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तेजस्वी के नाम पर मुहर, देर आए, दुरुस्त आए

बिहार की सियासत में गुरुवार को एक महत्वपूर्ण पड़ाव आया है। तेजस्वी यादव अब बाकायदा महागठबंधन की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिए गए हैं

तेजस्वी के नाम पर मुहर, देर आए, दुरुस्त आए
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बिहार की सियासत में गुरुवार को एक महत्वपूर्ण पड़ाव आया है। तेजस्वी यादव अब बाकायदा महागठबंधन की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिए गए हैं। बुधवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत और बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लवरू की तेजस्वी यादव से खास मुलाकात हुई, इसमें लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी भी मौजूद थे, तभी तय हो गया था कि अब महागठबंधन में मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर दिया जाएगा। इस मुलाकात के बाद यह भी साफ हो गया कि महागठबंधन बिखर गया है। बीते कई दिनों से एनडीए के नेता लगातार ये बयान दिए जा रहे हैं कि जो लोग अपने गठबंधन को नहीं संभाल पाए, वो राज्य क्या संभालेंगे। दरअसल कांग्रेस, आरजेडी समेत महागठबंधन के ही तमाम लोगों ने यह मौका एनडीए को दिया कि वह उनके मामूली मतभेदों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करे। महागठबंधन ने सीट बंटवारे का कोई ऐलान नहीं किया, कुछ सीटों पर राजद और कांग्रेस के प्रत्याशी दोनों ही उतार दिए गए तो कुछ पर वामदलों के साथ कांग्रेस के मुकाबले की संभावनाएं बनीं। जनअधिकार पार्टी के नेता और सांसद पप्पू यादव खुलेआम कांग्रेस का साथ देते हैं और उनका दावा है कि बिहार में राहुल गांधी बनाम नरेन्द्र मोदी का चुनाव है। पप्पू यादव ने लालू प्रसाद को अभिभावक बताते हुए यह अपील भी कर दी कि जो कांग्रेस की सीटें हैं, वहां राजद के प्रत्याशी न उतारे जाएं। बेशक ऐसा ही होना चाहिए लेकिन पप्पू यादव के इस तरह सार्वजनिक तौर पर बयान देने से बनी हुई बात भी बिगड़ सकती है। कांग्रेस और राजद दोनों ही दलों को अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को सख्त हिदायत देनी चाहिए कि पार्टी लाइन से हटकर कुछ न कहें और खासकर गठबंधन के लोगों के बारे में बिना अधिकृत हुए बयान न दें।

महागठबंधन को यह समझना चाहिए कि उसका मुकाबला केवल दूसरे गठबंधन से नहीं है। बल्कि उस एनडीए से है, जिसका नेतृत्व भाजपा कर रही है। केंद्र से लेकर राज्य की सत्ता उसके हाथ में है। संसाधनों के मामले में वह महागठबंधन से काफी ज्यादा मजबूत है। सारी केन्द्रीय एजेंसियां उसके अधीन हैं और जनसुराज पार्टी, बसपा, एआईएमआईएम जैसे दल भी किसी न किसी तरह भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए ही मैदान में उतरते हैं। ऐसे में महागठबंधन के पास अपनी भावी रुपरेखा दिखाने के अलावा और कुछ खास नहीं बचता है, जिसके आधार पर वह जनता को अपने साथ करे। जनता भी बदलाव चाहती है, लेकिन उसके लिए सामने बेहतर विकल्प होना चाहिए। अगर आपस में ही सारे दल लड़ेंगे तो फिर नुकसान ही होगा। 2019 के चुनाव इसका उदाहरण हैं, जिसमें विपक्ष की एकता कायम नहीं हो पाई। लेकिन 2024 के चुनाव में सब एक साथ टिके रहे तो हालात बेहतर हुए। झारखंड चुनाव में भी कांग्रेस और जेएमएम के साथ लड़ने का फायदा मिला, हालांकि अंदरूनी टकराव वहां भी रहा, फिर भी भाजपा हार गई। अब जेएमएम के लिए एक भी सीट न छोड़कर इंडिया गठबंधन ने उसे नाराज कर दिया है। अगर किसी घटक दल को सीट बंटवारे से बाहर रखना है, तो उसकी भरपाई कैसे हो, इसका इंतजाम इंडिया को करना चाहिए था। लेकिन यहां फिर चूक हुई।

राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने जब वोटर अधिकार यात्रा निकाली थी, तब लोगों ने जितने उत्साह से इसमें हिस्सा लिया, उससे जाहिर है कि लोगों ने इस साथ को पसंद किया। लेकिन उसके बाद राहुल गांधी बिहार के चुनावी परिदृश्य से लगभग गायब हैं। हो सकता है रणनीतिक तौर पर राहुल बिहार नहीं आ रहे, ताकि तेजस्वी यादव पर पूरा फोकस हो सके। तब भी यात्रा के दौरान जब तेजस्वी यादव ने राहुल के लिए भावी पीएम की बात कही और राहुल से तब सीएम फेस को लेकर सवाल हुआ तो वे उसे टाल गए, जबकि अगर वे कूटनीतिक तरीके से उसका जवाब दे देते, तो भाजपा के हाथों से एक बड़ा मौका निकल जाता। इस प्रसंग के बाद कई बार कांग्रेस से सवाल किए गए कि क्या तेजस्वी मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे और कांग्रेस नेता इसे टालते ही रहे। केवल अखिलेश प्रसाद या कन्हैया कुमार जैसे एक-दो नेताओं ने सीधे सवाल का सीधा जवाब दिया। कांग्रेस को इस टालमटोल का नुकसान भी हुआ, क्योंकि कहीं न कहीं बात आपसी भरोसे और सम्मान पर आ गई। जब लालू प्रसाद यादव ने अबकी बार तेजस्वी सरकार का नारा दे दिया तो महागठबंधन को इसी पर आगे बढ़ जाना चाहिए था।

चुनाव से महज 13-14 दिन पहले जो ऐलान किया गया, वही दो महीने पहले हो जाता तो चुनाव प्रचार की रणनीति, घोषणापत्र से लेकर सीट बंटवारे तक कई बातों में आसानी हो जाती। महाराष्ट्र में भी महाविकास अगाड़ी से यही गलती हुई थी कि उद्धव ठाकरे को वक्त रहते मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया गया, सीट बंटवारे में स्थानीय नेताओं की नाराजगी के कारण आखिरी वक्त तक उलझन बनी रही। इसका नुकसान साफ तौर पर उठाना पड़ा। दलों में मनमुटाव और बगावत के सुर एनडीए में भी सुनाई देते हैं, लेकिन वहां सारी कमान भाजपा के हाथों में रहती है और उस पर किसी का दबाव नहीं चलता। बल्कि मोदी-शाह अपनी मर्जी से घटक दलों को चलाते हैं। जो एनडीए के साथ नहीं हैं और कांग्रेस के खिलाफ हैं, वो दल भी परोक्ष तौर पर भाजपा को ही मजबूत करते हैं। इसलिए इंडिया गठबंधन दूसरे खेमे के झगड़ों में फायदा उठाने की जगह खुद को और मजबूत करे, तभी जनता के सामने बेहतर विकल्प प्रस्तुत कर सकेगा।

गुरुवार को तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री और मुकेश साहनी को उपमुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की घोषणा कर कांग्रेस ने सही कदम उठाया है। इसमें देर हुई है लेकिन बिगड़ी बात संभाली जा चुकी है। इसका अनुमान भाजपा की प्रेस कांफ्रेंस से हो गया। महागठबंधन की प्रेस कांफ्रेंस के फौरन बाद भाजपा की तरफ से रविशंकर प्रसाद पत्रकारों के सामने आए और उन्होंने लालू प्रसाद से लेकर तेजस्वी यादव तक पर जितने हमले किए, उससे जाहिर हो रहा है कि अब महागठबंधन का तीर बिल्कुल निशाने पर लगा है। अब एनडीए के सामने चुनौती खड़ी हो गई है कि वह नीतीश कुमार को सीएम का चेहरा घोषित करे, अगर वो नहीं करती है तो नीतीश कु मार दूसरा रास्ता पकड़ सकते हैं और अगर करती है तो फिर सम्राट चौधरी जैसे कई नेताओं की नाराजगी गठबंधन को नुकसान पहुंचाएगी।


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