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मनरेगा से जी राम जी, भाजपा की सनक

नाम बदलना भाजपा का पुराना शगल रहा है। सड़कों, स्टेशनों, चौराहों के साथ-साथ पुरानी सरकारों की शुरु की गई बहुत सी योजनाओं के नाम भाजपा सरकारें बदलती रही हैं

मनरेगा से जी राम जी, भाजपा की सनक
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नाम बदलना भाजपा का पुराना शगल रहा है। सड़कों, स्टेशनों, चौराहों के साथ-साथ पुरानी सरकारों की शुरु की गई बहुत सी योजनाओं के नाम भाजपा सरकारें बदलती रही हैं, लेकिन इस बार मोदी सरकार ने एक ऐसी योजना पर राजनीति की है, जो ग्रामीण भारत की आजीविका के लिए बेहद जरूरी है। सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा का न केवल नाम बदला है, बल्कि इसमें काम के दिनों से लेकर केंद्र और राज्य के बीच वित्तीय व्यवस्था को भी बदल दिया है। जिसके बाद एक बार फिर से मोदी सरकार की नीयत पर विपक्ष सवाल खड़े कर रहा है कि आखिर मनरेगा को बदलने के पीछे क्या मंशा ग्राम पंचायतों से अधिकार छीनने और उन्हें कमजोर करने की है।

ज्ञात हो कि मंगलवार को मोदी सरकार ने लोकसभा में 'विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन ग्रामीण 2025' पेश किया। इसका संक्षिप्तीकरण वी बी- जी राम जी के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है। राम शब्द का सियासी इस्तेमाल कितने तरीकों से किया जा सकता है, इसकी नयी-नयी मिसालें मोदी सरकार पेश कर रही है। राम मंदिर बनाने के लिए रथ यात्रा निकालने से लेकर बाबरी मस्जिद गिराकर उस जगह पर राम मंदिर के लिए पहले शिलान्यास करना, फिर राम मंदिर बनने के बाद उद्घाटन करना और इसके बाद मंदिर में धर्म ध्वजा फहराने जैसे काम किए गए, इसके बाद भी भाजपा को लगता है कि राम नाम को भुनाने की संभावनाएं अभी मौजूद हैं, लिहाजा अब महात्मा गांधी के नाम पर पिछले 20 सालों से चल रही ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को ही बदल दिया गया है।

पिछले सप्ताह तक चर्चा थी कि भाजपा मनरेगा में महात्मा गांधी की जगह पूज्य बापू करना चाहती है। इस पर भी विपक्ष ने सवाल किया था कि आखिर महात्मा गांधी नाम से भाजपा को क्या तकलीफ है। लेकिन अब तो न केवल महात्मा गांधी शब्द हटाया गया है, बल्कि योजना ही बदलने की तैयारी है। जिसके बाद संसद का शीतकालीन सत्र में बड़ा विवाद बन गया है। विपक्ष ने मंगलवार को संसद परिसर में इस पर प्रदर्शन भी किया। प्रणिति शिंदे और कुमारी शैलजा समेत कुछ सांसद तो पुराने संसद भवन की छत पर चढ़कर गांधीजी के पोस्टर के साथ नारेबाजी करते दिखे।

दरअसल मनरेगा को बदलने का यह प्रस्ताव ग्रामीण भारत की आजीविका से जुड़ा होने के कारण राजनीतिक और आर्थिक दोनों तरीके से संवेदनशील है। पांच साल पहले जब कोरोना की महामारी ने देश को आर्थिक तौर पर भी झकझोर कर रख दिया था, तब इसी मनरेगा के कारण ग्रामीण भारत में दो वक्त की रोटी का सहारा बना रहा। केंद्र की मोदी सरकार ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है और माना है कि मनरेगा से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सहारा मिला है। जबकि अपने पहले कार्यकाल में इसी मनरेगा का मजाक उड़ाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने इसे यूपीए सरकार का गड्ढा बताया था। जबकि मनरेगा इतना क्रांतिकारी कानून था कि 2005 में जब इसे लाया गया था, तब संसद में सभी राजनीतिक दलों ने इसका समर्थन किया था।

मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में हर परिवार को साल में 100 दिन के मजदूरी वाले काम की गारंटी देता है। जबकि नए विधेयक में मजदूरी के 125 दिन निर्धारित किए गए हैं, लेकिन इसमें न मानदेय बढ़ाया गया है, न ये तय है कि ग्रामीण किस तरह रोजगार की गारंटी पाएंगे, क्योंकि अब यह हक ग्राम पंचायतों का नहीं केंद्र का हो जाएगा। प्रियंका गांधी ने इस बारे में लोकसभा में कहा है कि मनरेगा मांग-आधारित है, जिसमें केंद्र सरकार की फंडिंग भी मांग के अनुसार होती है। लेकिन नए विधेयक में केंद्र नॉर्मेटिव फंडिंग के आधार पर वित्तपोषण करेगा। नॉर्मेटिव फंडिंग मतलब एक ऐसी प्रणाली जहां धन का आबंटन पूर्व-निर्धारित मानकों, मानदंडों या नियमों के आधार पर होगा, ग्राम सभा की जरूरत के मुताबिक नहीं। यानी किसी ग्राम सभा को अगर किसी कार्य के लिए ज्यादा धन की जरूरत होगी, तब भी केंद्र उसे वह मुहैया नहीं कराएगा, बल्कि जो पहले से तय है, उतना ही फंड जारी करेगा। इससे ग्राम सभाओं की भूमिका कमजोर होगी, जो स्थानीय स्तर पर काम की मांग तय करती हैं। प्रियंका गांधी ने चेतावनी दी है कि 'रोजगार का अधिकार कमजोर किया जा रहा है, जो हमारे संविधान के खिलाफ है।'

जी राम जी में अधिकांश राज्यों के लिए केंद्र का फंड योगदान 60 प्रतिशत तक कम कर दिया गया है, जबकि राज्यों को पहले से जीएसटी की बकाया राशि भी नहीं मिल रही है, ऐसे में ग्रामीण रोजगार के लिए धन की कमी राज्यों में हो जाएगी और इसका नुकसान उन ग्रामीणों को भुगतना पड़ेगा, जिनके घर मनरेगा के कारण चल रहे हैं। प्रियंका गांधी ने इस फैसले को 'सनक' बताते हुए कहा कि इससे हर बार सरकारी खजाने पर बोझ पड़ता है। क्योंकि नाम बदलने में सरकारी खर्च भी होता है। अखिलेश यादव ने भी कहा है कि आज की महंगाई में मानदेय कैसे बढ़े और इस योजना से किसान को कैसे जोड़ा जाए, यह देखना चाहिए...आप पूरा भार राज्य सरकार पर डाल देंगे। उन्होंने कहा कि नाम बदलने से कोई बहुत बड़ा काम नहीं होगा।

वहीं मोदी सरकार में शामिल तेलुगु देशम पार्टी यानी टीडीपी ने भी जी राम जी योजना पर चिंता जताई है। टीडीपी का कहना है कि 'इस योजना में वित्त पोषण की जो नयी व्यवस्था बनाई गई है, उससे राज्य सरकार पर बोझ बढ़ेगा। यह फंडिंग पैटर्न ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को किसी भी दूसरी केंद्रीय योजना जैसा बना देता है।' टीडीपी चाहती है कि इस विधेयक को संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा जाए। कांग्रेस ने भी यही मांग की है। वहीं सरकार का दावा है कि नया क़ानून 'विकसित भारत 2047' विजन के अनुरूप है। नॉर्मेटिव फंडिंग से बजट में अनिश्चितता खत्म होगी और उद्देश्यपूर्ण पैमानों पर आधारित योजनाबद्ध आबंटन सुनिश्चित होगा। सरकार का विकसित भारत का दावा कोरी राजनीति है। क्योंकि आज से 25 साल बाद के विकास की बात करने से पहले आज की जरूरत पर ध्यान देना चाहिए। 2047 तक विकसित होने का सपना पूरा तभी होगा, जब आज लोगों के पास रोजगार रहेगा। लेकिन मोदी सरकार पहले तो पकौड़ा तलने और रील बनाने को रोजगार बताती है और जो सौ दिन का रोजगार यूपीए सरकार की बदौलत लोगों को मिला हुआ है, उसे भी खत्म करने की तैयारी है।


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