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क्या ये हेटस्पीच नहीं है

रविवार को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ एक रैली आयोजित की गई

क्या ये हेटस्पीच नहीं है
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रविवार को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ एक रैली आयोजित की गई। इमारत-ए-शरिया फुलवारी शरीफ की ओर से आयोजित इस रैली में आरजेडी, कांग्रेस और जेडीयू समेत सभी दलों के बड़े नेताओं को बुलाया गया था। इस रैली में इंडिया गठबंधन के दल शरीक हुए। जिसमें बिहार में नेता प्रतिपक्ष राजद नेता तेजस्वी यादव के भाषण की खूब चर्चा हो रही है। तेजस्वी यादव ने कहा कि पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण हिंदुस्तान की सरजमीं का हर एक-एक इंच, हर पन्ना चीख-चीखकर इस बात की गवाही देता है कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में चाहे हिंदू हो या मुसलमान, सिख हो या ईसाई सब लोगों ने इस देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने का काम किया है। ये देश किसी के बाप का देश नहीं है। ये हम सब का देश है।

वक्फ संशोधन कानून लाकर किस तरह मस्जिदों, मदरसों, कब्रगाहों की जमीन को छीनने की योजना बनाई जा रही है, इसका खुलासा तेजस्वी ने किया और इसमें जमीन के बाद वोट छीनने की चालाकी के बारे में भी जनता को आगाह किया। दरअसल चुनाव आयोग की तरफ से मतदाता सूची पुनरीक्षण का जो फैसला लिया गया है, उसमें यह आशंका बढ़ रही है कि बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम काटे जाएंगे। अगर चुनाव आयोग यह कदम पहले उठाता, तब बात दूसरी होती, लेकिन चुनाव से चंद महीने पहले ही उसे मतदाताओं की जांच की जरूरत क्यों पड़ी, पिछले साल चुनाव से पहले इस बारे में ध्यान क्यों नहीं दिया गया, ये सारे सवाल अब उठ रहे हैं। अवैध मतदाता, बांग्लादेशी घुसपैठिए इन शब्दों की आड़ में कहीं गरीबों, पिछड़ों के वोट का अधिकार तो नहीं छीना जा रहा है, यह सवाल भी उठ रहा है, क्योंकि अपने साथ-साथ अपने माता-पिता का जन्म प्रमाणपत्र या अन्य पहचान वाले दस्तावेज जुटाना साधारण, गरीब आदमी के लिए आसान नहीं होगा। फिर चुनाव आयोग क्यों इस मुश्किल को खड़ा कर रहा है, यह विपक्ष की बड़ी आपत्ति है। जब गांधी मैदान में वक्फ संशोधन कानून के विरोध के लिए लोग जुटे तो तेजस्वी यादव ने इस बारे में भी कहा कि आपकी जमीन को छीना जा रहा है। अब भाजपा सत्ता से जाने वाली है तो हम सब के गरीब, पिछड़ा, अति पिछड़ा और दलित सब लोगों के वोट के अधिकार को छीना जा रहा है। मतदाता सूची में संशोधन के नाम पर आपके वोट के अधिकार को छीनने का प्रयास किया जा रहा है। ये बहुत बड़ी साजिश है। इसलिए आप लोग सचेत रहियेगा और ऐसा होने मत दीजिएगा।

