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खोखलेपन से बचा रहे नया साल

नए साल की शुभकामनाएं देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर एक पोस्ट अंग्रेजी में लिखी है

खोखलेपन से बचा रहे नया साल
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- सर्वमित्रा सुरजन

खुशी का कोई पैमाना नहीं होता। कोई इंसान एक छोटे से घर में सीमित सामान के साथ भी खुश रह सकता है और किसी को 27 मंजिला घर या देश की आधी से अधिक संपत्ति हासिल करने के बाद भी कुछ और मिल जाए, ऐसी चाह रहती है। हालांकि आम इंसान के लिए तो खुशियां तभी अंतहीन हो सकती हैं, जब उसे रोजमर्रा की जरूरतों के लिए जूझना न पड़े। नौकरी पर तलवार लटकती न दिखे, बच्चों को पढ़ने और खेलने के पूरे मौके मिलें।

नए साल की शुभकामनाएं देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर एक पोस्ट अंग्रेजी में लिखी है, जिसका अनुवाद है- 2025 की शुभकामनाएं, यह वर्ष सभी के लिए अवसर, सफलता और अंतहीन खुशियां लेकर आए। सभी को अच्छी सेहत और समृद्धि का आशीर्वाद मिले।

लोकसभा चुनावों के पहले प्रधानमंत्री मोदी ने एक साक्षात्कार में कहा था कि वे खुद में दैवीय अंश महसूस करते हैं। उन्हें लगता है कि वे सामान्य लोगों की तरह जैविक गुण नहीं बल्कि अलौकिक शक्तियों से संपन्न हैं। ऐसा दावा करने का मनोबल उन्हें लगातार सत्ता में बने रहने से मिला, या किसी और वजह से, यह तो पता नहीं। लेकिन नए साल पर उनके शुभकामना संदेश को देखने से ऐसा ही लगता है कि वे खुद में अगर भगवान का अंश देखते हैं, तो उसी रौ में वे देश को भगवान भरोसे छोड़कर ही सत्ता पर बैठे हुए हैं। लोगों के जीवन में सुख, समृद्धि, सेहत बनी रहे, ऐसी शुभकामना देने में कोई हर्ज नहीं है। सवाल यह है कि क्या केवल किसी के कह देने से ये सारी बातें जीवन में सच हो जाएंगी। नए साल पर दुनिया भर के लोग अपने-अपने ईश्वरों को याद करते हैं। अपने देश में भी साल के पहले दिन मंदिरों में भीड़ उमड़ी रही। लोगों ने पूरे साल के अच्छे से गुजरने, नौकरी मिलने, परीक्षा में सफलता मिलने, बीमारी के इलाज की या इसी तरह की अन्य ख्वाहिशों के पूरा होने की प्रार्थना की होगी। हर साल ऐसा ही होता है। मगर क्या इससे सबकी कामनाएं पूरी हो जाती हैं। ईश्वर किस तरह से आशीर्वाद देता है, ये कोई नहीं बता सकता। लेकिन जिन शुभकामनाओं को श्री मोदी ने अपने ट्वीट में व्यक्त किया है, वे तभी पूरी होंगी, जब सरकारें उस दिशा में काम करेंगी।

खुशी का कोई पैमाना नहीं होता। कोई इंसान एक छोटे से घर में सीमित सामान के साथ भी खुश रह सकता है और किसी को 27 मंजिला घर या देश की आधी से अधिक संपत्ति हासिल करने के बाद भी कुछ और मिल जाए, ऐसी चाह रहती है। हालांकि आम इंसान के लिए तो खुशियां तभी अंतहीन हो सकती हैं, जब उसे रोजमर्रा की जरूरतों के लिए जूझना न पड़े। नौकरी पर तलवार लटकती न दिखे, बच्चों को पढ़ने और खेलने के पूरे मौके मिलें, युवाओं को बेरोजगार होने या सिफारिश अथवा बेईमानी से दूसरों को आगे निकलते देखने पर कुंठा का शिकार न होना पड़े, बुजुर्गों को जीवन के उत्तरार्द्ध में पहुंचकर भी सम्मान के साथ जीने मिले, स्त्रियां खुद को हर लिहाज से सुरक्षित महसूस करें, किसानों पर बेचारगी का ठप्पा लगाए बिना उन्हें उनका हक दिया जाए, जाति-धर्म-लिंग-धन सबका भेदभाव खत्म हो जाए। ऐसी आदर्श जिंदगी भारत के नागरिकों के हिस्से में आए, इसी उद्देश्य से संविधान की रचना की गई थी। संविधान निर्माता जानते थे कि ऐसा होने में वक्त लगेगा, लेकिन जिंदगी को बेहतर बनाने की प्रक्रिया चलती रहनी चाहिए, इसलिए कल्याणकारी राज्य की अवधारणा की गई और सरकारों को लोकतांत्रिक होने के साथ जनकल्याण के लिए फैसले लेने की राह दिखाई गई। इस राह पर चलने में किसी सरकार को शत प्रतिशत सफलता नहीं मिली। लेकिन इससे हटने की न किसी ने चेष्टा की, न ऐसा बड़बोलापन दिखाया कि अब तक जो नहीं हुआ, वो हमने कर दिखाया। मगर पिछले दस सालों में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में चल रही सरकार ने ऐसा दुस्साहस किया और उसमें देश को जो नुकसान हुआ है, उस पर अफसोस दिखाने की जहमत भी नहीं उठाई जा रही है।

