झारखंड : भाजपा की विभाजनकारी रणनीति की परीक्षा
वनाच्छादित, खनिज संपदा से भरपूर और आदिवासी बहुल झारखंड विधानसभा चुनाव का पहला चरण बुधवार को सम्पन्न होने जा रहा है जिसमें 43 सीटों पर मतदान होगा

वनाच्छादित, खनिज संपदा से भरपूर और आदिवासी बहुल झारखंड विधानसभा चुनाव का पहला चरण बुधवार को सम्पन्न होने जा रहा है जिसमें 43 सीटों पर मतदान होगा। इस चरण में कोल्हान क्षेत्र में आने वाली 14 सीटें बहुत महत्वपूर्ण हैं जो निर्णायक साबित होती हैं। उसके अंतर्गत पूर्वी एवं पश्चिमी सिंहभूम तथा सरायकेला खरसांवा के जिलों का शुमार होता है। इस चरण में जिन प. सिंहभूम, लातेहार, लोहारदगा, गुमला एवं गढ़वा जिलों में वोट पड़ेंगे वे सुदूरवर्ती हैं। 81 सीटों वाली झारखंड विधानसभा में शेष 38 सीटों पर 20 नवम्बर को मतदान होगा। कोल्हान की सभी सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिये आरक्षित हैं। वैसे राज्य भर में कुल 20 आरक्षित विधानसभा क्षेत्र हैं। 'माटी पुत्रों की पार्टी' वाली छवि के कारण झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) का इस पर बोलबाला है।
दूसरी तरफ़ विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को इस पूरे वन प्रक्षेत्र में हमेशा हार का सामना करना पड़ा है। हाल के वर्षों में भाजपा के कारोबारी जगत के साथ बने रिश्तों एवं राजनीति व पूंजीपतियों के नये उभरे समीकरण के चलते इस क्षेत्र पर वर्चस्व स्थापित करना भाजपा के लिये निहायत ज़रूरी है। खराब हालत के बावजूद इस क्षेत्र के साथ ही भाजपा पूरे झारखंड का चुनाव जीतने के लिये वैसी ही आमादा है जैसी वह छत्तीसगढ़ और ओडिशा में थी जहां उसने जीत दर्ज करने के लिये सारे पैंतरे लगाये और सफलता पायी थी। जेएमएम और कांग्रेस का यहां गठबन्धन है, जिसे हर तरह की सावधानी बरतनी होगी। हरियाणा उसके सामने हालिया उदाहरण है जहां सड़कों पर तो कांग्रेस की लहर दिखाई दी लेकिन नतीजे पलट गये।
वर्ष 2000 में बिहार से अलग होकर बने इस प्रदेश का प्रारम्भिक इतिहास राजनैतिक अस्थिरता तथा व्यापक भ्रष्टाचार का रहा लेकिन पिछले 5 वर्षों के दौरान हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री के रूप में न केवल स्थिरता लाई बल्कि जमीनी स्तर पर भी जमकर काम किया। आदिवासियों के उत्थान हेतु वे बतौर सीएम बेहद सक्रिय रहे। राज्य के सर्वांगीण विकास के अलावा वे जल, जंगल व जमीन पर स्थानीयों के हकों की लड़ाई लड़ते रहे। इसलिये वे भाजपा की आंखों में खटकते रहे। उन्होंने इस राज्य में भाजपा का 'ऑपरेशन लोटस' नाकाम कर दिया। कथित जमीन घोटाले में जब उन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से छापे डलवाकर कई माह तक जेलों की सलाखों के पीछे डाल दिया गया था, तब उनकी जगह पर बिठाये गये चंपई सोरेन के जरिये भाजपा ने सरकार गिराने की कोशिश की। जेल से बाहर आने पर जब उन्होंने अपना पद वापस सम्हाला तो चंपई सोरेन ने अपने कथित अपमान से नाराज़ होकर दल छोड़ दिया। फिर वे भाजपा में चले गये जहां हेमंत की भाभी सीता सोरेन पहले से जा चुकी थीं। इनके जरिये सरकार गिराने की भाजपायी कोशिशें भी नाकाम रहीं।
