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मायावती ने गंवाया मौका

उत्तरप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा की मुखिया बहन मायावती ने गुरुवार को खुद अपनी साख पर बड़ा बट्टा लगा लिया। मायावती कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पर तो लगातार निशाना लगाती ही हैं

मायावती ने गंवाया मौका
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उत्तरप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा की मुखिया बहन मायावती ने गुरुवार को खुद अपनी साख पर बड़ा बट्टा लगा लिया। मायावती कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पर तो लगातार निशाना लगाती ही हैं, लेकिन इस बार उन्होंने सपा और कांग्रेस की आलोचना के साथ भाजपा शासन की तारीफ की और योगी सरकार का आभार भी जता दिया। गौरतलब है कि मायावती के बारे में अक्सर ये कहा जाता है कि वे भाजपा की बी टीम के तौर पर काम करती हैं। अर्थात सीधे-सीधे न सही लेकिन चुनावों में वे इस तरह पांसे बिछाती हैं, जिससे भाजपा को फायदा हो, और सपा, कांग्रेस या अन्य भाजपा विरोधी दलों को नुकसान हो। जबकि जिस दलित पृष्ठभूमि से मायावती आती हैं और दलित राजनीति के बूते ही वे सत्ता तक भी पहुंची, उस दलित समुदाय की घोर उपेक्षा भाजपा के शासनकाल में हो रही है, इसके गवाह दलित उत्पीड़न के आंकड़े भी दे रहे हैं। जब भी दलित को प्रताड़ित करने की कोई बड़ी घटना होती है, तो बहनजी से स्वाभाविक तौर पर उम्मीद की जाती है कि वे कोई बयान देंगी। लेकिन मोदी शासनकाल में मायावती ने मानो सरकार के खिलाफ बोलना छोड़ ही दिया है। उनके इस रवैये के कारण बसपा की प्रासंगिकता भी कम होती गई, चुनावी नतीजे इसका प्रमाण हैं। लेकिन अब भाजपा की तारीफ कर बहनजी ने जो थोड़ी बहुत उम्मीद दलितों को उनसे थी, वो भी खत्म कर दी है।

पाठक जानते हैं कि पिछले 13 सालों से मायावती सत्ता से बाहर हैं, लेकिन उत्तरप्रदेश में दलितों का यकीन उन पर अब भी बना हुआ है, ऐसा तब लगा जब गुरुवार को लखनऊ में हुई महारैली में बड़ी भीड़ जुटी। कांशीराम जी की पुण्यतिथि पर मायावती ने ये महारैली की थी, जिसका असली मकसद 2027 के चुनावों की तैयारी थी और इसके अलावा अपने भतीजे आकाश आनंद को फिर से सार्वजनिक तौर पर उत्तराधिकारी बताना था। हालांकि बड़ी संख्या में दलित जुटे, तो इसकी वजह यही थी कि वे फिर से उस आत्मसम्मान को वापस पाने की उम्मीद कर रहे हैं, जिसे भाजपा सरकार में लगातार कुचला जा रहा है। चुनावों के वक्त भाजपा के नेता, मंत्री दलितों के घर खाना खाते हुए तस्वीरें तो बहुत खिंचाते हैं, लेकिन जिन चमकते बर्तनों में वे भोजन करते हैं और जितने तरह के व्यंजन परोसे हुए होते हैं, उसे देखकर समझ आता है कि ये सारा तामझाम कुछ घंटों के वीडियो और तस्वीरें बनाने का है। जिसमें सब कुछ नाटकीय है, असलियत नहीं है। अगर दलितों को सवर्ण तबका अपने बराबर की सामाजिक स्वीकार्यता देता तो फिर इस तरह किसी को किसी के घर भोजन करने न जाना पड़ता।

भाजपा सरकार में दलितों का अपमान, बाबा अंबेडकर से नफरत और संविधान को खत्म करने की जो कोशिशें लगातार चल रही हैं, उन पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों पुरजोर तरीके से आवाज उठा रहे हैं। लेकिन मायावती ने गुरुवार को योगी सरकार की तारीफ की तो वहीं सपा पर जमकर हमला बोला। जिस पर अखिलेश यादव ने कहा कि क्योंकि 'उनकी' अंदरूनी सांठगांठ है जारी, इसीलिए वो हैं ज़ुल्म करने वालों के आभारी।

