूसरे विपक्ष की अपनी तरफ से वह सारे काम करना वोटिंग लिस्टों के अंतिम प्रकाशन से पहले उनमें सुधार करवाना, लोगों को पोलिंग बूथ तक ले जाना, पोलिंग बूथ पर आखिरी क्षणों तक कड़ी निगरानी, उसके बाद फार्म 17 सी प्राप्त करना। गिनती में आखिरी तक रहना। गिनती से पहले मशीनों की निगरानी सब करना होगा।

याद रहे 1977 के चुनाव में जनता पार्टी ने सारा जोर भारी मतदान करवाने और मतगणना केन्द्रोंकी निगरानी पर लगाया था। इसका पहले से इतना प्रचार किया था कि लगने लगा था कि कोई बड़ी गड़बड़ी होने वाली है। जबकि चुनाव से पहले भी सरकार और चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया था कि यह अफवाहें हैं ऐसा कुछ नहीं है। बाद में साबित भी हुआ कि कहीं न कोई कोशिश थी, और न कुछ हुआ।

मगर जनता पार्टी के हो हल्ले ने उसके वोटरों और कार्यकर्ताओं में माहौल बना दिया था। और फिर सबको मालूम है कि 1977 लोकसभा जनता पार्टी जीती और प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी तक खुद हारीं।

आज विपक्ष को ऐसा ही माहौल बनाने की जरूरत है। तब तो भेड़िया आया भेड़िया आया- ऐसे ही चिल्ला कर लोगों को एकजुट कर लिया था। आज तो वह संकट सामने ही है। और अपनी कई झलक दिखला चुका है। चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं हो रहे इस पर तो आज सबको शंका है।

मगर विपक्ष को माहौल बनाना नहीं आता। अभी श्रीनगर में पूरे इन्डिया गठबंधन के नेता जुड़े। शपथ ग्रहण में शामिल हुए। उमर अब्दुल्ला को बधाई दी। और आ गए।
सारे नेता वहां एक बैठक कर लेते। जम्मू-कश्मीर जीतने के बाद इंडिया गठबंधन के नेताओं ने आगे की रणनीति बनाई। एक मैसेज चला जाता। मीडिया में भी खबरें आतीं। सब नेताओं के एक साथ बैठे हुए फोटो आते। वीडियो बनता। माहौल बन जाता। कश्मीर डिक्लेयरेशन। श्रीनगर से फिर एक नई शुरूआत।

यही तो करना है! बीजेपी पर आरोप लगाते रहते हैं कि वह हेडलाइन मैनेजमेंट करती है। हां करती है। आप को किसी ने रोका है? झारखंड और महाराष्ट्र जीत सकते हैं। लेकिन जीतने की पूरी कोशिश करनी होगी। आघे- अधूरे मन से कुछ नहीं होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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