गायब होता गंधमर्दन पर्वत
खनन का परिणाम-अगर गंधमर्दन पहाड़ से सारी खनिज संपदा निकाली जाएगी तो न तो भारत सरकार और न ही ओडिशा सरकार को कोई रॉयल्टी मिलेगी, लेकिन यदि खनन होगा तो सभी खनिज संसाधन समाप्त होने के बाद परिणाम गंभीर होंगे

- रमाकांत नाथ
खनन का परिणाम-अगर गंधमर्दन पहाड़ से सारी खनिज संपदा निकाली जाएगी तो न तो भारत सरकार और न ही ओडिशा सरकार को कोई रॉयल्टी मिलेगी, लेकिन यदि खनन होगा तो सभी खनिज संसाधन समाप्त होने के बाद परिणाम गंभीर होंगे। सबसे पहले, गंधमर्दन गायब होने से प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन गड़बड़ा जाएगा। गंधमर्दन में औषधीय पौधों से स्थानीय लोगों को लाभ मिलता है और आयुर्वेदिक उपचार की सुविधा मिलती है।
ओडिशा का गंधमर्दन पर्वत एक बार फिर सुर्खियों में है। बलांगीर और बरगढ़ जिले की सीमा पर स्थित यह पर्वत श्रृंखला प्राकृतिक, आध्यात्मिक और जैव-विविधता के लिए महत्वपूर्ण है। 1980 के दशक में गंधमर्दन पर्वत एक राष्ट्रीय मुद्दा बना था। आज वही मुद्दा एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया है। भुवनेश्वर से 461 किमी, संबलपुर से 165 किमी, बरगढ़ से 105 किमी और पाइका माल से केवल 4 किमी दूर गंधमर्दन पर्वत प्रकृति की खूबसूरत गोद में स्थित है। इस पर्वत की ऊंचाई कहीं 2000 फीट और कहीं 3274 फीट है। गंधमर्दन पर्वत की चोटी पर एक समतल जगह है जिसकी लंबाई करीब 16 किमी और चौड़ाई एक किमी के करीब है।
घने जंगलों वाली यह पर्वत श्रृंखला कभी विभिन्न जंगली जानवरों का निवास स्थान थी। सांभर, हिरण से लेकर बाघ और हाथी तक, विभिन्न प्रकार के जानवर यहां रहते थे। 'भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण' की रिपोर्ट के अनुसार, गंधमर्दन पहाड़ों में पेड़ों की दो हजार से अधिक प्रजातियां हैं, जो पर्यावरण को संतुलित करने और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने में मदद करती हैं। गंधमर्दन पहाड़ों में औषधीय पेड़ों और झाड़ियों की 200 से अधिक प्रजातियां भी पाई जाती हैं। यहां से सुनारी धारा सहित 4 धाराएं और 22 जल निकाय निकलते हैं जिनमें से अंग और सुकतेल नदियां महानदी में गिरती हैं और उसकी जलधारण क्षमता में वृद्धि करती हैं।
खनन के लिए सर्वे और सरकारी तैयारी
1940 के दशक में 'भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण' ने गंधमार्दन पहाड़ों का अध्ययन करके बताया था कि यहां बड़ी मात्रा में खनिज संसाधन, बॉक्साइट हैं। 1948 में ओडिशा सरकार के 'इस्पात एवं खान विभाग' भारत सरकार के 'खनिज संसाधन विकास निगम' और 'भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण' ने संयुक्त रूप से गंधमर्दन में खनिज संसाधनों की उपस्थिति, मात्रा और गुणवत्ता निर्धारित करने का प्रयास किया। 1959 तक, उनका मानना था कि गंधमर्दन पर्वत में उच्च गुणवत्ता वाला बॉक्साइट प्रचुर मात्रा में है जिसकी मात्रा 200 मिलियन टन से भी अधिक हो सकती है। इस संबंध में वैज्ञानिक रिपोर्टें प्रकाशित की गईं, जो गंधमर्दन पहाड़ों से बॉक्साइट और अन्य खनिज संसाधनों के उत्खनन के लिए उपयोगी थीं। इसके बाद गंधमर्दन से एल्यूमीनियम संयंत्र के लिए आवश्यक कच्चा माल बॉक्साइट निकालने का प्रयास किया गया।
