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एससीओ की बैठक में भारत कूटनीतिक रुप से अलग-थलग पड़ गया

एससीओ में नियम यह है कि हर प्रस्ताव सर्वसम्मति के आधार पर होना चाहिए। इसलिए भारत की आपत्ति के परिणामस्वरूप, संयुक्त बयान जारी नहीं किया जा सका।

एससीओ की बैठक में भारत कूटनीतिक रुप से अलग-थलग पड़ गया
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— नित्य चक्रवर्ती

स्वाभाविक रूप से, श्री सिंह ने इस एकतरफा घोषणापत्र पर हस्ताक्षर नहीं किये। एससीओ में नियम यह है कि हर प्रस्ताव सर्वसम्मति के आधार पर होना चाहिए। इसलिए भारत की आपत्ति के परिणामस्वरूप, संयुक्त बयान जारी नहीं किया जा सका। पाकिस्तान खुश है कि भारत ने हस्ताक्षर नहीं किये। इसलिए यह इस्लामाबाद के लिए एक कूटनीतिक जीत थी।

चीन के कि़ंगदाओ शहर में 25 और 26 जून को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के रक्षा मंत्रियों की बैठक में भारत का कूटनीतिक रूप से अलग-थलग पड़ जाना स्पष्ट रूप से दिखा, जब एक संयुक्त बयान तैयार किया गया, जिसमें सदस्यों से आतंकवाद से मिलकर लड़ने का आह्वान किया गया, लेकिन बलूचिस्तान में हमलों का उल्लेख तो किया गया परन्तु 22 अप्रैल को पहलगाम में हुई आतंकी हत्याओं का कोई उल्लेख नहीं किया गया।

2025 शिखर सम्मेलन के मेजबान देश चीन की अध्यक्षता में हुई बैठक में भारत और पाकिस्तान सहित सदस्यों के बीच चर्चा के बाद संयुक्त बयान तैयार किया गया। पहलगाम हत्याकांड और उसके बाद ऑपरेशन सिंदूर के जरिये पाकिस्तान में आतंकी शिविरों को ध्वस्त करने की भारत की कार्रवाई पर केंद्रित विचार-विमर्श के दौरान भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आतंकवाद के खिलाफ जोरदार तरीके से बात की। लेकिन अंतिम दिन संयुक्त बयान में पहलगाम आतंकवाद पर भारत के दृष्टिकोण को शामिल नहीं किया गया, जबकि बलूचिस्तान पर पाकिस्तान के दृष्टिकोण को शामिल किया गया।

स्वाभाविक रूप से, श्री सिंह ने इस एकतरफा घोषणापत्र पर हस्ताक्षर नहीं किये। एससीओ में नियम यह है कि हर प्रस्ताव सर्वसम्मति के आधार पर होना चाहिए। इसलिए भारत की आपत्ति के परिणामस्वरूप, संयुक्त बयान जारी नहीं किया जा सका। पाकिस्तान खुश है कि भारत ने हस्ताक्षर नहीं किये। इसलिए यह इस्लामाबाद के लिए एक कूटनीतिक जीत थी, जो पहलगाम हत्याकांड और ऑपरेशन सिंदूर के बाद वैश्विक राय को प्रभावित करने के लिए भारत के साथ धारणा की लड़ाई में लगा हुआ है।

एससीओ में वर्तमान में दस सदस्य हैं- चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान, ईरान, बेलारूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान। भारतीय अधिकारियों ने दावा किया कि बयान चीन द्वारा पाकिस्तान के पक्ष में दिया गया था। ठीक है। यह सच हो सकता है। लेकिन फिर रूस सहित अन्य सात सदस्यों का क्या? यह हमारे विदेश मंत्रालय की सरासर की विफलता थी कि एससीओ के सभी मध्य एशियाई सदस्य देश भारत के समर्थन में नहीं आये। यहां तक कि रूस ने भी भारतीय दृष्टिकोण को शामिल करने के लिए बयान में संशोधन करने में हस्तक्षेप नहीं किया। एससीओ के कुल दस सदस्यों में से भारत को छोड़कर कोई भी अन्य देश बयान के खिलाफ नहीं था। यह स्पष्ट रूप से पाकिस्तान के पक्ष में 9-1 था।

इस साल के अंत में चीन के तियानजिन में एससीओ शिखर सम्मेलन आयोजित किया जायेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे, ऐसा कहा जाता है। वे वहां चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और अन्य नेताओं से मिलेंगे। रक्षा मंत्रियों की हालिया बैठक की तरह इस शिखर सम्मेलन में भी आतंकवाद से लड़ने का मुद्दा उठेगा। भारत के प्रधानमंत्री यह सुनिश्चित करने के लिए क्या करने जा रहे हैं कि शिखर सम्मेलन की घोषणा में अंतत: भारतीय दृष्टिकोण शामिल हो?

