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संभल के पीछे की नीयत

बंटेंगे तो कटेंगे। एक हैं तो सेफ हैं। अयोध्या तो झांकी, काशी, मथुरा बाकी है

संभल के पीछे की नीयत
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बंटेंगे तो कटेंगे। एक हैं तो सेफ हैं। अयोध्या तो झांकी, काशी, मथुरा बाकी है। भाजपा के दिए ये तमाम नारे संविधान को ठेंगा दिखाकर भारत की जनता को चिढ़ाने वाले हैं कि तुम लोग हिंद देश के निवासी सभी जन एक हैं, जैसे पुराने दौर को याद करते रहो और हम तुम्हारी नजरों के सामने न्यू इंडिया बना कर दिखा देंगे, जिसमें न संविधान की कोई इज्जत रहेगी, न लोकतंत्र की कोई मर्यादा होगी। उत्तरप्रदेश के संभल में फिलहाल जो माहौल बना हुआ है, कम से कम उसे देखकर यही नजर आ रहा है कि मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में हिंदुत्व की उग्रता का और क्रूर चेहरा देखने मिलेगा।

इसी उत्तरप्रदेश में 5 सौ साल पुरानी बाबरी मस्जिद को तोड़ने के लिए भाजपा ने पूरी व्यूह रचना की थी। लालकृष्ण आडवानी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली। जिन राज्यों से आडवानी का आधुनिक रथ निकला, वहां दंगे भड़कने की जमीन तैयार हुई। बिहार में लालू प्रसाद ने हिम्मत दिखाई, वहां रथ नहीं निकलने दिया तो सांप्रदायिक हिंसा से लंबे वक्त तक बिहार बचा रहा। हालांकि अब देश का कोई भी राज्य इस जहर से अछूता नहीं है, क्योंकि भाजपा ने पिछले तीस सालों में अपने हाथ-पैर सब तरफ फैला दिए हैं। इस फैलाव को सियासत की भाषा में सत्ता कहते हैं। भाजपा गर्व से दिखाती है कि हिंदुस्तान के कितने राज्य अब भगवा रंग में रंगे जा चुके हैं। और देश प्रेम का दावा करने वाले पलट कर पूछते भी नहीं कि तिरंगे के बाकी दो रंग और बीच के चक्र में जो नीला रंग है, उसके लिए जगह क्यों नहीं बन रही। आडवानी की रथ यात्रा के कारण भाजपा को सत्ता में आने का मौका मिल गया, फिर मोदी के गुजरात और गुजरात में गोधरा के कारण केंद्र की सत्ता फिर से मिली, तीन बार लगातार मिली, लेकिन इसमें भारत के पास आखिर में बंटेंगे तो कटेंगे जैसे नारे ही बचे हुए दिख रहे हैं। या फिर नजर आ रही है बाबरी मस्जिद के बाद देश की बाकी मस्जिदों पर शक की निगाहें।

बाबरी मस्जिद को तोड़ना गलत था, यानी अपराध था, ये बात सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में कही गई, लेकिन इसके अपराधियों को देश ने सजा पाते नहीं देखा, उल्टे सर्वोच्च अलंकरणों से सम्मानित होते देखा। राम मंदिर बन गया तो हिंदुत्व ब्रिगेड के हौसले और बुलंद हो गए। बाबरी मस्जिद तोड़ने के बाद ही नरसिंह राव सरकार ने धार्मिक स्थल कानून बनाया, उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, नामक इस कानून के तहत 15 अगस्त, 1947 से पहले बने किसी भी धार्मिक स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। दूसरे धर्म के कब्ज़े के सबूत पर भी कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। और इस कानून का उल्लंघन करने पर तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है। इस कानून के बावजूद काशी में ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश हुआ और अब संभल में भी इसी तरह शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के आदेश अदालत ने दिए, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन ने एक शिकायत में दावा किया कि मस्जिद के स्थान पर कभी हरिहर मंदिर नामक मंदिर हुआ करता था और मुगल सम्राट बाबर ने 1529 में इसे आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया था। ध्यान रहे कि विष्णु जैन और उनके पिता हरि शंकर जैन ने ज्ञानवापी-काशी विश्वनाथ विवाद समेत पूजा स्थलों से जुड़े कई मामलों में हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व किया है। शिकायत के बाद अदालत ने सर्वे का आदेश दिया था और इसी को लेकर सर्वे टीम मस्जिद पहुँची थी। एक सर्वे 19 नवंबर को हो चुका था और रविवार को दूसरे सर्वे के लिए टीम फिर पहुंची, तो इस दौरान हिंसा भड़क गई।

