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शेख हसीना को फांसी की सजा

बांग्लादेश एक बार फिर 70 के शुरुआती दशक वाली उथल-पुथल के दौर के गुजर रहा है

शेख हसीना को फांसी की सजा
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बांग्लादेश एक बार फिर 70 के शुरुआती दशक वाली उथल-पुथल के दौर के गुजर रहा है। फर्क यही है कि अब पाकिस्तान उसका करीबी है और उसे बनाने वाले भारत को वह संदेह की नजर से देख रहा है। क्योंकि इस समय पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना यहां की शरणागत हैं। अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को मानवता के ख़िलाफ़ अपराध का दोषी पाते हुए मौत की सज़ा सुनाई है। दक्षिण एशियाई देशों में राजनैतिक हत्याओं और विरोधियों को मृत्युदंड के दृष्टांत पहले भी हुए हैं। गांधीजी से लेकर जनरल आंग सान, एस.डब्ल्यू.आर.डी. भंडारनायके, जुल्फीकार अली भुट्टो, शेख मुजीबुर्ररहमान, जिया उल हक, रणसिंघे प्रेमदासा, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, बेनजीर भुट्टो जैसे कई नेताओं की उनके राजनैतिक विरोधियों ने बेरहमी से हत्या की है। इन नेताओं से पूंजीवादी, औपनिवेशिक ताकतों को चुनौती मिलती रही, या इन्होंने पश्चिमी ताकतों की कठपुतली बनने से इंकार कर दिया, जिसके जवाब में उन्हें अकाल मौत दी गई। लेकिन वह सब पिछली सदी की बातें थीं। इस नयी सदी में 2006 में सद्दाम हुसैन को फांसी पर चढ़ाया गया, तब अमेरिका की नीयत पर सवाल उठे थे कि व्यापक संहार के वे हथियार तो इराक से कभी मिले ही नहीं, जिनके शक पर समूचे इराक को बर्बाद किया गया और सद्दाम हुसैन को फांसी दी गई। लेकिन अब सदी के 25वें साल में आकर भी तीसरी दुनिया के देश ऐसी ही साजिशों का शिकार हो रहे हैं, यह देखना दुखद है।

गौरतलब है कि शेख़ हसीना पर पिछले साल जुलाई-अगस्त में हुए विद्रोह के दौरान मानवता के विरुद्ध अपराध के आरोप तय किए गए थे। पिछले साल अगस्त से ही शेख हसीना भारत में निर्वासन में रह रहीं हैं। जिन हालात में उन्होंने यहां शरण ली थी, उसमें उनकी जान पर खतरा साफ नजर आ रहा था। शेख हसीना के घर पर जिस तरीके से लूटपाट हुई, उनकी निजी वस्तुओं के साथ प्रदर्शनकारियों ने अभद्रता दिखाई, उससे जाहिर हो रहा था कि बांग्लादेश में शेख़ हसीना किसी भी तरह सुरक्षित नहीं हैं। भारत में रहकर भी उन्होंने लंबे वक्त तक चुप्पी साधे रही और पिछले दिनों ही कुछेक मीडिया संस्थानों को अपने वक्तव्य दिए। इधर बांग्लादेश में शेख हसीना के धुर विरोधी मो.युनूस अंतरिम सरकार के मुखिया बने हुए हैं, लेकिन उनसे हालात संभाले नहीं गए। साफ नजर आ रहा है कि मो.युनूस बाहरी ताकतों के दबाव में रहकर काम कर रहे हैं। जिस पाकिस्तान से अपमान, उपेक्षा, भेदभाव और क्रूरता के कारण बांग्लादेश अलग हुआ, जिसके लिए लाखों लोगों ने कुर्बानी दी। शेख हसीना का लगभग पूरा परिवार बांग्लादेश बनाने की राह में कुर्बान हुआ, उनके पिता बंगबंधु शेख मुजीर्बुररहमान ने मौत सामने देखकर भी अपना देश नहीं छोड़ा, ऐसी तमाम कुर्बानियों का अब मखौल उड़ाया जा रहा है। पाकिस्तान की सैन्य ताकतों से बांग्लादेश चलाने वाले हाथ मिला चुके हैं।

