इतिहास से छेड़छाड़ में देश का नुकसान
एनसीईआरटी की आठवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की नई किताब में दिल्ली सल्तनत और मुगल शासन काल की नयी तस्वीर पेश की गई है

एनसीईआरटी की आठवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की नई किताब में दिल्ली सल्तनत और मुगल शासन काल की नयी तस्वीर पेश की गई है। इसके जरिए विद्यार्थियों को समझाया जा रहा है कि यह इतिहास का अंधेरा दौर था। किताब में बाकायदा एक अस्वीकरण यानी डिस्क्लेमर दिया गया है, जिसमें लिखा है कि 'इतिहास के अंधेरे दौर' के लिए आज किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए। यह अस्वीकरण काफी अहमकाना लगता है, क्योंकि इतिहास और वह भी सदियों पुराने इतिहास के लिए तो यूं भी किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जो कुछ अतीत में घटा है, उसका तार्किक विश्लेषण करना, और गलतियों को न दोहराने का सबक लेना, इस मकसद के साथ इतिहास का पाठ किया जाना चाहिए। यह तभी हो सकता है जब इतिहास को संतुलित और संवेदनशील तरीके से पढ़ाया जाए।
इतिहास इस अर्थ में जटिल होता है कि वहां अच्छे और बुरे, सही और गलत का सीधा विभाजन नहीं होता, इनके बीच कई ऐसे मुकाम होते हैं, जहां हालात घटनाओं की व्याख्या करते हैं। कभी कोई राजा अपना राज्य बचाने के लिए क्रूरता का सहारा लेता है और कभी किसी राजा की अकर्मण्यहीनता में प्रजा पिसती है। हिंसा, रक्तपात, कत्लेआम, इंसानों की सामान की तरह तिजारत ऐसी कई अमानवीय घटनाएं भारत समेत पूरे विश्व इतिहास में दर्ज हैं। खासकर मध्ययुग का इतिहास तो इन्हीं से अटा पड़ा है, क्योंकि तब तक इंसान ने सभ्यता और विकास के मायने समझ लिए थे। आग और पहिए के आविष्कार के बाद अन्य पशुओं से आगे इंसान निकल गया तो उसके जीवन में व्यापार, धर्म और सियासत के लिए जगह बनने लगी। उस दौर में न कोई संविधान था, न आज की तरह का लोकतंत्र था, इसलिए नैतिकता के मापदंड भी अलग थे। तब की घटनाओं की व्याख्या आज के परिप्रेक्ष्य में नहीं की जा सकती। मगर मोदी सरकार इस काम को भी मुमकिन बनाने में लगी है।
दरअसल 2014 के बाद इतिहास के पुनर्लेखन पर ऐलानिया काम शुरु हो चुका है। इससे पहले जब भाजपा विपक्ष में थी, या उससे पहले जब बाजपेयी सरकार थी, तब भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सोच के मुताबिक ही भारतीय इतिहास का भगवाकरण करने की चाह भाजपा की रही, लेकिन उसे अमल में लाने का दुस्साहस कभी नहीं हुआ। अब चूंकि मोदी सरकार का तीसरा कार्यकाल चल रहा है, तो भाजपा को यह गुमान है कि उसकी सत्ता भारत में स्थायी हो चुकी है, इसलिए अब इतिहास को बदलने पर काम शुरु हो गया है। एनसीईआरटी की किताबों को इसका जरिया बनाया गया है। क्योंकि इसके जरिए नयी पीढ़ी के दिमाग में जहर बोने का काम आसानी से होगा। कोई आरोप लगाए तो उसे किताब का डिस्क्लेमर दिखाया जाएगा।
2025-26 सत्र के लिए प्रकाशित की गयी कक्षा 8 की नई किताब एक्सप्लोरिंग सोसाइटी इंडिया एंड बियॉंड (भाग 1) में बाबर, अकबर, औरंगजेब सभी को बेहद क्रूर, निर्दयी शासकों की तरह पेश किया गया है, जिन्होंने हिंदुओं के मंदिर तोड़े, उन पर जजिया कर लगाया और औरतों-बच्चों को बेरहमी से मारा। इसलिए इस पूरे काल के लिए अंधेरे शब्द का इस्तेमाल किया गया है। हालांकि इस अंधेरे दौर में ही रामचरित मानस लिखी गई और इसी दौर में विश््वप्रसिद्ध ताजमहल भी बना, जिसे देखने दुनिया भर के सैलानी आज भी आते हैं। भूमि की नापजोख से लेकर राग रागिनियों की रचना, खान-पान, पोशाकों पर प्रयोग सब इसी दौर में हुए। सबसे बड़ी बात यह कि जिस अंधेरे दौर का जिक्र कर मुगल शासकों पर आततायी होने का इल्जाम लगाया जा रहा है, और हिंदुओं के लिए उसे खतरे की तरह बताया जा रहा है, उस काल के गुजरने के बाद भी देश में हिंदू बहुसंख्यक हैं और मुस्लिम अल्पसंख्यक। 