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नेहरू का साइंटिफिक टेंपर और कमला हैरिस की साइंटिस्ट मां!

भारतीय मूल की कमला हैरिस को डेमोक्रेटिक पार्टी ने देर से और सेंकड च्वाइस में अपना उम्मीदवार बनाया

नेहरू का साइंटिफिक टेंपर और कमला हैरिस की साइंटिस्ट मां!
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- शकील अख्तर

अब चाहे वह कमला हैरिस की मां हों या इंग्लैंड के प्रधानमंत्री रहे ऋ षि सुनक के पूर्वज सब 2014 के पहले ही भारत में पैदा हुए। और उन्हें आशावाद, प्रगति का वह माहौल मिला कि वे और ज्यादा तरक्की करने के लिए बाहर निकले। और राजनीति के अलावा बहुत सारे दूसरे क्षेत्रों में तो हजारों लोगों ने उच्च स्तर पर काम किया। कर रहे हैं।

भारतीय मूल की कमला हैरिस को डेमोक्रेटिक पार्टी ने देर से और सेंकड च्वाइस में अपना उम्मीदवार बनाया। मगर उन्होंने रिपब्लिक डोनाल्ड ट्रंप को उस घबराई स्थिति में पहुंचा दिया कि वह कचरा उठाने वाले की ड्रेस पहनकर कचरे का ट्रक चलाने लगे। अगर कमला हैरिस जीत गई तो यह हो जाएगा वह हो जाएगा कह कर डराने लगे। यह पढ़कर आपको हमारे यहां के लोकसभा चुनाव और उसमें इस तरह के डराने वाले भाषण याद आ सकते हैं। अब पता नहीं ट्रंप हमारी राह पर चले हैं या हम जब ट्रंप का प्रचार करने अमेरिका गए थे चार साल पहले तब उनसे सीख कर आए हैं। बहुत समानता है। ट्रंप भैंस छीन लेंगे की तरह यह भी कह रहे हैं कि तुम्हारा स्टोव छीन लेगी।

चुनाव हैं पता नहीं क्या होता है! 5 नबंबर को वोटिंग हो जाएगी। कमला हैरिस ने बहुत टफ फाइट दी है। और इस चुनाव को अमेरिका के इतिहास का सबसे नजदीकी मुकाबला माना जा रहा है। जीत हार का अंतर बहुत कम रहने का अनुमान है। मतदान बैलट पेपर से होता है रिजल्ट आने में समय लगेगा। हालांकि गिनती वोटिंग खत्म होने के तत्काल बाद शुरु हो जाएगी। और 5 नवंबर की रात, 6 की सुबह तक ट्रेंड मालूम चल जाएगा।

जो भी हो! लेकिन चुनाव में आखिरी आखिरी तक दिलचस्पी बरकरार है। वोटिंग से ठीक पहले कमला हैरिस ने अपनी मां का एक फोटो ट्वीटर पर डालकर लिखा है 19 साल की उम्र में अकेली अमेरिका आईं। उनकी मां श्यामला गोपालन। बस इतना ही। अमेरिकी भारतीयों को एक मैसेज कि कैसे भारत के लोग यहां आकर कामयाब बने। लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से एक मैसेज भारत भी आता है कि कैसे आजादी के बाद से भारत में स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काम हुआ और यहां की अच्छी पढ़ाई से निकले छात्रों को बाहर विदेशों की यूनिवर्सिटी में जगह मिलीं। और साइंस सहित दूसरे क्षेत्रों में भारतीयों ने देश का नाम रोशन किया। कमला हैरिस की मां साइंटिस्ट थी। बायलोजी में काम था। 1958 में अमेरिका पहुंची थी। यहां कालेज पूरा करने के बाद।

यह महत्वपूर्ण है। साइंस और शिक्षा सरकार के द्वारा देने की। आज दोनों चीजें खत्म की जा रही हैं। अंधविश्वास को बढ़वा देकर साइंस को कमजोर किया जा रहा है और प्राइवेट शिक्षा को बढ़ावा देकर मुफ्त और सस्ती मिलने वाली सरकारी शिक्षा को।

लेकिन भारत का नाम विश्व में ऊंचा करने वाले सब यहां से सरकारी शिक्षा प्राप्त करके और विज्ञान चाहे उच्च शिक्षा में नहीं लिया हो मगर वैज्ञानिक चेतना लेकर बाहर गए।

