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धर्मांधता के पागलपन का शिकार समाज

वैष्णव जन तो तेने कहिए रे, पीर पराई जाने रे, इस भजन के मायने हिंदू को जगाने वाले बेहूदा अभियान में गुम हो चुके हैं

धर्मांधता के पागलपन का शिकार समाज
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- सर्वमित्रा सुरजन

वैष्णव जन तो तेने कहिए रे, पीर पराई जाने रे, इस भजन के मायने हिंदू को जगाने वाले बेहूदा अभियान में गुम हो चुके हैं। राहुल गांधी के शब्दों में कह सकते हैं कि पूरे देश में केरोसिन छिड़क दिया गया है और चिंगारी लगने की देर है। अब ये चिंगारी बार-बार भड़कती हुई दिख रही है। दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया विवि में दीवाली उत्सव में रंगोली सजाने और दीयों के जलाने पर छात्रों के दो गुटों के बीच झड़प हो गई।

लगभग दो-ढाई दशक पहले न्यूज चैनलों ने टीआरपी बढ़ाने और सबसे आगे बने रहने की दौड़ में जब नए-नए प्रयोग करने शुरु किए थे, तब करवा चौथ के मौके पर किसी चैनल ने व्रत करने वाली महिलाओं के लिए चांद की लाइव तस्वीरें दिखाई थीं। उसके बाद यह सिलसिला मैदान में उतरे बाकी चैनलों ने भी शुरु कर दिया। उस समय पत्रकारिता और मीडिया का ऐसा हाल देखकर आश्चर्य हुआ था कि आखिर हमारा समाज किस दिशा में आगे बढ़ रहा है, जिसमें पूजा, व्रत जैसी निहायत व्यक्तिगत बातें भी अब खबरों के कारोबार में इस्तेमाल हो रही हैं। उस दौर में एनडीए की सरकार थी. वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे, लालकृष्ण आडवानी की प्रधानमंत्री बनने की हसरत थी और इंडिया शाइनिंग के नारे के साथ भाजपा को यकीन था कि भारत को चमकाने के नाम पर उसकी सियासत में चार चांद जरूर लगेंगे। बहरहाल, ऐसा नहीं हुआ, 2004 से 2014 तक यूपीए की सरकार रही। तब कांग्रेस के नेतृत्व में सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, मनरेगा, भोजन का अधिकार जैसे कई जनहितकारी फैसले भी आए। लेकिन अपने 10 सालों की सत्ता में कांग्रेस मीडिया के जरिए समाज में जहर भरने के दबे-छिपे एजेंडे को रोक पाने में नाकाम रही, बल्कि यह कहा जाए कि कांग्रेस समझ ही नहीं पाई कि उसकी नाक के नीचे दक्षिणपंथी ताकतें कैसा खेल कर रही हैं, तो शायद गलत नहीं होगा।

कांग्रेस की इस नासमझी, नाकामयाबी और नजरंदाजी का खामियाजा अब देश भुगत रहा है। क्योंकि अब न्यूज चैनल करवा चौथ पर केवल चांद नहीं दिखा रहे, मेंहदी जिहाद के एजेंडे को भी चला रहे हैं। नरेन्द्र मोदी जब से सत्ता में आए हैं, तब से किस्म-किस्म के जिहाद देश में बताए जाने लगे हैं। ताजा मामला करवा चौथ पर लगाए जाने वाली मेंहदी से जुड़ा है। इस त्यौहार के मौके पर शहरों के व्यस्त बाजारों में फुटपाथ पर मेहंदी लगाने और लगवाने वालों की भीड़ आम बात है, कई सालों से ऐसा सिलसिला चल रहा है। लेकिन इस बार उप्र में कुछ जगहों पर दुर्गावाहिनी संगठन या इसी तरह के हिंदुत्ववादी संगठनों ने ऐलान किया कि हिंदुओं के इस धर्म में मेंहदी लगाने का काम मुस्लिम समुदाय के लोग नहीं करेंगे। सोशल मीडिया पर एक युवक का वीडियो भी वायरल हुआ, जो भरे बाजार में मुस्लिम लड़कियों को मेंहदी लगाने से रोक रहा था और गुंडागर्दी कर रहा था। इस तरह की खबरों को अगर प्रचारित-प्रसारित न किया जाए, तो ऐसे पागलपन को वहीं दबाया जा सकता है, लेकिन अगर मकसद पूरे देश को धर्मांधता के पागलखाने में तब्दील करना ही हो तो मीडिया की सेवाएं ली जाती हैं। इसलिए करवा चौथ पर चांद और पति की लंबी आयु के लिए पूजा करने वाली सुहागिनों की तस्वीरों, फिल्मी सितारों की करवा चौथ वाली पूजा के वीडियो के साथ-साथ अब मेंहदी जिहाद पर कार्यक्रम प्रसारित हो रहे हैं। हिंदू-मुसलमान के नाम पर दिन-रात बहसें कराकर अच्छे-भले लोगों का रक्तचाप बढ़ाने वाले एंकर संघ और भाजपा के एजेंडे को पूरा करने में लगे हैं।