'बाल्को' का आगमन एवं व्यापक विरोध प्रदर्शन
वर्ष 1975 तक सार्वजनिक क्षेत्र की 'बाल्को' (भारत एल्यूमीनियम कंपनी लिमिटेड) ने मध्यप्रदेश के कोरबा में अपने एल्यूमीनियम संयंत्र के लिए बॉक्साइट निकालने के प्रयास शुरू कर दिए। भारत सरकार और तत्कालीन ओडिशा सरकार के साथ बातचीत के बाद 'बाल्को' को गंधमर्दन से खनन की अनुमति मिल गई, लेकिन गंधमर्दन इलाके के स्थानीय लोगों के विरोध के कारण यह काम नहीं हो सका। 'गंधमर्दन सुरक्षा युवा परिषद' ने 'बाल्को विरोधी आंदोलन' जारी रखा। धीरे-धीरे इस आंदोलन को आम लोगों का समर्थन मिलने लगा। इसमें कुछ राजनेता भी शामिल हुए। आंदोलन को सर्वोदय समाज का समर्थन मिलने के बाद राज्य और देश के कई पर्यावरणविद् और कार्यकर्ता इस क्षेत्र में आये और आंदोलन का समर्थन किया।
'सर्व सेवा संघ' द्वारा आयोजित 'ग्राम स्वराज और नगर स्वराज यात्रा' 'गंधमर्दन सुरक्षा आंदोलन' के समर्थन में बलांगीर और बरगढ़ जिलों से होकर गुजरी और यह मुद्दा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया। कई युवा स्वयंसेवी 'बाल्को' का विरोध करने के लिए आंदोलन में शामिल हुए और जन जागृति के साथ-साथ जनशक्ति निर्माण की दिशा में काम किया। धीरे-धीरे पूरे राज्य में गंधमर्दन के लिए जनमत व्यक्त किया गया और यह एक शक्तिशाली जनआंदोलन में बदल गया।
नागरिक समाज, पर्यावरणविद्, कॉर्पोरेट विरोधी समूह, समाजवादी आदि स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ एकजुट हो गए और उनकी संयुक्त शक्ति सरकार और कंपनी की लूट की योजनाओं को विफल करने में सफल रही। दस वर्षों तक विरोध के कारण 'बाल्को' को अपनी योजना से पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। 1987 में ओडिशा सरकार ने जन आंदोलन का मुकाबला करने के लिए एक समिति का गठन किया और 'बाल्को' को खनन में मदद करने की कोशिश की, लेकिन मजबूत जन आंदोलन के कारण उनकी यह योजना विफल हो गई।
फिर गंधमर्दन लूट अभियान-इन दिनों एक बार फिर गंधमर्दन का मुद्दा चर्चा का विषय बन गया है। ओडिशा में पहली बार भाजपा सरकार आने के बाद देश की सार्वजनिक संपत्ति लूटने वाली अडाणी कंपनी की नजर गंधमर्दन पर है। यहां से बॉक्साइट को लूटकर विदेशी बाजार में बेचकर करोड़ों रुपए कमाए जाने वाले हैं और इस योजना को भारत सरकार और ओडिशा सरकार का समर्थन प्राप्त है, जिसे डबल इंजन सरकार के रूप में प्रचारित किया जाता है। लोगों को अडाणी की इस योजना के बारे में पता न चले और उन्हें 'बाल्को' की तरह जनता के विरोध का सामना न करना पड़े, इसके लिए नए-नए हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।
