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विकास का केरल मॉडल, द रियल केरल स्टोरी

दो दिन पहले केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के बड़े ऐलान के साथ पूरे पन्ने के विज्ञापन अखबारों में प्रकाशित हुए

विकास का केरल मॉडल, द रियल केरल स्टोरी
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दो दिन पहले केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के बड़े ऐलान के साथ पूरे पन्ने के विज्ञापन अखबारों में प्रकाशित हुए। ऐलान यह था कि केरल भारत का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जो गरीबी से पूरी तरह मुक्त हो गया है। 1 नवंबर शनिवार को राज्य के स्थापना दिवस के मौके पर बाकायदा विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर सरकार ने इस खास उपलब्धि का जिक्र जनता के बीच किया। केरल में देश की एकमात्र वामपंथी सरकार है और इस सरकार ने अपने यहां घोर गरीबी को पूरी तरह खत्म करने का दावा किया है। केरल ने 64 हजार लोगों को बेहद गरीबी से बाहर निकालकर ये उपलब्धि हासिल की है। हालांकि, विपक्ष ने इस घोषणा को धोखा बताया है और विधानसभा के विशेष सत्र बुलाने की भी आलोचना की।

विपक्ष के नेता वी. डी. सतीशन ने कहा कि यह घोषणा एक 'कपटपूर्ण घोषणा' है और सभी अखबारों में इसके विज्ञापन दिए गए हैं। हालांकि सरकार का कहना है कि यह निर्णय कैबिनेट की बैठक में लिया गया था और यह कोई गुप्त मामला नहीं था। विशेष सत्र इसलिए बुलाया गया, क्योंकि विधानसभा द्वारा जनता को इस उपलब्धि के बारे में सूचित करना उचित समझा गया। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि, 'सरकार केवल उन कार्यों की बात करती है जो पूरे हो चुके हैं। जनादेश का आधार किए गए वादों को पूरा करना है, जो हासिल हुआ है उसे बनाए रखने के लिए कदम उठाए जाते रहेंगे। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि जो लोग अत्यधिक गरीबी से उबर चुके हैं, वे फिर से गरीबी में न फंसें। केरल देश के सामने एक नया मॉडल पेश कर रहा है।' उन्होंने आगे कहा कि यह उपलब्धि देश के अन्य राज्यों के लिए एक आदर्श होगी। मुख्यमंत्री ने अपने आधे घंटे के संबोधन में कहा, 'यह अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है।' वहीं अध्यक्ष ए. एन. शमसीर ने इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर सभी सदस्यों को बधाई दी और कहा कि केरल समाज के सभी वर्गों को संसाधन वितरित करके सामाजिक प्रगति-उन्मुख विकास की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

विधानसभा अध्यक्ष के बयान में समाज के सभी वर्गों के बीच संसाधनों का वितरण और समाज की प्रगति का जो जिक्र किया गया है, वह आज के दौर में खास गौर फरमाने लायक बात है। क्योंकि देश को अब इस बात पर खुश होने कहा जाता है कि गिनती के उद्योगपति दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में आ गए हैं। आर्थिक हैसियत में अंतर की खाई देश में बढ़ती जा रही है, लेकिन इस पर राज्य सरकारों या केंद्र सरकार ने कोई गंभीर चिंतन किया हो, उसके कारण समझने की कोशिश की हो, ऐसा याद नहीं पड़ता। गरीबों के और गरीब होने की सबसे बड़ी वजह यही है कि संसाधनों पर कुछ लोगों का कब्जा हो गया है, जिससे उन्हें अपनी दौलत को बढ़ाने के पर्याप्त मौके मिल रहे हैं।

सरकार निजी क्षेत्रों की भागीदारी वाले विकास मॉडल के नाम पर कुछ उद्योगपतियों को वो सारे संसाधन सौंप चुकी है, जिनका सही इस्तेमाल करना असल में सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार ने अपनी इस जिम्मेदारी को पूरा नहीं किया, तो गरीबों को इसका नुकसान उठाना पड़ा। उनके पास अच्छी शिक्षा, सरकारी नौकरी, अच्छे स्वास्थ्य, मनोरंजन, तरक्की के जो मौके होने चाहिए थे, वो बड़ी चालाकी से छीन लिए गए।

