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ललित सुरजन की कलम से- छुईमुई बन गया बरगद का वृक्ष

हमारे आज के नेता बातें बड़ी-बड़ी करते हैं, लंबे-चौड़े वादे करते हैं, वक्त के साथ सब भूल जाते हैं

ललित सुरजन की कलम से- छुईमुई बन गया बरगद का वृक्ष
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हमारे आज के नेता बातें बड़ी-बड़ी करते हैं, लंबे-चौड़े वादे करते हैं, वक्त के साथ सब भूल जाते हैं। वायदे को जुमला कहकर अपनी जिम्मेदारी से बच निकलते हैं। ऐसे में युवा पीढ़ी की परवरिश सही ढंग से नहीं होगी यह स्वयंसिद्ध है। करेले पर नीम चढ़ा इस तरह कि बच्चों में बचपन से ही भेदभाव पैदा किया जा रहा है। सबके लिए एक समान शिक्षा व्यवस्था होने के बजाय हैसियत के मुताबिक शिक्षा का प्रबंध है। एक अपार्टमेंट परिसर में रहने वाले बच्चे भी एक-दूसरे के घर जाकर पानी भी नहीं पीते।

कालोनियां, धर्म और जाति के आधार पर बनने लगी हैं। कहीं सिर्फ ब्राह्मणों की कालोनी है, तो कहीं सिर्फ वैश्यों की। सबने अपने-अपने द्वीप बना लिए हैं और उस संकीर्णता में आत्ममुग्ध होकर जी रहे हैं। रहन-सहन, खानपान, सामाजिक मेलजोल इन सब में पोंगापंथी, जड़वादी सोच प्रभुवर्ग ने अपना ली है जिसकी कीमत नौजवान पीढ़ी को चुकाना पड़ रही है।

देश के नौजवानों में किसी कदर गुस्सा है। उन्हें पढ़ाई-लिखाई के सही अवसर नहीं मिले। उन्हें रोजगार के अवसर भी नहीं मिल रहे हैं। उनका आत्मविश्वास दरक रहा है, उनका स्वाभिमान स्खलित हो रहा है। उनकी इस बुझी हुई मानसिकता में उनकी शक्ति का दुरुपयोग वे चालाक शक्तियां कर रही हैं जो देश की राजनीतिक दशा-दिशा का निर्धारण करती हैं। उन्हें यह मुफीद आता है कि आम जनता वर्तमान के प्रश्नों से हटकर अतीत की गलियों में भटकती रहे और गैरजरूरी मसलों पर अपनी शक्ति जाया करती रहे। इस काम के लिए उन्हें फुट सोल्जर्स अर्थात प्यादों की जरूरत होती है। इसके लिए बेरोजगार नौजवानों से बेहतर पात्र और कोई नहीं होता। उनसे आप नारे लगवा लीजिए, गाली-गलौज करवा लीजिए, पत्थर फेंकवा लीजिए, मारकाट करवा लीजिए। वे खाली बैठे हैं, इनके पास जीवन का कोई मकसद नहीं है। उनकी दमित आकांक्षाओं का क्षरण इन विध्वंसकारी गतिविधियों में होता है तो वही सही।

(देशबन्धु में 7 दिसंबर 2017 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2017/12/blog-post_10.html


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