बता दें कि मायावती ने रैली की शुरुआत में कहा कि अभी मैंने सुना कि अखिलेश यादव ने सत्ता में आने पर कांशीराम का स्मारक बनाने की बात कही लेकिन जब सत्ता में थे तो कभी ऐसा नहीं किया। ये लोग जब सत्ता में नहीं होते हैं तो इन्हें बसपा के नेता और दलित समाज के संतों की याद आती है जब सत्ता में आते हैं तो कुछ नहीं याद रहता है। ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए। उन्होंने इल्जाम लगाया कि बसपा की सरकार रहते हुए मैंने जिन स्मारकों का नाम कांशीराम जी के नाम पर रखा उन्हें सपा की सरकार आने पर बदल दिया गया। मायावती ने कहा कि बसपा सरकार में कांशीराम के सम्मान में स्मारक स्थल बनाया गया था। उन्होंने योगी सरकार का भी आभार जताया और कहा कि स्मारक के देखने आने वालों की टिकट से आया पैसा इस सरकार ने सपा की सरकार की तरह टिकट का पैसा दबाकर नहीं रखा। भाजपा सरकार ने ऐसा नहीं किया बल्कि स्मारक के रखरखाव के लिए खर्च किया।

हालांकि मायावती को इस पर विचार करना चाहिए कि दलित स्मारक से ज्यादा उन मूल्यों के लिए कांशीरामजी का सम्मान करते हैं, जिनकी वजह से उन्होंने दलित समाज में चेतना भरी और उन्हें हक के लिए खड़े होना सिखाया। अगर मायावती योगी सरकार का आभार जताने के साथ यह सवाल भी करतीं कि रायबरेली में दलित को क्यों पीट-पीट कर मारा गया, क्यों दलित वर्ग से आने वाले मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंका गया, उप्र में देश भर में सबसे अधिक दलित उत्पीड़न के मामले क्यों हो रहे हैं, तब तो समझ आता कि बहनजी वाकई दलितों की रहनुमा हैं। लेकिन इस समय वे भाजपा की सहयोगी की तरह बर्ताव कर रही हैं। जैसे नीतीश कुमार धर्मनिरपेक्ष होने का दावा कर उन ताकतों से हाथ मिलाते हैं, जिन्होंने बाबरी मस्जिद तोड़कर राम मंदिर बनाया है।

उप्र में भी आई लव मुहम्मद के बवाल पर मायावती खुलकर भाजपा की आलोचना नहीं कर सकीं, उन्होंने केवल यही कहा कि जनहित के मुद्दों पर ध्यान देने की बजाय, कुछ शरारती और स्वार्थी तत्व धर्म, देवी-देवता और खुदा के नाम पर विवाद और हिंसा पैदा करने की कोशिश में लगे रहते हैं। इन मामलों में राजनीति नहीं करनी चाहिए और सभी को भारतीय संविधान और धार्मिक परंपराओं का सम्मान करना चाहिए। इसी तरह कांग्रेस पर हमला बोलते हुए मायावती ने कहा कि कांग्रेस वाले संविधान हाथ में रखकर नाटकबाजी करते हैं जबकि इमरजेंसी के दौरान ही संविधान पर हमला हुआ था। यह बिल्कु ल भाजपा की भाषा है।

बहरहाल, मायावती ने दावा किया कि 2027 में उप्र में एक बार फिर पूर्ण बहुमत से बसपा की सरकार बनेगी। उन्होंने पार्टी नेता आकाश आनंद की तारीफ करते हुए कहा कि आकाश बसपा का जनाधार बढ़ाने के लिए मेरे दिशानिर्देशन में लगातार प्रयास कर रहे हैं। जबकि इन्हीं आकाश आनंद को मायावती ने पार्टी में किनारे किया था।

कुल मिलाकर मायावती ने अपनी साख को फिर से हासिल करने का एक मौका गंवा दिया। किसी अन्य दल की तारीफ या निंदा उनका अपना नजरिया है, लेकिन उनका मतदाता भी फिर सोचेगा कि अगर घूम फिर कर भाजपा की विचारधारा में ही रहना है तो फिर सीधे भाजपा को ही वोट दें, मायावती को क्यों दें। अगर इसके खिलाफ जाना है तो फिर इंडिया गठबंधन का विकल्प भी मतदाता के पास है।


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