फिर इस गरीबी को कई तरह से परिभाषित कर लोगों को उलझाया गया, ताकि उनका ध्यान इस बात पर जाए ही नहीं कि गरीब परिवार में पैदा होना, गरीबी में जीवन गुजारना और गरीब बने रहकर ही मर जाना, उनकी नीयती नहीं थी, बल्कि धन्ना सेठों की तिजोरी भरने के लिए ऐसे हालात बना दिए गए। गरीबों का गुस्सा फूटे नहीं इसके लिए कभी गैर सरकारी संगठनों को प्रेशर कुकर की सीटी की तरह इस्तेमाल किया गया, कभी पांच किलो मुफ्त अनाज या दो हजार रुपए की सम्मान राशि जैसे जुमलों में उस गुस्से को कृतज्ञता में तब्दील कर दिया गया। गांव-देहातों में बहुत से लोग इस बात की खैर मनाते हैं कि मोदी उन्हें भूखा नहीं मरने दे रहे, बल्कि पांच किलो अनाज दे रहे हैं। इस एहसान का एहसास होने की जगह कायदे से सवाल ये होना चाहिए था कि 80 करोड़ लोगों के लिए ऐसा रोजगार क्यों नहीं है कि वे महज पांच किलो अनाज के मोहताज न रहें। खुद इतनी आजीविका कमा सकें कि पौष्टिक भोजन की व्यवस्था खुद कर सकें। सरकार से ऐसे ही सवाल अगर शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, यातायात, सुरक्षित जीवन आदि को लेकर हों, तो उन्हें काम करने पर मजबूर होना ही पड़ेगा।

बहरहाल, मौजूदा परिदृश्य में संभावनाएं कम हैं कि सरकार ऐसे सवालों को उठने देगी या उनके जवाब देगी। ऐसे में केरल से आई इस खबर का स्वागत होना चाहिए। बेशक विपक्ष आपत्ति उठा रहा है, जो उसका लोकतांत्रिक हक है। हालांकि विपक्ष को भी अपनी आपत्तियों को बिंदुवार सामने रखकर बताना चाहिए कि वह किस आधार पर केरल सरकार के दावे को गलत बता रही है।

गौरतलब है कि 2021 के चुनाव के बाद पहली कैबिनेट बैठक में अत्यधिक गरीबी उन्मूलन का निर्णय लिया गया था। इसके लिए चार साल तक योजनाबद्ध तरीके से काम हुआ। जमीनी सर्वेक्षण, मोबाइल ऐप डेटा संग्रह आदि के साथ कठोर, बहु-चरणीय प्रक्रिया के बाद, 1,032 स्थानीय निकायों के 64,006 परिवारों के 1,03,099 व्यक्तियों की पहचान अत्यंत गरीब के रूप में की गई। भोजन, स्वास्थ्य, आवास और आय में कठिनाई के आधार पर गरीबी का निर्धारण किया गया। स्वास्थ्य, आवास और आजीविका के लिए योजनाबद्ध तरीके से राशि आबंटित की गई। 21,263 लोगों को आवश्यक दस्तावेज और सेवाएं (राशन कार्ड, आधार, बीमा, बैंक खाते, आदि) प्रदान की गईं। 20,648 परिवारों को खाद्य किट और भोजन की निर्बाध पहुंच सुनिश्चित की गई। 4,394 परिवारों को आजीविका सहायता प्रदान की गई। 35,041 परिवारों को रोजगार गारंटी योजना में शामिल किया गया और अत्यधिक गरीबी उन्मूलन पर 1,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए गए। इस तरह एक बड़ा लक्ष्य हासिल किया गया।

केरल की यही सच्ची कहानी है और यही लोकतंत्र में विकास का सही मॉडल भी है। वैसे याद रखना होगा कि केरल ने 1991 में पूर्ण साक्षरता हासिल कर ली थी, तब देश में 52.2 प्रतिशत लोग साक्षर थे। इस साल केरल ने पूर्ण डिजिटल साक्षरता भी हासिल कर ली है, इस राज्य में हर घर तक बिजली पहुंच चुकी है। अब गरीबी मिटाने में भी उसने नया रिकॉर्ड बना दिया।


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