रश्मि शुक्ला का तबादला विपक्ष की जीत
केन्द्रीय चुनाव आयोग के निर्देश पर महाराष्ट्र की पुलिस महानिदेशक रश्मि शुक्ला का हटाया जाना महाविकास अघाड़ी (एमवीए) की एक बड़ी जीत मानी जा सकती है

केन्द्रीय चुनाव आयोग के निर्देश पर महाराष्ट्र की पुलिस महानिदेशक रश्मि शुक्ला का हटाया जाना महाविकास अघाड़ी (एमवीए) की एक बड़ी जीत मानी जा सकती है। कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दल कई बार उन पर पक्षपात का आरोप लगा चुके हैं। उन पर मुख्यत: विपक्षी नेताओं की फोन टेपिंग कराने के आरोप हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने उनके खिलाफ मोर्चा खोला हुआ था जिसे अन्य विरोधी दलों का भी समर्थन था। उनका आरोप था कि पुलिस की सर्वोच्च अधिकारी का रुख सत्ताधारी दल के प्रति नरम है जिसके कारण निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद नहीं की जा सकती। उनकी मांग पर केन्द्रीय निर्वाचन आयोग ने शुक्ला को तत्काल स्थानांतरित करने का महाराष्ट्र सरकार को आदेश देते हुए कहा कि मंगलवार को दोपहर 1 बजे तक वह पुलिस के 3 वरिष्ठतम अधिकारियों के नाम भेजे ताकि नये डीजीपी की नियुक्ति हो।
1988 बैच की आईपीएस रश्मि पर सरकार समर्थक होने का आरोप लगता रहा है। इस साल की जनवरी में सेवानिवृत्त हो चुकी रश्मि शुक्ला का कार्यकाल एकनाथ शिंदे सरकार द्वारा दो वर्ष के लिये बढ़ाया गया था। माना जाता है कि सेवा बढ़ाये जाने के एवज में वे शिंदे के नेतृत्व में चल रही नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस के पक्ष में कार्य कर रही थीं, जिनमें शिवसेना (शिंदे गुट), भारतीय जनता पार्टी और नेशनल कांग्रेस पार्टी (अजित पवार गुट) शामिल हैं।
झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव एक साथ हो रहे हैं जिसके पहले जम्मू-कश्मीर तथा हरियाणा के चुनाव हो चुके हैं। इन राज्यों की समीक्षा बैठक करते हुए केन्द्रीय चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने सभी प्रदेशों के निर्वाचन अधिकारियों से निष्पक्ष प्रक्रिया अपनाने का आग्रह किया था ताकि पारदर्शी तरीके से चुनाव सम्पन्न हो सकें। वैसे चुनाव आयुक्त के इस निर्देश को महज औपचारिकता माना गया था क्योंकि आयोग का ट्रैक रिकॉर्ड बड़े पैमाने पर भाजपा को मदद करने का रहा है। एक अर्से से चुनाव आयोग को भाजपा की जेब में बैठा हुआ साफ देखा गया है जिसके अनेक उदाहरण हैं। अब यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं होना चाहिये कि भाजपा, खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं कुछ प्रमुख नेताओं की सुविधानुसार आयोग सभी तरह के चुनावों का आयोजन करता है। किस राज्य में कितने चरणों में चुनाव होगा- यह भी भाजपा तथा मोदी की इच्छा और पार्टी की सहूलियत के मुताबिक निर्धारित किया जाता है।
बात यहीं तक नहीं रुकती। विभिन्न नेताओं के भाषणों तथा प्रचार को लेकर किस पर कार्रवाई करनी है और किसकी ओर से आंखें मूंदनी हैं, यह भी आयोग चेहरा देखकर ही तय करता है। भाजपा के नेताओं को नफरती भाषणों की पूरी छूट होती है। वे अक्सर भाषायी मर्यादा का उल्लंघन करते हैं और असंसदीय व्यवहार अपनाते हैं लेकिन आयोग उसकी उपेक्षा करता है। इसके विपरीत भाजपा विरोधी दलों के नेताओं के भाषणों एवं उद्बोधनों पर कड़ी नज़र रखी जाती है। पिछले कई चुनावों के दौरान देखा गया कि चुनाव आयोग जिस तरह के कथनों पर विरोधी दल के नेताओं को मुस्तैदी से नोटिस जारी करता है या उनके प्रचार पर कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों का प्रतिबन्ध लगाता है, वैसे ही कथन भाजपा के किसी भी नेता की ओर से आते हैं तो वह कानों में रूई डालकर बैठ जाता है। मोदी, केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा, पूर्व केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर समेत ऐसे कई भाजपायी नेता हैं जिन्होंने हाल के वर्षों की चुनावी रैलियों में जमकर ज़हर उगला था परन्तु किसी पर कार्रवाई नहीं हुई।
चुनाव आयोग की पक्षपातपूर्ण कार्रवाई का नमूना इसी मामले, यानी डीजीपी वाले में भी दिखा। झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता के खिलाफ प्रदेश भाजपा इकाई ने शिकायत की थी। उन्हें वहां के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नज़दीकी बतलाया जाता था। इसके साथ ही उनके कथित विवादित इतिहास का भी हवाला दिया गया था। चुनाव का ऐलान होते ही 21 अक्टूबर को गुप्ता को हटाने का निर्देश आयोग ने दिया, लेकिन रश्मि शुक्ला को रहने दिया गया जिनके खिलाफ़ फोन टेपिंग की शिकायतें हुई हैं; फिर उन्हें एक्सटेंशन दिया गया था जो उनकी सत्तारुढ़ गठबन्धन से नज़दीकियों को बतलाता है। इसके साथ ही यह भी साबित हो गया है कि उन्हें सेवा विस्तार देने का मकसद इस चुनाव में महायुति द्वारा बेईमानी करना था। विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार ने इस कार्रवाई का स्वागत करते हुए कहा कि इससे साबित हो गया है कि महायुति बेईमानी से चुनाव लड़ती है।
विपक्ष की मांग पर डीजीपी को हटाना एक उदाहरण है कि भाजपा व एनडीए के साथ चुनाव लड़ने तथा जीतने के लिये विपक्षी दलों को सभी मोर्चे खोलने होंगे। अब तक जनता तथा विरोधी दलों के सामने स्पष्ट हो चुका है कि भाजपा एक तरह से चुनाव आयोग, विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं एवं सरकारी मशीनरी के बल पर ही चुनाव लड़ती है जिसके कारण उसे परास्त करना विरोधी दलों के लिये खासा मुश्किल होता है। पहले छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान और हाल ही में हरियाणा जैसे राज्यों में यह देखा गया कि कैसे हारे हुए चुनाव को भाजपा ले उड़ी थी। माना जाता है कि लोकसभा चुनाव में भी हारी हुई तकरीबन 80 सीटों पर उसने चुनाव अधिकारियों के बल पर हेराफेरी से जीत हासिल कर सरकार बनाई है। तो भी, सावधान रहकर चुनाव लड़ा जाये तो कर्नाटक, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर की तरह सरकारें बनाई जा सकती हैं। रश्मि शुक्ला का पद से हटना इसलिये महत्वपूर्ण है।


