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अमेरिकी अपमान पर प्रधानमंत्री की चुप्पी ठीक नहीं

जो भारतीय जनता पार्टी यूएसऐड से मिले 21 मिलियन डॉलर की मदद के नाम पर कांग्रेस को फंसाने का जाल बुन रही थी

अमेरिकी अपमान पर प्रधानमंत्री की चुप्पी ठीक नहीं
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जो भारतीय जनता पार्टी यूएसऐड से मिले 21 मिलियन डॉलर की मदद के नाम पर कांग्रेस को फंसाने का जाल बुन रही थी, अंतत: उसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी फंस गये हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यह बयान देकर मोदी को गम्भीर संकट में डाल दिया है कि 'यह राशि उनके मित्र मोदी और भारत को मिली है।' इसे लेकर जहां भाजपा के प्रवक्ताओं, उसके आईटी सेल और ट्रोल आर्मी को सांप सूंघ गया है, वहीं कांग्रेस अब हमलावर है। अब तक ट्रम्प के बयान की न तो भाजपा या केन्द्र सरकार ने पुष्टि की है और न ही खंडन, परन्तु अब गेंद सीधे मोदी के पाले में है। केवल उन्हीं की ओर से इस बाबत कोई बयान आने का महत्व होगा। ट्रम्प का यह बयान मोदी को केवल राशि मिलने तक सीमित न होकर अनेक अर्थ खोलता है। यह मामला कहां तक जायेगा, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा, लेकिन इससे मोदी बुरी तरह से घिरते साफ दिखाई देते हैं। इसका पहला संकेत तो यही है कि ट्रम्प के आरोपों का किसी के पास कोई जवाब नहीं है।

इस मामले के कई आयाम हैं। पहला यह कि कांग्रेस एवं विपक्षी दलों के पास मोदी के विरूद्ध बहुत बड़ा मामला हाथ लग गया है। चूंकि मोदी ट्रम्प के साथ अपनी मित्रता का बार-बार दावा करते रहे हैं, इसलिये उनकी पार्टी तथा समर्थक यह आरोप भी नहीं लगा सकते कि उनके या भारत के खिलाफ कतिपय ताकतें काम कर रही हैं, जैसा कि ऐसे मामलों में अक्सर कह दिया जाता है। अमूमन इस तरह के आरोप लगने पर इसे 'विदेशी ताकतों का हाथ बताया जाता है' अथवा 'विपक्ष के इशारे पर रची जाने वाली साजिश'। अब तो उन पर दबाव है कि उन्हें खुद को पाक-साफ साबित करना है। ऐसा करने के लिये उन्हें ट्रम्प को झूठा साबित करना होगा। खुद के अलावा सभी विरोधी नेताओं को भ्रष्टाचारी करार देने वाले मोदी निरूत्तर हैं। भारत सरकार के ही वित्त मंत्रालय ने अपने रिकॉर्ड्स की छानबीन कर कह दिया है कि यूएसऐड की मदद से देश में 7 परियोजनाएं तो चल रही हैं परन्तु उनमें वोटर टर्नआउट बढ़ाने को लेकर कोई भी कार्यक्रम नहीं है। इससे यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या इस राशि को छिपाया गया है या किसी गलत तरीके से लिया गया है जिससे सीधे मोदी अथवा भाजपा को लाभ मिला है? विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इसे चिंताजनक बतलाते हुए कहा कि 'इसकी जांच हो रही है जिससे सच्चाई सामने आ जायेगी।'

इस राशि का प्रदाय 'वोटर टर्नआउट' बढ़ाने के लिये किया गया है, अत: इसे पिछले दिनों हुए विभिन्न चुनावों में मतदान का प्रतिशत बढ़ने से जोड़ा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि अनेक राज्यों के विधानसभा तथा लोकसभा चुनाव में मतदान समाप्त होने के समय जो प्रतिशत होता था, वह अगले तीन-चार घंटों में बड़े पैमाने पर बढ़ जाता था। यह माना जाता है कि इसके कारण अनेक राज्यों में हारती हुई भाजपा को सरकार बनाने में मदद मिली थी। महाराष्ट्र में तो हिमाचल प्रदेश की आबादी के बराबर के मतदाता पांच माह की अल्प अवधि में बढ़ गये। यहां तक कि लोकसभा चुनाव में भी कहा जाता है कि भाजपा ने करीब 80 सीटें मैनेज कीं वरना वह सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी। तो क्या यह 21 मिलियन की राशि इस तरह से 'वोटर टर्नआउट' बढ़ाने के नाम पर खर्च की गयी जिससे भारत के कई चुनाव प्रभावित किये गये? यह प्रश्न भी उठ खड़ा हुआ है।

पिछले कुछ दिनों से मोदी व भारत के बारे में या उन्हें प्रभावित करने वाले बयानों की श्रृंखला में ट्रम्प ने बैलेट पेपर की भी बात छेड़ दी है जिसके बारे में अनुमान है कि उनका इशारा भारत की चुनाव प्रक्रिया की ओर ही है जो पिछले कुछ समय में जबर्दस्त विवादों में है। जिन चुनावों की बात ऊपर की गयी है, उनमें गड़बड़ियां और कथित हेरा-फेरी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से ही की गयी हैं। देश में इसका जबर्दस्त विरोध हो रहा है जबकि भाजपा, केन्द्र सरकार और उसके इशारे पर केन्द्रीय निर्वाचन आयोग ईवीएम के जरिये ही चुनाव कराता है। कई विरोधी दल और सिविल सोसायटियां इसके खिलाफ़ हैं और बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग कर रही हैं। चुनाव आयोग तो इस पर विपक्ष की बात सुनने के लिये तैयार ही नहीं है, सुप्रीम कोर्ट से भी यह मांग नामंजूर हो चुकी है। दुनिया के ज्यादातर विकसित व लोकतांत्रिक रूप से परिपक्व देश बैलेट पेपर से ही चुनाव कराते हैं। अमेरिका में भी यही प्रणाली अपनाई जाती है। देश में कई लोगों ने कहा है कि ईवीएम को हैक किया जा सकता है लेकिन चुनाव आयोग का विचार इसके ठीक विपरीत है।

अब ट्रम्प ने उद्योगपति एलन मस्क को 'कम्प्यूटरों के मामले में किसी भी व्यक्ति से अधिक जानकार' बतलाते हुए उनके हवाले से कहा कि 'ईवीएम को प्रभावित किया जा सकता है इसलिये बैलेट पेपर के जरिये निर्वाचन पद्धति ही श्रेष्ठ है।' चूंकि फिलहाल इस पर विवाद सिर्फ भारत में ही चल रहा है, साफ है कि ट्रम्प का यह अप्रत्यक्ष आक्रमण मोदी पर ही है। भारत में अमेरिकी सामानों पर ऊंची शुल्क दरों को लेकर वे पहले ही कह चुके हैं कि भारत जितनी ऊंची दर लगायेगा, उनका देश भी भारत की वस्तुओं पर उतना ही टैरिफ रखेगा।

कुल मिलाकर अमेरिकी राष्ट्रपति बार-बार सार्वजनिक तौर पर भारत को अपमानित करने की चेष्टा कर रहे हैं। लेकिन नरेन्द्र मोदी की इस मामले में असाधारण चुप्पी देश को इस समय काफी खल रही है।


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