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मुस्लिम के बिना भारत की राजनीति नहीं चल सकती

बीजेपी मुसलमानों को जीने नहीं देगी। और विपक्ष उसे मरने नहीं देगा! कल्पना कीजिए बिना मुसलमान के भारत में राजनीति कैसी होगी

मुस्लिम के बिना भारत की राजनीति नहीं चल सकती
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- शकील अख्तर

सारी शामत दलित, पिछड़ा, आदिवासी, महिलाओं की आ जाएगी। मुसलमान इनके और बीजेपी के बीच में एक दीवार है। अगर दीवार हट गई तो मनुवाद के हमले दलित पिछड़ा झेल नहीं पाएगा। कर्नाटक की केबिनेट ने एससी, एसटी, अन्य पिछड़े, सभी अल्पसंख्यक के लिए एक करोड़ तक की सरकारी खरीद में केवल पांच प्रतिशत के आरक्षण का प्रस्ताव पारित किया है। मगर बीजेपी ने हंगामा मचा दिया। उसे मनचाही मुराद मिल गई।

बीजेपी मुसलमानों को जीने नहीं देगी। और विपक्ष उसे मरने नहीं देगा! कल्पना कीजिए बिना मुसलमान के भारत में राजनीति कैसी होगी?
सारी शामत दलित, पिछड़ा, आदिवासी, महिलाओं की आ जाएगी। मुसलमान इनके और बीजेपी के बीच में एक दीवार है। अगर दीवार हट गई तो मनुवाद के हमले दलित पिछड़ा झेल नहीं पाएगा।

कर्नाटक की केबिनेट ने एससी, एसटी, अन्य पिछड़े, सभी अल्पसंख्यक के लिए एक करोड़ तक की सरकारी खरीद में केवल पांच प्रतिशत के आरक्षण का प्रस्ताव पारित किया है। मगर बीजेपी ने हंगामा मचा दिया। उसे मनचाही मुराद मिल गई।

अभी कहीं लागू नहीं हुआ। लेकिन देश भर के मीडिया में यही खबर चल रही है। केवल पांच प्रतिशत के इस ग्रूप में मुसलमान कितना फायदा उठा लेंगे किसी को नहीं मालूम। मगर बीजेपी इस तरह बोल रही है, मीडिया इस तरह चला रहा है जैसे मुसलमानों को कोई बहुत बड़ा लाभ मिलने जा रहा हो।

कर्नाटक सरकार ने कोई नया काम नहीं किया है। करीब 25 साल पहले मध्य प्रदेश में दलित अजेंडा लेकर आने वाले उस समय के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने दलितों के लिए सरकारी खरीद में 30 प्रतिशत आरक्षण किया था। उसका इतना विरोध हुआ कि कांग्रेस को सत्ता से बाहर जाना पड़ा।

इससे आप समझ सकते हैं कि दलित, पिछड़ों, आदिवासियों के लिए अगर कुछ वास्तविक काम किया जाता है तो उसका क्या राजनीतिक परिणाम होता है। उस दलित अजेंडे के बाद ही आए 2003 के विधानसभा चुनाव में जो कांग्रेस हारी तो अभी तक मध्यप्रदेश में वापस नहीं आ पाई है। वह 2018 में कुछ समय के लिए आई कमलनाथ सरकार का कोई मायने नहीं है। वह चार दिन की चांदनी वह भी कमलनाथ और उनके कुछ खास लोगों के लिए रही बाकी पूरी मध्यप्रदेश कांग्रेस के लिए अधेंरी रात 2003 से ही जारी है।

