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बिहार में पुरानी गलतियों से बचना होगा : विपक्ष को एक होकर लड़ना होगा

कांग्रेस को लालू और तेजस्वी से कहना चाहिए कि दोनों तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने में सहायक हैं

बिहार में पुरानी गलतियों से बचना होगा : विपक्ष को एक होकर लड़ना होगा
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- शकील अख्तर

कांग्रेस को लालू और तेजस्वी से कहना चाहिए कि दोनों तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने में सहायक हैं। बाधा नहीं हैं। लेकिन मुख्यमंत्री बनने के लिए जीतना तो पड़ेगा। तेजस्वी हर चुनाव में अच्छा कर रहे हैं। मगर जीत नहीं रहे। इस बार फिनिशर हो सकते हैं। मगर सबको साथ लेकर चलना पड़ेगा।

अच्छा बैट्समेन एक बॉल पर दो बार आउट नहीं होता। मगर कांग्रेस उसी बॉल पर बार=बार अपना विकेट गंवा रही है। अभी 2023 की तीन राज्यों की हार राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और फिर 2024 में हरियाणा की जीती हुई बाजी हार कर भी उसने कोई सबक नहीं सीखा।

चुनाव आयोग है। वह तो है! और जब तक मोदी रहेंगे वह तो ऐसे ही रहेगा। आप कांग्रेस के चुनाव लड़ने पर कुछ भी लिखो लोग कहना शुरू कर देते हैं ईवीएम पर लिखो, वोटर लिस्ट पर लिखो, चुनाव धांधलियों पर कहो, चुनाव आयोग पर बोलो। सही बात है। मगर इन पर कम नहीं लिखा है। लेकिन इन्हें बदलना, ठीक करना आपके हाथ में नहीं हैं। इनके खिलाफ लड़ाई जारी है। विपक्ष भी लड़ रहा है। मीडिया का एक छोटा हिस्सा ही सही वह भी लड़ रहा है। और यह सब लड़ते रहेंगे। लेकिन अंपायरिंग खराब है, पिच खराब है, क्लोज फिल्डिंग है सब है मगर आप आउट कैसे हो रहे हैं यह तो देखिए! हर बार एक जैसी गलती करके?

बिहार के चुनाव अभी घोषित नहीं हुए हैं। थोड़ा समय है। विशेष गहन पुनरीक्षण बेईमानी है, धोखा है उससे लड़ना है। विपक्ष लड़ भी रहा है।

बिहार बंद बहुत सफल रहा। चुनाव आयोग के झूठ सामने आने लगे हैं कि इतने करोड़ फार्म बांटे। खुद बीएलओ कैमरे पर कह रहे हैं कि आधे भी नहीं बांटे। जो पुनरीक्षण करवा रहे हैं उन सरकारी कर्मचारियों का कहना है कि यह 25 जुलाई तक संभव ही नहीं है। तो यह लड़ाई चलती रहेगी। इसे विपक्ष को और ताकत से लड़ना होगा। एक भी वोट कटे नहीं यह देखना होगा। क्योंकि वोट वह सही और गलत देखकर नहीं काटेंगे। इसके लिए यह वोटर रीविजन नहीं लाए हैं। वह तो सीधा उद्देश्य है उन वोटों को काटना जो विपक्ष को जा सकते हैं।

भाजपा की जीत की संभावनाएं बढ़ाना। मामला सुप्रीम कोर्ट गया। मगर जैसा कि हमारा शक था वही हुआ। उसने कोई आदेश नहीं दिया। केवल कुछ सुझाव दे दिए। जिन पर चुनाव आयोग ने कान भी नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट सलाहकार बन गया।

काम था न्याय करना। उसके लिए फैसला देना। मगर वह सलाहें दे रहा है। कौन मानेगा उसकी सलाह जो मोदी जी की जीत के खिलाफ जा रही है! आदेश होता तब भी उसके खिलाफ चुनाव आयोग या उसकी तरफ से कोई और रीविजन में चला जाता। यहां तो भाई साहब ऐसा कर लो ठीक रहेगा वाली केवल खानापूरी की सलाह है जिसे कोई मानने वाला नहीं है।

खैर तो यह सब चलेगा। इससे लगातार लड़ना होगा। मगर साथ में अपना घर भी ठीक करना होगा। पुरानी बातें छोड़ते हैं। हालांकि अगर कांग्रेस 2014 की हार से लेकर अभी लास्ट महाराष्ट्र की हार की ठीक से समीक्षा कर लेती तो उसे अभी बिहार की जीत के कई मजबूत आधार मिल जाते। और हुई हार की गलतियां दोहराने से बच जाती। साथ ही जहां जीते है जैसे 2015 में बिहार में लालू जी जीते थे उससे समझ मिल जाती।