मीडिया के मुताबिक, अडाणी कंपनी ने गंधमर्दन पर्वत के आसपास की जमीन खरीदी है। पता चला है कि बलांगीर जिले के खपराखोल क्षेत्र में हाल ही में अदाणी कंपनी द्वारा 18 एकड़ जमीन खरीदी है। इसी तरह, बरगड़ जिले के गई सिल्ट ब्लॉक के तहत कटाबहाल के युवाखोल गांव में 23 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया है। अडाणी कंपनी ने बलांगीर जिले के पाटनागढ़ तहसील के तहत बेलपाड़ा ब्लॉक डुडुकमल में 33 एकड़ जमीन, वालुपुरी गांव में 61 एकड़ जमीन खरीदी है। ऐसा प्रतीत होता है कि अडाणी कंपनी ने भैंसा सर्कल के तहत 43 एकड़ जमीन खरीदी है। इस तरह गंधमर्दन के आसपास के 27 प्लॉट अडाणी के नाम पर खरीदे गए हैं।
स्थानीय लोगों से पता चला है कि गंधमर्दन में कई महीनों से सरकारी सर्वे का काम चल रहा है। प्रशासन किसी को यह नहीं बता रहा कि यह सर्वे क्यों कराया जा रहा है। सरकार द्वारा कराए गए सर्वे और गंधमर्दन पहाड़ के आसपास अडाणी कंपनी द्वारा जमीन की खरीद से यह स्पष्ट है कि केंद्र, राज्य की सरकारें और अडाणी कंपनी मिलकर एक व्यापक योजना पर काम कर रहे हैं। यह योजना डकैती नहीं तो और क्या हो सकती है? आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार तेलनापाली, बुरोमाल, ढांडामुंडा, सापमुंडा, टिकपाली, लालखानपुर, चौलधारा जैसे कई गांवों में प्रचुर मात्रा में ग्रेफाइट और मैंगनीज हैं। जाहिर है, इन इलाकों में अडाणी कंपनी द्वारा जमीन खरीदने का उद्देश्य खनिज लूटना ही है।
खनन का परिणाम-अगर गंधमर्दन पहाड़ से सारी खनिज संपदा निकाली जाएगी तो न तो भारत सरकार और न ही ओडिशा सरकार को कोई रॉयल्टी मिलेगी, लेकिन यदि खनन होगा तो सभी खनिज संसाधन समाप्त होने के बाद परिणाम गंभीर होंगे। सबसे पहले, गंधमर्दन गायब होने से प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन गड़बड़ा जाएगा। गंधमर्दन में औषधीय पौधों से स्थानीय लोगों को लाभ मिलता है और आयुर्वेदिक उपचार की सुविधा मिलती है। जब वहां के औषधीय पौधे नष्ट हो जाएंगे तो इसका सीधा असर वहां की आबादी के स्वास्थ्य पर पड़ेगा। जैव-विविधता की हानि, जलधाराओं के सूखने, नदी के प्रवाह में कमी के कारण व्यापक पर्यावरणीय क्षति होगी। इसी तरह, कई लोगों का जीवन और आजीविका नष्ट हो जाएगी।
लोग क्या करें? ऐसे में लोगों को क्या करना चाहिए? कुछ लोग कह सकते हैं कि अडाणी कंपनी का मुनाफा ही जरूरी है। गंधमर्दन पर्वत को 'विशेष आर्थिक क्षेत्र' घोषित हो जाने के बाद लोगों के हाथ में कुछ नहीं बचेगा। ऐसे क्षेत्र में ग्रामसभा, न्यायालय प्रभावी नहीं होंगे और हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट भी अपनी असमर्थता दर्शायेंगे। इसलिए पूंजीपति दलाल अडाणी और डबल इंजन लुटेरी सरकारों के मंसूबों का मुकाबला करने के लिए आम लोगों को अभी से काम करना होगा।
(लेखक ओडिशा के वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)