इस साल के अंत में एससीओ शिखर सम्मेलन से पहले, 6 और 7 जुलाई को ब्राजील में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन आयोजित किया जायेगा। भारतीय प्रधानमंत्री उसमें भाग लेंगे। उस बैठक में भी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का मुद्दा उठेगा। पाकिस्तान ब्रिक्स का सदस्य नहीं है। इस तरह कि़ंगदाओ बैठक में इस्लामाबाद की ओर से जो दबाव था, वह ब्राज़ील शिखर सम्मेलन में नहीं होगा। लेकिन हर देश ने कोई न कोई रुख़ अपनाया है और यह अचानक नहीं बदलता। इसके लिए लगातार समझाने और तथ्यों को पेश करने की ज़रूरत होती है। कि़ंगदाओ बैठक में राजनाथ सिंह और उनकी टीम एससीओ के सदस्यों को समझाने में पूरी तरह विफल रही। ब्राज़ील शिखर सम्मेलन में ऐसा नहीं दोहराया जाना चाहिए।

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में अब बस कुछ ही दिन बचे हैं। इन आठ दिनों में भारतीय राजनयिकों को सदस्य देशों से मिलकर उन्हें भारत के ख़िलाफ़ आतंकी हमलों में पाकिस्तान की संलिप्तता के बारे में पूरे तथ्यों के साथ भारतीय स्थिति के बारे में समझाने का पूरा प्रयास करना होगा। ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका प्रमुख सदस्य हैं। शिखर सम्मेलन में किसी भी तरह की शर्मिंदगी से बचने के लिए उन्हें उचित जानकारी दी जानी चाहिए।

इस साल के अंत में होने वाले एससीओ शिखर सम्मेलन के बारे में, क्षेत्र की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था दोनों के दृष्टिकोण से विचार-विमर्श बेहद महत्वपूर्ण होगा। अब अपने 25वें वर्ष में एससीओ अपने मूल छह संस्थापक सदस्यों से बढ़कर 10 सदस्य देशों, दो पर्यवेक्षक देशों और 14 संवाद भागीदारों के 'बड़े परिवार' में बदल गया है - जो पूर्वी यूरोपीय मैदानों से लेकर हिंद महासागर और प्रशांत रिम तक फैला हुआ है, और जिसमें दुनिया की लगभग आधी आबादी शामिल है।

एससीओ सूत्रों का कहना है कि यह संगठन क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग के लिए एक परिपक्व मंच बन गया है, जिसका प्रभाव, सामंजस्य और अपील लगातार बढ़ रही है। पिछले 25 वर्षों में, यह 'सुरक्षा का विशाल जहाज' आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के खिलाफ लहरों पर सवार होकर क्षेत्रीय सुरक्षा में उत्कृष्ट योगदान दे रहा है। सुरक्षा सहयोग से उभरने वाले आर्थिक और व्यापारिक लाभांश और लोगों के बीच आदान-प्रदान भी उल्लेखनीय रहे हैं, जो सभी पहलुओं में सदस्य देशों के लोगों को एक-दूसरे के करीब लाते हैं।

भारत ने पिछले पांच वर्षों में अमेरिका प्रायोजित क्वाड के प्रति अपने प्रेम के कारण ब्रिक्स और एससीओ के कामकाज की उपेक्षा की है। अब जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प लगातार अपने बयानों का उल्लेख करके भारतीय प्रधानमंत्री को अपमानित कर रहे हैं, तो यह एक ऐसा संवेदनशील मुद्दा बन गया है, जिसके बारे में हम सभी जानते हैं। 10 मई को भारत-पाकिस्तान युद्ध विराम से अब तक ट्रम्प ने 18 बार भारतीय प्रधानमंत्री को अपमानित किया और यहां तक कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर के साथ लंच पर बातचीत भी की। अब हमारे प्रधानमंत्री को पिछले पांच वर्षों में अपनायी गयी अपनी विदेश नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए। समय आ गया है कि भारत को ग्लोबल साउथ के लिए लड़ने के लिए ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और अन्य विकासशील देशों के साथ हाथ मिलाना चाहिए। देश का हित ग्लोबल साउथ के साथ है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नहीं भूलना चाहिए।


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