अभी भी समय है समझ सकते हैं। क्योंकि बिहार बहुत महत्वपूर्ण है। और उससे भी ज्यादा यह वक्त। वक्त का मतलब मोदी इस समय सबसे ज्यादा कमजोर स्थिति में हैं। 11 साल में पहली बार उनके समर्थक भी उनसे निराश हैं। पहलगाम के आतंकवादी हमले के बाद एक भी दोषी नहीं पकड़ा गया। और उसके बाद आपरेशन सिंदूर में हमारे जहाजों के नुकसान की खबर आई। किसी और ने नहीं बल्कि सेना की शीर्षस्थ अधिकारियों द्वारा। और फिर अचानक सीजफायर। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप का रोज दावा कि मेरे कहने से किया। मोदी की सारी इमेज खतम हो गई।

राष्ट्रवाद ही मोदी का सबसे बड़ा आधार था। कांग्रेस पीओके नहीं ले पाई हम लेंगे। 8 मई की रात टीवी वालों ने जो पाकिस्तान का हर शहर जीतने की कहानियां चलाईं वह इसी भरोसे चलाई थीं कि मोदी यह सब कर लेंगे। मगर मोदी ने तो सीजफायर मान लिया।

उनका सारा राष्ट्रवाद का माहौल भरभरा कर गिर गया। अब उसे संभालने की चेष्टा में जो कुछ भी कर रहे हैं उसका असर हो नहीं रहा। या किसी-किसी कोशिश का तो उल्टा असर हो रहा है। जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने चुनौती वाले अंदाज में कहा कि-बताओ हमारा क्या नुकसान हुआ?

सब खामोश थे। राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला था। मगर डोभाल के कहने के बाद लोग भारत के चीफ आफ डिफेंस स्टाफ अनिल चौहान और भारत के डिफेंस अटैची कैप्टन शिवकुमार को ही कोट करने लगे। जिन्होंने नुकसान होने की बात कही थी। और यहां तक कहा कि नुकसान सेना की वजह से नहीं राजनीतिक नेतृत्व की गलती की वजह से हुआ।

यह मोदी की छवि दोबारा बनाने की कोशिशें थीं। इसी के तहत मोदी 5 देशों की यात्रा पर गए। जिन्हें खूब बढ़ा चढ़ाकर प्रचारित किया गया। मगर घर के सवाल बाहर के सम्मानों से दूर नहीं होते हैं।

तो इस समय मोदी अपनी सबसे कमजोर स्थिति में हैं। और अगर अभी भी विपक्ष उन्हें बिहार में हरा नहीं पाएगा तो फिर उसके लिए लंबे समय तक वापस अंधेरा छा जाएगा। और मोदी फिर उभर आएंगे।

बिहार में कांग्रेस और आरजेडी का ठीक से मिल कर लड़ना तो बाद का सवाल है। पहला सवाल यह कि कांग्रेस में वहां सब कुछ ठीक क्यों नहीं है? अभी बिहार बंद के दौरान राहुल गांधी के दौरे पर पप्पू यादव और कन्हैया कुमार को अस्थायी रुप से ट्रक को बनाए रथ पर चढ़ने से रोक दिया गया।

सफल बिहार बंद की खबर चलाने से बचने के लिए गोदी मीडिया को बढ़िया शिगुफा मिल गया। इस प्रकरण में बहुत सारी बातें कही जा रही है। मगर मुख्य बात यह है कि अगर रथ पर जगह कम थी। कुछ ही लोगों को खड़ा करना था तो बाकी लोगों को पहले से क्यों नहीं बताया गया? नीचे कोई जिम्मेदार आदमी होता जैसा सारी व्यवस्थाओं में होते है तो वहीं धीरे से बता देता। सुरक्षाकर्मियों को रोकने देने की नौबत क्यों आई?

कांग्रेस व्यवस्था से काम क्यों नहीं करती है। सब को मालूम है कि सबसे ज्यादा अव्यवस्था कांग्रेस के कार्यक्रमों में होती है। इसे अपना कल्चर मान लेना अब नुकसान करने लगा है। यह ऊपर से बड़े नेतृत्व को समझना चाहिए। बेवजह यह मामला तूल पकड़ गया।

दूसरी बात आरजेडी की, तेजस्वी यादव की। लगातार यह कहा जा रहा है कि तेजस्वी और खुद लालू भी पप्पू यादव और कन्हैया को पसंद नहीं करते हैं। यह दोनों कांग्रेस के नेता हैं। और राहुल गांधी की वजह से ही कांग्रेस में आए हैं।

कांग्रेस को लालू और तेजस्वी से कहना चाहिए कि दोनों तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने में सहायक हैं। बाधा नहीं हैं। लेकिन मुख्यमंत्री बनने के लिए जीतना तो पड़ेगा। तेजस्वी हर चुनाव में अच्छा कर रहे हैं। मगर जीत नहीं रहे। इस बार फिनिशर हो सकते हैं। मगर सबको साथ लेकर चलना पड़ेगा।

खुद लालू और तेजस्वी को भी समझना चाहिए। राजनीति अवसरों का फायदा उठाने की होती है। अवसर गंवाने की नहीं। सबसे बड़ा दांव तो तेजस्वी का लगा है। उन्हें खुद आगे आकर यह सब विवाद खत्म करना चाहिए। कांग्रेस आरजेडी बाकी गठबंधन के दल सबको समझना चाहिए कि जीतेंगे तभी कुछ मिलेगा। अभी लट्ठमलट्ठा करने से कोई फायदा नहीं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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