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देश को फिर गुलाम बनाने की तैयारी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी माने जाने वाले कारोबारी गौतम अडानी को बिहार में बिजली संयंत्र लगाने का बड़ा ठेका मिला है

देश को फिर गुलाम बनाने की तैयारी
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी माने जाने वाले कारोबारी गौतम अडानी को बिहार में बिजली संयंत्र लगाने का बड़ा ठेका मिला है। कांग्रेस का आरोप है कि बजट में भाजपा ने घोषणा की थी कि इस संयंत्र को सरकार लगाएगी, लेकिन अब ठेका, संयंत्र लगाने के लिए जमीन और बिजली बेचने का अधिकार सब अडानी समूह को दिया गया है। सरकार ने अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं। देश को निजीकरण की जंजीरों में किस तरह जकड़ा जा रहा है, यह उसका ताजा उदाहरण है। जब भारत की प्राकृतिक संपदा और आर्थिक समृद्धि को देखकर अंग्रेज व्यापार करने आए थे, तब ईस्ट इंडिया कंपनी की लुभावनी बातों और आकर्षक सौदों में फंसकर राजाओं ने उन्हें मनमाने नियमों के साथ व्यापार करने की अनुमति दी। बदले में राजाओं को सैन्य मदद या किसी और किस्म का निजी लाभ मिल जाया करता था। इन सौदों में प्रजा के हितों के लिए कोई जगह नहीं थी। जिस प्रजा से तरह-तरह के कर वसूले जाते थे, उसके बारे में न राजाओं ने न ईस्ट इंडिया कंपनी ने कुछ सोचा। नतीजा देश की दो सौ साल की गुलामी के रूप में सामने आया। तब की प्रजा आजाद भारत में नागरिक बन गई, उसे सरकार चुनने का हक देकर शक्ति संपन्न किया गया। लेकिन मौजूदा सरकार ईस्ट इंडिया काल की तरह ही अभी फिर से जनता को प्रजा बनाने में लगी है, ताकि आज के व्यापारियों को मनमाने लाभ कमाने की छूट मिले। देश में अब जो बची-खुची प्राकृतिक संपदा रह गई है, उसे भी हड़प कर भारत को नयी गुलामी की तरफ धकेला जा रहा है।

अडानी समूह ने एनडीए शासित बिहार में राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड (बीएसपीजीसीएल) के साथ 25 साल के बिजली आपूर्ति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के तहत भागलपुर जिले के पीरपैंती में बनने वाले बिजली संयंत्र से राज्य को बिजली उपलब्ध कराई जाएगी। पीरपैंती आने वाले वक्त में बिहार का ऊर्जा हब बन जाएगा, ऐसा कंपनी का दावा है। अडानी समूह के मुताबिक इस परियोजना में लगभग तीन अरब डॉलर (26,482 करोड़ रुपये) का निवेश होगा और इससे कम से कम 12 हजार लोगों के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा होंगे। अगले पांच साल में संयंत्र काम करने लग जाएगा, ऐसा कंपनी का अनुमान है। मतलब अगले चुनाव पर फिर इस संयंत्र के आधार पर वोट मांगने की तैयारी होगी। क्योंकि अभी नरेन्द्र मोदी ने इस का शिलान्यास किया है, अगले चुनाव में वे कहेंगे कि बिजली उपलब्धता के लिए हमें वोट दीजिए।

जिस काम को करना सरकार की प्राथमिकता होना चाहिए, जो उसकी जिम्मेदारी है और जनता का बुनियादी हक है, उसे चुनावी मुद्दा भाजपा ने बनाया है। अडानी समूह की तरफ से बिजली आपूर्ति, उद्योगों को लाभ, रोजगार के मौके जैसी बातें कही जा रही हैं, जो बताता है कि विकास की चकाचौंध में कैसे जनता को गुमराह किया जाता है। अडानी समूह अगर करोड़ों का निवेश कर बिजली संयंत्र लगा सकता है और इतना बिजली उत्पादन कर सकता है कि बिहार का विकास हो जाए, तो इसी काम को करने से सरकार को किसने रोका है। जब नीतीश कुमार 20 सालों से सत्ता में हैं और नरेन्द्र मोदी 11 सालों से केंद्र में हैं, तब भी दोनों मिलकर बिहार के लिए एक बिजली संयंत्र नहीं लगा सके, क्या इसे एनडीए सरकार की बड़ी विफलता के तौर पर पेश नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन भाजपा और उसका मीडिया दोनों इसे बड़ी उपलब्धि बताने में लगे हैं।

गौरतलब है कि अगस्त महीने में उत्तर बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड और दक्षिण बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड ने अडानी पावर को स्वीकृति पत्र जारी किया था। अडानी पावर ने 6 रुपये 75 पैसे प्रति किलोवाट घंटा की न्यूनतम दर की पेशकश कर यह अनुबंध हासिल किया। समझौते के अनुसार, प्लांट से उत्पादित बिजली सीधे बिहार की वितरण कंपनियों तक पहुँचेगी, जिससे राज्य की बिजली स्थिति में सुधार होगा। कहा जा रहा है कि यदि यह परियोजना समय पर पूरी होती है, तो यह न केवल ऊर्जा आपूर्ति की गारंटी देगी बल्कि बिहार में औद्योगिक माहौल को भी बेहतर करेगी। इस निवेश से प्रदेश की छवि एक 'निवेश-अनुकूल राज्य' के रूप में बन सकती है। ऐसे ही लुभावने सपने ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी उस समय के राजाओं को दिखाए थे, जो आखिर में ये तक मानने लगे थे कि अंग्रेज हैं तो उनका उद्धार होगा, वर्ना वे अपने दम पर कुछ कर ही नहीं सकते। जिन राजाओं ने ऐसा नहीं माना, उनकी न केवल सत्ता छीनी गई बल्कि मौत के घाट भी उतारा गया।

दुखद है कि देश को एक बार फिर गुलामी की राह पर चलने के लिए मोदी सरकार मजबूर कर रही है। बताया जा रहा है कि भागलपुर में जो 1020 एकड़ जमीन 30 साल की लीज़ पर अडानी समूह को दी गई है, वो एक रूपए में दी गई है। जमीन को बंजर बताया गया है, जबकि वहां आम और लीची के पेड़ लगे हैं, संयंत्र लगाने के लिए कम से कम 10 लाख आम के पेड़ काटे जाएंगे, ऐसी खबर भी आई है। जिस तरह छत्तीसगढ़ में हसदेव के जंगलों को अडानी समूह के लिए काटा गया, वही काम अब बिहार में होगा। इससे पहले असम में भी सीमेंट संयंत्र के लिए ऐसी ही बड़ी जमीन कौड़ियों के भाव दी गई है। नरेन्द्र मोदी से पूछा जाना चाहिए कि आपका काम क्या केवल अडानी की बनाई परियोजनाओं का उद्घाटन करना या पुरानी सरकारों के काम का श्रेय लेना ही है, या कभी खुद भी कुछ करके दिखाएंगे। पता नहीं विकास की कौन सी परिभाषा के तहत देश के सारे संसाधन और सार्वजनिक निकायों का निजीकरण सरकार कर रही है। और इतनी लूट भी काफी नहीं लग रही तो कारोबारियों को छूट दे रही है कि वो सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं का मनचाहा शुल्क जनता से वसूल करें।

नरेन्द्र मोदी का अंधा समर्थन करने वाले इस लूट का दर्द अभी महसूस नहीं कर पा रहे हैं, जब तक समझ आएगा, देश शायद फिर गुलाम बन चुका होगा।


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