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अंधभक्त होने की शर्त पूरा करते लोग

25 दिसम्बर को पटना में अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर एनडीए सरकार ने 'मैं अटल रहूंगा' कार्यक्रम रखा

अंधभक्त होने की शर्त पूरा करते लोग
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- सर्वमित्रा सुरजन

क्रिसमस की खुशियां मनाते लोगों के लिए नफरत का इज़हार सोशल मीडिया पर भी देखा गया। महेन्द्र सिंह धोनी सांता के वेष में दिखे और उनके साथ उनका परिवार भी था, तो लोगों ने इस पर तंज कसे। राज्यसभा सांसद सागरिका घोष ने क्रिसमस ट्री के पास खड़े होकर अपनी तस्वीर डाली और इस त्योहार की बधाई दी

25 दिसम्बर को पटना में अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर एनडीए सरकार ने 'मैं अटल रहूंगा' कार्यक्रम रखा। इसमें लोक गायिका देवी ने जैसे ही गांधी जी के प्रिय भजन ''रघुपति राघव राजा राम'' गाया, सामने बैठे भाजपा नेताओं ने हंगामा शुरु कर दिया। नौबत ऐसी आ गई कि लोक गायिका को गांधी जी का भजन गाने के लिए माफी मंगवाई गई। ये घटना एक बानगी है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में किस किस्म के भारत का निर्माण हो चुका है।

वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद क्रिसमस के मौके पर दिल्ली में स्थित कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया के मुख्यालय में पहुंचे थे, जहां उन्होंने शांति और सद्भाव की मन को लगने वाली अच्छी-अच्छी बातें कहीं। जर्मनी में हाल ही में क्रिसमस बाजार में हुए हमले की निंदा और श्रीलंका में पांच साल पहले 2019 में ईस्टर के मौके पर हुए बम विस्फोटों का जिक्र करते हुए श्री मोदी ने अपने नारे 'सबका साथ सबका विकास' के नारे को ईसाई समुदाय की शिक्षाओं से जोड़ने की कोशिश की। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'बाइबल कहती है, एक-दूसरे का सहारा बनो। यीशु मसीह ने दया और निस्वार्थ सेवा का उदाहरण दिया है। हम क्रिसमस इसलिए मनाते हैं ताकि इन शिक्षाओं को अपने जीवन में उतार सकें।' इस बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा समेत कई और भाजपा नेता क्रिसमस के दिन चर्च गए और ईसाई समुदाय को बड़े दिन की शुभकामनाएं दीं।

इधर 19 दिसम्बर को संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि 'राम मंदिर के साथ हिंदुओं की श्रद्धा है लेकिन राम मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वो नई जगहों पर इसी तरह के मुद्दों को उठाकर हिंदुओं का नेता बन सकते हैं। ये स्वीकार्य नहीं है।' जिस वक्त देश में हर मस्जिद के नीचे एक मंदिर तलाशने की कोशिश की जा रही है, और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद खुदाई का कार्य किया जा रहा है। उस समय श्री भागवत के बयान का यह निहितार्थ निकाला गया कि संघ प्रमुख इशारों में फिर से नरेन्द्र मोदी को नसीहत दे रहे हैं कि उनके शासन में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने वाले ये प्रकरण संघ को ठीक नहीं लग रहे हैं। हालांकि अब संघ के मुखपत्र आर्गनाइजर का जो संपादकीय आया है, उसमें फिर यह बात स्थापित हो गई कि संघ जिन उद्देश्यों के साथ सौ साल पहले अस्तित्व में आया था, वह अब भी उन्हीं पर कायम है।

इस संपादकीय में लिखा है कि 'सभ्यतागत न्याय की खोज के बारे में बात करने का वक्त आ गया है। बाबा साहेब अंबेडकर ने जाति आधारित भेदभाव की असली वजह को समझा और इसे खत्म करने के लिए कुछ संवैधानिक उपाय हमारे सामने रखे। हमें धार्मिक झगड़ों को समाप्त करने के लिए इसी तरह के दृष्टिकोण की जरूरत है।' संपादकीय में तर्क दिया गया है कि यह तभी संभव है जब मुस्लिम समुदाय सत्य को स्वीकार करे और अगर यह समुदाय इससे इनकार करता है तो इससे अलगाववाद को बढ़ावा मिलेगा। आर्गनाइजर लिखता है -भारत के मुस्लिम समुदाय के लिए यह जरूरी है कि वह आक्रांताओं द्वारा हिंदुओं के साथ किए गए 'ऐतिहासिक अन्याय' को स्वीकार करे। सोमनाथ से लेकर संभल और इसके आगे तक सच को जानने की यह लड़ाई धार्मिक श्रेष्ठता के बारे में नहीं है। यह हमारी राष्ट्रीय पहचान को साबित करने और 'सभ्यतागत न्याय' के बारे में है।

