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अमेरिका के पलटने से वैश्वीकरण का सपना टूटा

अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने अमेरिकी नीति में और अधिक बदलाव का संकेत देने वाले एक महत्वपूर्ण भाषण में वैश्वीकरण की नीति को खारिज कर दिया है

अमेरिका के पलटने से वैश्वीकरण का सपना टूटा
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- जगदीश रत्तनानी

ये महत्वपूर्ण बदलाव हैं जो दुनिया के कई कोनों में अपना प्रभाव डालेंगे क्योंकि अमेरिका की ताकत और उसके बड़े व्यवसायों की शक्ति एवं पहुंच नए राजनीतिक माहौल के अनुरूप है। अमेरिका के सामने नि:संदेह एक जटिल और परेशान समय है जो ऐसी कई क्रॉस धाराओं के बीच मुड़ता है जिनके पास ताकत हैं।

अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने अमेरिकी नीति में और अधिक बदलाव का संकेत देने वाले एक महत्वपूर्ण भाषण में वैश्वीकरण की नीति को खारिज कर दिया है। उन्होंने उस विचार प्रणाली पर भी हमला किया है जिसने अमेरिकी कंपनियों को आउटसोर्स सुविधाओं में आप्रवासियों और सस्ते श्रम से लाभ कमाने में सक्षम बनाया है। भाषण का फोकस अमेरिकी कंपनियों द्वारा अमेरिकी उत्पाद डिजाईनों को त्यागने और लागत बचाने के लिए कहीं और उत्पादित उत्पादों को अपनाने के कारण अमेरिकियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा ।

वेंस ने चीन का नाम तीन बार लिया लेकिन भारत का नहीं। फिर भी, ऑफ़शोरिंग की बुराइयों पर ज़ोर देने से इसमें कोई संदेह नहीं रह गया कि भारत के सॉफ़्टवेयर और संबंधित सेवाओं को इस तर्क के व्यापक विषय से बाहर नहीं रखा गया था। भारत ने वर्ष 2023-24 में 200 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का निर्यात किया जिसमें से आधे से अधिक अमेरिका को किया गया है। ट्रम्प पहले भी भारतीय कॉल सेंटरों का मजाक उड़ा चुके हैं जिनमें से अधिकांश यूएस-आधारित ग्राहकों की सेवा करते हैं लेकिन पहले ही एआई-संचालित समाधानों की बढ़ती तैनाती के कारण एक अलग खतरे में हैं। उपराष्ट्रपति वेंस 18 मार्च को उद्यम पूंजी फर्म आंद्रेसेन होरोविट्ज़ द्वारा आयोजित एक तकनीकी कार्यक्रम अमेरिकी गतिशीलता शिखर सम्मेलन में बोल रहे थे। शिखर सम्मेलन 'राष्ट्रीय हित' के लिए काम करता है; और इस संदेश के साथ 2025 की बैठक को बढ़ावा दिया गया कि 'यह अमेरिका के निर्माण करने का समय है।'

हालांकि यह कहना मुश्किल है कि वेंस की नीति तत्काल कैसे चल सकती है और अगर यह एक जटिल और बेहद कुशलता से काम करने वाली वैश्विक मूल्य श्रृंखला को उजागर करने का एक यथार्थवादी उद्यम है' तो भारतीय संदर्भ में कई दिलचस्प बातें सामने आ खड़ी होती हैं।

