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मासूम मौतें, बेफिक्र सरकार

भाजपा शासित मध्यप्रदेश और राजस्थान में पिछले एक महीने में कम से कम 15 बच्चों की मौत केवल इसलिए हुई है क्योंकि उन्हें दवा के नाम पर जहर पीने को मिला

मासूम मौतें, बेफिक्र सरकार
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भाजपा शासित मध्यप्रदेश और राजस्थान में पिछले एक महीने में कम से कम 15 बच्चों की मौत केवल इसलिए हुई है क्योंकि उन्हें दवा के नाम पर जहर पीने को मिला। यूं तो निर्दोषों की अकाल मौत पर दुख होता है, नाराजगी होती है, लेकिन मासूम बच्चे जब सरकारी लापरवाही का शिकार होकर दम तोड़ें तो दुख और नाराजगी के साथ बेबसी भी जाहिर होती है कि आखिर हम किस तरह के शासन में रह रहें हैं, जहां कुछ लोगों के लालच और फायदे में मासूमों की जान चली जाए और इस पर केवल अफसोस की रस्म अदायगी हो। दोनों जगह भाजपा की सरकार है तो अब इस्तीफे की उम्मीद करना बेकार है। याद करें, उत्तरप्रदेश में इसी तरह ऑक्सीजन की कमी से कई बच्चों की मौत हो गई थी और बजाय दोषियों को सजा देने के, इसमें भी हिंदू-मुसलमान का एंगल तलाश लिया गया। अब मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी कांग्रेस भाजपा सरकार के मंत्रियों से इस्तीफे तो मांग रही है, लेकिन इस मांग की कहीं सुनवाई नहीं होगी, यह तय है। कायदे से तो देश का प्रधानमंत्री होने के नाते नरेन्द्र मोदी को खुद इस पर संज्ञान लेना चाहिए। उन्हें पं.नेहरू की तरह बच्चों का पसंदीदा बनने का बड़ा ख्वाब है, इसीलिए परीक्षा पर चर्चा करते हैं, अपनी रैलियों में बच्चों से मिलते हैं, लेकिन नेहरूजी या शास्त्रीजी की तरह नैतिक हिम्मत दिखाकर शासन नहीं कर सकते। वैसे भी श्री मोदी का सारा ध्यान इस समय बिहार चुनाव पर लगा है, इसके बाद तमिलनाडु, केरल, प.बंगाल, असम पर फोकस चला जाएगा। मध्यप्रदेश और राजस्थान तो भाजपा जीत ही चुकी है, इसलिए अब यहां कुछ भी होता रहे, कम से कम अगले चुनावों तक उसे फर्क नहीं पड़ेगा।

मध्यप्रदेश और राजस्थान में कफ सिरप पीने के बाद बच्चों की मौत हुई है। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा ज़िले में 7 सितंबर से 2 अक्टूबर के बीच कुल 11 बच्चों की किडनी ख़राब होने से मौत हो चुकी है, और कम से कम पांच बच्चे अस्पताल में भर्ती हैं, जिनमें से कुछ की हालत गंभीर है। बताया जा रहा है कि ज़्यादातर बच्चों की मौत किडनी को चोट पहुंचने से हुई है। बच्चों की रीनल बायोप्सी जांच के बाद यह पता चला था कि किसी जहरीले पदार्थ से किडनी को चोट पहुंची और उसने काम करना बंद कर दिया जिसके बाद बच्चों की मौत हुई। इन बच्चों ने कफ सिरप पी थी और उसमें ही जहरीला पदार्थ होने की बात सामने आई है।

