Top
Begin typing your search above and press return to search.

शमा-रोहित विवाद : घृणा का नया विषय

दशक भर से अधिक समय से हिन्दू-मुस्लिम का खेल खेलते भारत को इसके लिये हर रोज नया विषय चाहिये होता है

शमा-रोहित विवाद : घृणा का नया विषय
X

दशक भर से अधिक समय से हिन्दू-मुस्लिम का खेल खेलते भारत को इसके लिये हर रोज नया विषय चाहिये होता है। देश की दो प्रमुख कौमों को आपस में लड़ाकर हिन्दू वोटों का धु्रवीकरण करते हुए इस खेल की माहिर भारतीय जनता पार्टी सत्ता पाने और उस पर बने रहने का रहस्य बूझ चुकी है। वह जान गयी है कि जब तक वह मानव जीवन के हर पक्ष में हिन्दू-मुस्लिम करती रहेगी, उसका वोट बैंक बढ़ता रहेगा। इसके लिये उसके पास एक व्यवस्थित प्रणाली और नेटवर्क है। किसी भी घटना में यह एंगल ढूंढ़कर निकाला जाता है और योजनाबद्ध तरीके से दोनों सम्प्रदायों के बीच नफ़रत फैलायी जाती है। इसके उद्देश्य को पाने हेतु भाजपा और उसके विचारों को मानने वाले हिंसा फैलाने से भी नहीं चूकते। भाजपा के अधिकृत प्रवक्ताओं के अलावा उसका आईटी सेल, पार्टी सदस्य, समर्थक और वे लोग इस प्रचार तंत्र का हिस्सा हैं जिनका काम भाजपा-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्राप्त तोड़े-मरोड़े गये तथ्यों, असत्य एवं अर्द्ध सत्य को प्रचारित कर लोगों को प्रभावित करना होता है। कहना न होगा कि धर्म, सम्प्रदाय, जाति जैसे विषयों का सहारा लेकर भाजपा खुद को शक्तिशाली करने में 24&7 मशगूल रहती है- बिना इस बात की चिंता किए कि उसके ऐसा करने से लोकतंत्र और देश लगातार खोखला हो चला है।

पिछले कुछ अर्से से देखें तो चुनाव का वक्त हो या न हो, भाजपा ने पूरे देश को दो धड़ों में बांटकर रख दिया है। एक जो भाजपा समर्थक हैं, दूसरे में वे सारे लोग जो उसकी विचारधारा को नहीं मानते। ऐसा नहीं कि विचारों के आधार पर यह विभाजन पहली बार हो रहा हो। यह पहले भी था लेकिन विपरीत विचारों के प्रति घृणा का स्तर इतना अधिक कभी नहीं था। फिर, विचारों के भेद के आधार पर कभी भी किसी को भी न तो देशद्रोही कहा जाता था और न ही किसी को पाकिस्तानपरस्त, हिंदूविरोधी या विदेशी एजेंट। धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर एक तरह से मानों देश के दुश्मन हो गये और जो भाजपा के साथ हैं वे ही देशभक्त तथा सनातन के ठेकेदार बन बैठे हैं। चुनावों में धु्रवीकरण के कारण मिलती सफलताओं से प्रेरित होकर भाजपा इस विमर्श को लगातार मजबूत कर रही है। एकाध छोटे-मोटे नेता के नेतृत्व में किसी गैर हिन्दू धर्म स्थल में घुसकर तोड़-फोड़ करने व उसकी मीनारों-गुम्बदों पर झंडा फहराने से लेकर भरी लोकसभा में मुस्लिम सांसद को गाली देना इसी रणनीति और मानसिकता का हिस्सा है। मुस्लिम नामों वाले शहरों, गलियों, रास्तों के नाम बदलकर उन्हें हिन्दू नाम देना सत्ता में बने रहने का नुस्खा है जो इन दिनों इस्तेमाल में बहुत ज्यादा लाया जा रहा है।