पहली तो यह कि, भारत अब चीनी मॉडल की नकल करके विनिर्माण केंद्र बनाने या बनने की उम्मीद नहीं कर सकता। फॉक्सकॉन जैसी कंपनियों को अपने कारखानों को भारतीय साइटों पर लाने और अमेरिकी बड़ी कंपनियों के लिए निर्माण करने वाली बात पीछे छूट रही है। उस तरह के विनिर्माण आधार के निर्माण का खेल इसकी समाप्ति तिथि से आगे निकल चुका है। यहां तक कि यदि भारत इस नीति को जारी रखता है तो भी वह यह खेल के निचले सिरे तक ही सीमित रहेगा। वह भी ऐसी जगह जिसे चीन ने इस श्रृंखला में कुछ ज्यादा पाने के लिए पीछे छोड़ दिया था। उदाहरण के लिए, आंकड़ों के मुताबिक चीन में 2009 में आईफोन 3 जी की असेंबली के लिए कुल मूल्य केवल 6.5 अमरीकी डालर या उस मॉडल के लिए सामग्री के बिल का 3.6 प्रतिशत था। यह केवल फॉक्सकॉन द्वारा असेंबली के लिए था। एक दशक बाद 2018 में आईफोन एक्स के लिए यह 104 अमरीकी डालर या सामग्री के बिल का 25.4 प्रतिशत तक पहुंच गया क्योंकि चीन बहुत धीरे-धीरे आपूर्ति श्रृंखला में एकीकृत हो गया और बैटरी, फ्रेम तथा कैमरा मॉड्यूल जैसे कई (गैर-कोर) भागों की आपूर्ति की। यह डेटा टोक्यो के नेशनल ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी स्टडीज के युकिंग जिंग की रिपोर्ट से है।

वेंस के विरोध का एक कारण मूल्य श्रृंखला में चीन का ऊपर जाना भी है, जबकि अमेरिका इस बात से नाखुश है कि वैश्वीकरण ने अमेरिका से नौकरियां छीन ली हैं। (मूल्य श्रृंखला व्यवसायों के लिए रणनीतिक योजना का एक अभिन्न अंग है। मूल्य श्रृंखला किसी उत्पाद या प्रक्रिया के पूरे जीवनचक्र को संदर्भित करती है , जिसमें सामग्री सोर्सिंग, उत्पादन, खपत और निपटान-पुनर्चक्रण प्रक्रियाएं शामिल हैं।) अमेरिका इस बात से भी असहज है कि इस प्रक्रिया ने उन देशों को लाभान्वित किया है जहां उत्पादों या सेवाओं का निर्माण होता है। दूसरे शब्दों में अमेरिका स्वीकार कर रहा है कि वैश्वीकरण केवल अमेरिकी हितों की सेवा के लिए था और विनिर्माण केंद्रों के लिए काम नहीं करने वाला था। वेंस ने इसे कई शब्दों में कहा- 'हमने माना कि अन्य राष्ट्र हमेशा मूल्य श्रृंखला में हमारा पीछा करेंगे लेकिन यह पता चला है कि जैसे-जैसे वे मूल्य श्रृंखला के निचले छोर पर बेहतर होते गए उन्होंने भी ऊंचे स्तर (इसमें प्रीमियम, अपस्केल, शानदार, टॉप-ऑफ़-द-लाइन और उच्च-गुणवत्ता शामिल हैं) पर पकड़ना शुरू कर दिया। हम दोनों सिरों से निचोड़े गए थे। यह वैश्वीकरण का पहला झूठा घमंड या दावा था।

तथ्य यह है कि भारत को खतरे के रूप में कम नहीं समझा गया है या उल्लेख नहीं किया गया है, यह भी एक संकेतक है कि देश अपने सभी दावा किए गए तकनीकी कौशल के लिए सस्ते श्रम वाली मध्यस्थता में फंसा हुआ है जिसमें नारायण मूर्ति के युवाओं के लिए 70 घंटे के कार्य सप्ताह जैसे नुस्खे में सीमित आकांक्षाएं देखी गई हैं। भारत को उत्तेजक, आकर्षक और अभिनव सॉफ्टवेयर समाधानों के साथ आगे होना चाहिए था लेकिन भारत की नीतियां बहुत धीमी गति से आगे बढ़ने की है; जबकि चीनियों ने लंबी छलांग मारकर खुद को आगे कर लिया जिसके उदाहरण डीपसीक, मानुस या अलीबाबा के क्यूडब्ल्यूक्यू -32 बी जैसे चीनी एआई मॉडल हैं।