कोल्ड्रिफ नाम के इस कफ सिरप में अत्यधिक ज़हरीली रसायन डायथाइलीन ग्लाइकॉल की मौजूदगी पाई गई। इसके बाद शनिवार को मध्यप्रदेश सरकार ने इस सिरप की बिक्री, वितरण और निपटान पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। यह फैसला लैब टेस्ट की रिपोर्ट के आधार पर लिया गया, जिसमें सिरप को 'अधिकारिक रूप से खराब और मिलावटी' घोषित किया गया। कोल्ड्रिफ को तमिलनाडु के एक संयंत्र में बनाया जा रहा था। जब तमिलनाडु सरकार में इसकी शिकायत की गई तो फौरन ही सिरप की जांच कराई थी, जिसमें पाया गया कंपनी गलत ढंग से सिरप को तैयार कर रही थी। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने 1 अक्टूबर 2025 को ही इस सिरप की बिक्री पर रोक लगा दी, क्योंकि इसमें तमाम जानलेवा बैक्टीरिया छोटे बच्चों की मौत की वजह बने। लेकिन बताया जा रहा है कि तमिलनाडु सरकार की जांच रिपोर्ट जब सार्वजनिक हुई तो केंद्र सरकार की एजेंसियों ने तमिलनाडु सरकार की रिपोर्ट को झुठलाने की कोशिश की। बेशक यह कफ सिरप तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में स्थित श्रीसन फार्मास्युटिकल्स में बन रहा था। लेकिन कंपनी पर कार्रवाई का अधिकार केंद्र सरकार और केंद्रीय एजेंसियों के पास है। लिहाजा कार्रवाई की पहल वहीं से होनी चाहिए थी। तमिलनाडु के ड्रग कंट्रोलर ने कहा कि केंद्र सरकार को इस जांच रिपोर्ट से अवगत कराया गया लेकिन वहां से कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई।

गनीमत यह है कि मध्यप्रदेश और राजस्थान सरकार ने अब ऐसे विषाक्त कफ सिरप पर रोक लगाई है और बच्चों की मौत पर अफसोस भी जाहिर किया है। लेकिन इससे जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती। तमिलनाडु सरकार ने जब दवा की जांच एक दिन में पूरी कर रिपोर्ट जारी कर दी, तो मध्यप्रदेश और राजस्थान में यही काम पहले क्यों न हो सका। क्यों बिना जांच के दवा सरकारी अस्पतालों तक पहुंची। बच्चों के मामले में तो खिलौनों, कपड़ों, जूतों से लेकर खाने-पीने के सामान तक अतिरिक्त सावधानी बरती जाती है, क्योंकि उन्हें सही या गलत, ठीक या खराब गुणवत्ता की परख नहीं होती है। मासूम बच्चे ये भी नहीं बता पाते कि उन्हें किस चीज के सेवन से तबियत ठीक नहीं लग रही है। इस बारे में माता-पिता अनुमान लगाते हैं और डॉक्टरों के भरोसे ही रहते हैं। डॉक्टरों ने जो दवा लिखकर दे दी, उस पर आंख मूंदकर यकीन करते हुए अपने बच्चों को पिला देते हैं। लेकिन मध्यप्रदेश और राजस्थान में इस यकीन को ऐसा चकनाचूर किया गया कि मां-बाप को जीवन भर का दुख दे गया।

क्या फर्क पड़ता है कि अब कितनी दवाओं को प्रतिबंधित किया गया है, कितने डॉक्टरों का निलंबन हुआ है। मासूमों की मौत पर समाज में जो बड़े पैमाने पर उद्वेलन दिखना चाहिए था, वह नदारद है। सरकार भी इस बात को अच्छे से जानती है कि लोगों की प्राथमिकताओं को प्रभावित करने में उसे सफलता मिल चुकी है। मीडिया इसमें सरकार का पूरा साथ दे रहा है। अन्यथा अब तक इसे सांगठनिक हत्या मानकर सरकार से जवाबदेही की मांग सुर्खियों में रहती।

नोटबंदी में मौतें, कोरोना काल और लॉकडाउन में असंख्य मौतों से जब सरकार का दिल नहीं पसीजा तो अब क्या कोई फर्क पड़ेगा, यह देखना होगा।


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