सामान्य पटाखे बनाम ग्रीन पटाखे
बारिश खत्म होते ही, ठंड की हल्की दस्तक के साथ प्रदूषण का अनचाहा आगमन भी हो चुका है

बारिश खत्म होते ही, ठंड की हल्की दस्तक के साथ प्रदूषण का अनचाहा आगमन भी हो चुका है। साल दर साल बीतते जा रहे हैं और प्रदूषण की समस्या से निजात ही नहीं मिल रहा है, क्योंकि इसकी जड़ों तक जाने की कोशिश ही नहीं हो रही है। केवल ऊपरी तौर पर नियम बनाकर प्रदूषण जैसी गंभीर और जटिल समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता, ये बात नीति नियंता भी अच्छे से जानते हैं। मगर शायद प्रदूषण दूर करना उनके लिए जीने-मरने का सवाल कभी रहा ही नहीं। उन्हें वातानुकूलित दफ्तरों में बैठकर काम करना है, तमाम सुविधा-संपन्न घरों में रहना है, छुट्टियों पर प्रदूषण रहित पर्यटक स्थलों पर वे जाते हैं और अगर बीमार पड़ें तो सात सितारा अस्पतालों में महंगा इलाज उनके लिए उपलब्ध है। लेकिन आम आदमी प्रदूषण की मार बारह महीने झेलता है, फिर भी समझ नहीं पाता कि उसे खुश करके आखिर में उसे ही धीरे-धीरे मारने का इंतजाम किया जा रहा है।
दीपावली से पहले सुप्रीम कोर्ट ने हरित पटाखों की बिक्री और उपयोग की जो इजाज़त दी है, वो इसी धीमी मौत का एक और उदाहरण है। सुप्रीम कोर्ट को कम नुकसानदायक पटाखों को जलाने की मंजूरी इसलिए देनी पड़ी क्योंकि दीपावली अब रोशनी, रंगों और मिठास से ज्यादा उस हिंदुत्व का त्योहार बन चुका है, जिसे अपने प्रचार के लिए कानफोड़ू शोर की जरूरत पड़ती है। न जाने किस तरह बहुतेरे हिंदुओं के दिमाग में यह बात भर दी गई कि दीपावली पर पटाखे जलाने से रोकना धर्म का अपमान है। कहने की आवश्यकता नहीं कि भाजपा का इस मुहिम में बड़ा योगदान रहा। प्रधानमंत्री मोदी दुनिया को पर्यावरण संरक्षण का ज्ञान बांटते हैं, लेकिन अपनी पार्टी के लोगों और समर्थकों को यह नहीं समझा सकते कि धर्म की राजनीति चलती रहेगी, कम से कम त्योहार को इसमें बख्श दें। अगर आज मोदी लोगों से अपील करें कि वे पटाखे न जलाएं, दीए, कंदील जलाकर, रंगोली सजाकर दीवाली मना लें, तो उनके अनुयायी खुशी-खुशी इस बात को मानेंगे। जब बालकनी में आकर थाली पीट सकते हैं, तो ये काम भी कर ही सकते हैं। मगर मोदी को भी ये डर है कि हिंदुत्व के नाम पर जिन लोगों को पूरी तरह गुमराह किया जा चुका है, वे इस बात को गलत तरीके से ले कर अपनी नाराजगी मोदी पर ही उतार सकते हैं। इसलिए भाजपा में अब पटाखों की नहीं, ग्रीन यानी हरित पटाखों की बात होती है। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट का आभार माना है कि उसने इन पटाखों के लिए मंजूरी दी।
शीर्ष अदालत ने सिर्फ नीरी (नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट) द्वारा प्रमाणित ग्रीन पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल की अनुमति दी है। जो केवल 18 से 21 अक्टूबर तक के लिए दी गई है। अदालत ने साफ किया कि इस अवधि के बाद किसी भी प्रकार के पटाखों की बिक्री या इस्तेमाल पर प्रतिबंध जारी रहेगा। अगर कोई विक्रेता या निर्माता इस आदेश का उल्लंघन करता पाया गया, तो उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। यह आदेश भी दिया गया है कि पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी मिलकर विशेष निगरानी दल गठित करें। इन टीमों का काम यह सुनिश्चित करना होगा कि सिर्फ प्रमाणित ग्रीन पटाखों का ही निर्माण, बिक्री और उपयोग हो रहा है। अदालत ने पर्यावरणीय प्रदूषण को नियंत्रण में रखने के लिए पटाखे फोड़ने की समय सीमा सुबह 6 बजे से 8 बजे तक और शाम 8 बजे से 10 बजे तक तय की है। इन समय सीमाओं के बाहर किसी भी प्रकार के पटाखे फोड़ना प्रतिबंधित रहेगा।
यह पूरा आदेश सुनने में प्रभावशाली लगता है, लेकिन जमीन पर इसका असर शून्य बराबर होने की संभावना है। क्योंकि अभी से दिल्ली-एनसीआर में जमकर पटाखे फोड़े जा रहे हैं। अवैध तरीकों से बिक्री होने की खबरें हैं और प्रदूषण भी खतरनाक स्तर तक बढ़ चुका है।
पिछले साल भी ऐसा ही आलम था और लगातार कई सालों से यही होता आया है। इसलिए ग्रीन पटाखे दिल को खुश रखने के ख्याल से ज्यादा और कुछ मायने नहीं रखते। अघोषित तौर पर सब इस बात को जानते हैं कि ग्रीन पटाखों का लेबल लगाकर पारंपरिक पटाखे ही बेचे जाते हैं। क्योंकि लागत में ये सस्ते पड़ते हैं। विशेष निगरानी दल बनाने से भी कुछ नहीं होगा, क्योंकि दीपावली के सामान से अटे पड़े बाजार में अब इस बात की जांच बेहद मुश्किल होगी कि कौन से सही में ग्रीन पटाखे हैं और कौन से नहीं। बल्कि इस जांच के नाम पर अवैध कमाई का एक और रास्ता खुल जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। साल 2018 में भी सुप्रीम कोर्ट ने पारंपरिक पटाखों पर रोक लगाकर केवल ग्रीन पटाखों को अनुमति दी थी। तभी से बाजार में इस किस्म के पटाखे बिक रहे हैं। लेकिन बताया जाता है कि ग्रीन पटाखों के नाम पर सामान्य पटाखों की बिक्री ही धड़ल्ले से होती है।
जानकारी के लिए बता दें कि सामान्य पटाखों में बैरियम नाइट्रेट, सल्फर, एल्युमिनियम और पोटैशियम नाइट्रेट जैसे रसायन होते हैं जो जलने पर जहरीली गैसें छोड़ते हैं। ग्रीन पटाखों में इन्हीं रसायनों की मात्रा कम रखी जाती है या कुछ जगह उनके स्थान पर कम हानिकारक यौगिकों का इस्तेमाल किया जाता है। इन्हें भारत सरकार की वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान सीएसआईआर (वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद) और नीरी (राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान) ने विकसित किया है, ताकि पारंपरिक पटाखों से 30 प्रतिशत तक कम प्रदूषण हो। यानी प्रदूषण हर सूरत में होना ही है, भले उसका प्रतिशत कुछ कम हो जाए। अगर पचास-सत्तर प्रतिशत तक प्रदूषण घटता तो फिर थोड़ी उम्मीद भी बंधती, लेकिन 30 प्रतिशत से कुछ असर नहीं पड़ेगा। यहां यह बताना भी जरूरी है कि जहरीली गैसें भले ग्रीन पटाखों से कम निकलें, लेकिन शोर तो उतना ही रहेगा। ग्रीन पटाखों का शोर 110 से 125 डेसिबल तक दर्ज किया गया है जबकि कानूनी सीमा 90 डेसिबल है। बच्चों और बुजुर्गों के लिए इसका शोर भी उतना ही हानिकारक है जितना पुराने पटाखों का था।