साल 2014 में युवाओं को दो करोड़ नौकरियां हर साल देने का वादा किया गया था, साल 2024 के आखिरी में युवाओं को पर्चा लीक की शिकायत पर लाठियां खानी पड़ी। साल 2014 में किसानों से वादा था कि 2022 तक उनकी आय दोगुनी हो जाएगी, साल 2024 खत्म हो गया लेकिन किसानों को अब भी अपने हक के लिए सड़क पर बैठना पड़ रहा है। पिछले साल चुनावों में भाजपा के लिए वोट मांगते-मांगते नरेन्द्र मोदी ने महिलाओं को डराया कि कांग्रेस सरकार आई तो आपके मंगलसूत्र चुरा लेगी, अब पता चल रहा है कि सामान्य जरूरतें पूरी करने के लिए लोगों को अपने गहने, सोना गिरवी रखने पड़ रहे हैं। देश किस हाल में चल रहा है, ये उसके कुछ उदाहरण मात्र हैं। आम जनता बेहद पीड़ा, तकलीफों से गुजरती हुई, कठिन हालात का सामना करती हुई जीवन गुजार रही है और प्रधानमंत्री के शुभकामना संदेश में इन पर आश्वस्ति के दो बोल भी नहीं हैं। केवल आभासी बातों से नए साल गुजारने के संकेत उन्होंने दिए हैं।

वैसे उनसे इससे ज्यादा उम्मीद भी क्या की जाए। जब डेढ़ साल से तबाह हो गए मणिपुर पर वे चुप लगाकर बैठे हैं और वहां के लोग किस हाल में हैं, ये जानने के लिए वे मणिपुर अब तक नहीं गए हैं। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह भी प्रधानमंत्री मोदी के ही नक्शे कदमों पर चल रहे हैं। नए साल पर उन्होंने भी एक संदेश अपनी जनता के नाम दिया है। उन्होंने राज्य के लोगों से माफी मांगी और मई 2023 से अब तक राज्य में हुई जातीय हिंसा के लिए 'खेद' जताया। मुख्यमंत्री ने कहा कि 'यह पूरा साल बहुत दुर्भाग्यपूर्ण रहा है। मुझे अफसोस है और मैं राज्य की जनता से कहना चाहता हूं कि पिछले 3 मई से आज तक जो कुछ हो रहा है, उसके लिए मैं राज्य की जनता से माफी मांगना चाहता हूं। तमाम लोगों ने अपने प्रियजनों को खो दिया। कई लोगों ने अपना घर छोड़ दिया। मुझे सचमुच अफसोस हो रहा है। मैं माफी मांगना चाहूंगा।' मुख्यमंत्री ने कहा- 'अब, मुझे उम्मीद है कि नए साल 2025 के साथ, राज्य में सामान्य स्थिति और शांति बहाल हो जाएगी। मैं राज्य के सभी समुदायों से अपील करता हूं कि जो भी हो, जो हुआ, सो हुआ। हमें अब पिछली गलतियों को भूलना होगा और एक शांतिपूर्ण मणिपुर, एक समृद्ध मणिपुर के लिए एक नया जीवन शुरू करना होगा।'

कितना आसान है इस तरह का खेद प्रकट करना और नए सिरे से सब कुछ शुरु करने की नसीहत देना। याद कीजिए कि गोधरा कांड के 9 साल बाद सितंबर 2011 में अपने जन्मदिन से शुरु करके नरेन्द्र मोदी ने तीन दिन का सद्भावना उपवास रखा था। लेकिन क्या इससे गुजरात में हिंदू-मुसलमान के बीच बनी खाई पाटी जा सकी। क्या बिल्किस बानो को फिर भी इंसाफ के लिए लंबी लड़ाई नहीं लड़नी पड़ी। तब नरेन्द्र मोदी ने इस्तीफा नहीं दिया था, अटल जी की सलाह पर राजधर्म का पालन नहीं किया था। अब बीरेन सिंह इस्तीफा नहीं दे रहे, उन्होंने केवल इसका दिखावा किया था। उन्हें राजधर्म के पालन की सलाह भी नहीं दी जा रही। अब वे सैकड़ों निर्दोष जानों की अकाल मौत पर अफसोस जता रहे हैं और कह रहे हैं कि जो हुआ सो हुआ। लेकिन क्या उनके कहने से उन लोगों के जीवन का खालीपन भरेगा, जिनके अपनों को बेमौत मारा गया। कुकी और मैतेई समुदायों के बीच अविश्वास की गहरी खाई क्या एक औपचारिक संदेश से भर जाएगी। जहां एक राज्य के भीतर दो समुदायों के बीच सीमा रेखा खींच दी गई हो, क्या वो लकीर मुख्यमंत्री मिटा पाएंगे। क्या उन महिलाओं को इंसाफ मिलेगा, जिन्हें बलात्कार और निर्वस्त्र जुलूस निकालने के पैशाचिक अत्याचार को सहना पड़ा।

जाहिर है ऐसा कुछ नहीं होगा और जैसे सद्भावना उपवास का खोखलापन अब और विद्रुपता के साथ नजर आ रहा है, वैसा ही खोखला बीरेन सिंह का अफसोस भी है। अगर मणिपुर को लेकर भाजपा वाकई चिंतित और परेशान है तो अब तक बीरेन सिंह अपने पद को छोड़ चुके होते या कम से कम प्रधानमंत्री मोदी से यह कहने की हिम्मत दिखाते कि आप एक बार मणिपुर आकर लोगों को सांत्वना दें। वैसे श्री मोदी ने एक ट्वीट बीरेन सिंह को जन्मदिन की शुभकामनाओं का भी किया है। मगर उनके अफसोसनामे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

साल 2025 सत्ता पर काबिज लोगों के खोखलेपन से देश को महफूज़ रखे फिलहाल यही कामना की जा सकती है।


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