नेहरू और बाबरी मस्जिद : भाजपा का झूठ
देश के पहले प्रधानमंत्री पं.नेहरू का खौफ समूची भाजपा पर इस कदर तारी है कि उसे नित नए झूठ अपने बचाव में गढ़ने पड़ते हैं।

देश के पहले प्रधानमंत्री पं.नेहरू का खौफ समूची भाजपा पर इस कदर तारी है कि उसे नित नए झूठ अपने बचाव में गढ़ने पड़ते हैं। नेहरू की जीवनशैली, उनकी महिला मित्र, खान-पान की आदतों को लेकर संघ ने खूब झूठ फैलाया, फिर भाजपा ने इस काम को आगे बढ़ाया। सोशल मीडिया आने के बाद इस दुष्प्रचार में और तेजी आई, फिर भी नेहरू के नाम पर कोई दाग भाजपा नहीं लगा पाई। प्रधानमंत्री मोदी दुनिया भर में घूमते रहते हैं, अपने नाम की माला जपवाते हैं, लेकिन लोगों के दिलों में बसे जवाहरलाल नेहरू को नहीं मिटा पाते। पुरानी पीढ़ी के नेताओं की बात छोड़ दें, नयी पीढ़ी के वैश्विक नेता भी नेहरू-गांधी को ही याद करते हैं। कोई सावरकर, गोलवलकर से प्रेरित होने की बात नहीं कहता। यही पीड़ा संघ को सालती है कि उनके प्रात:स्मरणीय पुरुषों के नामलेवा दुनिया में क्यों नहीं हैं।
यह डर और पीड़ा तो लाइलाज है, लिहाजा बेसिरपैर की बातों से भाजपा अपना मन बहलाने में लगी है। ऐसी ही एक बेतुकी बात का उदाहरण पेश किया केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने। मंगलवार को गुजरात के वडोदरा में सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती पर आयोजित 'यूनिटी मार्च' के दौरान राजनाथ सिंह ने दावा किया कि, 'पंडित जवाहरलाल नेहरू अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनाने के लिए सार्वजनिक धन का इस्तेमाल करना चाहते थे। यदि किसी ने इस प्रस्ताव का विरोध किया, तो वह सरदार वल्लभभाई पटेल थे।' राजनाथ सिंह ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का उदाहरण देते हुए बताया कि पटेल ने इसे सार्वजनिक दान से ही कराया, जिसमें 30 लाख रुपये जुटाए गए, लेकिन कोई सरकारी धन नहीं लगा। इसके बाद नेहरू-पटेल की परंपरा में जबरन नरेन्द्र मोदी को जोड़ने की कोशिश में राजनाथ सिंह ने कहा कि सोमनाथ की तरह, अयोध्या में मौजूदा राम मंदिर का निर्माण भी पूरी तरह जनता के योगदान से हो रहा है। सिंह ने नेहरू पर निशाना साधते हुए कहा कि कुछ राजनीतिक ताकतें पटेल की विरासत को मिटाने की कोशिश करती हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे पुनसर््थापित किया।
राजनाथ सिंह का यह भाषण न केवल घोर निंदा के योग्य है, बल्कि सिरे से झूठा होने के कारण गहन चिंताजनक भी है। जब देश के शीर्ष पदों पर बैठे लोग झूठे बयान देने लगें तो सत्यमेव जयते के ध्येय वाक्य की रक्षा कैसे होगी। ऐतिहासिक दस्तावेज के मुताबिक बाबरी मस्जिद का निर्माण 1528 में मुगल सम्राट बाबर के सेनापति मीर बाकी ने कराया था। यह मस्जिद पहले से मौजूद थी और 1947 से 1964 तक नेहरू के कार्यकाल में इसके 'नए निर्माण' का कोई प्रस्ताव या प्रमाण नहीं मिलता। सब जानते हैं कि पं. नेहरू सरकारी धन के दुरुपयोग के सख्त खिलाफ थे। वे खुद अपना खर्च भी बड़ी किफायत से चलाते थे और ऐसे कई प्रसंग हैं, जिनसे पता चलता है कि उनका स्टाफ अक्सर उनसे उनके पैसे ही बचा कर रखता था, क्योंकि वे जरूरतमंदों को दे देते थे और खुद उनके पास फिर पैसे नहीं बचते थे। नेहरू हर तरह की धर्मांधता और सांप्रदायिकता के विरोधी थे। वे धार्मिक आस्था का सार्वजनिक प्रदर्शन करने के भी खिलाफ थे। बल्कि उनके हिसाब से औद्योगिक कारखाने ही आधुनिक भारत के तीर्थ हैं। अगर नेहरू के बाद की तमाम सरकारें इसी सिद्धांत पर चलती तो आज भारत विकास में चीन, जापान, अमेरिका, जर्मनी जैसे देशों को टक्कर देता। लेकिन धर्म के नाम पर राजनैतिक समझौता करने की नीति ने देश को पीछे ही रखा। नेहरू जैसी दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति उनके बाद के प्रधानमंत्री नहीं दिखा पाए।
