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गोडसे के पागलपन को बढ़ावा

भाजपा की देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की सनक और उसी दिशा में काम करती मोदी सरकार की संकुचित सोच ने किस कदर देश और समाज को नुकसान पहुंचाया है

गोडसे के पागलपन को बढ़ावा
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भाजपा की देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की सनक और उसी दिशा में काम करती मोदी सरकार की संकुचित सोच ने किस कदर देश और समाज को नुकसान पहुंचाया है, इसका एक ताजा उदाहरण सामने आया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 5 प्रमुख हिंदी न्यूज़ चैनलों को नोटिस भेजा है कि उनके कार्यक्रमों में लगभग 30 प्रतिशत उर्दू शब्दों का इस्तेमाल हो रहा है। महाराष्ट्र के ठाणे में रहने वाले एस.के. श्रीवास्तव ने 9 सितंबर 2025 को केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण निगरानी प्रणाली (सीपीजीआरएएम) के पोर्टल पर शिकायत दर्ज की थी कि हिंदी न्यूज़ चैनल टीवी 9 भारत वर्ष, आज तक, एबीपी न्यूज़, ज़ी न्यूज़ और टीवी अपने प्रसारण में लगभग तीस प्रतिशत उर्दू शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। सितम्बर का महीना हिंदी को राजभाषा बनाए जाने के उत्सव का महीना होता है, 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाया जाता है, तो मुमकिन है श्रीवास्तवजी का हिंदी प्रेम इतना जाग गया कि उन्होंने इन पांचों समाचार चैनलों के सारे प्रसारणों को सुना हो और उसमें उर्दू लफ्ज़ों के इस्तेमाल का प्रतिशत भी निकाल लिया। हालांकि अब तक इस बात का खुलासा नहीं हुआ है कि पांच चैनलों के कार्यक्रमों में कितने प्रतिशत उर्दू है, यह गणित उन्होंने कैसे हल किया। अगर उन्हें उर्दू का प्रतिशत निकालने में कामयाबी मिल गई, तो वे ये भी बता देते कि हिंदी, अंग्रेजी, अरबी, जापानी, फ्रेंच, संस्कृत, स्पैनिश, फारसी इन सबके इस्तेमाल का प्रतिशत क्या है। क्योंकि खबरों में ट्रेन, रिक्शा, आलू, टमाटर जैसे शब्द कहीं न कहीं आए ही होंगे और ये सब हिंदी के मूल शब्द नहीं है, आयातित शब्द हैं। भाषाविज्ञान और हिंदी साहित्य के ज्ञाता इस बारे में और ज्ञानवर्द्धन कर सकते हैं कि आज हिंदी के जिस रूप से हम परिचित हैं, उसमें कई भाषाओं का मिश्रण है।

क्षणिक चर्चा में आने के लिए, हिंदी के गुणगान से अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए या उर्दू से बैर दिखाकर अपनी सांप्रदायिक नफरत को दर्शाने के लिए, चाहे जिस भी वजह से एस के श्रीवास्तव ने यह शिकायत सरकार के पोर्टल पर दर्ज की हो, उस पर जिस तेजी से कार्रवाई हुई, वह आश्चर्यचकित करती है। इस देश में लाखों-करोड़ों लोग न्याय पाने के लिए भटकते रहते हैं। सरकारी दफ्तरों में उनकी अर्जियां फाइलों में दबी रह जाती हैं। अपने हक के लिए अधिकारियों के आगे गिड़गिड़ाना पड़ता है और अक्सर अपमानित भी होना पड़ता है, तब ऐसे किसी देशभक्त का आवाज़ उठाने वाला जज्बा दिखाई नहीं देता, न किसी सरकारी दफ्तर में इस बात से कोई हलचल मचती है कि उनकी काम करने की सुस्त रफ्तार कैसे आम आदमी को कष्ट देती है। लेकिन हिंदी चैनल उर्दू के शब्द क्यों इस्तेमाल कर रहे हैं, इस पर फौरन से पेश्तर कार्रवाई हो जाती है।

