झुलसते देश में फिल्म की स्क्रीनिंग
दुनिया में भारत की खास पहचान उसके बुनियादी चरित्र के कारण कायम हुई

- सर्वमित्रा सुरजन
उत्तरप्रदेश के संभल में इन दिनों यही प्रयोग किया जा रहा है। शाही जामा मस्जिद के नीचे हरिहर मंदिर होने के दावे के आधार पर अदालत ने सर्वे की अनुमति दे दी और एक नहीं दो-दो बार सर्वे हो गए। इससे जो तनाव उपजा और अशांति कायम हुई, उससे सब वाकिफ हैं। पहली बात तो सर्वे की अनुमति देना ही उपासना स्थल अधिनियम 1991 के खिलाफ था।
दुनिया में भारत की खास पहचान उसके बुनियादी चरित्र के कारण कायम हुई। वह चरित्र जो हमेशा सत्य की प्रतिष्ठा का आग्रही रहा है, साथ ही उदारता, सद्भाव, अहिंसा, त्याग, लचीलेपन जैसे गुणों को तरजीह देता आया है। दुनिया के सभी धर्मों के अनुयायी भारत में हैं। पूरे विश्व में सम्राट अशोक जैसी मिसाल नहीं है, जिन्होंने एक युद्ध जीतने के बाद हिंसा और रक्तपात देखकर न केवल जीता हुआ राज्य लौटा दिया, बल्कि आजीवन अहिंसा का ही पालन किया। हमारी पौराणिक कथाओं में कर्ण जैसे चरित्र हैं, जो सत्ता के लालची दुर्योधन का साथ केवल मित्रता के नाते देता है और जिसे सम्मान से याद किया जाता है, क्योंकि उसने दानवीरता की मिसाल कायम की। दुनिया ने गांधी की अहिंसा की ताकत को स्वीकार किया, बुद्ध की शिक्षा को अपनाया। भारत को इन महान चरित्रों के कारण याद किया जाता रहा है। लेकिन अब इतिहास का हवाला देकर भारत की इस चारित्रिक विशेषता को ही खत्म करने का काम संघ और भाजपा करने में लगे हैं। अब वैश्विक पटल पर भारत का नाम गौतम, गांधी, अशोक या अकबर के कारण नहीं आ रहा, बल्कि कश्मीर, अयोध्या, मणिपुर, संभल और अजमेर में बढ़ रहे तनाव के कारण आ रहा है।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने संसद भवन में फिल्म द साबरमती रिपोर्ट देखी। इस फिल्म को भाजपा शासित तमाम राज्यों में काफी बढ़ावा मिल रहा है, प्रधानमंत्री से पहले भाजपा के कई मुख्यमंत्री इस फिल्म को देख चुके हैं। इस फिल्म में तथ्यों और कल्पना का कितना घालमेल है, यह अलग विश्लेषण का विषय है। लेकिन याद रहे कि बीबीसी का तथ्यों पर आधारित वृत्तचित्र द मोदी क्वेश्चन भारत में प्रतिबंधित है, क्योंकि सरकार को इसमें नरेन्द्र मोदी के खिलाफ साजिश नजर आई। बहरहाल, सवाल यह है कि प्रधानमंत्री की प्राथमिकताएं क्या हैं। जून में तीसरी बार सत्ता संभालने के बाद उनका काफी वक्त हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, झारखंड और महाराष्ट्र चुनावों के प्रचार में बीता, जो बचा वक्त रहा, उसमें उनकी कई विदेश यात्राएं हो गईं। इस दौरान तीसरी बार संसद का सत्र लगा है, लेकिन इसमें भी लगातार व्यवधान ही देखे गए और जब सत्र चल भी रहा है तो प्रधानमंत्री संसद कम पहुंच रहे हैं।
18-18 घंटे काम करने और एक भी छुट्टी न लेने का जो तमगा श्री मोदी के कंधों पर लगा हुआ है, वो कितना असली है, इसकी परख भी होनी चाहिए। प्रधानमंत्री होने के नाते श्री मोदी को अधिक वक्त देश के मुद्दों और समस्याओं पर गौर करने में बिताना चाहिए। लेकिन इस दौरान वे एक ऐसी फिल्म देखने के लिए वक्त निकाल रहे हैं, जिसका आम जनजीवन पर न कोई असर पड़ना है, न इसका कोई सरोकार उससे जुड़ा है। गुजरात बीते भी 20 साल हो चुके हैं। उस वक्त के सच अब बिलकिस बानो की तरह सिर उठाकर समाज के सामने आ चुके हैं। समाज के सामने अब उस सच का सामना करने और सबक लेने की जरूरत है। लेकिन यहां कोई खेल रचा जा रहा है। अब गुजरात की तरह उत्तरप्रदेश और धीरे-धीरे बाकी देश में ऐसी ही प्रयोगशाला बनाने की तैयारी हो रही है, जहां सच को झुलसाकर राख किया जाए और उस राख पर सत्ता के महल बनाए जाएं। इस काम के लिए जो टूलकिट बनाई गई है, उसमें मीडिया और न्यायपालिका दोनों को शामिल किया गया है।