वेंस के अनुसार, वैश्वीकरण का दूसरा झूठा दावा यह था कि सस्ता श्रम एक बैसाखी बन गया, यहां तक कि एक नशीली दवा बन गया जिसने अमेरिकी नवाचार को दबा दिया है। वेंस की योजना के अनुसार यदि यह 'दवा आपूति' काट दी जाती है तो कंपनियों को उसी काम के लिए अधिक भुगतान करने के लिए मजबूर किया जाएगा जो उन्हें उत्पादकता और मार्जिन बनाए रखने हेतु नवाचार करने के लिए प्रेरित करेगा। पहले कई लोगों ने आउटसोर्सिंग को एक नवाचार कहा है। अब हम एक ऐसे चरण में पहुंच गए हैं जहां आउटसोर्सिंग को नवाचार की मौत की घंटी के रूप में देखा जा रहा है। यह एक नाटकीय उलटफेर है जो यह संकेत दे सकता है कि रोजमर्रा में अमेरिकी श्रमिकों के गुस्से ने कितना कुछ गहरा छोड़ दिया है।

दूसरी बात जो सामने आती है वह यह है कि उपभोक्तावाद ने अमेरिका के मन में खालीपन भर दिया है। इसका बड़ा सबूत इस बात से मिलता है जब वेंस इशारा करते हैं कि 'श्रमिकों को उनकी नौकरियों से, उनके समुदायों से, उनकी एकजुटता की भावना से अलग करने' के कारण अमेरिका को नुकसान पहुंचा है। उपभोक्तावाद विरोधी गहरी भावना के साथ उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट रूप से कहा- 'आप लोगों में उनके उद्देश्य की भावना से अलगाव देखते हैं और महत्वपूर्ण बात यह है कि वे एक ऐसे नेतृत्व को देखते हैं जो मानता है कि लोक कल्याण नौकरी की जगह ले सकता है और एक मोबाईल फोन एप उद्देश्य की भावना को बदल सकता है।? वेंस ने वास्तव में तर्क दिया कि पैसा भले ही उपलब्ध हो लेकिन वह 'किसी ऐसी चीज को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है जो काम के बारे में सम्मानजनक और उद्देश्यपूर्ण थी।'

ये महत्वपूर्ण बदलाव हैं जो दुनिया के कई कोनों में अपना प्रभाव डालेंगे क्योंकि अमेरिका की ताकत और उसके बड़े व्यवसायों की शक्ति एवं पहुंच नए राजनीतिक माहौल के अनुरूप है। अमेरिका के सामने नि:संदेह एक जटिल और परेशान समय है जो ऐसी कई क्रॉस धाराओं के बीच मुड़ता है जिनके पास ताकत हैं।

क्यू-एनॉन और इसके मनगढ़ंत दावों और षड्यंत्र के सिद्धांतों को भूल जाइए। हम नए क्षेत्र में हैं जिसमें 'डार्क एनलाइटनमेंट' नामक नव-प्रतिक्रियावादी आंदोलन के संस्थापक टेक नेता कर्टिस यारविन जैसे पर्दे के पीछे के प्रभावशाली खिलाड़ी हैं, जो चाहते हैं कि अमेरिकी लोकतंत्र को राजशाही में बदल दिया जाए। तकनीकी-स्वच्छंदतावाद का उदय सरकार की दखलदांजी को कम करना और व्यक्तियों के लिए अधिक स्वतंत्रता उपलब्ध कराएगा लेकिन विपक्ष को चुप कराने के लिए सरकार का अधिकतम उपयोग करने के लिए तैयार है। बेशक, ऐलन मस्क हैं जो मानते हैं कि सरकार एक हिंसक एकाधिकार है और इसे ध्वस्त करने की जरूरत है। पे पॉल के सह संस्थापक पीटर थिएल हैं जो मानते हैं कि मृत्यु अपरिहार्य नहीं है। फिर ट्रम्प भी हैं जो हमेशा के लिए राजा बनकर खुश रहना चाहते हैं।

भारत में कुछ लोगों को उम्मीद थी कि ट्रम्प एक दक्षिणपंथी सरकार के लिए पसंद के साथी थे, इन घटनाओं को देखते हुए उम्मीद है कि उनकी आंखें खुल जाएंगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडीकेट: द बिलियन प्रेस)


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