अब मुकाबला सीधा : डराने वालों और डरो मत के बीच
बटेंगे तो कटेंगे जैसे नारों का उद्देश्य एक ही होता है दलित पिछड़ों आदिवासियों, कृषि निर्भर जातियों और सवर्णों में भी अन्य दूसरे तीसरे पायदान पर आने वाली जातियों को डराना कि उन्हें कोई खतम करने वाला है

- शकील अख्तर
केन्द्र में जहां चार सौ पार के दावे कर रहे थे। वहां बहुमत के लिए भी कई पार्टियों का समर्थन लेना पड़ा। यूपी में तो सपा और कांग्रेस ने मिलकर 43 सीटें जीत लीं। और बीजेपी केवल 33 पर रह गई। जनता नफरत और विभाजन फैलाने के उद्देश्य को समझ गई। महंगाई बढ़ाई जाएगी, नौकरी नहीं दी जाएगी, सरकारी अस्पतालों को खत्म कर दिया जाएगा, सरकारी स्कूलों को भी। पांच किलो मुफ्त अनाज को बड़ा अहसान बताया जाएगा।
बटेंगे तो कटेंगे जैसे नारों का उद्देश्य एक ही होता है दलित पिछड़ों आदिवासियों, कृषि निर्भर जातियों और सवर्णों में भी अन्य दूसरे तीसरे पायदान पर आने वाली जातियों को डराना कि उन्हें कोई खतम करने वाला है। नारा देने वाले के कहने का मतलब होता है देश में कोई कानून व्यवस्था नहीं है। न्याय नहीं है। शांति का माहौल नहीं है। दस साल केन्द्र के और सात साल उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकारों को हो गए मगर तुम निश्ंिचत नहीं रह सकते, तुम्हें डरना चाहिए। दस साल पहले डर नहीं था। कोई कटने कटाने की बात नहीं करता था। लेकिन अब इनकी सरकार आ गई हो तो बंटना कटना जैसे हिंसक, भय पैदा करना वाले शब्दों का उपयोग किया जाने लगा है।
डर लोगों को नहीं है। डर इन्हें है कि लोग कहीं डरना नहीं छोड़ दें। इन्हें लगता है कि जनता अगर निर्भय हो गई तो अपने असली मुद्दों की बात करने लगेगी। अभी लोकसभा में बहुमत से दूर 240 पर सिमट जाने और यूपी में तो 80 में से केवल 33 पर रुक जाने के बाद भाजपा में खलबली मच गई। ऐसा नहीं है कि इस लोकसभा चुनाव में हिन्दू मुसलमान कुछ कम करा हो। बल्कि पिछले चुनावों से आगे बढ़कर किया। भैंस छीन लेंगे, मंगल सूत्र छीन लेंगे जैसा डर पैदा करने की कोशिश की गई। यूपी में बुलडोजर के सहारे लड़ा गया। अजान, नमाज, टोपी, तहमद जैसे मुद्दे उठाए। लेकिन नतीजा क्या हुआ?
केन्द्र में जहां चार सौ पार के दावे कर रहे थे। वहां बहुमत के लिए भी कई पार्टियों का समर्थन लेना पड़ा। यूपी में तो सपा और कांग्रेस ने मिलकर 43 सीटें जीत लीं। और बीजेपी केवल 33 पर रह गई। जनता नफरत और विभाजन फैलाने के उद्देश्य को समझ गई। महंगाई बढ़ाई जाएगी, नौकरी नहीं दी जाएगी, सरकारी अस्पतालों को खत्म कर दिया जाएगा, सरकारी स्कूलों को भी। पांच किलो मुफ्त अनाज को बड़ा अहसान बताया जाएगा। गरीब को केवल उसी पर निर्भर कर दिया जाएगा। कोई काम धंधा नहीं, नौकरी रोजगार नहीं, उसके बच्चों का स्कूल, कापी पेंसिल, खुद उसकी, उसके बुजुर्ग मां बाप की दवा, इलाज का कोई इंतजाम नहीं। केवल पांच किलो अनाज लो और नफरती विभाजनकारी भाषणों को सुनकर बंटने कटने के काल्पनिक भय में जियो।
प्रभाव कहीं नहीं हो रहा है। लोकसभा के बाद हरियाणा में सरकार जरूर बना ली मगर वोट 11 परसेंट कांग्रेस का बढ़ा। बंटने कटने की बात करने के बावजूद भाजपा का वोट केवल 3 परसेंट बढ़ा। जीत भाजपा को अपने डर पैदा करने वाले अजेंडे की वजह से नहीं मिली बल्कि कांग्रेस के गुटबाज नेताओं द्वारा खुद ही माहौल खराब करने, मैं बनूंगा मुख्यमंत्री, की मूर्खतापूर्ण बहस और ईवीएम की वजह से मिली। कांग्रेस ने चुनाव आयोग में दस्तावेजों के आधार पर शिकायत दर्ज करवाई है कि 20 सीटों पर ईवीएम में गड़बड़ियां थीं। कांग्रेस के इस आरोप का जवाब चुनाव आयोग या उसकी तरफ से अभी तक जो भाजपा और मीडिया देते थे वे भी नहीं दे पाए हैं कि जिन मशीनों में वोटिंग हुई है वे 99 प्रतिशत तक चार्ज कैसे मिलीं? कोई भी मशीन अगर काम करती है। या रखी भी रहती है तो इसकी बैटरी कम होती जाती है। यहां 5 अक्टूबर को मतदान हुआ और 8 अक्टूबर को गिनती। तीन दिन बाद मशीन 99 प्रतिशत तक चार्ज! इसका क्या जवाब हो सकता है? इसीलिए मीडिया और भाजपा ने दिया नहीं और चुनाव आयोग को देना नहीं है।
