कांग्रेस-आप की जंग में 'इंडिया' को नुकसान
ऐसे समय में जब प्रमुख विपक्षी गठबन्धन 'इंडिया' को मजबूत करने के लिये उसका नेतृत्व कर रहे कांग्रेस पर दबाव है

ऐसे समय में जब प्रमुख विपक्षी गठबन्धन 'इंडिया' को मजबूत करने के लिये उसका नेतृत्व कर रहे कांग्रेस पर दबाव है, दिल्ली विधानसभा चुनाव में उसके और सत्तारुढ़ आम आदमी पार्टी के बीच जंग इतनी तेज़ हो गयी है कि शक है कि गठबन्धन में आप रहेगी या नहीं। चुनाव प्रचार के दौरान एक-दूसरे को नीचा दिखाने पर आमादा कांग्रेस व आप के बीच जो घट रहा है, उससे गठबन्धन की एकजुटता और भविष्य पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं। सम्भव है कि इसके बाद आप इंडिया से कांग्रेस को निकालने या उसके हाथों से नेतृत्व छीनने की मुहिम छेड़ दे या स्वयं अलग हो जाये। आप के ताल्लुकात कांग्रेस से हाल के दिनों में काफी बिगड़े हैं। देखना होगा कि यह अदावत क्या गुल खिलाती है।
आप का व्यवहार वैसे भी इस मायने में संदिग्ध रहा है कि उसके सभी सियासी कदमों का लाभ केन्द्र की सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी को मिलता रहा है। विस्तार की महत्वाकांक्षा के चलते पूर्व मुख्यमंत्री एवं पार्टी अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल ने अनेक राज्यों के विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार उतारने का सिलसिला बनाये रखा था। जहां तक इंडिया गठबन्धन का हिस्सा बनने के पहले की बात थी, तब तक तो ठीक था क्योंकि यह हर पार्टी का अधिकार है कि वह चाहे जहां से अपने प्रत्याशी उतारे व कहीं से चुनाव लड़े। देश का शायद ही कोई ऐसा महत्वपूर्ण राज्य होगा जहां से उसने पिछले दस वर्षों में अपने उम्मीदवार खड़े न किये हों। यह तो सही है कि इसके चलते उसने दिल्ली के बाहर पंजाब में अपनी सरकार बनाई है तथा उसे इसका श्रेय जाता है कि कांग्रेस व भाजपा के अतिरिक्त वही ऐसा दल है जिसकी दो राज्यों में सरकारें हैं। जहां तक इंडिया गठबन्धन में शामिल होने के बाद की बात है, दिल्ली विधानसभा चुनाव का ऐलान होते ही उसने तत्काल अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी- सहयोगी दलों से बात किये या तालमेल की गुंजाइशों पर विचार किये बगैर ही।
इंडिया गठबन्धन का सबसे बड़ा अंतर्विरोध यह है कि अनेक राज्यों में कांग्रेस जिन दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ती है, विधानसभा चुनावों में उनके सामने होती है। इस बाबत तर्क दिया जाता है कि गठबन्धन लोकसभा के लिये है, विधानसभाओं के लिये नहीं। कई मुद्दों को लेकर सहयोगी दल राज्यों में आमने-सामने होते हैं। ऐसी स्थिति में जब वे लोकसभा का चुनाव मिलकर लड़ते हैं तो लोगों को शक होना स्वाभाविक है। इससे कांग्रेस व जिन दलों के साथ उनका राज्यों में मुकाबला होता है, दोनों के पक्के वोटरों को छोड़कर स्वतंत्र मत अक्सर भाजपा की ओर चले जाते हैं। राहुल गांधी की दो भारत जोड़ो यात्राओं के दौरान कई दलों को साथ देखा गया परन्तु चुनाव में वे अलग-अलग थे या जो दल इन यात्राओं के पहले हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ थे, वे इसमें शामिल हुए और अंतत: इंडिया के गठबन्धन का हिस्सा बने। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी के साथ गठबन्धन नहीं हो सका क्योंकि ममता बनर्जी तैयार नहीं हुईं। ऐसे ही, इंडिया में शामिल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने राज्य में मिलकर नहीं वरन अलग चुनाव लड़ा। उसने ऐसा यहां नेशनल कांफ्रेंस के साथ स्थानीय मुद्दों पर अपने मतभेदों एवं मुकाबले के कारण किया जबकि एनसी भी इंडिया में शरीक है। आप ने पंजाब में कांग्रेस को हराकर सत्ता पाई है, जबकि उसके बाद आप इंडिया में शामिल हो गयी। यह भी पाया गया कि अनेक स्थानों पर आप के चुनाव लड़ने से अंतत: भाजपा को ही फायदा हुआ जिसके कारण उसे 'भाजपा की बी टीम' तक कहा जाता है।
हालांकि कई राज्यों में कांग्रेस व सहयोगियों के सम्बन्ध मजबूत बने हुए हैं। तमिलनाडु (द्रविड मुनेत्र कषगम), महाराष्ट्र (उद्धव ठाकरे की शिवसेना व शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी), झारखंड (झारखंड मुक्ति मोर्चा), बिहार (राष्ट्रीय जनता दल) और कमोबेश उत्तर प्रदेश (समाजवादी पार्टी) के बारे में ऐसा कहा जा सकता है। इसमें भी कई स्थानों पर कोई न कोई घालमेल देखने को मिल ही जायेगा। अब दिल्ली के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने आप को समर्थन देकर खुद को कांग्रेस के खिलाफ खड़ा कर दिया है। यह विभाजन दिल्ली विधानसभा के चुनाव में बढ़ता नज़र आ रहा है। पहले ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष अजय माकन ने कुछ अरसा पहले केजरीवाल को 'राष्ट्रद्रोही' कहकर आग सुलगा दी थी, जो सोमवार की रात को सीलमपुर में हुई प्रचार रैली में दावानल बनती दिख रही है। राहुल गांधी ने यह कहकर भाजपा व आप को एक ही तराजू पर बिठा दिया कि 'सामाजिक न्याय न प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दिला सकते हैं और न ही केजरीवाल।' इसके पहले नयी दिल्ली के प्रत्याशी, पूर्व सांसद तथा दिल्ली की पूर्व सीएम दिवंगत शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित ने यह कहकर केजरीवाल पर निशाना साधा कि 'यदि जनता को दिल्ली का मुख्यमंत्री मुस्कुराने वाला चाहिये तो वे कांग्रेस को वोट करें और रोता हुआ चाहिये तो आप के पास जायें!' इसी सीट पर केजरीवाल हैं और भाजपा के प्रवेश वर्मा।
संदीप दीक्षित ने एक समाचार एजेंसी को दिये साक्षात्कार में कहा कि 'पूरी दिल्ली जान गयी है कि केजरीवाल सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी है।' उन्होंने केजरीवाल के शराब घोटाले में जेल जाने तथा उनके 32 करोड़ रुपये के कथित शीशमहल का ज़िक्र किया। 'एक्स' पर एक पोस्ट डालकर भी केजरीवाल को खूब खरी-खोटी सुनाई है। उन्होंने केजरीवाल के देश बचाने के दावे पर तंज कसते हुए कहा कि 'जब शीलाजी के बारे में 1000 झूठ फैला रहे थे, सोनिया गांधी को गिरफ्तार करने की धमकी दे रहे थे, अन्ना हजारे के साथ लोकपाल के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रहे थे तब क्या वे (केजरीवाल) देश बचा रहे थे?' साफ है कि यह दरार बढ़ेगी जिसका असर गठबन्धन पर पड़ सकता है।