भाजपा संगठन, उसकी सरकारें तथा उसके समर्थक हर रोज एक कदम आगे बढ़ते हुए दिखते हैं। हाल ही में दिल्ली के शौचालयों में औरंगज़ेब के चित्र लगाते हुए या मुस्लिमों की दुकानों पर लाल रंग का निशान लगाते हुए जो लोग दिख रहे हैं वे सारे इसी बड़े खेल के किरदार हैं। देश के चार स्थानों (प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार एवं नासिक) में हजारों वर्षों से कुम्भ लगता आया है परन्तु हिन्दू धर्म का जो ज्वार इस बार के प्रयागराज में उठा वह पहले कभी नहीं देखा गया था। इसके जरिये पहले से भाजपा व उसकी सरकारों ने अपने समर्थकों का आधार बढ़ाना तय किया था। ऐलान कर दिया गया कि इसमें मुस्लिमों को दुकानों नहीं लगाने दी जायेंगी। ऐसा हुआ भी। हर तीसरे साल किसी न किसी कुम्भ का आयोजन होता है। तय मानिये कि अब हर कुम्भ (अर्द्ध कुम्भ भी) में यही तरीका पैटर्न दिखेगा। एक समय था जब कुम्भ के जरिये न सिर्फ सनातन एकता की बात होती थी, वरन उसमें देश के सभी धर्मावलम्बियों का समावेश व योगदान रहता था क्योंकि ये मेले भारत के केवल धार्मिक नहीं वरन सांस्कृतिक आयोजन भी रहे हैं। अब इन्हीं मंचों से भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने और संविधान की बजाये मनुस्मृति लागू करने की मांगें उठने लगी हैं।

अभी देश प्रयागराज की भगदड़ों के दुख से पूरी तरह से उबर भी नहीं पाया है पर उसमें मुस्लिम एंगल की तलाश प्रारम्भ हो गयी है। दूसरी ओर विभाजन को और चौड़ा करने वाला नया विषय उपलब्ध हो गया है। इस वक्त आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी क्रिकेट टूर्नामेंट के अंतर्गत भारत शानदार प्रदर्शन कर रहा है परन्तु उसमें 'हिटमैन' कहे जाने वाले रोहित शर्मा का प्रदर्शन अपेक्षाओं और उनकी ख्याति के अनुकूल नहीं होने के कारण वे आलोचना के पात्र बन गये हैं। ऐसा हर खिलाड़ी के साथ होता है। कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. शमा मोहम्मद ने इस बाबत एक ट्वीट किया कि 'रोहित शर्मा मोटे व आलसी हो गये हैं'। इसमें ऐसी कोई बेजा बात नहीं थी क्योंकि खेल में खिलाड़ियों के प्रदर्शन व फिटनेस पर खेलप्रेमी हमेशा चर्चा करते रहते हैं। वैसे भी क्रिकेट को तो भारत का एक धर्म ही कहा जाता है क्योंकि यह बहुत लोकप्रिय है। चूंकि शमा का सम्बन्ध कांग्रेस से है, मुस्लिम भी हैं तथा रोहित सवर्ण हिन्दू (हालांकि खेल, फिल्म आदि में यह नहीं देखा जाता), सो वातावरण में विष घोलने के लिये यह काफी है। सोशल मीडिया में यह खेल इसी बहाने से चल रहा है।

लोकप्रिय विमर्श की प्रयागराज में सफलता तथा हाल ही में वक्फ बोर्ड कानून में बदलाव से उत्साहित यह वर्ग देश भर की मस्जिदों, दरगाहों, मजारों के नीचे मंदिर ढूंढने में लग गया है। इसके जरिये हर शहर-कस्बे में हिन्दू-मुस्लिम संघर्षों की जमीन तैयार की जा चुकी है। ऐसे में शमा-रोहित विवाद को तूल मिलना स्वाभाविक ही है।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it