नेहरू सरकार को धार्मिक कार्यों में संलग्न होने या जनता के धन को धार्मिक स्थलों में इस्तेमाल करने के सख्त खिलाफ थे। इसलिए 1951 में सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के दौरान नेहरू ने सरकारी फंडिंग का विरोध किया था, जिसे पटेल ने सार्वजनिक ट्रस्ट के माध्यम से पूरा कराया था।
सरदार पटेल भी नेहरू जैसे ही सिद्धांतवादी थे। उन्होंने कहा था कि जब तक वह ज़िंदा हैं सोमनाथ मंदिर के लिए सरकारी ख़ज़ाने से एक पैसा नहीं देंगे। तो भारत के संविधान और नेहरू-पटेल की नीतियों में कोई भेद नहीं था। जबकि आज की सरकार इसके बिल्कुल उलट काम कर रही है। राजनाथ सिंह सोमनाथ मंदिर और राम मंदिर की तुलना कर रहे हैं। और बड़ी आसानी से इस बात की अनदेखी कर रहे हैं कि बाबरी मस्जिद तोड़कर राम मंदिर बनाया गया है। मंदिर निर्माण में जनता के धन का दावा भी कितना सच है, इसका प्रमाण भाजपा को हिसाब के साथ देना चाहिए। मंदिर के शिलान्यास से लेकर उद्घाटन तक और अभी धर्म ध्वजा फहराने तक मोदी जो बार-बार अयोध्या गए हैं, वो खर्च भी जनता के टैक्स के पैसे पर ही उठाया गया है।
बहरहाल, राजनाथ सिंह के दावे पर विरोध शुरु हो चुका है। कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा, 'मुझे बस इस बात से दुख है कि राजनाथ सिंह ऐसा कह रहे हैं, हो सकता है कि वह अपनी पार्टी से प्रभावित हो गए हों, या उन्हें ऐसी बातें कहने के लिए मजबूर किया जा रहा हो। नेहरू ने उन्हें (सरदार वल्लभभाई पटेल) उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बनाया था... राजनाथ जी, यह बयान आपके इतिहास या आपके व्यक्तित्व के साथ मेल नहीं खाता...।'
इस बयान से ऐसा लग रहा है मानो प्रमोद तिवारी राजनाथ सिंह को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। राजनाथ सिंह संघ की सांप्रदायिक राजनीति से प्रभावित हैं, इसलिए ही भाजपा में बने हुए हैं। बल्कि टीएमसी सांसद कीर्ति आज़ाद ने ठीक कहा है कि, 'राजनाथ सिंह रक्षा मंत्री के रूप में एक बहुत ही ज़िम्मेदार संवैधानिक पद पर हैं। उन्हें या तो अपनी बात के सबूत पेश करने चाहिए या फिर माफ़ी मांगकर इस्तीफ़ा दे देना चाहिए। इसी तरह का बयान कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने दिया है कि 'वह सरकार में हैं, उन्हें कुछ दस्तावेज उपलब्ध कराने चाहिए। हमारे पास दस्तावेज हैं कि सरदार पटेल ने उनके (भाजपा के) पैतृक संगठन (आरएसएस) की मानसिकता के खिलाफ एक पत्र लिखा और उस पर प्रतिबंध लगा दिया... यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार में बैठे लोग देश में इस तरह की झूठी बातें फैलाते हैं।'
वैसे राजनाथ सिंह के इस झूठ के बाद कांग्रेस को थोड़ा और सावधान होने की जरूरत है। क्योंकि भाजपा अपने झूठ को इतिहास बनाकर पेश करने में और सक्रिय हो गई है।


