महाराष्ट्र : अजित पवार का बड़ा फैसला
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के अजित पवार गुट द्वारा अपने विवादास्पद विधायक नवाब मलिक को उम्मीदवार बनाने से महाराष्ट्र की महायुती में बड़ी फूट पड़ गयी है

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के अजित पवार गुट द्वारा अपने विवादास्पद विधायक नवाब मलिक को उम्मीदवार बनाने से महाराष्ट्र की महायुती में बड़ी फूट पड़ गयी है। भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें टिकट देने की कड़ी आलोचना की है। भाजपा नेता किरीट सोमैया ने साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी नवाब को हराने के लिये चुनाव लड़ेगी।
नवाब मलिक ने पहले से ही दो चुनावी नामांकन पत्र खरीद रखे थे। एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में तो दूसरा बतौर एनसीपी (अजित गुट) प्रत्याशी के। नवाब मलिक पर भाजपा आरोप लगाती रही है कि उनके कुख्यात दाऊद इब्राहिम से सम्बन्ध हैं। उन पर मनी लॉंड्रिंग के भी मामले हैं। भाजपा चाहती थी कि उन्हें टिकट न दी जाये लेकिन अजित पवार ने सत्ता में अपनी सहयोगी पार्टी की न सुनते हुए नवाब को टिकट थमा दिया। नवाब ने भी स्पष्ट किया कि भाजपा उन्हें समर्थन दे या न दे, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।
भाजपा तथा अजित पवार वाली एनसीपी के बीच इस खटपट ने सत्तारुढ़ गठबन्धन के तीसरे साथी शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) को भी असमंजस में डाल दिया है। शिंदे राज्य के मुख्यमंत्री हैं तथा मुख्यत: भाजपा के समर्थन से इस पद को हासिल कर सके हैं। वे नहीं चाहेंगे कि नवाब को समर्थन देने से भाजपा नाराज़ होकर उनकी पार्टी के प्रत्याशियों के भी खिलाफ हो जाये।
भाजपा की हताशा का आलम यह है कि वह नवाब मलिक की बेटी सना मलिक को समर्थन देने के लिये तैयार है जो अणुशक्ति नगर विधानसभा से (नवाब जहां से मौजूदा विधायक हैं) एनसीपी (अजित पवार गुट) से ही चुनाव लड़ रही हैं। नवाब मलिक का कहना है कि चार माह से यह साफ था कि वे इस सीट से तथा उनकी बेटी उनकी मौजूदा सीट से चुनाव लड़ने जा रही हैं। अंतिम वक्त में उनका विरोध करना कोई मायने नहीं रखता। नवाब मलिक ने टिकट के लिये अजित पवार एवं उनके दल के अन्य प्रमुख नेताओं को धन्यवाद देकर इस खाई को और बढ़ा दिया है। भाजपा की समस्या यह है कि मंगलवार को नामांकन की अंतिम तारीख थी। अब भाजपा ने इस सीट पर शिंदे की शिवसेना के सुरेश कृष्णा पाटिल (जिन्हें बुलेट पाटिल कहा जाता है) को समर्थन देने का ऐलान किया है।
इसके साथ ही राजनीतिक पर्यवेक्षकों की वह बात सच साबित होती नज़र आ रही है जिसमें कहा गया था कि चुनाव के ठीक पहले महायुती में फूट पड़ सकती है। यह भी माना जाता था कि इसका कारण अजित पवार होंगे जिनकी पार्टी को महायुती में शामिल करने और उसकी मदद से सरकार बनाने का विरोध खुद भाजपा में होता रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी इसके खिलाफ था। अपने एक प्रकाशन (मुखपत्र) में संघ ने अजित पवार को सरकार में शामिल करने को गलत बताते हुए लिखा था कि उन पर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप हैं। ऐसे व्यक्ति व उनकी पार्टी की सहायता से सरकार बनाना उचित नहीं है। जिस भ्रष्टाचार का उल्लेख संघ ने किया था, वह दरअसल सिंचाई से सम्बन्धित था। जब पृथ्वीराज चौहान प्रदेश के सीएम थे, तब अजित पवार पर 70 हजार करोड़ रुपये के गबन का आरोप लगा था। बाद में उन्हें इस मामले में क्लीन चिट भी मिल गई। फिर सरकारें तोड़ने-बनाने का जो खेल हुआ, उसमें अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार को धोखा देकर तथा एकनाथ शिंदे ने उद्धव से दगाबाजी कर सरकार बना ली थी लेकिन यह मामला हमेशा चर्चा में आता रहा। अब अजित पवार उसका उल्लेख कर मामले में शरद पवार को भी लपेटने की कोशिश तो कर रहे हैं परन्तु अब इसका उन्हें कोई फायदा मिलेगा, लगता नहीं है।
वैसे इस बात की भी चर्चा है कि आखिर इतने विरोध के बावजूद क्यों अजित पवार विवादग्रस्त नवाब को टिकट देने पर आमादा हैं, तो इसका कारण यह बताया जाता है कि लोकसभा चुनाव में उनके दल को सबसे कम सीटें मिली थीं- केवल चार। अब वे अधिक झुकना नहीं चाहते और न ही अपने को लाचार बतलाना चाहते हैं। इतना ही नहीं, इस बार के चुनावों के बाद बनने वाली विधानसभा में वे केवल किंगमेकर बनकर नहीं रहना चाहते बल्कि खुद ही सीएम का पद पाने की कोशिश करेंगे। हालांकि इस समय वहां महा विकास आघाड़ी (कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना, शरद पवार की एनसीपी, समाजवादी पार्टी तथा अनेक क्षेत्रीय दल) को जो बढ़त दिख रही है तथा महायुती कमजोर जमीन पर खड़ी है, उसके चलते उसे बहुमत के आसार नहीं दिखते। इन परिस्थितियों में भाजपा की एकमात्र उम्मीद बाद में सरकार बनाने के दौरान उसी तोड़-फोड़ की प्रक्रिया से है जिसमें वह पारंगत है और जिसे वह महाराष्ट्र समेत अनेक राज्यों में आजमा चुकी है। अजित पवार यह भी समझते हैं कि यदि त्रिशंकू विधानसभा बनती है तो उसी दल की पूछ-परख होगी जिसके पास विधायकों की अच्छी संख्या होगी। भाजपा की नाराज़गी की उन्हें रत्ती भर भी परवाह नहीं होनी चाहिये क्योंकि वे जानते हैं कि समर्थन पाने के लिये भाजपा कोई भी समझौता कर लेगी। आवश्यक हुआ तो भाजपा उनका फिर से समर्थन लेगी तथा उन्हें मुंहमांगा पद भी देगी।