तो यह अलग मुद्दा है हरियाणा में बीजेपी की जीत का, मगर यहां यह जीत अब नफरत फैलाने से नहीं मिल रही है। तो क्या करें? जनहितकारी काम तो कुछ कर नहीं सकते। क्योंकि पूरी सोच जनविरोधी है। जनता को डरा कर नफरत के नशे में रखो। वह जनता नहीं प्रजा है। उसका काम है निष्ठा से अपने कर्तव्यों का पालन करना। शासक जिस हाल में रखे उसमें रहना और उसका शुक्रगुजार रहना क्यों कि यही प्रजा का काम है। याद नहीं? कोविड में क्या कहा था। ताली थाली बजवाई। दवा, आक्सिजन सिलेंडर, अस्पताल में बेड मरने के बाद श्मशान तक कुछ नहीं दिया, लोगों ने पुलों पर से शव फेंके, नदी में बहाए, रेत में दबा दिए। और संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा क्या, जो मरे वे मोक्ष को प्राप्त हो गए। सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से इनकार कर दिया। कहा सिस्टम की गलती! सिस्टम क्या। एक अमूर्त चीज। कुछ भी मान लो। लेकिन कोरोना वैक्सिन सर्टिफिकेट पर अपना फोटो छपवाना नहीं भूले। मोदी जी के फोटो सबके घरों में पहुंच गए। एक एक आदमी के पास दो या तीन सर्टिफिकेट। मतलब उतने ही फोटो। लेकिन अब हार्ट अटैक से मौतें हो रही हैं। युवा किशोर खड़े खड़े गिर कर मर रहे हैं। डाक्टर वैक्सिन को दोषी बता रहे हैं। मगर कोई जांच शोध नहीं। वैक्सिन बनाने वाली कंपनियों ने बेहिसाब पैसा बना लिया। लंदन में सबसे महंगी प्रापर्टी खरीद ली। यहां इलेक्टोरल बांड के जरिए बीजेपी को खूब पैसा दे दिया। आज कोई वैक्सिन कंपनियों से सवाल करने वाला नहीं है। प्रजा पर ऐसे प्रयोग होते रहते हैं। पहले दवा वैक्सिन के प्रयोग जानवरों पर होते थे। क्यों जनता होती थी उसे इंसान माना जाता था। नेता तो जनता जनार्दन यानि भगवान भी कहते थे मगर अब उसका वह दर्जा खत्म हो गया।
उसका काम अब केवल डरना और डराने वालों को वोट देना रह गया है। मगर ऐसा होगा क्या? मानव जाति का इतिहास तो बताता है कि इंसान ने हमेशा डर पर जीत हासिल की है। राहुल गांधी ने नारा ही यह दिया है- डरो मत! मतलब अब सीधे सीधे देश दो स्पष्ट मुद्दों पर आ गया है। एक तरफ राहुल गांधी हैं जो जनता को निर्भय बनाने कि लिए लड़ रहे हैं। दूसरी तरफ भाजपा और संघ है जो डराने की कोशिश कर रहा है। कह रहा है कटोगे। खुद की सरकार। दोनों जगह केन्द्र और राज्य में। और कटने की बात कर रहा है। एक तरफ यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है। दूसरी तरफ जनता की परीक्षा। क्या वह इतनी बेवकूफ है कि कोई कहेगा और वह मान जाएगी? सोचेगी नहीं? कौन काटने आ रहा ? और क्यों? और क्या इनके शासन में बिल्कुल जंगल राज आ गया है कि देश के बहुसंख्यक लोगों को कोई काट जाएगा ? मार जाएगा? नहीं जनता सब समझती है। अगर भाजपा का डर दिखाना कामयाब होता तो लोकसभा में वह चार सौ पार जाती। हरियाणा में 11 परसेन्ट कांग्रेस का वोट नहीं उसका बढ़ता।
जम्मू कश्मीर में इस बार उसकी मुराद पुरी हो जाती। वह 29 सीटें नहीं कम से कम जम्मू संभाग की तो पूरी 43 जीतती। परिसीमन करवा कर उसने जम्मू में सीटें इसीलिए बढ़वाई थीं। पहले जम्मू में केवल 37 सीटें थीं। उसमें 6 बढ़वा लीं। उसका गणित सीधा था। इसी विभाजन की राजनीति के भरोसे वह जम्मू की अधिकांश सीटें जीतना चाहती थी। 6 उसने पहली बार मनोनीत सदस्य की व्यवस्था कर ली थी। 90 की विधानसभा में जीत का पूरा हिसाब किताब। मगर जैसा हमने कहा कि क्या जनता इतनी बेवकूफ है? नहीं। उसने जम्मू में भाजपा को रोक दिया। जबकि वह सबसे बड़ा इशु लेकर गई थी। 370 हटा दिया। लेकिन जनता समझदार है। अपना हित अनहित पहचानती है। तो लोकसभा और उसके बाद जम्मू कश्मीर हरियाणा कहीं भी नफरत और विभाजन के मुद्दे नहीं चले। अब महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव हैं। भाजपा उसी नफरत को बटेंगे तो कटेंगे के जरिए और तेज करने की कोशिश कर रही है। खतरनाक स्थिति है। देश की सत्ताधारी पार्टी केवल नफरत के भरोसे। लेकिन जनता हमेशा सिद्ध करती है कि उसमें एक सहज बोध है। कामन सेंस। शिक्षित हो या अशिक्षित वह झूठ और सच में फर्क पहचानती है। डराने वालों और डर से बचाने वालों में फर्क करती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