इस पागलपन में देश के एक बड़े तबके को शिकार बनाया जा रहा है, जिसके रोज नए उदाहरण सामने आ रहे हैं। दुर्गा विसर्जन के जुलूस में उप्र के बहराइच में दंगा भड़का जिसमें एक नौजवान की मौत हो गई। इसमें भी गलत खबरों को धड़ल्ले से प्रसारित किया गया। उस युवक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बारे में झूठी बातें फैलाई गईं और इसमें कई बड़े पत्रकारों और भाजपा नेताओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। हालांकि बहराइच पुलिस ने साफ कहा कि उस युवक को मारने से पहले यातनाएं देने की बात गलत है, ऐसा कुछ नहीं हुआ था। पुलिस की सफाई तो आ गई, लेकिन समाज में सांप्रदायिक जहर फैलाने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अगर होती तो शायद ऐसी कोशिशों पर थोड़ी रोक लगती। लेकिन बात वही है कि फिर भाजपा का मकसद पूरा करने का काम कौन करता।

झारखंड में पिछले चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने कपड़ों से पहचानने वाला बयान दिया था, अब वो बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा इस आदिवासी बहुल राज्य में उठा रहे हैं। उधर बिहार के सीमांचल को भी यही डर दिखाकर केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने की मांग उठी है। भाजपा सरकार में केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह हिंदू स्वाभिमान यात्रा निकालकर खुलेआम धर्मनिरपेक्षता की अवहेलना कर रहे हैं और संविधान की शपथ का अपमान कर रहे हैं। दो दिन पहले राजस्थान में भाजपा विधायक बालमुकुंद बासबदनपुरा के शिया इमामगाह मस्जिद में घुस गए थे। उस वक्त नमाज के लिए बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे, उनकी इबादत में दखल देते हुए बालमुकुंद ने कहा कि यह देवस्थान है। उनके इस तरह पहुंचने से हंगामा मचा और पुलिस तक खबर पहुंची, लेकिन पुलिस के आने से पहले विधायक महोदय वहां से चले गए। इमामबाड़े के इमाम ने पुलिस को दी शिकायत में बताया कि विधायक ने उनके साथ बदतमीजी की, यहां तक कि वे इबादतगाह में जूते पहनकर घुस गए। अभी पिछले दिनों कर्नाटक की अदालत ने मस्जिद में जय श्रीराम के नारे लगाने को गलत नहीं माना था। अब देखना होगा कि भाजपा विधायक पर कोई कार्रवाई होती है या इसे भी भाजपा राज में गलत नहीं माना जाएगा, क्योंकि वे तो हिंदुत्व का परचम लहराने ही इमामबाड़ा पहुंचे थे।

