पलटी मारने के उस्ताद मोदी
भारतीय राजनीति में पलटी मारने का अगर कोई रिकार्ड दर्ज होगा, तो निश्चित ही नीतीश कुमार को विजेता घोषित किया जाएगा

भारतीय राजनीति में पलटी मारने का अगर कोई रिकार्ड दर्ज होगा, तो निश्चित ही नीतीश कुमार को विजेता घोषित किया जाएगा। क्योंकि वे साल बीतते न बीतते अपने विचारों को बदल कर एक गठबंधन से दूसरे में शामिल हो जाते हैं। लेकिन नरेन्द्र मोदी तो शायद पलटी मारने में नीतीश कुमार का रिकार्ड तोड़ चुके हैं, वो भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर। अमेरिका, चीन, पाकिस्तान, कनाडा, तुर्की इन सारे देशों को लेकर नरेन्द्र मोदी ने जो भी दावे किए, वो सब कुछ ही महीनों में खुद ही खारिज भी कर दिए।
निज्झर हत्याकांड में भारत पर लगे गंभीर आरोपों के बाद कनाडा से भारत के रिश्ते इतने बिगड़ चुके थे कि दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को निकाल बाहर किया था। वीज़ा रद्द किए जा रहे थे। यहां तक कि जून में हुई जी 7 की बैठक में भी पहले श्री मोदी को विशेष आमंत्रितों में शामिल नहीं किया गया था, लेकिन फिर कनाडा के नए प्रधानमंत्री बने मार्क कार्नी ने फोन किया और श्री मोदी कनाडा चले गए। अब दोनों देशों ने फिर से अपने-अपने राजदूतों की नियुक्ति कर दी है।
तुर्की के साथ भी ऐसा ही यू टर्न प्रधानमंत्री ने लिया है। ऑपरेशन सिंदूर में जानकारी सामने आई थी कि तुर्की ने भारत के खिलाफ जाकर पाकिस्तान की मदद की है, इसके बाद मोदी सरकार ने तुर्की के बहिष्कार की बात कही और श्री मोदी को अंधा समर्थन करने वालों ने तुर्की को कोसना शुरु कर दिया। देश की उन नामचीन हस्तियों को निशाने पर लिया, जिनकी तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयब अर्दोगान से कभी मुलाकात की। लेकिन अब तीन महीने में भारत सरकार ने तुर्की और भारत की कुछ एयरलाइनों के बीच समझौते को हरी झंडी दिखा दी है। यानी बहिष्कार की अवधि तीन महीने भी नहीं रही।
अमेरिका के साथ तो जबरन की नजदीकियां और खासकर डोनाल्ड ट्रंप को प्यारा दोस्त बताकर नरेन्द्र मोदी ने पूरे देश को किस आफत में डाल दिया है, ये अब वो व्यापारी ही बेहतर बता पाएंगे, जिनके कारोबार टैरिफ के कारण ठप्प हो गए हैं। व्यापार रोकने की धमकी देकर ही ट्रंप ने युद्धविराम करने का दावा किया था। लेकिन नरेन्द्र मोदी न ट्रंप को टैरिफ लगाने से रोक पाए, न युद्धविराम की बात को नाम लेकर खारिज किया, और न ट्रंप की तरफ से भारत के लगातार किए गए अपमान पर कोई जवाब दे पाए। अब श्री मोदी की छवि गढ़ने में लगा मीडिया ये साबित करने की कोशिश कर रहा है कि ट्रंप को झटका देने के लिए श्री मोदी ने तैयारी कर ली है और उनकी मौजूदा चीन यात्रा को भी इससे जोड़ा जा रहा है।
जापान में बुलेट ट्रेन की सवारी के बाद नरेन्द्र मोदी चीन पहुंच गए। इधर बुलेट ट्रेन का सपना दिखाकर श्री मोदी ने हजारों-लाखों लोगों को कहीं बाढ़, कहीं भू स्खलन का शिकार होने के लिए छोड़ दिया है। बहरहाल, रविवार को नरेन्द्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय मुलाक़ात की। सात साल बाद श्री मोदी चीन पहुंचे हैं। उनके पिछले दौरे में दोनों नेताओं ने फिल्मी संगीत का आनंद लिया था।
