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एक बार ईदगाह पढ़िए मोदीजी

ईदगाह कहानी को जितनी बार भी पढ़ें, हर बार चमत्कृत सी खुशी मिलती है कि एक कथानक को कितना सुंदर विस्तार प्रेमचंद ने दिया है

एक बार ईदगाह पढ़िए मोदीजी
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- सर्वमित्रा सुरजन

ईदगाह कहानी को जितनी बार भी पढ़ें, हर बार चमत्कृत सी खुशी मिलती है कि एक कथानक को कितना सुंदर विस्तार प्रेमचंद ने दिया है। आज ईदगाह कहानी की याद आने के दो प्रमुख कारण हैं। एक तो जल्द ही रमज़ान का महीना खत्म होने वाला है और फिर ईद आने वाली है। दूसरा सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार ईद से पहले सौगात ए मोदी नाम से एक अभियान शुरु किया है। जिसके तहत पार्टी देश भर में 32 लाख मुसलमानों को 'ईदी' बांटेगी।

रमज़ान के पूरे तीस रोज़ों के बाद ईद आई है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक़ है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, यानी संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गांव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियां हो रही हैं।

हममें से बहुतों ने इन पंक्तियों को अपने बचपन में पढ़ा होगा। बताने की आवश्यकता शायद नहीं है, क्योंकि इन पंक्तियों में ईद की रौनक और ईदगाह जाने की तैयारी का वर्णन जिस तरह से किया गया है, पाठक समझ ही गए होंगे कि ये कथासम्राट प्रेमचंद की लेखनी का कमाल है। एक-एक शब्द पूरी जीवंतता के साथ आंखों के सामने उभर जाता है। ईद के मुबारक मौके पर गांव के बाकी बच्चों के साथ ईदगाह जाने की तैयारी में जुटे हामिद की मनोदशा का बड़ा मार्मिक वर्णन प्रेमचंद ने किया है। हामिद गरीब और अनाथ है, उसके जीवन में उसकी बूढ़ी दादी अमीना के सिवाए कोई नहीं है, जो बमुश्किल हामिद को महज तीन पैसों के साथ मेले भेजती है और आखिर में हामिद मेले में झूलों, मिठाइयों, खिलौनों को देखते हुए अपनी सारी इच्छाओं को मारकर दादी के लिए चिमटा खरीद लेता है, ताकि रोटी बनाते हुए उसके हाथ न जलें।
इस कहानी में बाल मनोविज्ञान को तो प्रेमचंद ने बेहद खूबसूरती से उकेरा ही है, तत्कालीन समाज का भी कमाल चित्रण किया है। प्रेमचंद लिखते हैं...

सहसा ईदगाह नज़र आया। ऊपर इमली के घने वृक्षों की छाया है। नीचे पक्का फ़र्श है, जिस पर जाज़िम बिछा हुआ है। और रोज़ेदारों की पंक्तियां एक के पीछे एक न जाने कहां तक चली गई हैं, पक्के जगत के नीचे तक, जहां जाज़िम भी नहीं है। नए आने वाले आकर पीछे की क़तार में खड़े हो जाते हैं। आगे जगह नहीं है। यहां कोई धन और पद नहीं देखता। इस्लाम की निगाह में सब बराबर हैं। इन ग्रामीणों ने भी वज़ू किया और पिछली पंक्ति में खड़े हो गए। कितना सुंदर संचालन है, कितनी सुंदर व्यवस्था! लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं, फिर सबके सब एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हैं, और एक साथ घुटनों के बल बैठ जाते हैं। कई बार यही क्रिया होती है, जैसे बिजली की लाखों बत्तियां एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाएं, और यही क्रम चलता रहे। कितना अपूर्व दृश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाएं, विस्तार और अनंतता हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर देती थीं, मानों भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए है।

ईदगाह कहानी को जितनी बार भी पढ़ें, हर बार चमत्कृत सी खुशी मिलती है कि एक कथानक को कितना सुंदर विस्तार प्रेमचंद ने दिया है। आज ईदगाह कहानी की याद आने के दो प्रमुख कारण हैं। एक तो जल्द ही रमज़ान का महीना खत्म होने वाला है और फिर ईद आने वाली है। दूसरा सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार ईद से पहले सौगात ए मोदी नाम से एक अभियान शुरु किया है। जिसके तहत पार्टी देश भर में 32 लाख मुसलमानों को 'ईदी' बांटेगी। इस सौगात में जरूरतमंद मुसलमानों को एक किट दी जा रही है। जिसमें सेवइयां, सूखे मेवे, खजूर, महिलाओं के लिए सलवार सूट और पुरुषों के लिए कुर्ता पजामा का कपड़ा है। ईदी बांटने के लिए 32 हजार मस्जिदें देश भर में चिन्हित की गईं हैं जहां भाजपा के कार्यकर्ताओं को ये सौगात बांटने की जिम्मेदारी दी गई है। बताया जा रहा है कि अगले महीने गुड फ्राइडे और ईस्टर पर भी ईसाई समुदाय को ऐसे ही तोहफे बांटने की तैयारी चल रही है।

