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बांगलादेश में धर्मनिरपेक्ष ताकतों को करनी होगी अल्पसंख्यकों की रक्षा

शेख हसीना के शासन के दौरान भी ऐसी कट्टरपंथी ताकतें अल्पसंख्यकों के खिलाफ सक्रिय रूप से काम कर रही थीं

बांगलादेश में धर्मनिरपेक्ष ताकतों को करनी होगी अल्पसंख्यकों की रक्षा
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- पी. सुधीर

शेख हसीना के शासन के दौरान भी ऐसी कट्टरपंथी ताकतें अल्पसंख्यकों के खिलाफ सक्रिय रूप से काम कर रही थीं। बांग्लादेश में अंतरिम सरकार और लोकतांत्रिक ताकतों को सांप्रदायिक तत्वों को मजबूती से दबाना होगा, जो अपनी सांप्रदायिक राजनीति को स्थापित करने का अवसर देखते हैं।

बांग्लादेश में हिंदू और बौद्ध अल्पसंख्यकों पर लगातार हो रहे हमले व्यापक चिंता का विषय है। अगस्त के पहले सप्ताह में एक बड़े आंदोलन के बाद शेख हसीना सरकार के पतन के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि उनके सत्तावादी शासन के अंत के साथ ही बांग्लादेश में अधिक लोकतांत्रिक व्यवस्था की शुरुआत होगी। लेकिन पहले ही कुछ दिनों की अराजकता में, देश भर में कुछ हिंदू मंदिरों और अल्पसंख्यक समुदाय के घरों पर हमलों की खबरें सामने आईं। अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने उस समय आश्वासन दिया था कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की जायेगी। लेकिन तब से लेकर अब तक की अवधि में हिंसा की अनेक घटनाएं हुई हैं।

अब तक हिंसा की 2,000 से अधिक घटनाएं दर्ज की गयी हैं और अल्पसंख्यक समुदाय के कम से कम नौ लोगों की हत्या की गयी है। मौजूदा स्थिति तब और बिगड़ गयी जब हिंदू साधु चिन्मय कृष्ण दास को गिरफ्तार कर उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया। चिन्मय दास पहले इस्कॉन से जुड़े थे, लेकिन उन्हें इससे हटा दिया गया और अब वे संयुक्त सनातनी जागरण जोत के प्रमुख हैं। भले ही वे उग्रवादी विचार व्यक्त करते रहे हों, लेकिन बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने के आरोप के कारण उन पर देशद्रोह के आरोप लगाये गये हैं। जब दास को अदालत में पेश किया गया और जमानत देने से इंकार कर दिया गया, तो पुलिस और उनके समर्थकों के बीच झड़प हो गयी। एक सहायक सरकारी वकील पर भीड़ ने हमला कर दिया और उसे मार डाला।

यह घटना दर्शाती है कि वर्तमान में बांग्लादेश में सांप्रदायिक स्थिति कितनी भयावह है। अंतरिम सरकार और उसके प्रवक्ताओं की प्रतिक्रिया इन हमलों को कमतर आंकने की रही है और दावा किया है कि ये अतिरंजित रिपोर्टें हैं। उन्होंने इसे अवामी लीग के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के खिलाफ जनता के गुस्से का नतीजा बताने की कोशिश की है। वे इस बांग्लादेश विरोधी अभियान के पीछे भारत सरकार का हाथ देखते हैं।

यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार इस्लामी ताकतों द्वारा अल्पसंख्यकों पर किये जा रहे हमलों को नजरअंदाज करने की कोशिश करके गलती कर रही है। मोदी सरकार द्वारा शेख हसीना शासन का समर्थन करने के कारण जो भारतविरोधी भावना मौजूद है, उसका इस्तेमाल इस्लामी कट्टरपंथी ताकतें अल्पसंख्यकों पर हमला करने के लिए कर रही हैं। जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध हटने और उसके नेताओं के जेल से बाहर आने के बाद, हिफाजत-ए-इस्लाम जैसे कट्टरपंथी संगठनों को हिंदुओं को निशाना बनाने और सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने की खुली छूट मिल गयी है।

शेख हसीना के शासन के दौरान भी ऐसी कट्टरपंथी ताकतें अल्पसंख्यकों के खिलाफ सक्रिय रूप से काम कर रही थीं। बांग्लादेश में अंतरिम सरकार और लोकतांत्रिक ताकतों को सांप्रदायिक तत्वों को मजबूती से दबाना होगा, जो अपनी सांप्रदायिक राजनीति को स्थापित करने का अवसर देखते हैं।

भारत में भाजपा-आरएसएस और विभिन्न हिंदुत्व संगठनों का रवैया स्थिति को उचित तरीके से संबोधित करने में मदद नहीं कर रहा है। सीमा पार हिंदुओं की दुर्दशा के बारे में बेबुनियाद और भड़काऊ प्रचार को बांग्लादेशी अधिकारियों और लोकतांत्रिक हलकों द्वारा बांग्लादेश की नयी राजनीतिक व्यवस्था को डराने और कलंकित करने के प्रयास के रूप में देखा जाता है। कोलकाता, अगरतला और गुवाहाटी में बांग्लादेश के वाणिज्य दूतावासों के बाहर हिंदू चरमपंथी समूहों द्वारा किये गये प्रदर्शनों में कटु भाषा का इस्तेमाल करने से स्थिति और बिगड़ गयी है।

अगरतला की घटना, जिसमें हिंदू संघर्ष समिति के प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश सहायक उच्चायोग के परिसर में प्रवेश किया और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया, बांग्लादेश में भारतविरोधी भावनाओं को और मजबूत करेगी। बांग्लादेश के खिलाफ उग्र बयानबाजी वहां अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को खतरे में डालेगी। बांग्लादेश के लोग अल्पसंख्यकों की रक्षा के बारे में उन्हें उपदेश देने वाले भारतीय शासकों को संदेह की दृष्टि से देखेंगे, जबकि उन्होंने खुद अल्पसंख्यकों को सताने और उन्हें परेशान करने का एक घिनौना रिकॉर्ड बनाया है।

बांग्लादेश में शीर्ष भारतीय नेताओं द्वारा बांग्लादेशियों के खिलाफ लगातार बयानबाजी से जनता की राय प्रभावित होती है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने झारखंड चुनाव अभियान के दौरान झारखंड में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी घुसपैठ के बारे में झूठी और भयानक चेतावनी दी थी। इससे पहले, ऐसे घुसपैठियों को वे 'दीमकÓ कहते थे।
दोनों देशों में धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतों के लिए यह जरूरी है कि वे इस बात पर जोर दें कि विभाजनकारी सांप्रदायिक राजनीति दोनों देशों के हितों को नुकसान पहुंचाती है। बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतों, जिन्होंने शेख हसीना के तानाशाही शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, को खड़े होकर यह कहना चाहिए कि देश अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षित है और नागरिक के रूप में उनके अधिकारों की पूरी तरह से रक्षा की जायेगी।


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