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महाराष्ट्र में एनडीए की बदहाली के संकेत

महाराष्ट्र में आगामी चुनावों को लेकर भारतीय जनता पार्टी किस कदर मायूस है, इसके संकेत इसी बात से मिल रहे हैं कि अब वहां सियासत को लेकर झूठ बोलने का सिलसिला शुरु हो गया है

महाराष्ट्र में एनडीए की बदहाली के संकेत
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महाराष्ट्र में आगामी चुनावों को लेकर भारतीय जनता पार्टी किस कदर मायूस है, इसके संकेत इसी बात से मिल रहे हैं कि अब वहां सियासत को लेकर झूठ बोलने का सिलसिला शुरु हो गया है। यहां भाजपा की शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) एवं नेशनल कांग्रेस पार्टी (अजित पवार गुट) के साथ मिलकर बनाई गई नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी गठबन्धन की सरकार है। राज्य की 288 सीटों पर 20 नवम्बर को चुनाव होंगे।

झारखंड के साथ होने जा रहे चुनावों के नतीजे एक साथ 23 नवम्बर को घोषित हो जायेंगे। एक तरफ एनडीए के सभी धड़े एक साथ किस प्रकार चुनाव लड़ते हैं- यह देखने की दिलचस्पी सभी को है। दूसरी तरफ मराठा आरक्षण के सबसे बड़े नेता मनोज जरांगे पाटिल न केवल चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं बल्कि उन्होंने कतिपय मुस्लिमों के साथ बाकायदे गठबन्धन बनाकर चुनाव लड़ने का ऐलान करते हुए बदलते समीकरणों की ओर इशारा किया है। देखना होगा कि परस्पर मनमुटाव तथा फूट की आशंका के साथ एनडीए किस प्रकार से चुनाव लड़ती है। साथ ही मराठा-मुस्लिम गठबन्धन के कारण किसे नुकसान होता है और कौन लाभ उठायेगा- यह देखना भी दिलचस्प होगा। हालांकि तमाम तरह के राजनीतिक घटनाक्रमों के बावजूद बताया यही जाता है कि यहां एनडीए कमजोर स्थिति में है तो वहीं कांग्रेस के साथ महाविकास अघाड़ी कहे जाने वाला गठबन्धन मजबूत व एकजुट है।

इंडिया की मजबूती भाजपा व एनडीए को परेशान किये दे रही है शायद इसलिए गृहमंत्री अमित शाह ने यह गलत बयान दिया था कि शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता संजय राऊत ने उनसे फोन पर बात की थी। शाह का आशय यह भ्रम फैलाना था कि उद्धव की पार्टी एनडीए में फिर शामिल होना चाहती है। शाह के इस असत्य की पोल खोलते हुए स्वयं संजय राऊत ने सोमवार को एक प्रेस कांफ्रेंस कर इस दावे को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि 'भाजपा का काम ही झूठ फैलाना है।' पिछले दिनों एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत इस आशय की खबरें फैलाई जा रही थीं कि एमवीए में सब कुछ ठीक नहीं है और वह महाराष्ट्र में टूट सकता है। यह भी बताया गया कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना भाजपा के साथ मिलकर लड़ने की उत्सुक है। कुछ सीटों के लिये मतभेदों को चलते यह झूठ फैलाया जा रहा था परन्तु संजय राऊत ने न केवल मिलकर चुनाव लड़ने की बात कह डाली वरन यह भी बताया कि 'महाराष्ट्र को लूटने वाली सरकार के खिलाफ यह चुनाव होगा।'

2019 में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में चल रही सरकार को गिराने के लिये भाजपा ने शिवसेना तथा एनसीपी को तोड़ा था जिसे लेकर जनता में अब भी नाराजगी है। महाराष्ट्र के जनसामान्य की निगाहों में असली शिवसेना वही है जिसके प्रमुख उद्धव हैं और वास्तविक एनसीपी वह है जिसके नेता शरद पवार हैं। यहां सरकार को लेकर एंटी इनकम्बेंसी साफ दिखलाई दे रही है।

अमित शाह, नरेन्द्र मोदी एवं भाजपा की महाराष्ट्र के चुनाव को लेकर परेशानी के कुछ अन्य सबब भी हैं। विशेषकर इस राज्य से कुछ उद्योगों एवं परियाजनाओं के गुजरात स्थानांतरित किये जाने को लेकर भी लोगों में रोष है। गुजरात की कारोबारी लॉबी की महाराष्ट्र में दखलंदाजी बढ़ रही है जो चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है। वहां के बड़े उद्योगपतियों की गोरेगांव एवं धारावी पर बड़ी परियोजनाओं के बहाने नज़रें गड़ी हुई हैं। गोरेगांव फिल्म सिटी के पास बनने वाली विकास परियोजना पर उद्धव ठाकरे ने सीएम रहने के दौरान रोक लगा दी थी। ऐसे ही, धारावी की जमीन पर भी विकास के नाम पर एक बड़े गुजराती कारोबारी की निगाहें पड़ चुकी हैं। लोग जानते हैं कि एनडीए की सरकार फिर से आई तो महाराष्ट्र के उद्योग जगत पर कुछ गुजराती व्यवसायियों का कब्जा हो जायेगा। इसके विपरीत यदि एमवीए यानी इंडिया गठबन्धन की सरकार आती है तो मुम्बई एवं महाराष्ट्र को देश के अग्रणी कारोबारी राज्य होने का दर्जा फिर से मिल जायेगा।

यहां ज्यादातर सीटों के बंटवारे को लेकर इंडिया गठबन्धन में सहमति बन चुकी है। माना जाता है कि निर्धारित समय में सभी सीटों पर सहमति हो जायेगी। अलबत्ता इंडिया के एक भागीदार दल समाजवादी पार्टी ने राज्य में अपने उम्मीदवारों के लिये 12 सीटें मांगी हैं और एक सीट पर तो अपना उम्मीदवार घोषित भी कर दिया है। देखना यह है कि सपा को कैसे समाहित किया जाता है। बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहां हिन्दीभाषियों का, विशेषकर उत्तर प्रदेश एवं बिहार से आये लोगों की बहुलता है। इसके अलावा वह घटनाक्रम भी महत्वपूर्ण है जिसमें मनोज जरांगे ने राज्य में चुनाव के उन सभी सात-आठ हजार इच्छुकों को परचे दाखिल करने के लिये कह दिया है, जिन्होंने उन्हें आवेदन दिये हैं। 4 नवम्बर तक वे इस बात का फैसला करेंगे कि किन उम्मीदवारों को वे समर्थन देंगे तथा किन्हें नाम वापस लेने के लिये कहा जायेगा। प्रदेश में मराठा आरक्षण तो एक मुद्दा है ही, जरांगे कुछ मुस्लिम संगठनों से गठबन्धन कर चुनाव लड़ने की तैयारियां भी कर रहे हैं। माना जाता है कि गठबन्धन समग्र रूप से तो नहीं पर कुछ प्रत्याशियों के खेल को बिगाड़ सकते हैं।


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