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सत्ता का इकबाल कायम करें मोदी

नरेन्द्र मोदी सरकार के लिए इस समय आंतरिक और विदेश मामलों में कठिन परीक्षा की घड़ी चल रही है

सत्ता का इकबाल कायम करें मोदी
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- सर्वमित्रा सुरजन

अमेरिका का यह रवैया बता रहा है कि फिलहाल वह भारत की अपेक्षा कनाडा की दोस्ती को तवज्जो दे रहा है। इन हालात में अब नरेन्द्र मोदी को सोचना है कि वे अमेरिकी धरती पर मोदी-मोदी के नारे सुनकर गदगद होते रहें, ओबामा से लेकर ट्रंप और बाइडेन तक सबको अपना करीबी मित्र बताते रहें या फिर भारत के हितों के बारे में सोचकर कोई कड़ी टिप्पणी इन मामलों पर करें।

नरेन्द्र मोदी सरकार के लिए इस समय आंतरिक और विदेश मामलों में कठिन परीक्षा की घड़ी चल रही है। प्रधानमंत्री मोदी से अपेक्षा है कि चुनाव में जीत-हार की फिक्र से ऊपर उठकर इस समय वे गंभीरता से हालात का मुआयना करें, विशेषज्ञों की राय लेकर फैसले करें और देश को आश्वस्त करें कि हर हाल में जनता के हितों की रक्षा होगी। मुंबई में दशहरे के दिन भीड़ भरे इलाके में अजित पवार गुट एनसीपी के नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या कर दी गई। इस हत्या की जिम्मेदारी गुजरात की जेल में बंद गैंगस्टर लारेंस बिश्नोई ने ली। कायदे से गुजरात और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों, गृहमंत्रियों के साथ-साथ केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को इस घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए थी कि उनकी निगरानी में जेल से एक बड़े अपराध को अंजाम दिया गया। लेकिन फिलहाल इस मामले में आरोपियों की कितनी जल्दी धर-पकड़ हो गई है इसी बात का श्रेय लूटा जा रहा है।

मुमकिन है 20 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले इस मामले में कुछ लोगों को अपराधी साबित करने के सरकार की सख्ती का दावा भी ठोंका जाए। लेकिन क्या लारेंस बिश्नोई का सच सामने आ पाएगा, ये सवाल कानूनी उलझनों में फंसा हुआ है। बता दें कि लारेंस बिश्नोई को गुजरात की साबरमती जेल में रखा गया है, जो हाईप्रोफाइल मुजरिमों के लिए बनी है। इसमें किसी आरोपी से पूछताछ के लिए सख्त नियम बने हैं। लारेंस बिश्नोई पर सीआरपीसी की धारा 268 के तहत, अगस्त 2023 तक के लिए जेल से बाहर निकलने पर रोक लगी हुई थी। अब नये आदेश के मुताबिक, बीएनएसएस की धारा 303 के तहत यह पाबंदी अगस्त 2025 तक बढ़ा दी गई है। अगर कोई भी पुलिस टीम, अधिकारी या एजेंसी लॉरेंस बिश्नोई से किसी मामले में पूछताछ करना चाहती है, तो उन्हें एक न्यायिक आदेश लेकर आना होगा। साथ ही उसके खिलाफ चल रही किसी भी जांच को जेल परिसर के भीतर ही अंजाम दिया जाएगा। वैसे साबरमती जेल प्रशासन का कहना है कि लारेंस बिश्नोई जेल के भीतर से कोई गिरोह नहीं चला रहा है, उसके पास कोई मोबाइल फोन या ऐसा जरिया नहीं है, जिससे वो बाहरी दुनिया से संपर्क रख सके। मगर सिद्दीकी हत्याकांड की शुरुआती जांच में अगर लारेंस बिश्नोई गैंग का नाम सामने आया तो इसे क्या केवल साबरमती जेल प्रशासन के बयान के आधार पर नजरंदाज किया जा सकता है, यह विचारणीय है।

यह तय है कि लारेंस बिश्नोई को अब पूछताछ के लिए गुजरात से बाहर नहीं लाया जाए, इसका कानूनी इंतजाम कर लिया गया है। लेकिन इसी साबरमती जेल में यूपी का माफिया डॉन अतीक अहमद भी 2019 से बंद था और पिछले साल मार्च में उसे गुजरात से यूपी शिफ्ट किया गया, इसके बाद अप्रैल में किस तरह उसे और उसके भाई को पुलिस सुरक्षा के बीच ही मार दिया गया, यह दृश्य पूरे देश ने देखा है। इस तरह की घटनाओं पर कुछ तालियां बज सकती हैं कि एक माफिया को मिट्टी में मिलाने की हिम्मत सरकार ने दिखाई, लेकिन वहीं सवाल भी उठते हैं कि जब अतीक अहमद को बाहर लाया जा सकता है तो लारेंस बिश्नोई से गुजरात के बाहर पूछताछ क्यों नहीं की जा सकती।