भाजपा को उम्मीद नहीं होगी कि इस मंच का इस्तेमाल अब उसके बाकी फैसलों के विरोध के लिए भी हो सकता है। हालांकि अब तो भाजपा का जो नुकसान होना है, वो हो चुका है। अब इसकी भरपाई के लिए भाजपा ने कोशिशें शुरु कर दी हैं और इस चक्कर में फिर एक गलती कर दी है। दरअसल रविवार को तेजस्वी यादव ने बड़ा ऐलान दावा किया था कि अगर उनकी सरकार बनी तो वे इस बिल को प्रदेश में लागू नहीं होने देंगे और कूड़ेदान में फेंक देंगे। इस बात को भाजपा संविधान और संसद का अपमान बता रही है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि 'अभी हाल ही में हमने भारत के लोकतांत्रिक इतिहास के सबसे दुर्दांत काले अध्याय आपातकाल के 50 वर्ष पूर्ण किए, लेकिन बड़े दुख की बात है कि पटना के उसी गांधी मैदान में जहां आपातकाल के दौरान संविधान की रक्षा और संविधान के सम्मान के लिए जान की परवाह किए बिना लाखों लोग एकत्र हुए थे, वहां एक ऐसी रैली हुई, जिसमें इंडिया गठबंधन के सहयोगी बिहार के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि संसद के कानून को (वक्फ बोर्ड कानून) कूड़ेदान में फेंक देंगे, जबकि यह कानून (वक्फ बोर्ड कानून) दोनों सदनों से पारित है और कोर्ट में विचाराधीन है। इसका अर्थ ये हुआ कि न संसद का सम्मान न न्यायपालिका का सम्मान।' श्री त्रिवेदी यहीं नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा कि वक्फ समाजवाद के विचार के खिलाफ है। उनका विचार संविधान को नीचा दिखाना, उसे तोड़ना है। वे गरीब मुसलमानों के साथ नहीं बल्कि उन चंद लोगों के साथ खड़े हैं जो सारी संपत्तियों पर कब्जा करना चाहते हैं। यह समाजवाद नहीं बल्कि नमाजवाद है।'

चूंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अक्सर ऐसे गंभीर विषयों पर चुप लगा जाते हैं, या फिर देर से बोलते हैं और अगर बोलते हैं तो उनमें ठोस तर्कों की जगह खोखली बातें ज्यादा होती हैं, इसलिए फिलहाल सुधांशु त्रिवेदी के वक्तव्य को ही पार्टी का आधिकारिक स्टैंड कहा जाएगा। वक्फ संशोधन कानून का विरोध भाजपा की निगाह में अगर संविधान, संसद, न्यायपालिका सबका अपमान है, तो फिर तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने का जो फैसला नरेन्द्र मोदी ने लिया था, क्या उसे भी भाजपा संसद का अपमान ही कहेगी, क्योंकि कृषि विधेयक भी संसद के दोनों सदनों से पारित होकर ही कानून बने थे। लेकिन किसानों के एक साल से ज्यादा वक्त तक चले आंदोलन के बाद खुद प्रधानमंत्री मोदी ने इन्हें वापस लेने का ऐलान किया था और कहा था कि मेरी ही तपस्या में कोई कमी रही होगी। जब कृषि कानून निरस्त हो सकते हैं, तो वक्फ संशोधन कानून भी वापस लिया जा सकता है। दूसरी बात जिस तरह समाजवाद और नमाजवाद की तुक सुधांशु त्रिवेदी ने मिलाई है, क्या उसे नफरती भाषण की तरह नहीं समझा जाना चाहिए, यह बड़ा सवाल है।

लोकतंत्र में न समाजवाद पर किसी को आपत्ति करने का हक है, न किसी के नमाज पढ़ने, पूजा करने, या अपनी मर्जी के धार्मिक स्थल जाने या न जाने पर कोई सवाल उठा सकता है। लेकिन भाजपा ने जिस तरह समाजवाद नहीं बल्कि नमाजवाद है, कहा है, उसमें नमाज पढ़ने को गलत, गैरकानूनी, अनैतिक बताने की परोक्ष कोशिश भाजपा की तरफ से दिखाई दे रही है। नमाजवाद वैसे तो कोई शब्द है नहीं, न ही हो सकता है। जब हम प्रार्थनावाद, पूजावाद, हवनवाद, जपवाद नहीं कहते हैं, तो फिर नमाजवाद कैसे कह सकते हैं। लेकिन भाजपा प्रवक्ता ने इस अनर्गल शब्द के जरिए एक प्रार्थना पद्धति को अपमानित किया है, जो सरासर गलत है और इस पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को अपना पक्ष रखना चाहिए कि क्या वह भी इससे सहमत हैं।

इंडिया गठबंधन की बढ़ती ताकत से हड़बड़ाई भाजपा अपना पक्ष मजबूत करने की जगह ऐसे बयानों से और कमजोर होगी, यह बात पार्टी नेतृत्व को समझना चाहिए।


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