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नफरत का कैरोसिन सबको लील लेगा

पूरे देश में नफरत का कैरोसिन छिड़का जा चुका है, यह अब केवल राजनैतिक बयान नहीं रह गया है, समाज की वो कड़वी सच्चाई बन चुका है

नफरत का कैरोसिन सबको लील लेगा
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पूरे देश में नफरत का कैरोसिन छिड़का जा चुका है, यह अब केवल राजनैतिक बयान नहीं रह गया है, समाज की वो कड़वी सच्चाई बन चुका है, जिससे अब नज़रें चुराईं तो तबाही मचने में देर नहीं लगेगी। नफरत का कैरोसिन अब छिड़का नहीं बल्कि उंड़ेला जा चुका है, इसके हाल-फिलहाल में दो-तीन ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जिनसे रुह कांप जाती है। कर्नाटक में बेलगावी जिले के हुलिकट्टी गांव के एक सरकारी स्कूल में पीने के पानी में जहर मिलाने की कथित घटना सामने आई है। करीब 15 दिन पहले की इस घटना के बारे में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बताया है कि स्कूल के प्रधानाध्यापक मुस्लिम समुदाय से हैं। श्रीराम सेना के कुछ लोगों ने उनका तबादला कहीं और करवाने के दुर्भावनापूर्ण इरादे से पीने के पानी में जहर मिला दिया। पुलिस ने फिलहाल श्रीराम सेना के तालुका अध्यक्ष सागर पाटिल और दो अन्य लोगों को गिरफ्तार किया है। इस मामले में किसी भी बच्चे की जान नहीं गई, यह गनीमत है, क्योंकि बीमार पड़ते ही बच्चों को फौरन इलाज मिल गया। लेकिन यह गंभीर सवाल है कि जो नफरती जहर पूरे देश में फैल चुका है, उसके शिकार लोगों का इलाज किस तरह से किया जाए।

हम यह बात पहले भी लिख चुके हैं कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे अमूमन गरीब परिवारों से ही होते हैं। इन बच्चों की जान लेने की साजिश रचने वालों की सोच कितनी खतरनाक रही होगी यह समझना कठिन नहीं है। ये बच्चे दीर्घायु हों ऐसी कामना है, लेकिन अगर इन बच्चों की मौत होती तो सारा दोष सबसे पहले मुस्लिम प्रधानाध्यपक और फिर सरकार पर आता, जो कांग्रेस की है। बच्चे गरीब हैं, तो उनके मां-बाप इतनी आर्थिक शक्ति भी नहीं जुटा पाते कि अपने बच्चों के इंसाफ के लिए लड़ पाते। उन्हें मुआवजा देकर शांत करा दिया जाता और इन सबके बीच समाज में सांप्रदायिक घृणा फैल जाती।

पिछले चुनावों में भाजपा को कर्नाटक में मात मिली थी, क्योंकि उसने जनता के हितों की जगह सांप्रदायिक, धार्मिक नफरत को तरजीह दी थी। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने इस नफरती एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए बजरंग दल पर लगे प्रतिबंध को बजरंग बली का अपमान बताया था और लोगों से अपील की थी कि बजरंग बली के नाम पर भाजपा को वोट दें। लेकिन लोगों ने इस अपील को ठुकरा दिया। कर्नाटक की जनता ने देखा है कि हिजाब के नाम पर भाजपा ने किस तरह शिक्षण संस्थानों में अलगाव की भावना पैदा की। चुनावों में भाजपा का धार्मिक वैमनस्य का एजेंडा नहीं चला, तो अब इस तरह की साजिशों को हिंदूवादी ताकतों के जरिए अंजाम दिया जा रहा है। 1980 में एक फिल्म आई थी दो और दो पांच, इसमें बोर्डिंग स्कूल के बच्चों के खाने में जहर मिला दिया जाता है, ताकि खलनायक अपना बदला ले सकें। वह विचार तब भी बड़ा खतरनाक लगा था, लेकिन फिल्म का वह दृश्य दशकों बाद इस तरह हकीकत में बदल जाएगा, यह समाज ने कभी सोचा भी नहीं होगा।