उत्तरप्रदेश के संभल में इन दिनों यही प्रयोग किया जा रहा है। शाही जामा मस्जिद के नीचे हरिहर मंदिर होने के दावे के आधार पर अदालत ने सर्वे की अनुमति दे दी और एक नहीं दो-दो बार सर्वे हो गए। इससे जो तनाव उपजा और अशांति कायम हुई, उससे सब वाकिफ हैं। पहली बात तो सर्वे की अनुमति देना ही उपासना स्थल अधिनियम 1991 के खिलाफ था, जिसमें 1947 के बाद के किसी धार्मिक स्थल का चरित्र नहीं बदल सकते। लेकिन मई 2022 में ज्ञानवापी मामले में फैसला सुनाने के दौरान तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी वाय चंद्रचूड़ ने मौखिक टिप्पणी की थी कि पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का निर्धारण निषिद्ध नहीं है। यानी आप किसी धार्मिक स्थल को दूसरे धार्मिक स्थल में तब्दील नहीं कर सकते, लेकिन यह तो बता सकते हैं कि वहां पहले क्या था। यह बौद्धिक बेईमानी की मिसाल है, जिसमें न्याय की आसंदी पर बैठे व्यक्ति ने अन्याय के लिए रास्ता बता दिया।
सर्वोच्च न्यायालय से आई इस टिप्पणी के बाद निचली अदालतों को मौका मिल गया कि वे किसी मस्जिद या दरगाह के नीचे क्या था, यह पता लगाने का आदेश आसानी से पारित कर सकें। संभल में यही खेल हुआ, वहां सर्वे की अनुमति दी गई और मुस्लिम पक्ष की बात सुने बिना ही कार्रवाई शुरु भी हो गई। दूसरी बात यह है कि सर्वे का काम शांति से, बिना किसी हो-हल्ले के हो सकता था।
लेकिन यहां बाकायदा मजमा लगने दिया गया और जब हालात बेकाबू हुए तो पुलिस कार्रवाई के लिए आगे आई। अब निर्दोषों की जान चले जाने के बाद इंटरनेट बंद करने, कर्फ्यू लगाने जैसे उपाय किए गए और फिर विपक्ष के सांसदों को वहां जाने से रोका जा रहा है। भीम आजाद पार्टी के सांसद चंद्रशेखर, समाजवादी पार्टी के विधायकों और अब नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को संभल जाने से रोककर भाजपा सरकार ने बता दिया कि संभल में हालात सामान्य नहीं हैं और वहां बहुत कुछ ऐसा है, जिसे छिपाने की कोशिश की जा रही है।
संभल के बाद अब अजमेर शरीफ में यही हो रहा है और कतार में अगली बारी शायद अजमेर में ही अढ़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद की है, क्योंकि अजमेर के डिप्टी मेयर नीरज जैन ने इस मस्जिद को लेकर जारी बयान में दावा किया है कि इसमें संस्कृत कॉलेज और मंदिर होने के सबूत मिले हैं। गौरतलब है कि यह मस्जिद एएसआई द्वारा संरक्षित स्मारक है। मई 2022 में राहुल गांधी ने कहा था कि देश में केरोसिन छिड़क दिया गया है, चिंगारी लगाने की देर है। श्री गांधी के इस बयान पर काफी विवाद खड़ा हुआ था। भाजपा ने इसका खूब विरोध किया था। लेकिन अब लगता है कि श्री गांधी की टिप्पणी अनायास नहीं थी। मौजूदा राजनेताओं में चंद ही ऐसे हैं, जो न कभी अपनी बात से पलटते हैं, न जिनके दावे वक्त के साथ बदल जाते हैं और सबसे खास बात यह कि उनकी कही बात अक्सर सच साबित होती है। राहुल गांधी की गिनती इन्हीं नेताओं में शुमार होती है। राहुल गांधी भविष्यवक्ता नहीं हैं, लेकिन जननेता वे बन चुके हैं। सुरक्षित और सुविधाजनक दायरे के भीतर कैद रहकर वे राजनीति नहीं कर रहे, लोगों के बीच उतर कर देश की नब्ज़ टटोल रहे हैं। इसलिए वे जो कुछ कहते हैं वह बात अनुभव से निकली होती है और इसलिए सच हो जाती है। केरोसिन छिड़कने और चिंगारी लगाने की बात भी अब सच होती ही दिख रही है।
कानून व्यवस्था के नाम पर राहुल गांधी को तो संभल जाने से रोक दिया गया, जब संसद में इस पर सवाल उठे तो लोकसभा अध्यक्ष की आसंदी पर बैठे जगदंबिका पाल ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष को सदन में रहना चाहिए। क्या यही बात प्रधानमंत्री को कही जा सकती है कि आप को भी सदन में रहना चाहिए ताकि संसद सत्र में कामकाज हो सके। या क्या प्रधानमंत्री को यह कहा जा सकता है कि नेता प्रतिपक्ष को तो संभल जाने से रोका गया, लेकिन आपको वहां जाना चाहिए, ताकि लोगों के जख्मों पर मरहम लगे। जो अन्याय हुआ है, उसमें इंसाफ की गुंजाइश बने। या प्रधानमंत्री के मनोरंजन के लिए किसी नयी फिल्म की स्क्रीनिंग की तैयारी हो, ताकि देश में लगी आग की तपिश से श्री मोदी को कोई परेशानी न हो।