बाबा सिद्दीकी की हत्या की घटना को केवल पैसों के लिए किए गए अपराध की तरह नहीं देखा जा सकता, क्योंकि लारेंस बिश्नोई सीधे-सीधे लोकतांत्रिक सरकार की सत्ता को चुनौती दे रहा है, ठीक वैसे ही जैसे एक वक्त में दाऊद इब्राहिम का रवैया था। दाऊद इब्राहिम तो भारत के प्रमुख वांछित अपराधियों में शामिल है, वह आतंकवादी है। लेकिन लारेंस बिश्नोई को आतंकवादी कहने की जगह भारत के कई सोशल मीडिया हैंडल्स पर उसका महिमामंडन हो रहा है। उसे बॉलीवुड के लोगों, खालिस्तानियों, हिंदुत्व का विरोध करने वालों के लिए काल की तरह बताया जा रहा है। उसकी तस्वीर इस अंदाज में पोस्ट की जा रही हैं, मानो उसने बड़ी जांबाज़ी का काम किया है। एक अपराधी को नायक बनाने की यह भूल समाज को विनाश की तरफ ले जाने वाली है, क्योंकि इस तरह युवाओं को भटकाना और आसान हो जाता है। वैसे ही इस समय हमारे युवाओं का भविष्य दांव पर लगा हुआ है।

रोजगार और अच्छी शिक्षा की तलाश में हर बरस लाखों युवा विदेश जा रहे हैं और इनमें बड़ी संख्या कनाडा जाने वालों की है। लेकिन इस वक्त कनाडा और भारत के संबंध सबसे नाजुक दौर से गुजर रहे हैं। 14 अक्टूबर को दोनों देशों ने एक-दूसरे के छह-छह राजनयिकों को निष्कासित किया है। दरअसल पिछले वर्ष कनाडाई नागरिक और सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद कनाडा ने इसमें भारत की भूमिका पर सार्वजनिक तौर पर सवाल उठाए थे। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने वहां की संसद में इस बारे में बयान दिया था। तब भारत ने इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया था और साथ ही कनाडा को भारत-विरोधी शक्तियों को शरण न देने की सलाह दी थी। लेकिन भारत की सलाह का कोई असर कनाडा पर नहीं हुआ और अभी जस्टिन ट्रूडो ने फिर कह दिया कि भारत सरकार के अधिकारी पिछले जून में सरे में सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में शामिल थे। इसके बाद कनाडाई प्रशासन ने एक प्रेस कांफ्रेंस में यह कहा कि भारत की जेल में बंद गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई का गिरोह या उसके एजेंट कनाडा में इस हत्या के पीछे हैं। इस तरह कनाडा ने सीधे-सीधे भारत सरकार पर एक गैंगस्टर के साथ मिलकर काम करने का गंभीर आरोप लगाया।

यह वैश्विक स्तर पर भारत का अपमान है। वहीं अमेरिका में भी अब भारत के खिलाफ इसी तरह की बातें हो रही हैं। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने अगस्त में कनाडा के दौरे पर कहा था कि अमेरिका कनाडा के साथ हर स्तर पर सहयोग कर रहा है ताकि निज्जर हत्याकांड मामले की तह तक पहुंचा जा सके। उन्होंने निज्जर की हत्या को एक त्रासदी बताया था। वहीं इस मंगलवार को अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा कि जब कनाडाई मामले की बात आती है, तो हमने स्पष्ट कर दिया है कि आरोप बेहद गंभीर हैं और उन्हें गंभीरता से लेने की जरूरत है। हम चाहते थे कि भारत सरकार कनाडा को उसकी जांच में सहयोग दे। उन्होंने (भारत) वह रास्ता नहीं चुना है।

अमेरिका का यह रवैया बता रहा है कि फिलहाल वह भारत की अपेक्षा कनाडा की दोस्ती को तवज्जो दे रहा है। इन हालात में अब नरेन्द्र मोदी को सोचना है कि वे अमेरिकी धरती पर मोदी-मोदी के नारे सुनकर गदगद होते रहें, ओबामा से लेकर ट्रंप और बाइडेन तक सबको अपना करीबी मित्र बताते रहें या फिर भारत के हितों के बारे में सोचकर कोई कड़ी टिप्पणी इन मामलों पर करें। बेशक भारत का विदेश मंत्रालय अपनी तरफ से सख्ती दिखाने की पूरी कोशिश कर रहा है। उसके प्रवक्ता भारत पर लग रहे आरोपों पर कड़ा जवाब दे रहे हैं। लेकिन ये वक्त पं.नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी की तरह पश्चिमी ताकतों, खासकर अमेरिका को जवाब देने का है। अगर कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों से प्रेरणा लेने में श्री मोदी को असुविधा हो तो पोरस की मिसाल भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। 340 ईसा पूर्व से 315 ईसा पूर्व तक झेलम से लेकर चिनाब तक फैले पंजाब-सिंध प्रांत में पोरस का साम्राज्य फैला था और विश्वविजय पर निकले सिकंदर के अभियान को पोरस की कड़ी चुनौती मिली थी।

ऐतिहासिक कथा के मुताबिक दोनों के बीच हुए युद्ध के बाद जब पोरस को बंदी बनाकर सिकंदर के सामने पेश किया गया, तब पोरस ने सिकंदर से कहा था कि उनके साथ वही सलूक करना चाहिए जो एक राजा, दूसरे राजा के साथ करता है। इस कथा में तथ्य कितना है, यह अलग पड़ताल का विषय है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय संबंधों और राजनयिक शिष्टाचार में सम्मान और बराबरी का सबक इससे जरूर लिया जा सकता है।

कनाडा और अमेरिका से संबंधों में आ रही इस तल्खी और भारत के अपमान के बाद भारत सरकार के अधिकारियों को नहीं, खुद प्रधानमंत्री मोदी को आगे बढ़कर कनाडा और अमेरिका दोनों को सीधे जवाब देकर अपनी मजबूत स्थिति दिखाना चाहिए और बताना चाहिए कि भारत सरकार किसी गैंगस्टर के साथ मिलकर काम नहीं करती है। सत्ता का इकबाल ऐसे ही कायम किया जाता है।


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