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मोदी का भाषण संविधान नहीं कांग्रेस पर

लोकसभा के लिये वह एक महत्वपूर्ण क्षण हो सकता था यदि 'संविधान की 75 साल की गौरवशाली यात्रा' पर आयोजित दो दिवसीय चर्चा के अवसर पर दिये अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाकई कुछ ऐसा कहते जो भारत के संसदीय इतिहास के पन्नों में चमकदार अक्षरों में दज़र् होता

मोदी का भाषण संविधान नहीं कांग्रेस पर
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लोकसभा के लिये वह एक महत्वपूर्ण क्षण हो सकता था यदि 'संविधान की 75 साल की गौरवशाली यात्रा' पर आयोजित दो दिवसीय चर्चा के अवसर पर दिये अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाकई कुछ ऐसा कहते जो भारत के संसदीय इतिहास के पन्नों में चमकदार अक्षरों में दज़र् होता। इससे वह एक उपयोगी सत्र भी होता। पिछले 11 वर्षों से मोदी जो कहते रहे हैं, वे उससे एक इंच भी आगे बढ़ते नज़र नहीं आये। यह ऊब और निराशा के नये स्तरों को छूता हुआ उनका भाषण था जबकि वे ऐसे दस्तावेज़ के बारे में बात कर रहे थे जिसने भारत को पिछला सब कुछ भूलकर आगे की ओर देखना-बढ़ना सिखाया है। इस संविधान ने देश को रातों-रात मध्य युग से निकालकर आधुनिक दुनिया के आलोक में खड़ा किया था लेकिन मोदी हैं कि आजादी के पहले के उसी प्राचीन अंधकार में लौटना चाहते हैं, जो उनके पहले के अनेक भाषणों से परिलक्षित तो होता ही रहा, शनिवार को लोकसभा में अपने उद्बोधन द्वारा उन्होंने पुष्टि कर दी वे इतिहास की बेड़ियों में खुद को जकड़े रखना चाहते हैं। वे देश को भी पीछे पलटाने पर आमादा हैं।

साल 2013-14 में मोदी को उनकी भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया तो उन्होंने अपने चुनाव प्रचार का मुख्य आधार कांग्रेस विरोध को बनाया। उन्होंने पहले के प्रधानमंत्रियों एवं कांग्रेस की सरकारों को अपने निशाने पर लिया। उन्होंने यह कहकर विकास के सब्ज़बाग दिखाये कि भारत में पिछले 60 वर्षों में कुछ नहीं हुआ। मोदी ने यह कहकर जबर्दस्त जनसमर्थन हासिल किया कि कांग्रेस को 60 साल दिये गये, उन्हें केवल 60 माह दिये जायें। एक मजबूत प्रचार तंत्र के जरिये तथ्यों की तोड़-मरोड़ के साथ तथा राष्ट्रनायकों को लांछित एवं अपमानित करते हुए मोदी का प्रचार अभियान यह देश दशक भर से देख रहा है।

ऐसा नहीं कि चुनाव जीतने के बाद तथा पीएम बन जाने पर, वह भी एक बार नहीं वरन तीन बार, यह कुत्सित प्रचार रुक जाये- वह बदस्तूर जारी है। संसद के भीतर किसी भी विषय पर मोदी को कुछ कहना हो या स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर लाल किले की प्राचीर से सम्बोधित करना हो, चुनावी सभाएं हों या कोई विकास सम्बन्धी कार्यक्रम- मोदी के पास कांग्रेस एवं उसके नेताओं की आलोचना के अलावा मानों अन्य कुछ कहने के लिये है ही नहीं। मोदीजी ने इस काम के लिये विदेशी धरती तक को नहीं छोड़ा जहां उन्होंने यह तक कहा कि '2014 के पहले जो भी भारत में पैदा होता था वह खुद को कोसता था।' जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया और राहुल-प्रियंका तक आलोचना का उनका कारवां चल रहा है। चर्चा का जवाब देते हुए कहीं से नहीं लगा कि मोदी इस पवित्र एवं उच्चतम सदन के नेता हैं।