पहले तो इस अभियान के नाम की ही तारीफ कर लें, सौगात ए मोदी, यानी खालिस उर्दू ज़बान का इस्तेमाल इसके लिए किया गया है। पिछले दिनों जिस तरह उप्र विधानसभा में उर्दू को लेकर अप्रिय और अनावश्यक बहस भाजपा ने छेड़ी थी, क्या इसे उसका भूल सुधार माना जाए। खैर, इस अभियान से इस बात की भी खुशी है कि श्री मोदी ईद पर औपचारिक बधाई के शब्द लिखने से आगे बढ़ कर ईदी बांटने की बात कर रहे हैं। वर्ना वो दिन भी लोगों को याद है जब गुजरात दंगों के बाद नरेन्द्र मोदी ने सद्भावना उपवास तो किया, लेकिन सद्भावना दर्शाने के लिए मुस्लिम धर्मगुरुओं की तरफ से पेश की गई टोपी को पहनने से इंकार कर दिया था। अभी श्री मोदी न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री के साथ गुरुद्वारे गए थे और वहां उन्होंने पगड़ी पहनी थी, तो उनके प्रशंसकों ने गर्व से टोपी न पहनने का वीडियो जारी करते हुए लिखा था कि 20 प्रतिशत वोट खोने का डर उन्हें नहीं है, जबकि सिखों की पगड़ी पहनने में श्री मोदी को कोई ऐतराज नहीं है।

अच्छा है कि जो मन में है उसे खुलकर जाहिर कर दिया जाए। श्री मोदी तो वैसे भी मन की बात करने के उस्ताद हो चुके हैं। लेकिन अब भी उनके मन की बात का पूरी तरह से खुलासा नहीं हुआ है कि यूं अचानक ईद पर सौगात देने का ख्याल कैसे आ गया। वैसे तो भाजपा का तर्क है कि श्री मोदी हमेशा से अल्पसंख्यकों के हितैषी रहे हैं और उनका लक्ष्य सबका साथ, सबका विकास का है। विपक्ष ने सौगात ए मोदी पर जो सवाल उठाए हैं, उस पर भाजपा नाराजगी जता रही है।

लेकिन सवाल उठने तो वाजिब हैं कि जो काम केंद्र की सत्ता में 11 साल रहते हुए नहीं किया और उससे पहले लगभग इतने ही साल गुजरात की सत्ता में रहकर नहीं किया, उसे करने का ख्याल एकदम से कैसे आ गया। क्या फरवरी में कतर से पधारे अमीर शेख़ तमीम बिन हमाद अल-थानी से दो दिनों की मुलाकात में नरेन्द्र मोदी का हृदय परिवर्तन हुआ। या इस समय जिस तरह वक्फ बोर्ड संशोधन अधिनियम पर मुसलमानों ने मोर्चा खोल लिया है, उससे भाजपा चौकन्नी हो गई है और किसी बड़ी विपदा के आने से पहले बचाव की तैयारी में जुट गई है। अभी 17 मार्च को जंतर-मंतर पर मुस्लिम संगठनों के आह्वान पर जोरदार प्रदर्शन देश भर से आए मुसलमानों ने किया था। इसमें मुस्लिम संगठनों ने नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू से भी साथ देने का आग्रह किया था। बुधवार को बिहार विधानसभा के बाहर फिर से इसी तरह का प्रदर्शन हुआ। इस बीच नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू और चिराग पासवान की दावत-ए-इफ्तार का बहिष्कार भी जमीयत उलेमा ए हिंद समेत कई संगठनों ने किया। बिहार चुनाव से पहले इस तरह के बहिष्कार से एनडीए के लिए फिर से जीत दर्ज करना कठिन हो सकता है और इसका असर केंद्र की सत्ता पर भी पड़ सकता है।

तो क्या चुनावी गणित पर विचार करके सौगात ए मोदी जैसे अभियान का ख्याल श्री मोदी और भाजपा को आया है। वैसे चंद सूखे मेवों और कपड़ों की ईदी से एकाध दिन की खुशी मिल सकती है, मगर मुस्लिमों का असली हित तो तभी होगा, जब उन्हें दोयम दर्जे के नागरिकों की तरह न देखा जाए, न उनके साथ भेदभाव भरा व्यवहार हो। उनके नमाज़ पढ़ने पर उसी तरह ऐतराज न जताया जाए, जैसे किसी भी पेड़ के नीचे चबूतरे पर मंदिर बनाकर कीर्तन करने पर न किया जाता है। अभी नवरात्रि आने से पहले ही काशी, दिल्ली समेत कई जगहों पर मांस की दुकानें बंद करने की मांग उठ गई है, जबकि ईद भी आ रही है। बेशक इसमें सेवइंया मुख्य तौर पर बनाई जाएगी, लेकिन बाकी सामिष और निरामिष पकवान भी बनेंगे ही, फिर इस तरह के फरमान क्यों जारी किए जा रहे हैं। अभी होली पर ही अल्पसंख्यकों को जबरन डराने वाले बयान सत्ता और प्रशासन में बैठे लोगों की तरफ से आए थे। पिछले 11 सालों के ऐसे न जाने कितने उदाहरण हैं, जिनमें अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिमों को केवल धर्म के कारण ही निशाने पर लिया गया।

तो प्रधानमंत्री जी से आग्रह है कि चुनाव के पहले ईदी देने से बेहतर है कि आप देश में फिर से वैसा ही माहौल बनाने के लिए काम करें, जैसे माहौल का वर्णन प्रेमचंद ने ईदगाह में किया है। एक बार ईदगाह पढ़िए मोदीजी, जहां अमीर-गरीब का भेद नहीं है और ईद की खुशियां कैसे मनाई जा रही हैं, इसका चित्रण एक लेखक खुलकर कर पा रहा है। सौगात तो ऐसी दीजिए कि फिर से लेखक ऐसे ही सुंदर समाज का मनोहारी खाका खींच सकें। आमीन।


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