मोदी के नैतिक साहस पर सवाल
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति का समर्थन किया है

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति का समर्थन किया है। जेलेंस्की का कहना है कि भारत पर टैरिफ लगाकर ट्रंप ने बिल्कुल सही किया। ये वही जेलेंस्की है, जिनसे अभी 30 अगस्त को ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फोन पर वार्ता कर द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता दिखाई थी। यह चर्चा श्री मोदी ने चीन में रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन से होने वाली भेंट से पहले की थी। शायद अब देश में कूटनीति की जगह मोदी नीति लागू हो गई है जिसमें दो दुश्मन देशों को एक साथ साधने के लिए एक बार इससे बात करो, फिर उससे बात करो। दोनों को यह अहसास कराओ कि हम ही आपके सगे हैं और आपके साथ खड़े हैं, जबकि असल में खुद हमें ही नहीं मालूम कि हम किसके साथ हैं और क्या चाहते हैं। याद करें इन्हीं नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल अगस्त में यूक्रेन का दौरा कर वहां अहम समझौते सरकार के साथ किए थे। इस दौरान वे युद्ध में मारे गए बच्चों पर मल्टीमीडिया प्रदर्शनी देखने राष्ट्रीय संग्रहालय भी गए थे। मोदी-जेलेंस्की की एक तस्वीर काफी वायरल हुई थी, जिसमें जेलेंस्की के कंधे पर हाथ रखकर मोदी भावुक नजर आते हैं, मानो उनका दुख साझा कर रहे हों। ये और बात है कि इसके बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सामने बैठकर मोदी-जेलेंस्की मुलाकात की सफाई पेश करनी पड़ी थी। बेशक भारत किसी युद्ध का समर्थन नहीं करता, लेकिन रूस उसका परंपरागत मित्र रहा है और मोदी ने शायद रूस की नाराजगी की कीमत पर यूक्रेन दौरा किया था। हालांकि भारत से दशकों पुराने संबंध ध्यान रखते हुए रूस ने कोई बड़ा कदम नहीं उठाया। मगर अभी चीन में जिस तरह मोदी से मिलने के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ से पुतिन की मुलाकात हुई, वह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में बदलते समीकरणों पर बड़ा संकेत हैं। अफसोस है कि नरेन्द्र मोदी इन संकेतों की लगातार अनदेखी कर रहे हैं।
शायद अमेरिका को खुश करने के लिए नरेन्द्र मोदी ने जेलेंस्की के साथ नजदीकी दिखाई थी, लेकिन अब जेलेंस्की इस बात पर संतोष जता रहे हैं कि भारत पर अमेरिका ने 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया है। पाठक जानते हैं कि इसमें 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ तो केवल इस बात के लिए ही लगाया गया है कि भारत रूस से तेल खरीद रहा है। अमेरिका हर तरह से दबाव डाल रहा है कि किसी भी तरह भारत रूस से तेल का व्यापार बंद करे। यह साफ-साफ हमारी संप्रभुता पर आक्रमण है, लेकिन नरेन्द्र मोदी इस हमले से अविचलित हैं। ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो लगातार भारत पर आग उगल रहे हैं। बीते दिनों नवारो ने यहां तक कह दिया था कि यूक्रेन में रूस नहीं भारत लड़ रहा है। अब ट्रंप सरकार के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने रूस से तेल ख़रीदने वाले देशों के खिलाफ़ और सख्ती की अपील की है। इसमें यूरोपीय यूनियन को साथ लाया जा रहा है। बेसेंट के बयान से ऐसा लग रहा है कि अमेरिका एक बार फिर से भारत पर और दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। पिछले हफ़्ते शुक्रवार को यूरोपियन काउंसिल के अध्यक्ष एंतोनियो कोस्टा ने कहा था कि यूरोपियन यूनियन वॉशिंगटन में एक प्रतिनिधिमंडल भेज रहा है, जो रूस के खिलाफ़ और कड़े प्रतिबंधों पर बात करेगा। मतलब अमेरिका के बाद यूरोपीय यूनियन में भारत विरोधी माहौल बन रहा है। इधर शुक्रवार को ही अमेरिका के वाणिज्य मंत्री होवार्ड लुटनिक ने कहा है कि, एक या दो महीने में भारत बातचीत की टेबल पर आएगा और क्षमा याचना करेगा। भारत ट्रंप के साथ समझौता करने की कोशिश करेगा। इसके बाद ट्रंप तय करेंगे कि मोदी के साथ कैसे डील करना है।
इन सिलसिलेवार बयानों से जाहिर हो रहा है कि ट्रंप सरकार में लगातार भारत की अवहेलना हो रही है। खुद डोनाल्ड ट्रंप ने भी बीते दिनों व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग के साथ नरेन्द्र मोदी की मुलाकात पर कहा था कि भारत-रूस चीन की छाया में चले गए हैं। यह भी भारत के लिए अपमान ही है कि उसे साफ-साफ किसी खेमे में बताया जाए। व्यापार के साथ सरकार चलाने वाले डोनाल्ड ट्रंप अपना मुनाफा देखकर बयान देते हैं, ऐसे में नरेन्द्र मोदी को तय करना है कि उन्हें भी केवल अपने मित्र कारोबारियों का ख्याल रखना है या देश हित भी देखना है। क्योंकि तीन दिन पहले ट्रंप ने मोदी को महान नेता बताते हुए अपना मित्र बताया तो फौरन नरेन्द्र मोदी ने जवाब देकर आभार जता दिया। जबकि इससे पहले बीसीयों बार ट्रंप ने युद्धविराम या टैरिफ को लेकर भारत के साथ जो बेहूदगी दिखाई, उस पर मोदी ने फौरन पलटवार करने की जहमत नहीं उठाई।
अब देखना है कि जेलेंस्की के बयान पर मोदी कोई जवाब देते हैं या नहीं। पिछले अनुभव तो यही बताते हैं कि मोदी इस बार भी चुप ही रहेंगे। कब, कहां, क्या बोलना है या चुप रहना है, यह मोदी का अधिकार क्षेत्र है, मगर फिर इसके बाद भारत के लोकतंत्र को महान बनाने के लिए अपनी पीठ उन्हें नहीं थपथपाना चाहिए, क्योंकि लोकतंत्र व्यापारियों का, व्यापारियों के लिए, व्यापारियों द्वारा बनाई गई व्यवस्था नहीं है। इसमें लोक और देश का हित सर्वोपरि नजर आना चाहिए। जैसा जापान में नजर आया।
जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने रविवार को इस्तीफा दे दिया है क्योंकि सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी को ऊपरी सदन (हाउस ऑफ काउंसलर्स) के चुनाव में हार मिली। इससे पहले अक्टूबर में निचले सदन का चुनाव भी एलडीपी हार चुकी है। दरअसल जापान में महंगाई और अमेरिका के टैरिफ को लेकर सत्तारूढ़ गठबंधन के खिलाफ नाराजगी है। जिसके बाद नैतिकता के आधार पर इशिबा ने इस्तीफा दे दिया। हालांकि उन्होंने कहा है कि वह देश के लिए काम करते रहेंगे और अमेरिका के टैरिफ जैसे मुद्दों से निपटने की कोशिश करेंगे। क्या मोदी कभी ऐसा नैतिक साहस दिखा पाएंगे।