1526 से लेकर 1857 तक मुगलकाल 331 साल तक चला, इतने लंबे वक्त में तो भारतीय समाज की धार्मिक पहचान आसानी से बदल सकती थी। जैसा कि किताब में दावा है कि जजिया 'अपमानजनक कर' था, जो गैर-मुस्लिमों पर धर्मांतरण के लिए दबाव बनाने के उद्देश्य से लगाया जाता था। इस किताब में मंदिरों और गुरुद्वारों को तोड़ने का इल्जाम भी मुगल शासकों पर लगा। यह सब सौ फीसदी सच होता तो देश में न चार-पांच सौ साल पुराने मंदिर बचे होते, न हिंदुओं की आबादी मुस्लिमों से अधिक होती। दरअसल जो कुछ किताब में लिखा है, वह तस्वीर का एक ही पहलू है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि अकबर ने युद्ध नहीं किए या औरंगजेब ने मंदिरों को नष्ट नहीं किया। लेकिन औरंगजेब ने मंदिरों को दान भी दिए और अकबर ने जजिया कर को खत्म किया, इसके बाद धार्मिक एकता और सहिष्णुता बढ़ाने के लिए सुलह कुल नीति चलायी, जिसकी तारीफ खुद छत्रपति शिवाजी ने की है। उन्होंने लिखा कि अकबर ने 52 साल तक सभी समुदायों—ईसाई, ब्राह्मण, जैन, सिख—पर समान कृपा बरसाई, जिसके कारण उन्हें 'जगतगुरु' कहा गया। तो क्या अब एनसीईआरटी में इतिहास बदलने के लिए बैठे महानुभाव बताएंगे कि क्या शिवाजी भी अकबर के बारे में गलत थे।
सच तो ये है कि क्रूरता और धार्मिक स्थलों का विनाश केवल मुगल या सल्तनत काल तक सीमित नहीं था। इसके पहले और बाद में भी यह सब चलता रहा, क्योंकि किसी भी शासन में पहला मकसद अपने राज्य का विस्तार और आसपास के शासकों पर दबदबा कायम करना होता था। आज भारत में सम्राट अशोक को महान माना जाता है, क्योंकि उन्होंने कलिंग युद्ध के बाद हिंसा को त्यागा और बौद्ध धर्म अपना लिया। अशोक के शिलालेखों के अनुसार कलिंग युद्ध में 1 लाख लोग मारे गए और 1.5 लाख बंधक बनाए गए थे। मगर इस वजह से हम अशोक को क्रूर शासक के तौर पर याद नहीं करते हैं, फिर अकबर या अन्य मुगल शासकों के लिए यह पैमाना क्यों बन रहा है, यह विचारणीय है।
कई हिंदू शासकों ने अपने राज्य के लिए रक्तपात मचाया है। पुष्यमित्र शुंग (185 ईसा पूर्व) ने मौर्य वंश को उखाड़कर लाखों बौद्धों का नरसंहार किया और विहारों को नष्ट कर दिया। राजतरंगिणी में बताया गया है कि कश्मीर के राजा हर्ष ने मंदिरों को नष्ट करने के लिए एक विशेष अधिकारी नियुक्त किया था। दक्षिण भारत में चोल, चेर और पांड्य राजवंशों ने एक-दूसरे के मंदिरों और मठों को नष्ट किया। जब पेशवाशाही कायम हुई तब शूद्रों को गले में हांडी और कमर पर झाड़ू बांधकर चलना पड़ता था, ताकि उनके पैरों के निशान और थूक से 'उच्च' जातियां 'अपवित्र' न हों। यह सब इतिहासकार डी.डी. कोसांबी ने 'एन इंट्रोडक्शन टू द स्टडी ऑफ इंडियन हिस्ट्री' में बताया है। तो क्या एनसीईआरटी इस वजह से उच्च जातियों के कृत्य को अंधेरगर्दी बता सकती है, यह विचारणीय है। किशोरवय के बच्चों में इतिहास को पढ़ने की सही समझ विकसित करना एक चुनौतीपूर्ण काम है। इस उम्र में पैठ कर गई बातें उनके व्यक्तित्व को गढ़ती हैं। इन्हें नफरत की ओर धकेल कर मोदी सरकार देश का नुकसान कर रही है।