दरअसल मोदी सरकार में इसी तरह प्राथमिकताएं तय हो रही हैं। पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड जैसे कई राज्यों में बाढ़ से तबाही के कारण लाखों जिंदगियां मुश्किल में पड़ गई हैं और प्रधानमंत्री मोदी देश को नागरिक देवो भव: का नया जुमला सुनाकर बचत उत्सव की खुशियां मनाने कह रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर में शहीद हुए लोगों के मान-अपमान की परवाह न कर ठाठ से पाकिस्तान के साथ मैच खेला जा रहा है, ताकि अरबों की कमाई होती रही। यानी सरकार ने एक बार नहीं अनेक बार जाहिर कर दिया है कि उसकी प्राथमिकता क्या है, फिर भी लोग इस मुगालते में पड़े हुए हैं कि मोदी के रहते ही देश विकास करेगा।

बहरहाल, ठाणे के श्रीवास्तवजी ने नहीं बताया कि हिंदी और उर्दू को अलग कर उनका प्रतिशत मापने के लिए कौन सा पैमाना उन्होंने इस्तेमाल किया और न ही सूचना प्रसारण मंत्रालय ने इसकी जानकारी दी। बल्कि 9 सितंबर, 2025 को दर्ज शिकायत के आधार पर मंत्रालय ने 18 सितंबर 2025 को बाकायदा नोटिस भी जारी कर दिया। शिकायतकर्ता श्रीवास्तव ने दावा किया कि ये चैनल हिंदी न्यूज़ चैनल होने का दावा करते हैं लेकिन अपनी रोजाना की टिप्पणियों में अन्य भाषाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो जनता के साथ धोखाधड़ी और आपराधिक कृत्य है। उन्होंने मांग की कि इन चैनलों को भाषा विशेषज्ञ नियुक्त करने और अपनी वेबसाइट पर भाषा विशेषज्ञ का प्रमाणपत्र साझा करने का निर्देश दिया जाए। इसके बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अवर सचिव नवनीत कुमार ने पांचों चैनलों को अलग-अलग पत्र भेजे, जिसमें बताया गया कि उनके खिलाफ कथित तौर पर गलत हिंदी के इस्तेमाल की शिकायत मिली है। पत्र में स्पष्ट किया गया है कि शिकायत के आलोक में चैनलों के खिलाफ़ केबल टेलीविज़न नेटवर्क (संशोधन) नियम के अनुसार आवश्यक कार्यवाही के निर्देश दिए गए हैं। चैनलों को पंद्रह दिनों के भीतर शिकायत पर लिए गए निर्णय की सूचना मंत्रालय और शिकायतकर्ता को देने का आदेश दिया गया है।

कायदे से चैनलों को नोटिस जारी करने से पहले मंत्रालय को शिकायतकर्ता से पूछना चाहिए था कि कौन से कानून में अलग-अलग भाषाओं का एक साथ इस्तेमाल आपराधिक कृत्य अथवा धोखाधड़ी है। ऐसी बेतुकी शिकायतों को सरकार न सुने या उन पर कड़ी फटकार लगाए कि सरकार का वक्त बर्बाद किया जा रहा है, तो बात वही खत्म हो जाए। लेकिन इस तरह का नोटिस जारी कर तो सरकार ने बे सिर पैर की बातें करने वालों को प्रोत्साहन ही दिया है। आज उर्दू के इस्तेमाल पर आपत्ति आई है, कल को पुलाव या बिरयानी खाने पर भी ऐतराज हो जाएगा।

कुल मिलाकर ऐसी बेवकूफियों का कोई अंत ही नहीं है और इनसे निपटने का एक ही तरीका है कि इन पर ध्यान न दिया जाए। लेकिन फिलहाल तो गोडसे की विचारधारा को आगे बढ़ाया जा रहा है। गोडसे गांधी द्वारा उर्दू या 'हिंदुस्तानी' को बढ़ावा देने से नाखुश था, इसे वह हिंदुओं के साथ विश्वासघात मानता था। अदालत में भी गोडसे ने कहा था कि गांधी जी ने मुस्लिमों को खुश करने के लिए हिंदी भाषा और हिंदुस्तान के दो टुकड़े कर दिए। आज इसी पागलपन को सरकार फिर से बढ़ावा दे रही है।


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