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हरियाणा से बना निराशा का माहौल महाराष्ट्र झारखंड से दूर होने की उम्मीद!

महाराष्ट्र, झारखंड और उत्तर प्रदेश सहित कुछ और राज्यों के विधानसभा उपचुनाव का प्रचार सोमवार शाम तक बंद हो जाएगा

हरियाणा से बना निराशा का माहौल महाराष्ट्र झारखंड से दूर होने की उम्मीद!
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- शकील अख्तर

मगर हरियाणा में कांग्रेस की हार ने उसे फिर से उसी गुमान में पहुंचा दिया। मोदी को कोई नहीं हरा सकता। आएगा तो मोदी ही! यही अहंकार महाराष्ट्र-झारखंड विधानसभा चुनावों और यूपी के उपचुनावों के प्रचार में दिखा। वही डर दिखाना। जनता की समस्याओं बेरोजगारी, महंगाई पर बात नहीं करना। अभी अव्यवस्था, लापरवाही के कारण झांसी मेडिकल कालेज में दस नवजात शिशु जल कर मर गए।

महाराष्ट्र, झारखंड और उत्तर प्रदेश सहित कुछ और राज्यों के विधानसभा उपचुनाव का प्रचार सोमवार शाम तक बंद हो जाएगा। प्रधानमंत्री और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इन चुनावों में लोकसभा चुनाव की तरह जबर्दस्त नफरत और तनाव फैलाने वाला प्रचार किया।

महत्वपूर्ण यह है कि लोकसभा चुनाव में 240 पर रुक जाने के बाद जब हरियाणा में चुनाव हुए तो भाजपा का प्रचार दबा हुआ था। वह उस आक्रामकता के साथ प्रचार नहीं कर रही थी जैसा पिछले दस साल से वह हर चुनाव यहां तक कि नगरपालिकाओं और पंचायतों तक में कर रही थी।

मगर हरियाणा में कांग्रेस की हार ने उसे फिर से उसी गुमान में पहुंचा दिया। मोदी को कोई नहीं हरा सकता। आएगा तो मोदी ही! यही अहंकार महाराष्ट्र-झारखंड विधानसभा चुनावों और यूपी के उपचुनावों के प्रचार में दिखा। वही डर दिखाना। जनता की समस्याओं बेरोजगारी, महंगाई पर बात नहीं करना। अभी अव्यवस्था, लापरवाही के कारण झांसी मेडिकल कालेज में दस नवजात शिशु जल कर मर गए। कई बुरी तरह झुलसी हुई अवस्था में हैं उनका कहीं कोई जिक्र नहीं करना। अभी आश्चर्यजनक रूप से मोरबी गुजरात में पुल गिरने से जो 135 लोग मारे गए थे, उस पुल का निर्माण करने वाले उद्योगपति जयसुख पटेल का सार्वजनिक सम्मान किया गया।

पहले उन्हें जमानत मिली फिर कोर्ट ने मोरबी जाने की परमिशन दी और फिर वहां उन्हें लड्डुओं से तौला गया। और जब यह लड्डू वितरण हुआ तो पुल हादसे में मरे लोगों के परिजनों ने कहा कि यह हमारे जख्मों पर नमक छिड़कने के समान है। मगर कौन सुनता है? यह जो टीवी बहसें बटने कटने, बेटी छीनने पर होती हैं, इन पर स्पेशल प्रोग्राम बनते हैं उनमें 135 लोगों की मौत केस के प्रमुख आरोपी के सम्मान पर सवाल उठाने की जगह कहां है? ऐसे ही झांसी मेडिकल कालेज में बच्चों के जिन्दा जल जाने का जिम्मेदारी किसकी है यह कौन पूछ सकता है?