पाकिस्तान में भी सैन्य प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर संविधान संशोधन करवाकर फिर सैन्य तानाशाही बनाने का रास्ता खोल रहे हैं। पाकिस्तान के लोकतंत्र समर्थक लोग इसका विरोध कर रहे हैं। लेकिन यह सब नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित हो रहा है। इस माहौल में अगर शेख हसीना को उन की ग़ैर मौजूदगी में मामला चलाकर फांसी की सजा सुनाई जा रही है, तो यह आश्चर्यजनक तो नहीं है, लेकिन सावधान होने का संकेत अवश्य है। बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल इन पड़ोसी देशों की अस्थिरता, राजनैतिक उथल-पुथल हर तरह से भारत को प्रभावित करती है, क्योंकि हमारा न केवल इतिहास साझा है, बल्कि सीमाएं भी साझा हैं।

गौरतलब है कि बांग्लादेश में जस्टिस मोहम्मद ग़ुलाम मुर्तज़ा मजूमदार की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण-1 ने शेख़ हसीना समेत तीनों अभियुक्तों को दोषी पाया है। शेख़ हसीना पर लगाए गए पांच में से दो मामलों में मौत की सज़ा दी गई है जबकि दूसरे मामले में आजीवन कारावास की सज़ा हुई है। उनके साथ पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां ख़ान कमाल को भी मौत की सज़ा सुनाई गई है। असदुज्जमां भी अभी भारत में ही हैं। वहीं पूर्व आईजी पुलिस अब्दुल्ला अल मनून को सरकारी गवाह बन गए तो उन्हें पांच साल की सज़ा सुनाई गई है।

इस साल जून में शेख हसीना के खिलाफ मुख्य अभियोजक ताजुल इस्लाम ने कहा था कि जुलाई- अगस्त 2024 के दौरान 1,400 लोगों की हत्या की गई है और क़रीब 25 हज़ार लोग घायल हुए थे।

आरोप है कि शीर्ष अधिकारियों के साथ अवामी लीग के हथियारबंद लोगों ने बड़े पैमाने पर सुनियोजित तरीके से निरीह और निहत्थे छात्रों और आम लोगों पर हमले के साथ ही उनकी हत्याओं या उत्पीड़न में सहायता की थी। शेख़ हसीना सहित तीनों लोगों पर रंगपुर में बेगम रोकैया विश्वविद्यालय के छात्र अबू सईद की बिना किसी उकसावे की हत्या और राजधानी के चंखर पुल में छह लोगों की हत्या का आरोप लगाया गया।

खास बात यह है कि हसीना को मौत की सजा सुनाने वाले इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल की स्थापना उन्होंने ही 2010 में की थी। इस कोर्ट को 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान हुए युद्ध अपराध और नरसंहार जैसे मामलों की जांच और सजा के लिए बनाया गया था। अब इसी अदालत से उन्हें मौत की सजा मिली है। हालांकि शेख हसीना ने इस फैसले को गलत, पक्षपाती और राजनीति से प्रेरित बताया है। उनका कहना है कि यह फैसला ऐसे ट्रिब्यूनल ने दिया है जिसे एक गैर-निर्वाचित सरकार चला रही है और जिसके पास कोई जनादेश नहीं है। उन्होंने कहा कि लोग जानते हैं कि यह पूरा मामला असली घटनाओं की जांच नहीं, बल्कि अवामी लीग को निशाना बनाने की कोशिश है। हसीना ने कहा कि यूनुस सरकार में पुलिस और न्याय व्यवस्था कमजोर हो गई है, अवामी लीग समर्थकों और हिंदू-मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़े हैं। महिलाओं के अधिकार दबाए जा रहे हैं और कट्टरपंथियों का असर बढ़ता जा रहा है।

खास बात यह है कि शेख हसीना के बेटे सजीब वाजेद ने कुछ दिन पहले पत्रकारों से कहा था कि उन्हें पहले से पता है कि उनकी मां को मौत की सजा दी जाएगी। लेकिन उन्होंने कहा कि हसीना भारत में सुरक्षित हैं और भारतीय सुरक्षा एजेंसियां उनकी पूरी रक्षा करेंगी।


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