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अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं है

विदेशी पूंजी की लगातार निकासी और कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के बीच रुपया बुधवार को पहली बार 90 प्रति डॉलर के नीचे चला गया

अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं है
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विदेशी पूंजी की लगातार निकासी और कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के बीच रुपया बुधवार को पहली बार 90 प्रति डॉलर के नीचे चला गया। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 25 पैसे टूटकर 90.21 प्रति डॉलर पर बंद हुआ जो इसका अब तक का सबसे निचला स्तर था, लेकिन यह गिरावट यहीं नहीं थमी, बल्कि गुरुवार को एक डॉलर की कीमत 90 रुपए 42 पैसे हो गई। 2025 में रुपया 4 से 5 प्रतिशत की गिरावट के साथ एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली एशियाई मुद्राओं में शामिल हो गया है। हालांकि यह दुख की बात है मोदी सरकार अपनी इस नाकामी को न मान रही है, न उसमें सुधार के लिए कोई काम करती दिख रही है। 11 सालों में एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि मोदी सरकार की नीतियों के कारण रुपये की कीमत में सुधार आया हो। बल्कि लगातार गिरावट ही दर्ज होती रही। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक बार कहा था कि रुपया कमजोर नहीं हो रहा, डॉलर मजबूत हो रहा है, लेकिन इस बार उनका ऐसा बेतुका तर्क भी सरकार का बचाव नहीं कर पाएगा, क्योंकि अमेरिकी डॉलर इंडेक्स तो स्थिर ही है। दरअसल भारतीय बाजार पर विदेशी निवेशकों का घटता भरोसा रुपए की गिरावट का अहम कारण बन रहा है।

बताया जा रहा है कि भारत और अमेरिका में व्यापार समझौते पर अनिश्चितता कायम रहने और रुपये की गिरावट थामने के लिए रिजर्व बैंक के आगे न आने से स्थानीय मुद्रा रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गई।

वहीं विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने मंगलवार को 3,642 करोड़ रुपये की बिकवाली की। इस वर्ष भारत ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में 16 से 18 अरब डॉलर की निकासी देखी, जबकि शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लगभग 30 अरब डॉलर के आसपास स्थिर रहा। यानी भारतीय बाजार से डॉलर अधिक निकले और निवेश कम हुए। इसके साथ ही, हर महीने वस्तु व्यापार घाटा 25-30 अरब डॉलर के बीच रहा। देश से पूंजी का बाहर जाना और आयात की मांग बढ़ना इन वजहों से रुपया कमजोर होता गया।

रुपए में यकायक कोई बड़ी गिरावट नहीं आई, यह सिलसिला कई महीनों से चल रहा है। लेकिन मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बताती रही। अभी सितंबर तिमाही 2025 में, भारत की जीडीपी वृद्धि दर 8.2प्रतिशत रही है, ऐसा दावा सरकार ने किया और उस पर अपनी पीठ भी थपथपाई। लेकिन इसी दौरान रुपये का मूल्य लगभग 5 प्रतिशत गिर गया, उस पर सरकार ने कुछ नहीं कहा।

गौरतलब है कि भारत तेल, कच्चा माल, इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी का आयात करता है, जिसका भुगतान डॉलर में होता है, वहीं, उच्च अमेरिकी ब्याज दरों से आकर्षित होकर वैश्विक निवेशक भारत जैसे उभरते बाज़ारों से पैसा बाहर निकाल रहे हैं, इससे भी डॉलर की आवश्यकता बढ़ रही है, जबकि आने वाले डॉलर की आपूर्ति घट रही है। जब डॉलर की मांग रुपये की मांग से अधिक हो जाती है, तो रुपये का मूल्य गिरना तय है। ज्यादा आयात, धीमे निर्यात और अस्थिर पूंजी प्रवाह रुपये की गिरावट का मुख्य कारण हैं। और यह गिरावट अब महंगाई को बढ़ाएगी यह तय है।

रुपए में गिरावट के साथ ही तेल और गैस कंपनियां, एयरलाइंस, ऑटोमोबाइल निर्माता, इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादक और केमिकल कंपनियों की लागत तुरंत बढ़ जाती है। आयातित खाद्य पदार्थ और दवाइयां भी महंगी हो जाती हैं। विदेश में शिक्षा और यात्रा भी परिवारों के लिए महंगी हो जाती है। डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से कं ज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, ब्यूटी और कार कंपनियां कीमतें बढ़ा सकती हैं। इससे जीएसटी में कटौती के बाद इन क्षेत्रों में हुई अच्छी बिक्री का ट्रेंड पलट सकता है। अभी दीपावली पर जीएसटी में कटौती कर मोदी सरकार ने डबल दीवाली की बात कही थी। लेकिन अब डबल दीवाली की जगह दीवाला निकलने का डर लग रहा है। खबरों के अनुसार स्मार्टफोन, लैपटॉप, टीवी और बड़े उपकरण निर्माता कंपनियां दिसंबर-जनवरी से कीमतों में 3-7 प्रतिशत तक का इजाफा कर सकती हैं। कमजोर रुपये की वजह से मेमोरी चिप्स, कॉपर और दूसरे पार्ट्स की कीमतें बढ़ेंगी, जिनसे निपटने के लिए कंपनियों को प्रोडक्ट्स महंगे करने पड़ सकते हैं। यानी रुपया का कमजोर होना अंत में आम आदमी के लिए ही मुसीबत बनेगा।

विपक्ष महंगाई के खतरों की तरफ सरकार का ध्यान दिला रहा है। लेकिन सरकार विपक्ष की बात सुने तभी कोई हल निकलेगा। अभी तो प्रधानमंत्री मोदी की प्राथमिकताएं ही अलग नजर आती हैं। केवल अपने निवास या कार्यालय का नामकरण कर्तव्य शब्द से कर देने से कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता है। नाम कोई भी हो, वहां रहने वाला शख्स, प्रधानमंत्री पद पर बैठा शख्स कितनी सजगता से अपनी जिम्मेदारी निभाता है, वही अहम है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जन खड़गे ने कहा है कि, 'सरकार की नीतियों ने रुपये को कमजोर किया है। हमारी करेंसी का अब दुनिया में कोई मोल नहीं रह गया है। यदि सरकार की नीतियां सही होतीं तो रुपये की कीमत में सुधार होता। रुपये में गिरावट से जाहिर होती है कि हमारी अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं है।


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