नेहरू ने आजादी के बाद अपना पहला भाषण नियति से साक्षात्कार ट्रिस्ट विद डेस्टिनी साइंटिफिक टेंपर को मूल आधार बना कर ही दिया था। आज हमारे प्रधानमंत्री के भाषणों से भक्त और मीडिया बहुत खुश होता है। उनके भाषणों की संख्या भी सब से ज्यादा होगी। मगर नेहरू का वह भाषण दुनिया के बेहतरीन भाषणों में शुमार होता है। विश्व के बड़े नेताओं के बीच उनके ऐतिहासिक भाषणों में ट्रिस्ट विद डेस्टिनी रखा जाता है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर, विंस्टन चर्चिल, महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला जैसे विश्व प्रसिद्ध लोगों के ऐतिहासिक भाषणों में नेहरू का भाषण इसलिए जगह पाता है कि उसमें वे भारतीयों में साइंटिफिक टेंपर वैज्ञानिक मिज़ाज पैदा करने की बात करते हैं। आपको बता दें कि भाजपा संघ के लोग जो सबसे ज्यादा हमला नेहरू पर करते हैं वे इसीलिए करते हैं कि नेहरू भारत में वैज्ञानिक मिज़ाज पैदा करना चाहते थे। यही विज्ञान और वैज्ञानिक समझ अंधविश्वास, झूठ, नफरत, अफवाहों की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। वैज्ञानिक मिज़ाज के बाद नेहरू की जो दूसरी सबसे बड़ी बात संघ भाजपा को तकलीफ देती है वह है उनका यह कहना कि अफवाहें देश की सबसे बड़ी दुश्मन हैं। दक्षिणपंथी, प्रतिक्रियावादी, सांप्रदायिक इन्दिरा गांधी यही कहती थीं इन्हें कि सबसे बड़ा हथियार तो यह अफवाहें ही हैं। पहले जुबानी फैलाते थे। अब दस साल से व्हाट्सएप के जरिए और मीडिया के भी।

तो भारत के लोग नेहरू के बनाए उच्च शिक्षा संस्थानों, एम्स, आईआईटी, आईआईएम में पढ़े और बाहर गए। आज तो कहा जा रहा है कि जो हुआ 2014 के बाद हुआ। मगर बाहर जाने वाले तो सब 2014 से पहले पढ़ कर निकले। आज तो विदेशों में तीसरी पीढ़ी है। मगर इन सच्चाइयों पर झूठ का आवरण डालने की कोशिश करते हुए कहा गया कि 2014 से पहले भारत में पैदा होना शर्म की बात थी।

अब चाहे वह कमला हैरिस की मां हों या इंग्लैंड के प्रधानमंत्री रहे ऋ षि सुनक के पूर्वज सब 2014 के पहले ही भारत में पैदा हुए। और उन्हें आशावाद, प्रगति का वह माहौल मिला कि वे और ज्यादा तरक्की करने के लिए बाहर निकले। और राजनीति के अलावा बहुत सारे दूसरे क्षेत्रों में तो हजारों लोगों ने उच्च स्तर पर काम किया। कर रहे हैं।

तो अब अमेरिका में मतदान है। एक दिन है अभी शेष। भारतीय मूल का वोटर वहां दूसरा सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है। उनके वोट पर दोनों उम्मीदवारों की निगाहें लगी हुई हैं। और प्रचार यह है कि मोदीजी वहां बहुत लोकप्रिय हैं। तो क्या कोई उनकी यह बात कहकर भारतीयों के वोट ले सकता है कि 2014 से पहले भारत में पैदा होना शर्म की बात थी? सिर्फ अमेरिका में ही नहीं किसी भी देश में रह रहा भारतीय यहां पैदा होना गर्व की बात मानता है। अब उसे उलटी पट्टी पढ़ाई जा रही है। मगर वह जो यहां नेहरू इन्दिरा के बनाए शिक्षण संस्थानों में पढ़कर गया है और उसी से उसने परदेस में अपनी पहचान बनाई है वह क्या इस बात को मानेगा कि जो है 2014 के बाद ही है?

कमला हैरिस ने अपनी मां का उल्लेख करके बता दिया कि 47 में नेहरू ने कहा था साइंटिफिक टेंपर और प्राइमरी स्कूल में पढ़ रही उसकी मां उसके बाद साइंस पढ़कर ही 1958 में अकेली अमेरिका जा पहुंची। यह होती है साइंस की ताकत। व्यापक रूप से शिक्षा की ताकत।

आज जब प्रधानमंत्री कहते हैं कि मैं उस तरह पैदा नहीं हुआ जैसे सब लोग हुए हैं। अवतरित हुआ हूं। नान बायलॉजिकल। कहते हैं नाले के गैस से चाय बना लो। और ऐसी ही बहुत सारी हवा हवाई। दस बीस तो सबको जबानी याद होंगी।

और कोई जरा सा भी रिकार्ड देखकर लिखने लगे तो सौ से ऊपर। बादलों में से जहाज निकाल दो रडार नहीं पकड़ पाएगा। विषय नहीं बदला तो हमें भी याद आती चली जाएंगी। इसलिए कमला हैरिस के अपनी साइंस्टिस्ट मां के अकेले अमेरिका आने का इस समय उल्लेख करने से यह सब याद आया। मां श्यामला गोपालन की दूसरी पीढ़ी ने इतनी तरक्की कर ली अमेरिका में कि आज राष्ट्रपति बनने की दौड़ में हैं।

पहली अश्वेत महिला, विदेशी मूल की। आज तक महिला नहीं बनीं अमेरिका में राष्ट्रपति। दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र। और पहली बार कोई करीब है तो वह भारतीय मूल की लड़की। तो भारत के लिए इससे बड़ी गौरव की बात और क्या हो सकती है?

प्राउड इंडिया। भारत जो नेहरू ने बनाया था। शिक्षा का जो ढांचा खड़ा किया था। वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिया था। और लोगों में नफरत नहीं प्रेम भरा था। मंगलसूत्र लूट लेंगे, भैंस छीन लेंगे का डर नहीं आगे बढ़ने का हौसला भरा था उसी का परिणाम है कि आज दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति पद चुनाव में एक भारतीय नारी की धूम है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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