अब शायद वक्त आ गया है कि समाज इस बारे में गंभीरता से सोचे कि किस तरह धर्म के नाम पर नफरत इंसानियत से ही नफरत में बदल चुकी है। कर्नाटक की घटना के अलावा दो और घटनाओं का जिक्र जरूरी है। मुंबई से कोलकाता जा रही इंडिगो की उड़ान में एक मुस्लिम युवक को सहयात्री द्वारा थप्पड़ मारने का वीडियो हाल ही में चर्चा में आया था। हुसैन अहमद मजूमदार नाम का यह पीड़ित असम का रहने वाला है और मुंबई में काम करता है। 32 बरस के इस युवक की तबियत उड़ान के दौरान ही खराब हो गई थी और केबिन क्रू उसकी मदद कर रहा था, तभी एक सहयात्री ने हुसैन को थप्पड़ मार दिया कि उसकी वजह से उन्हें असुविधा हुई है। गनीमत यह रही कि केबिन क्रू समेत अन्य सहयात्रियों ने थप्पड़ मारने वाले शख्स का साथ नहीं दिया, बल्कि उसकी आलोचना की। अब बताया जा रहा है कि उसके खिलाफ आधिकारिक शिकायत दर्ज की गई है और इंडिगो की उड़ान में आईंदा प्रतिबंधित भी कर दिया गया है। लेकिन यह सोचने वाली बात है कि आखिर इतनी असहिष्णुता हममें कहां से भर चुकी है कि जरा सी असुविधा पर अपने सहयात्री को थप्पड़ मारा जाए। इस मामले में हिंदू-मुस्लिम वाला एंगल भी जोड़ा जा रहा था, हालांकि पीड़ित और आरोपी, दोनों ही मुस्लिम बताए जा रहे हैं।

असहिष्णुता का एक और उदाहरण विमानयात्रा से ही जुड़ा हुआ है, जो श्रीनगर का है। यहां लेफ्टिनेंट कर्नल रितेश कुमार सिंह ने स्पाइसजेट के चार कर्मियों के साथ विमानतल पर ही बुरी तरह मारपीट की। जिसमें एक कर्मचारी मुदासिर अहमद की रीढ़ की हड्डी टूट गई है, वहीं उसे बचाने वाले अन्य कर्मियों को भी बड़ी चोटें आई हैं। इन कर्मचारियों ने नियमों के अनुसार अधिक वजन ले जाने पर अतिरिक्त शुल्क की मांग सैन्य अधिकारी से की थी। लेकिन अधिकारी ने न केवल शुल्क देने से इंकार किया, बल्कि सीआईएसएफ कर्मचारियों को धक्का देकर बोर्डिंग गेट के अंदर घुस गया, जब उसे वहां से वापस लाया गया तो उसने इस तरह मारपीट की।

गौर करने वाली बात है कि यह पूरा वाकया श्रीनगर जैसे सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील एयरपोर्ट पर घटित हुआ है। एयरलाइंस के चार-चार निहत्थे कर्मियों को पीटने, रीढ़ की हड्डी और जबड़ा तोड़ने की यह गंभीर घटना दो-चार सेंकड में तो घटी नहीं होगी, इसमें वक्त लगा होगा। इस दौरान वहां तैनात सुरक्षाकर्मी क्यों ले.कर्नल रितेश कुमार सिंह को काबू में नहीं कर पाए, यह विचारणीय है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ले.कर्नल रितेश कुमार सिंह किसी मानसिक तनाव में थे, जिस वजह से न केवल उन्होंने अनुशासनहीनता और निर्दोषों को पीटने का अपराध किया, बल्कि सुरक्षा को भी खतरे में डाला है। सेना को इस मामले की गहनता से जांच करनी चाहिए।

उपरोक्त तमाम घटनाओं के स्थान, पीड़ित और प्रवृत्ति अलग हैं, लेकिन एक बात सामान्य है कि समाज में हिंसात्मक वृत्ति और असहिष्णुता नियंत्रण से बाहर होती जा रही है। इसका निदान न किया गया तो समूचा देश इसकी चपेट में आएगा।


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