पुलिस का कहना है कि सर्वे दल पर पथराव हुआ, माहौल हिंसक हो गया। लेकिन यह स्पष्टीकरण कोई नहीं दे रहा कि सर्वे जैसे काम में जय श्री राम के नारे लगने का क्या मतलब है। क्यों यह सर्वे सुबह के वक्त करने का फैसला लिया गया। ऐसा नहीं है कि पहले सर्वे के वक्त से हालात सामान्य थे। किसी के घर पर अचानक कोई आकर दावा करने लगे और आनन-फानन में सारे सबूत जुटाने की तैयारी होने लगे, तो माहौल बिगड़ेगा ही। उत्तरप्रदेश पहले से सांप्रदायिक तौर पर संवेदनशील राज्य रहा है, इसके बावजूद प्रशासन की तरफ से जो लापरवाही बरती गई उसकी जिम्मेदार सीधे-सीधे योगी सरकार है। मगर अब भी ठीकरा दूसरों के सिर पर फोड़ने की तैयारी चल रही है।कहा जा रहा है कि रविवार को जब सर्वेक्षण दल पहुंचा तो उसका विरोध करने के लिए सैकड़ों की संख्या में प्रदर्शनकारी शाही जामा मस्जिद के पास जुटे। इसी बीच धक्का मुक्की शुरू हो गयी। झड़प के बाद पथराव की घटना हुई। कुछ वीडियो में पुलिस को गोलियाँ चलाते देख जा सकता है। कुछ वीडियो में पुलिस को अपशब्दों का प्रयोग करते भी देखा गया है। हालांकि इनकी पुष्टि होना बाकी है। मगर इस हिंसक झड़प में चार लोगों की मौत हो गई।

जब धार्मिक जुलूसों या सत्संग आदि में कभी भगदड़ हो और लोगों की मौत हो तो प्रशासन फौरन मुआवजे का ऐलान कर देता है। लेकिन संभल में जिन लोगों की मौत हुई, उनके परिजनों के पास जीवन भर के गम के अलावा और कुछ नहीं बचा है। विपक्ष इस मसले पर सोमवार से शुरु हुए संसद सत्र में चर्चा चाहता था, लेकिन मोदी सरकार को जवाबदेही से बचाने के लिए सोमवार का सत्र चला ही नहीं, मंगलवार को भी सत्र स्थगित रहेगा और सरकार संविधान दिवस मना कर संविधान की रक्षा का ढोंग कर लेगी और बुधवार को जब सदन फिर से बैठेगा, तब तक संभल की जगह शायद कोई और मुद्दा तूल पकड़ लेगा।

उप्र में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना है कि उपचुनावों में हुई धांधलियों से ध्यान हटाने के लिए संभल का विवाद खड़ा किया गया। उनके इस दावे में दम भी नजर आता है, क्योंकि उपचुनावों में भाजपा और रालोद को मिलाकर 7 सीटें मिल गईं, सपा को केवल 2 सीट मिली है। और संभल के करीब कुंदरकी की मुस्लिम बहुल मतदाता वाली सीट भी भाजपा के खाते में गई है। जबकि यहां सपा का आरोप है कि उसके मतदाताओं को वोट डालने ही नहीं दिया गया।

निर्वाचन आयोग, अदालत, पुलिस प्रशासन, मंदिर के दावों के नाम पर याचिकाएं दायर करने वाले लोग इन सबकी नीयत का आईना संभल में नजर आ रहा है। विपक्ष फिलहाल इस मुद्दे पर आलोचना कर रहा है, लेकिन उसे हालात संभालने और सुधारने के लिए अब सड़क पर उतरना चाहिए।


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