भाजपायी 'सेफ' की खुलती पोल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित पूरी भारतीय जनता पार्टी विपक्षियों, खासकर कांग्रेस के खिलाफ बयानबाजी करने में जुमलों का प्रयोग करने में माहिर है

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित पूरी भारतीय जनता पार्टी विपक्षियों, खासकर कांग्रेस के खिलाफ बयानबाजी करने में जुमलों का प्रयोग करने में माहिर है। केवल विरोधी दल के खिलाफ़ ही नहीं, वरन अपने पक्ष में हवा बनाने के लिये की जाने वाली बातों में भी वह कभी तुकबन्दी तो कभी नारेबाजी; और कभी अमर्यादित व असंसदीय की श्रेणी में रखी जाने वाली भाषा का इस्तेमाल करती है। यह भाषा कभी हिंसक होती है तो कभी नफरती अथवा अश्लील। जब से भारतीय जनता पार्टी केन्द्र की सत्ता में आई है और उसकी ताकत बढ़ी है, अशोभनीय भाषावली उसके सामान्य संवादों से लेकर नारों तक की प्रमुख पहचान है।
जिन मोदी पर देश के नैतिक मूल्यों, आदर्शों एवं गौरवशाली परम्परा के निर्वहन की जिम्मेदारी थी, वे ही अपनी बेलगाम भाषा के जरिये देश के माहौल को सतत बिगाड़ने में लगे रहते हैं। संसद के भीतर हो या बाहर कोई बैठक अथवा चुनावी प्रचार रैली- मोदी की शब्दावली नित नये जुमलों को जन्म देती है। पहले-पहल तो मोदी अपनी इस भाषा के जरिये लोगों को लुभाते रहे और उसका उन्हें चुनावी फायदा भी मिलता रहा, लेकिन अब जनसामान्य इस बात से अवगत हैं कि प्रधानमंत्री के पास इस लच्छेदार भाषा और शब्दजाल के अतिरिक्त कहने या करने के लिये कुछ भी नहीं है। इसलिये प्रारम्भिक भाषणों को छोड़ दिया जाये तो अब मोदी के सारे तीर खाली जाते हैं। उल्टे, उनके जवाब मिल जाते हैं और लोग तो नितांत अप्रभावित होते हैं- उनके समर्थकों को छोड़कर।
पहले भी मोदी रचित नफरती व हिंसक नारों का पुनर्घोष पूरा भाजपा नेतृत्व एवं काडर एक सुनियोजित अभियान के तहत करता रहा है, फिर चाहे वह प्रचार सभाएं हों या पारम्परिक व सोशल मीडिया हो। कब्रिस्तान बनाम श्मशान, कपड़ों से पहचान, 80:20 जैसे नारे जब देश के सर्वोच्च पद पर बैठा व्यक्ति दे रहा हो तो स्वाभाविक है कि निचले स्तर के नेता संसद के बाहर 'देश के गद्दारों को, गोली मारो...को' जैसे नारे बोलकर और संसद के भीतर विपक्षी नेता की जाति पूछने की निम्न हरकत शीर्ष नेतृत्व की आंखों में चढ़ने के लिये कर ही सकते हैं। उससे भी निचले स्तर के किसी निहायत गैर रचनात्मक (भाजपा की नज़रों में) सांसद को यह हक भी मिल जाता है कि वह देश की सबसे बड़ी पंचायत में एक निर्वाचित सांसद को उसके सम्प्रदाय व धर्म के नाम पर गालियां दे सके। मोदी एवं उनके अनुयायियों द्वारा ऐसी अपशब्दों वाली भाषा के जरिये देश की एकता तथा लोकतांत्रिक प्रणाली को किस कदर नुकसान पहुंचाया गया है वह सभी के सामने है और इसका आकलन सदियों तक होता रहेगा। ऐसे नारों तथा भद्दे जुमलों की फेहरिस्त लम्बी है जो दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। इस पर अधिक लिखना वक्त ज़ाया करना है। अच्छी बात यह है कि इनमें से अधिकांश नारे -जुमले खुद भाजपा को बेनकाब करने वाले साबित हुए हैं।