मुसलमान बीच में से हट जाए तो दलित पिछड़ों का जीना मुश्किल है! यह कर्नाटक सरकार का फैसला मूलत: अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ों को बड़े ताकतवर समुदायों के ठेकेदारों के मुकाबले थोड़ा सा सशक्त करने के लिए है। लेकिन अन्य पिछड़ों में मुसलमान भी आते हैं इसलिए इसे विवाद का विषय बना दिया गया।
मुस्लिम बीजेपी के लिए एक ऐसी चीज हैं जिसके बिना उसकी राजनीति नहीं हो सकती। एक किस्सा सुनाते हैं आपको। 2004 में जब अटलबिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बन गए और सब बधाइयां वधाइयां हो गईं। केवल अडावानी और वाजपेयी बचे। तो वाजपेयी जी ने कहा कि कहिए आडवानी जी अब मुसलमानों को कहां फेंक आएं अरब सागर में या आपके हिन्दू नाम वाले प्रशांत महासागर में? आडवानी जी घबराए! बोले नहीं नहीं! फिर मेरी राजनीति का क्या होगा?
हालांकि राजनीति फिर भी नहीं चली। प्रधानमंत्री नहीं बन पाए। और बड़े बेआबरू होकर बाकी जिन्दगी बिताना पड़ रही है।

अभी होली के ठीक बाद भाजपा का एक बड़ा अफ्तार प्रोग्राम हुआ। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पहली बार किसी सार्वजनिक प्रोग्राम में दिखीं। कांग्रेस से और दूसरे विपक्षी दलों से तो यह हमेशा कहते रहते हैं कि अफ्तार में जाते हो हिन्दुओं के कार्यक्रमों में नहीं जाते। लेकिन खुद कोई होली मिलन का बड़ा कार्यक्रम करने के बदले रोजा अफ्तार में सारे बड़े नेता भाजपा के, केन्द्रीय मंत्री पहुंचे। कोई बुरी बात नहीं है। खुद वाजपेयी जी रोजा अफ्तार करते थे। सफेद नमाजी टोपी लगाते थे।
लेकिन सोनिया गांधी के करने पर हमेशा सवाल उठाए। अब सोनिया गांधी ने बंद भी कर दिया। हम तो हमेशा से इन राजनीतिक रोजा अफ्तार के विरोध में लिखते रहे। इसका आम मुसलमानों को कोई फायदा नहीं। मगर निशाने पर उन्हीं को लिया जाता है। सवाल उन्हीं से होते हैं। आज जो गोदी मीडिया के बड़े-बड़े धुरंधर हैं उनमें से किसी को अहमद पटेल, गुलामनबी आजाद, सलमान खुर्शीद से यह सवाल पूछते नहीं देखा कि रोजा अफ्तार क्यों? हां, गरीब मुसलमानों की बस्ती में यह सवाल जरूर पूछवाते हैं। अब दिल्ली की भाजपा की मुख्यमंत्री से पूछने की हिम्मत भी किसी ने नहीं दिखाई।

मीडिया का एक और बड़ा रूप है। होली दीवाली पर कभी-किसी गोदी मीडिया के एंकर पत्रकार की हिम्मत नहीं पड़ी कि बिना बुलाए प्रधानमंत्री मोदी के या बीजेपी के किसी बड़े नेता के यहां पहुंच जाएं। मगर कांग्रेस के मुसलमान नेताओं के यहां पहुंच जाते हैं। उनके या उनकी नेता सोनिया के रोजा अफ्तार की आलोचना भी करते हैं और ईद पर तो खिलाना ही पड़ेगा के अधिकार के साथ भी पहुंच जाते हैं।

एक मुस्लिम ग्रंथी जो बीजेपी संघ ने पैदा की। वह भाजपा और संघ के लोगों से ज्यादा मीडिया में है और जितना मुस्लिम विरोध की भावना उनमें है उससे कई गुना ज्यादा दलित पिछड़े, आदिवासी के लिए है। राहुल का यह सवाल सही है जो वे कई बार प्रेस कान्फ्रेंस में भी पूछ चुके हैं कि यहां मौजूद पत्रकारों में दलित पिछड़े कितने हैं? हालांकि वे खुद इस सवाल का जवाब नहीं दे सकते कि उनके अखबारों जिनमें तो सारी भर्ती ही नई की गई है कितने दलित पिछड़े हैं? कांग्रेस के अखबार नेशनल हेराल्ड, नवजीवन, कौमी आवाज पहले भी बंद इसीलिए हुए कि वह पूरे संघियों के हाथों में चले गए थे।