दूसरी तरफ़ आदिवासियों की भाजपा से नाराज़गी की कई वजहें हैं। पहली यह कि वे जानते हैं कि भाजपा की नज़रें यहां की खनिज-सम्पन्न जमीनों और जंगलों में हैं जिन्हें वह अपने कारोबारी मित्रों को देना चाहती है। फिर, जब यहां भाजपा शासन था और रघुबर दास मुख्यमंत्री थे, उस दौरान 2016 में छोटा नागपुर किरायेदारी अधिनियम और संथाल परगना अधिनियम में बदलाव की कोशिशें की गयीं जिनका सीधा नुकसान आदिवासियों को होने वाला था। इसलिये इस चुनाव में आदिवासियों के वोट लेने के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह समेत सारी भाजपा उन्हें यह कहकर डरा रही है कि कांग्रेस-जेएमएम की सरकार आई तो उनकी जमीनें 'घुसपैठिये' हड़प लेंगे। यह डर झारखंड के साथ पश्चिम बंगाल के आदिवासियों को भी दिखाया जा रहा है। भाजपा के अनुसार ये बांग्लादेशी घुसपैठिये होंगे। उसका दावा है कि भाजपा की सरकार बनी तो आदिवासियों की जमीनों को हड़पने से रोकने के लिये कानून लाया जायेगा; जबकि आदिवासी जानते हैं कि उपरोक्त उल्लिखित दोनों अधिनियम बाहरी लोगों द्वारा जमीनों को हड़पने से रोकने में सक्षम है। इसलिये इन इलाकों में भाजपा की सभाएं फीकी गयीं।
घुसपैठ का डर दिखाकर भाजपा साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का पुराना खेला कर रही है ताकि हिन्दू-मुस्लिम कार्ड खेला जा सके, तो वहीं वह आदिवासियों को हिन्दू बतलाकर उसे वैमनस्यता के खेल में एक पार्टी बना रही है। अमित शाह ने सरायकेला विधानसभा के आदित्यपुर की सभा में कहा कि 'जेएमएम-कांग्रेस की सरकार आदिवासियों का आरक्षण छीनकर मुसलमानों को देने जा रही है।' उनके अनुसार भाजपा ऐसा नहीं होने देगी। चंपई सोरेन के प्रति सम्मान दिखाकर आदिवासियों के वोट पाने का भी प्रयास भाजपा कर रही है तभी तो शाह कह रहे हैं कि 'झारखंड मुक्ति मोर्चा ने चंपई सोरेन का अपमान किया है। सरकार बनने पर भाजपा उनका सम्मान करेगी।'
यहां धु्रवीकरण की कोशिशों के साथ अब केन्द्रीय जांच एजेंसियों की छापेमारी भी हो रही है। जेएमएम नेता गणेश चौधरी पर आयकर का छापा पड़ा जो बकौल कल्पना सोरेन 'चंपई सोरेन के इशारे पर हो रहा है।' रांची, जमशेदपुर, गिरिडीह आदि में ये छापे मारे गये जिसका मकसद जेएमएम से जुड़े लोगों को डराना था। सोरेन सरकार में मंत्री मिथिलेश ठाकुर, उनके भाई विनय और सचिव हरेन्द्र सिंह के ठिकानों पर अक्टूबर के मध्य में ही ईडी द्वारा छापेमारी हुई थी। इसके बावजूद हेमंत सोरेन के पक्ष में सहानुभूति लहर है जिन्हें जेल में डालना यहां के लोगों के लिये 'झारखंडी अस्मिता पर हमला' है। स्पष्टत: भाजपा एक तरफ़ आदिवासियों को मुस्लिमों का डर दिखाकर वोट लेना चाहती है, तो वहीं जेएमएम नेताओं को छापों से डराकर चुनाव जीतने के लिये प्रयासरत है। देखना होगा कि 23 नवम्बर को निकलने वाले चुनावी नतीज़े क्या कहते हैं।