बहरहाल, उनका हाल ही में फेंका गया जुमला 'एक हैं तो सेफ हैं ' ऐसे ही मार खा रहा है। दरअसल, कुछ दिनों पहले हरियाणा में चुनाव प्रचार के दौरान योगी आदित्यनाथ ने 'बटेंगे तो कटेंगे' का नारा दिया था। जाहिर है कि वह वोटरों के धु्रवीकरण की दृष्टि से बुना गया था। इसका असर हुआ या नहीं इसका ठीक-ठाक आकलन तो नहीं हो सकता और न ही कोई दम ठोंक कर कह सकता है कि हरियाणा में हारी हुई बाजी भाजपा ने इसी नारे के बल पर जीती थी। तो भी यह नारा भाजपा के समर्थकों, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं, सरकार समर्थित मीडिया, आईटी सेल तथा विशाल ट्रोल आर्मी के काम का निकला। इसके जरिये आदित्यनाथ की लोकप्रियता बढ़ने पर मोदी की परेशानी स्वाभाविक थी। आखिरकार ऐसे बोल ही तो इन संगठनों में मशहूरियत का जरिया होते हैं। मोदी की दिक्कत यह है कि वे इस नारे से दूरी नहीं बना सकते थे परन्तु उन्हें मौका दिया महाराष्ट्र ने। वहां भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए (महायुती) के एक धड़े राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार गुट) ने साफ कर दिया कि 'यहां यह नारा नहीं चलेगा।' उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र का सेक्यूलर चरित्र इसे बर्दाश्त नहीं करेगा और यहां इसका सियासी नुकसान होगा। भाजपा के विरोध के बावजूद नवाब मलिक को टिकट देकर अजित पवार ने अपनी विचारधारा पर तो मुहर लगाई ही, भाजपा की सोच को भी खारिज किया।
मोदी ने इसका फायदा उठाया और कम धारदार नारा दिया- 'एक हैं तो सेफ़ हैं'। है तो यह भी ध्रुवीकरण को बढ़ाने वाला ही नारा पर यह भी मोदी-भाजपा पर उल्टा पड़ गया। पहले तो इसके मीम और कार्टून बने जिसमें मोदी को गौतम अदानी के साथ दिखाया गया। लोगों ने चुटीली टिप्पणियां भी कर मोदी व भाजपा की जमकर छीछालेदार की। प्रियंका गांधी का व्यंग्य बाण सबसे नुकीला निकला। महाराष्ट्र की एक सभा में उन्होंने कहा कि, 'अंग्रेजी में 'सेफ' के दो अर्थ होते हैं। एक है सुरक्षित होना तथा दूसरा है तिजोरी।' उपस्थित जनता के ठहाकों के बीच उन्होंने कहा कि 'इस तिजोरी में अदानी हैं जो मोदी राज में एकदम सुरक्षित हैं।' राहुल गांधी ने दोहरी मार की।
उन्होंने सोमवार को नाटकीय अंदाज में सबके सामने एक तिजोरी से दो तस्वीरें निकालीं। एक में मोदी-अदानी साथ थे और दूसरी धारावी की सैटेलाइट इमेज और नक्शा। उल्लेखनीय है कि धारावी के विकास की एक बड़ी परियोजना अदानी की जेब में जा सकती है। लोगों को शक है कि असली मकसद धारावी की जमीन हड़प करना है। वहां के लोगों को पहले विकास के नाम पर हटाया जायेगा तथा बाद में यह पूरा इलाका अदानी का हो जायेगा। तभी महाराष्ट्र के चुनाव में धारावी एक प्रमुख मुद्दा है जिसके लिये 20 नवम्बर को मतदान होगा और 23 को नतीजे निकलेंगे। उद्धव ठाकरे पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि उनकी सरकार बनने पर धारावी की परियोजना रद्द होगी, राहुल गांधी ने अब इस बात पर अपनी सहमति जतलाई है। राहुल गांधी ने यह भी कहा है कि भाजपा के पास लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं है, मुद्दों पर वह बात कर नहीं सकती, इसलिए भटकाने की राजनीति करती है। बहरहाल, मोदी के ध्वस्त होते जुमले और नारे भाजपा की परेशानी को बढ़ा रहे हैं।