इधर विश्व हिंदू परिषद के एक नेता सुरेंद्र जैन ने एक टीवी चैनल से चर्चा में कहा कि '1984 में भारत के संतों ने मुस्लिम समाज को बहुत अच्छा ऑफर दिया था कि आप हमें केवल तीन दे दीजिए, अयोध्या, मथुरा और काशी.. हम लाखों को भूल जाएंगे। आज की परिस्थिति जो बनी है उसके लिए मुस्लिम नेतृत्व जिम्मेदार है। अयोध्या हमने लिया है वो लड़कर लिया है। यदि मुस्लिम उस समय आगे आए होते तो ये तीनों स्थान हमारे होते, ये विषय ही नहीं आता है।'

नरेन्द्र मोदी और मोहन भागवत ने जो बयान दिए हैं, उनमें और उपरोक्त बातों में कोई तालमेल नजर नहीं आता। लेकिन फिलहाल यही देश की हकीकत है कि शीर्ष पर बैठे लोग प्रेम और सद्भाव का ज्ञान दे रहे हैं और उनके अधीनस्थ या निर्देशन में काम कर रहे लोग नफरत को बढ़ाने में लगे हैं। मुसलमानों को मीठी जुबान में धमकी दी जा रही है कि हमें मस्जिदों को तोड़कर मंदिरों की तलाश करने दो। हालांकि वास्तव में यह धमकी देश के संविधान और न्याय व्यवस्था को दी जा रही है कि बाबरी मस्जिद जैसी घटनाएं देश में बार-बार होंगी और हिंदुत्व के ठेकेदारों को तब तक कोई रोक नहीं पाएगा, जब तक संघ और भाजपा की सरपरस्ती में देश चलेगा। जब इंडिया गठबंधन सामाजिक न्याय के मुद्दे को राजनीति की मुख्यधारा में लाने की कोशिश में है, तब संघ सभ्यतागत न्याय का नया शिगूफा छोड़ चुका है।

क्रिसमस के मौके पर देश में कई स्थानों पर ऐसी घटनाएं हुईं, जो मोदी और भागवत के बयानों के ठीक विपरीत हैं। इंदौर में जोमैटो कंपनी के एक कर्मचारी को हिंदू संगठन के लोगों ने बीच सड़क पर रोककर उसकी सांता क्लॉज की पोशाक उतरवाई और बाकायदा इसका वीडियो भी बनाया। उस कर्मचारी को ये गुंडा तत्व कह रहे हैं कि हिंदू त्योहारों तुम इसी तरह तैयार होकर क्यों नहीं जाते। राजस्थान में एक स्कूल में क्रिसमस कार्निवाल को लोगों ने बीच में रुकवा दिया, उन्हें आपत्ति थी कि ईसाइयों के त्योहार पर जश्न क्यों हो रहा है। उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक और शर्मनाक घटना को अंजाम दिया गया। यहां हजरतगंज में चर्च के बाहर ही युवाओं की भीड़ ने इक_ा होकर हरे रामा, हरे कृष्णा जोर-जोर से गाया। इस घटना के वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि ईसाइयों की प्रार्थना में खलल पहुंचाकर ये युवा काफी प्रसन्नता महसूस कर रहे थे।

क्रिसमस की खुशियां मनाते लोगों के लिए नफरत का इज़हार सोशल मीडिया पर भी देखा गया। महेन्द्र सिंह धोनी सांता के वेष में दिखे और उनके साथ उनका परिवार भी था, तो लोगों ने इस पर तंज कसे। राज्यसभा सांसद सागरिका घोष ने क्रिसमस ट्री के पास खड़े होकर अपनी तस्वीर डाली और इस त्योहार की बधाई दी, तो उस पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि जब मुसलमान और ईसाई हिंदू त्योहारों की बधाई नहीं देते, तो इनके त्योहार पर बधाई क्यों दी जा रही है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता से पूरी तरह अनजान या बेहद मूर्ख किस्म के लोग ही इस तरह की बातें कर सकते हैं। दुख इस बात का है कि इस मूर्खता का अब जश्न मनाया जा रहा है।

परसाईजी ने कहा ही था कि अंधभक्त होने के लिए प्रचंड मूर्ख होना अनिवार्य शर्त है। श्री मोदी के बनाए न्यू इंडिया में यह शर्त पूरी होते नजर आ रही है। युवाओं को खास तौर पर इसी काम में लगा दिया गया है ताकि उन्हें न अपने रोजगार की चिंता रहे, न पेपर लीक या परीक्षा में धांधलियों की फिक्र हो, न उन्हें ये समझ आए कि उनके अभिभावक इस महंगाई में घर किस तरह चला रहे हैं। चर्च के बाहर चिल्ला-चिल्ला कर हरे रामा हरे कृष्णा करने से न भगवान मिलेंगे, न नौकरी मिलेगी। और सोचने वाली बात यह भी है कि जब मस्जिद या दरगाह या चर्च के बाहर भजन-कीर्तन करने हैं, तो फिर देश में और नए मंदिर क्यों चाहिए। मुस्लिम अस्पताल में या ट्रेन के भीतर नमाज पढ़ें तो हिंदू खतरे में दिखाई देने लगता है, लेकिन बीच सड़क पर भजन के नाम पर चीख-चिल्लाहट मचाने से धर्म की रक्षा होती है, ऐसा ज्ञान विश्वगुरु भारत के युवा दुनिया के सामने रख रहे हैं।


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