इतनी ओवर भर्तियां हो गईं थी कि तनखा देना मुश्किल हो गया था। कई रिटायर्ड अफसर हैं। आईएएस आईपीएस। पूरे संघी हो गए हैं। कुछ डबल इंजन की सरकारों में मिला भी हुआ है। राहुल का मजाक उड़ाना तो पहला काम है। मगर कभी-कभी यह बताने के लिए हम भी कभी लिखते थे। अपनी पुरानी कटिंग्स सोशल मीडिया पर डालते हैं। मिलने पर दिखाते भी हैं। नेशनल हेराल्ड में छपे लेख। हम कहते हैं आर्गनाइजर (संघ का मुखपत्र) में क्यों नहीं लिखते थे?

कहते हैं वह कोई अख़बार है? फिर आज टेबल पर यह क्यों रखा है? हें.. हें .. हें! नेशनल हेराल्ड क्यों नहीं? वह अब कोई अख़बार बचा है? कांग्रेस के नेता तक नहीं पढ़ते। अभी हमें पिछले हफ्ते के नेशनल हेराल्ड और नवजीवन के पहले पेजों के फोटो किसी ने भेजे थे। बाद में अख़बार भी। पहले पेज पर टाप पर करीब 6 -6 कालमों में मोदी जी के फोटो लगे थे। क्यों इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

नई भर्तियों की बात आई तो याद आया कि पहले लोकसभा चैनल और फिर राज्यसभा चैनल कांग्रेस के राज में ही शुरू हुए। और सब नई भर्तियां ही हुईं। खूब संघ के लोगों ने अपने लोगों को भर्ती कराया। बहुत बड़े पदों पर रहने वाले भी अपनी सफाई में यह लिखते रहते हैं कि हम कांग्रेसी नहीं। कौन पूछ रहा है कि आप क्या हो? मगर कांग्रेस राज में पूरा फायदा उठाने वाले यह जरूर कहते रहते हैं।

दूरदर्शन रेडियो में तो संघी रहे ही। किसी एक संदर्भ में हमने किसी एक के बारे में लिख दिया था तो कांग्रेसी बड़े खुश हुए। कहने लगे अब वह हमें गालियां देता है। हमने कहा कम देता है और ज्यादा देना चाहिए। आपके लोगों ने दस साल उससे काम लिया। वह आप सबकी औकात जानता है।

तो इस समय जब होली, रमजान के एक जुमे के साथ आने पर भाजपा ने और उसकी गोदी में बैठे मीडिया ने खूब अफवाहें फैलाईं। झूठ बोला। गैरकानूनी बात कर रहे एक पुलिस के सामान्य अधिकारी सीओ को हीरो बना दिया। खुद मुख्यमंत्री उसकी बात कि जुमे को निकलोगे तो यह होगा का समर्थन करने लगे। उस समय कर्नाटक की कांग्रेसी सरकार ने यह फैसला लिया है।

जाहिर है कि होली और जुमा दोनों शांतिपूर्ण गुजर जाने से हताश मीडिया को यह एक नया मौका मिल गया। बीजेपी को तो मिला ही है। कांग्रेस को इससे क्या मिला? क्या मिलेगा? यह सवाल ऐसा ही है जिसका कोई जवाब नहीं आएगा। हां, कांग्रेस को होने वाले नुकसान जरूर सामने आएंगे और मुसलमान को क्या? मुसलमान को कुछ नहीं। 11 साल में वह सीख गया है कि शांत रहना है। चुप। वह असली निशाना नहीं है। एक बहाना है। असली निशाना तो दलित पिछड़ा आदिवासी है।


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