वैसे भाषण के दौरान दिखी अतिरिक्त घृणा का कारण यह भी हो सकता है कि हाल के दिनों में कांग्रेस एवं विपक्षी दलों ने उनकी संविधान व लोकतंत्र के नाम पर ऐसी घेराबन्दी की है कि अब मोदी मजबूर हो गये हैं कि वे स्वयं को इन दोनों का सबसे बड़ा रक्षक बतलाएं। इसके पहले राहुल ने सदन के भीतर अपने भाषण के दौरान संविधान और मनुस्मृति की प्रतियां दिखलाते हुए कहा कि सारी लड़ाई इन दोनों के बीच की है। कांग्रेस जहां संविधान बचाना चाहती है वहीं भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मनुस्मृति लागू करना चाहते हैं।

वायनाड से चुनकर आईं प्रियंका गांधी सम्भवत: मोदी एवं भाजपा की बौखलाहट की एक बड़ी वजह हो सकती हैं जिन्होंने लोकसभा के अपने पहले भाषण में कहा कि 'यदि नतीजे ऐसे न आते तो अब तक संविधान बदलने का काम शुरू हो चुका होता।' इस भाषण का जलवा देश भर में जो बिखरा है वह भाजपा के जले पर नमक का छिड़काव साबित हुआ। इसलिये मोदी दोगुना असलहा लेकर कांग्रेस और नेहरू खानदान पर टूट पड़े। उन्होंने उन्हीं तमाम मुद्दों को उठाया जिन पर वे अनगिनत बार बातें कर चुके हैं। उन्होंने देश विभाजन से लेकर आपातकाल तक की चर्चा फिर से की। उन्होंने बताया कि कैसे संविधान में कई बार संशोधन किये गये। वे इस स्तर तक गये कि 'नेहरू परिवार के मुंह पर संविधान संशोधन के खून का स्वाद लग गया है।' उनका दावा था कि 'कांग्रेस के माथे पर से आपातकाल का पाप कभी नहीं धुलेगा।'

हालांकि अपने लगभग दो घंटे के भाषण में यह नहीं बताया कि कैसे देश के संविधान का लाभ सभी को मिले। पीएम ने यह भी नहीं बताया कि संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में जिस 'मानवीय गरिमा' से युक्त, न्यायपूर्ण, धर्मनिरपेक्ष तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा सभी की संसाधनों व अवसरों तक एक सी पहुंच वाला समाज बनाने की बात कही गयी है, वह कैसे बनेगा। 85 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने वाली उनकी सरकार लोगों को सशक्त कैसे बनायेगी- यह भी नहीं बताया। मोदीजी यह नहीं जानते कि संविधान में जिस आर्थिक एवं राजनैतिक सशक्तिकरण की बात कही गयी है उसके अनुरूप ही संविधान को रचा-गढ़ा भी गया है।

अलबत्ता संविधान को माथे से लगाकर तस्वीरें खिंचवाने के शौकीन मोदीजी जानते है कि संविधान की असली ताकत देश के निर्माताओं द्वारा की गयी शक्तिशाली संवैधानिक संस्थाओं में है जिनके जरिये नागरिक अधिकार सुरक्षित हैं। इसलिये वे पिछले दस वर्षों से लोगों को राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक रूप से लगातार कमजोर करने हेतु इन संस्थाओं पर कब्जा कर चुके हैं। उन्होंने विपक्ष को कुचलने का काम किया है जिससे विरोध की वह आवाज़ गुम चुकी है जिसे संविधान निर्माताओं ने स्वस्थ लोकतंत्र के लिये अनिवार्य माना था। यही कारण है कि मोदीजी खुद को संविधान का रक्षक साबित करने पर तुले हैं, लेकिन उनका यह मुखौटा कभी का उतर चुका है।


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