लेकिन उसके बाद गलवान घाटी की झड़प हुई, जिसमें भारत के 20 सैनिक शहीद हुए और न जाने कितनी जमीन चीन के पास जा चुकी है, इसका कोई हिसाब सरकार ने नहीं दिया। क्योंकि नरेन्द्र मोदी ने तो कभी माना ही नहीं कि चीन ने घुसपैठ की है। उनके हिसाब से न कोई आया, न आएगा। लेकिन चीन की घुसपैठ के बारे में लद्दाख के लोग शिकायत करते हैं। पूर्वी लद्दाख में सीमा पर अप्रैल 2020 से पहले की यथास्थिति बहाल नहीं हो पाई है। वहीं चीन ने 2020 के बाद कई बार अरुणाचल प्रदेश के कई इलाक़ों का मंदारिन में नामकरण किया है। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत कहता है। यानी उसकी तरफ से विस्तारवादी नीति जारी है और इस बीच ऑपरेशन सिंदूर में भी पाकिस्तान को भी चीन ने खुलकर मदद की।
श्री मोदी जिस शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (एससीओ) बैठक के लिए चीन पहुंचे हैं, पाक के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ भी पहुंचे हैं। शरीफ के स्वागत के लिए बहुत से लोग पहुंचे, जबकि इक्का-दुक्का लोग नरेन्द्र मोदी को लेने पहुंचे। चीन के तियानजिन में शी जिनपिंग से द्विपक्षीय वार्ता में श्री मोदी ने कहा, 'पिछले वर्ष कज़ान में हमारी बहुत ही सार्थक चर्चा हुई थी। हमारे संबंधों को एक सकारात्मक दिशा मिली है। सीमा पर डिसइंगेजमेंट के बाद शांति और स्थिरता का माहौल बना हुआ है। हमारे सहयोग से दोनों देशों के 2.8 अरब लोगों के हित जुड़े हुए हैं। परस्पर विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता के आधार पर हम अपने संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। वहीं शी जिनपिंग ने कहा, 'हम दोनों दुनिया के सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश हैं और ग्लोबल साउथ का हिस्सा हैं। दोस्त बने रहना, अच्छे पड़ोसी होना, ड्रैगन और हाथी का साथ आना बहुत ज़रूरी है।'
अब इन सतही बातों को सच मानकर हम खुश हो लें या फिर इस हकीकत को ध्यान रखें कि चीन भारत से अपनी शर्तों पर दोस्ती बढ़ा रहा है। चीन ने भारत को एलएसी, व्यापार, तिब्बत, रेयर अर्थ पर कोई रियायत नहीं दी है। पाकिस्तान को लेकर कोई वादा नहीं किया है। यह हकीकत है कि तीन महीने पहले ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन ने पाकिस्तान को मदद दी, जिसमें रियल-टाइम रडार और सैटेलाइट डेटा भी शामिल था। इससे पाक को पलटवार करने का मौका मिला, जिसमें हमारे निर्दोष नागरिक, मासूम बच्चे मारे गए। क्या प्रधानमंत्री इसी को आपसी सम्मान और संवेदनशीलता बता रहे हैं। चीन ने हाल ही में दुनिया का सबसे बड़ा बांध भारत की सीमा के पास बनाने की योजना की पुष्टि की- जो भारत के लिए गंभीर पर्यावरणीय और राष्ट्रीय सुरक्षा के असर लाएगा। चीन के आर्थिक बहिष्कार की सच्चाई भी ये है कि पिछले साल चीन के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार क़रीब 127.7 अरब डॉलर था। यानी जनता से कहा गया कि स्वदेशी अपनाओ, क्योंकि अब तो गणेशजी भी छोटी आंख वाले आते हैं और दूसरी तरफ खरबों रुपयों का कारोबार चीन के साथ करो।
अब बस पाकिस्तान के साथ श्री मोदी कैसी पलटी मारते हैं, ये देखना होगा, क्योंकि एससीओ समिट में शाहबाज शरीफ से भी आमना-सामना होगा।