एक तरफ बटेंगे तो कटेंगे जैसे जुमले भाजपा उछाल रही है और सारे हिंदुओं को एकजुट करने के संघ सरसंचालक के निर्देशों पर अमल कर रही है और दूसरी तरफ हिंदुस्तान को अल्पसंख्यकों के लिए असुरक्षित देश बनाने में लगी है। इस खतरनाक एजेंडे की चपेट में जनता का एक बड़ा तबका पहले ही आ चुका है, अब न्यायपालिका, पुलिस प्रशासन, संसद और विधानसभाओं में बैठे लोग, खेल, कला जगत, व्यापारिक संस्थान, मीडिया से जुड़े लोग भी बिना किसी लिहाज, पर्दादारी के बेझिझक इस एजेंडे को गर्व के साथ आगे बढ़ा रहे हैं। उन्हें लगता है कि वे इस तरह अपने धर्म की सेवा कर रहे हैं, और इसी से देश की सेवा भी होगी। लेकिन असल में ये देश के खिलाफ भयानक षड्यंत्र में भागीदार बन रहे हैं। क्योंकि अब जिस तरफ निगाह दौड़ाइए, धर्म के नाम पर शक और नफरत से भरे लोग दिखाई देंगे, जिन्हें दूसरे धर्म के लोगों की खुशी से तकलीफ होती है और ये खुद तब खुश होते हैं, जब दूसरे पीड़ा में दिखाई दें।

वैष्णव जन तो तेने कहिए रे, पीर पराई जाने रे, इस भजन के मायने हिंदू को जगाने वाले बेहूदा अभियान में गुम हो चुके हैं। राहुल गांधी के शब्दों में कह सकते हैं कि पूरे देश में केरोसिन छिड़क दिया गया है और चिंगारी लगने की देर है। अब ये चिंगारी बार-बार भड़कती हुई दिख रही है। दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया विवि में दीवाली उत्सव में रंगोली सजाने और दीयों के जलाने पर छात्रों के दो गुटों के बीच झड़प हो गई। आरोप है कि एक गुट रंगोली मिटाने और दीयों को बुझाने की कोशिश कर रहा था, जिसमें दोनों के बीच झड़प हुई। आरोप का सच और झूठ तो जांच का विषय है, लेकिन यह साफ दिख रहा है कि देश के शैक्षणिक संस्थानों में धर्मांधता के पागलपन का वायरस अच्छे से घुसा दिया गया है।

होली, दीवाली, ईद, क्रिसमस बरसों-बरस शांति और सौहार्द्र के साथ मनाए जाते रहे हैं। धर्मों को लेकर झगड़े भी होते रहे, लेकिन पूरा का पूरा समाज उनमें उलझा हुआ दिखाई नहीं दिया। मगर करवा चौथ का चांद दिखाने से लेकर मेहंदी जिहाद तक लाने के सफर में समाज को उलझाने की कोशिश कामयाब हो चुकी है। इसलिए प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश का साथ आरती करना दिव्य घटना के समान लगता है। अयोध्या विवाद जैसे गंभीर मामले में फैसला लेने के लिए भी सीजेआई को भगवान के सामने बैठना पड़ा यह बात खुद उन्होंने कही है। फैसला तो हिंदुओं के पक्ष में आया और बाबरी मस्जिद तोड़ने वाले अब भी खुले ही घूम रहे हैं। लेकिन इस इंसाफ पर सवाल उठाने की गुंजाइश भी भगवान का नाम लेकर खत्म की गई है।

धर्मांधता की बीमारी के इलाज की उम्मीदें दिन ब दिन कम होती जा रही हैं। अब समाज सोचे कि वह इस पागलपन से खुद को अपनी भावी पीढ़ियों को कैसे बचाए, क्योंकि जिन लोगों ने ये बीमारी बढ़ाई है, उनके बच्चे बाहर पढ़-लिख कर बस रहे हैं और आपके बच्चे विदेश जाकर पढ़ना चाहें तो उसे बीमारी करार दिया जा रहा है। अब लोग शिक्षा या डिग्री जिहाद का जुमला सुनने के लिए भी तैयार रहें।


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