बीजेपी फिर उसी तरह बड़े-बड़े दावे कर रही है, उससे भी बड़े-बड़े आरोप लगा रही है और मीडिया उन सबको जस्टिफाई (सही ठहराना) कर रहा है। हवा में चुनाव फिर हो रहा है।

लेकिन भाजपा को वापस वही माहौल देने का जिम्मेदार कौन? कांग्रेस के वह खाए-पिए नेता जिन्हें तीसरी बार क्या तीन बार और हरियाणा हार जाएं तो फर्क नहीं पड़ता। हरियाणा ने पूरे देश का माहौल बिगाड़ दिया। सोचिए जैसा कि माहौल था उसके अनुरूप अगर हरियाणा के नतीजे आ जाते तो क्या प्रधानमंत्री मोदी और असम एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री इस तरह नफरत और विभाजन फैलाने वाली बातें करते? बिल्कुल नहीं। उन्हें जनता की तरफ आना पड़ता। उसकी बात सुनना पड़ती। अब तो फिर वह पहले की तरह जो मुंह में आया बोल रहे हैं। कोई जवाबदेही नहीं। हिन्दू-मुसलमान, हिन्दू-मुसलमान पूरे झारखंड और महाराष्ट्र में इसके अलावा कुछ नहीं।

मणिपुर बुरी तरह जल रहा है। हालत कंट्रोल से बाहर हो गई है। और प्रधानमंत्री वहां जाने के बदले तीन देशों की विदेश यात्रा पर उड़ गए। डेढ़ साल से ज्यादा हो गया। प्रधानमंत्री मोदी एक बार भी मणिपुर नहीं गए। राहुल दो बार हो आए हैं। यही बात राहुल की उन्हें संवेदनशील नेता के तौर स्थापित करती है। मगर राजनीति बहुत बेरहम चीज होती है। वह केवल संवेदना के आधार पर नहीं चलती। उसे जीत की खुराक चाहिए होती है। लगातार।

राहुल की संवेदना। समाज के हर वर्ग से जाकर मिलना। उनके दुख दर्द समझना, मदद करना सब अच्छी बातें हैं। इस भागम भाग के दौर में, जहां भावनाएं एआई (आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, कृत्रिम बौद्धिकता) से दबाने की शुरूआत हो रही है, नारायण मुर्ति जैसे लोग युवाओं को सिर्फ दफ्तर में काम करते रहने की मशीन बनाने की बात कर रहे हैं। बिना जांचा हुआ उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जब हमारे प्रधानमंत्री हफ्ते में सौ घंटे काम करते हैं तो युवाओं को 70 घंटे क्यों नहीं करना चाहिए? ऐसे में राहुल कामकाजी वर्ग, मिस्त्री, कारीगर, छोटे व्यापारी जैसे अभी एक दिन पहले नागपुर में पोहे वाले से मिले, उनसे बात करते हुए उनके श्रम और उसकी एवज में होने वाली आय के बारे में पूछते हैं। चिंता करते हैं। तसल्ली देते हैं।

लेकिन इतना ही पर्याप्त नहीं है। 'मेरी कोशिश है कि सूरत बदलना चाहिए! सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं!' दुष्यंत कुमार गजल को हिन्दी में क्रान्तिकारी तेवर देने वाले। लक्ष्य सूरत बदलना होना चाहिए। बिना आपकी सरकार आए आपके विचार केवल सांत्वना का काम करेंगे। गरीब की कमजोर की हालत नहीं बदलेंगे। राहुल महाराष्ट्र में महिलाओं से पूछ रहे थे कि साढ़े तीन हजार रुपए मिलेंगे तो क्या करेंगी बात करने के लिए विषय अच्छा है। मगर और अच्छा तब होता है जब आप पक्का देने की स्थिति में हो। उसी के लिए चुनाव जीतना पड़ता है।

राजनीति में अपने सपनों को जमीन पर उतारने के लिए आपको सत्ता चाहिए। कार्ल मार्क्स के विचार अगर लेनिन सत्ता हासिल करके लागू नहीं करते तो क्या मार्क्सवाद को लोग आज इतना जानते? गांधी अगर आजादी नहीं पा पाते और उनके बाद नेहरू उनके नाम को इतना जिन्दा नहीं रखते तो क्या आज भाजपा संघ को गांधी से इतना परेशान होने की जरूरत पड़ती? गांधी का नाम खुद ही खत्म हो गया होता। अभी तक गोडसे के महिमामंडन की जरूरत नहीं पड़ती। क्या आप लोगों ने नोटिस किया कि इस बार अभी दो दिन पहले गोडसे की फांसी के दिन को याद किया गया। अखबारों में बड़े विश्लेषण थे। टीवी में भी प्रोग्राम थे।

