मानसून सत्र या तूफान सत्र
देश का सियासी मौसम बता रहा है कि यह मानसून सत्र विपक्ष के तूफान सत्र में बदल सकता है।

कल से संसद का मानसून सत्र शुरु हो रहा है। देश का सियासी मौसम बता रहा है कि यह मानसून सत्र विपक्ष के तूफान सत्र में बदल सकता है। बड़ी बात यह है कि अब श्री मोदी के पास ऐसा कोई मुद्दा भी नहीं बचा है, जिसे सहारा बनाकर वो मजबूती से खड़े रहें।
सत्ता की शुरुआत में तो राम मंदिर बनाने से लेकर जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लेने जैसे कई वादे थे, जिनसे जनता की आंखों में न्यू इंडिया बनाने की चमक आ जाती थी। जनता वाकई यह मान बैठी थी कि हिंदुत्व को बचाने या राष्ट्रवाद को थोड़ा और उग्र कर देने से ही उसकी समस्याओं का समाधान निकल जाएगा। लेकिन हकीकत जनता भी देख रही है कि उसे अब भी शब्दों की जुगाली मिल रही है।
मोदी को वाराणसी से जीतना था तो काशी को क्योटो बनाने की बात कहते थे, साथ में बुलेट ट्रेन की रफ्तार का पैकेज दे दिया। और 11 साल बाद मोतिहारी और मुंबई, गयाजी और गुरुग्राम, पटना और पुणे के गीत जनता को सुनाए जा रहे हैं। बिहार में अपने ताजा दौरे में मोदी ने यही किया। हम ये करेंगे, हम वो करेंगे, ऐसा कहते हुए श्री मोदी एक बार भी जनता को ये आश्वासन नहीं दे सके कि उससे वोट देने का हक नहीं छीना जाएगा, न ही उसकी सुरक्षा पर आ रही आंच को लेकर कोई चिंता जताई। क्योंकि प्रधानमंत्री खुद नहीं जानते कि जब असलियत में काम करना होता है, तो क्या और कैसे किया जाता है।
श्री मोदी की इस कमजोरी को अब चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार दोनों समझ रहे हैं। नीतीश कुमार को तो फिर से मुख्यमंत्री बनने की लालसा है, लिहाजा है वो नरेन्द्र मोदी के सामने न केवल खुद हाथ जोड़ रहे हैं, बल्कि बार-बार बिहार की जनता से कह रहे हैं, उठो रे, इनका नमन करो, इनको प्रणाम करो। ऐसा करके नीतीश कुमार उस लोकतंत्र को थप्पड़ मारने का काम कर रहे हैं, जिसके बूते इन लोगों को सत्ता पर बैठने मिला है। भला ये कोई बात हुई कि जनता का काम करने के लिए चुने गए लोगों को इस बात के लिए प्रणाम किया जाए कि वो काम कर रहे हैं, और जो काम नहीं कर पाएं हैं, या नहीं कर रहे हैं, क्या उसके लिए इन्हीं लोगों से सवाल नहीं होने चाहिए। क्या नीतीश कुमार एक बार भी यह कहेंगे कि उठो रे पूछो इनसे कि मोतिहारी में चीनी मिल चालू क्यों नहीं हुई है। खैर.. नीतीश कुमार कुछ न कहें या नरेन्द्र मोदी जनता के सवालों का जवाब न दे, फिर भी सवाल तो उठेंगे ही। इस मानसून सत्र में विपक्ष ऐसे ही सवालों को उठाने की तैयारी में है, जिनसे बचने की कोशिश में श्री मोदी कितनी बार संसद से गायब रहते हैं, ये देखना दिलचस्प होगा।
21 जुलाई से लेकर 21 अगस्त तक चलने वाले मानसून सत्र को लेकर विपक्ष ने अपनी तैयारी को धार देना शुरु कर दिया है। शनिवार शाम इस सत्र में सरकार को घेरने की रणनीति बनाने के लिए इंडिया गठबंधन की बैठक हुई। हालांकि, इसमें आम आदमी पार्टी शामिल नहीं हुई, उसने बाकायदा कह दिया है कि इंडिया गठबंधन लोकसभा तक ही था, लेकिन जो सवाल कांग्रेस समेत बाकी विपक्ष के हैं, वही सवाल आप के भी हैं। इसलिए इंडिया गठबंधन के उठाए सवालों में आप की आवाज शामिल हो या न हो, उन सवालों के असर से मोदी बच नहीं सकते। इंडिया गठबंधन के सवाल कितने कठिन रहने वाले हैं, इसकी झलक शनिवार को राहुल के एक ट्वीट से मिल भी गई, जिसमें डोनाल्ड ट्रंप के सीजफायर पर 24वीं बार किए गए दावे से एक बात को उठाते हुए राहुल ने सवाल किया है कि पांच जहाजों का सच क्या है। दरअसल ट्रंप ने इस बार पांच लड़ाकू जहाजों के नुकसान का भी जिक्र किया, लेकिन शायद जानबूझ कर ट्रंप ने यह नहीं बताया कि ये जहाज भारत के थे या पाकिस्तान के। भारत में पहले सीडीएस से लेकर इंडियन नेवी के अफसर तक ने यह बयान दिया है कि भारत को नुकसान हुआ है, लेकिन विपक्ष के पूछने के बावजूद सरकार ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया।
ट्रंप इस बात को अच्छे से जानते हैं कि उनके बयान पर नरेन्द्र मोदी अपने देश में घिर रहे हैं, और लड़ाकू विमान के गिरने की बात पर भी उनसे सवाल हो सकते हैं, फिर भी शायद नरेन्द्र मोदी को फंसाने के लिए ट्रंप ने ऐसा उलझाने वाला बयान दिया, ताकि भ्रम फैले। संसद में अब समूचा विपक्ष इस पर सच की मांग करेगा। सरकार भले ऑपरेशन सिंदूर को देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला बताकर सवाल को रफा-दफा करे या फिर इसके लिए कुछ सांसदों को निलंबित करे या जब वो बोलने खड़े हों तो उनके माइक बंद कर दिए जाएं, लेकिन क्या अब जनता तक इन सवालों को पहुंचने से रोका जा सकता है। वैसे मानसून सत्र में कौन से मुद्दे प्रमुखता से उठाए जाएंगे, इसे लेकर इंडिया ब्लॉक की जो बैठक हुई, उसमें 24 दलों के नेता शामिल हुए। पहलगाम हमला, ऑपरेशन सिंदूर, ट्रंप के 24 बयान, बिहार में एसआईआर की कवायद, एससी, एसटी पर अत्याचार, परिसीमन, अहमदाबाद विमान हादसा इन मुद्दों पर खास तौर से सरकार को घेरने की तैयारी है। बाकी बेरोजगारी, महंगाई, नारी उत्पीड़न, किसानों पर अत्याचार ये सारे तो पिछले 11 सालों से स्थायी मुद्दे बन चुके हैं।
इंडिया गठबंधन की बैठक साल भर बाद हुई, लेकिन 24 दलों के नेता इसमें शामिल हुए, तो उससे एक बात जाहिर हो गई है कि विपक्ष अब भी एकजुट है। कुछ दलों के बाहर निकलने या नाराज होने से विपक्ष की एकजुटता पर कोई असर नहीं पड़ा है, न ही लोकतंत्र और संविधान को बचाने की उसकी प्रतिबद्धता में कोई कमी आई है।