मतलब उसका पक्ष रखना। और उसका पक्ष रखने का मतलब गांधी को गलत साबित करना। यह सब अभी तक करना पड़ रहा है इसीलिए गांधी आजादी पाने में सफल रहे और उनके बाद नेहरू उनके नाम को जिन्दा रखे। इसलिए यहां हरियाणा की बात आई। जिसने पूरे देश की आशा को निराशा में पलट दिया। उसके अपराधी निश्चिंत हैं। उनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं है। सारा मामला चुनाव आयोग पर डाल दिया गया है।

कोई कांग्रेस से यह पूछने को तैयार नहीं है कि चुनाव आयोग ने किया। तो आप उसका क्या बिगाड़ लोगे? वह मन ही मन हंसता होगा कि जब तक तुम में ताकत नहीं है तुम मेरा क्या कर लोगे? मैं और करुंगा। जब भी आदेश मिलेगा करूंगा।

अरे चुनाव आयोग तो मोदी जी का सबसे प्रमुख साथी है। उससे लड़ो मगर अपना घर भी देखो। चुनाव आयोग से लड़ने का मतलब है उसे दबाव में लेना। कि देख उनके कहने से गड़बड़ी मत कर हम बख्शेंगे नहीं। बहुत कड़ी सज़ा देंगे, दिलवाएंगे। वह थोड़ा डर सकता है।

लेकिन अंतिम बात तो यही है कि चुनाव आपको इतनी ताकत से लड़ना और जीतना पड़ेगा कि चुनाव आयोग चाहे तब भी कुछ नहीं कर सके। परीक्षक किसी को फेल तब ही कर सकता है जब उसके 40-45 परसेन्ट मार्क्स हों। उन्हें काट-पीट कर वह 28-30 तक ला सकता है। मगर 70-80 परसेंट वाले को फेल करने की हिम्मत वह कभी नहीं कर सकता।

हरियाणा में कांग्रेस इतने ही स्कोर पर जा रही थी। मगर हरियाणा के कांग्रेसी नेताओं ने ही उसे खींचकर इतना नीचे कर दिया कि चुनाव आयोग के लिए सब आसान हो गया।

राहुल में बहुत अच्छाईयां हैं। जैसे ऊपर लिखा। मानवीयता, गरीब प्रेम, देश के विकास के लिए आधुनिक सोच। मगर यह सब करेंगे कैसे?
चुनाव जीतना पड़ेंगे। अब हार उनकी पार्टी सहन नहीं कर सकती। जीते हुए राज्य हारे हैं। लोकसभा में किसी क्षत्रप का कोई हस्तक्षेप नहीं था तो गठबंधन हुआ। विपक्ष एक रहा। मोदी बहुमत नहीं पा सके। उस दिन से लेकर हरियाणा के नतीजे के दिन तक निराशा में रहे। मगर हरियाणा की अप्रत्याशित जीत ने उन्हें वापस 2014 वाला आत्मविश्वास दे दिया।

महाराष्ट्र-झारखंड में क्या होगा 23 नवंबर शनिवार को सामने आ जाएगा। वहां अब कुछ करने को नहीं बचा है। पोलिंग बूथ और काउंटिंग सेन्टर हैं। जहां इंडिया गठबंधन के बाकी सहयोगी ज्यादा काम जानते हैं। वे करेंगे। लेकिन कांग्रेस को क्या करना है?

अगर कर सके तो आगे जीत के रास्ते में कोई रोड़ा बनने का साहस नहीं करेगा। और अगर नहीं किया जैसा कि अभी तक राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड कहीं किसी को हार के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया तो क्षत्रप खाए-पिये हैं। भाजपा के सिस्टम में भी उनके काम चलते हैं वे तब ही जीतेंगे जब उन्हें व्यक्तिगत रूप से फायदा होगा। नहीं तो हरियाणा की तरह पार्टी को हराते रहेंगे।

कांग्रेस अगर हरियाणा में कड़ा एक्शन ले ले। एक, दो, तीन जो भी हार के लिए जिम्मेदार हैं उनसे सब पोस्ट पोजिशन छीन ले तो कांग्रेस में नई जान आ जाएगी। अभी पांच साल हरियाणा में कोई चुनाव नहीं है। नया नेतृत्व खड़ा करने के लिए यह समय बहुत है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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