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विश्व राजनीति के लिए महत्वपूर्ण घटनाएं

वैश्विक राजनीति के लिए रविवार और सोमवार के दिन खास महत्वपूर्ण हो गए हैं

विश्व राजनीति के लिए महत्वपूर्ण घटनाएं
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वैश्विक राजनीति के लिए रविवार और सोमवार के दिन खास महत्वपूर्ण हो गए हैं। एक तरफ रविवार को इजरायल और हमास के बीच युद्धविराम की शुरुआत हो गई है। दोनों पक्षों से एक-दूसरे के बंधकों को छोड़ने का ऐलान हुआ और अब हमास ने इजरायल के कुछ बंधकों को रिहा भी कर दिया है। इधर सोमवार 20 जनवरी को अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेकर डोनाल्ड ट्रंप इतिहास में अपनी अलग जगह बना चुके हैं। भारतीय समयानुसार रात साढ़े दस बजे के करीब ट्रंप का शपथग्रहण निर्धारित था।

राष्ट्रपति की कुर्सी दोबारा संभालने से पहले वाशिंगटन डीसी में डोनाल्ड ट्रंप अघोषित तरीके से अपना शक्ति प्रदर्शन करते रहे। उनके सम्मान में रात्रिभोज, आतिशबाजी के कार्यक्रम हुए, जिसमें व्यापार, तकनीकी और राजनीति से जुड़ी दिग्गज हस्तियों ने हिस्सा लिया। भारत की तरफ से धनकुबेर मुकेश अंबानी अपनी पत्नी नीता अंबानी के साथ ट्रंप के जश्न में हिस्सा लेने पहुंचे, वहीं ट्रंप के बाएं हाथ बन चुके एलन मस्क भी ट्रंप की शान में कसीदे पढ़ते और अमेरिका को फिर से महान बनाने, बल्कि सदियों तक महान बनाने का संकल्प लेते दिखे। ये नजारे बता रहे हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के इस दूसरे कार्यकाल में अमेरिका में न केवल पूंजीवाद का बोलबाला दिखने वाला है, बल्कि अब भू-राजनैतिक समीकरण भी काफी हद तक बदलेंगे।

ट्रंप चार साल सत्ता से बाहर रहने के बाद फिर से व्हाइट हाउस लौट रहे हैं, इससे पहले ग्रोवर क्लीवलैंड के साथ भी ऐसा ही हुआ था, जिन्होंने पहली बार साल 1885 में अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी, लेकिन 1889 में वे चुनाव हार गए थे और फिर 1893 में उन्होंने दोबारा वापसी की थी। 130 साल बाद अमेरिका फिर ऐसे ही घटनाक्रम का साक्षी बना है।

हालांकि चार साल पहले जब डोनाल्ड ट्रंप को डेमोक्रेट जो बाइडेन के सामने हार मिली थी, तब उनके समर्थकों ने जिस तरह कैपिटल हिल पर हमला बोला था, वह दृश्य अमेरिकी लोकतांत्रिक राजनीति के लिए अभूतपूर्व और चौंकाने वाला था। ट्रंप ने तब चुनावों में धोखाधड़ी का इल्जाम लगाया था, वे बाद में कई मौकों पर पीड़ित की तरह प्रस्तुत करते रहे और सत्ता में लौटने का ऐलान उनकी तरफ से होता रहा। पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान जुलाई में जब उन पर गोली चली और वे बाल-बाल बचे, तब इस बात की प्रबल संभावनाएं बन गईं कि अब ट्रंप सत्ता में वापसी करेंगे। इस संभावना को जो बाइडेन की गिरती साख ने और बल दिया। डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर ही बाइडेन की उम्मीदवारी पर दो फाड़ हो गए। इजरायल-फिलीस्तीन युद्ध और रूस-युक्रेन युद्ध में अमेरिका की भूमिका को लेकर बाइडेन से नाराजगी जाहिर होने लगी।

चुनाव अभियान के बीच में ही बाइडेन की जगह उनकी उपराष्ट्रपति रहीं कमला हैरिस को डेमोक्रेटिक पार्टी ने अपना उम्मीदवार बना दिया। इन सबमें रिपब्लिकन पार्टी और डोनाल्ड ट्रंप को फायदा हुआ और उन्होंने फिर से जीत दर्ज की। एलन मस्क और मार्क जुकरबर्ग जैसे लोगों का ट्रंप के साथ खड़ा होना भी जो बाइडेन की हार का कारण बना।

अपनी ऐतिहासिक जीत को यादगार बनाने के लिए ट्रंप ने कोई कसर नहीं छोड़ी। उनके शपथग्रहण के लिए मेहमानों की सूची से लेकर उनकी घोषणाएं सब पर चर्चा हो रही है। ट्रंप को फिर से राष्ट्रपति बनते देखने के साक्षी लोगों में एलन मस्क, मार्क जुकरबर्ग, जेफ बेजोस, सुंदर पिचाई, टिम कुक जैसे तकनीकी शक्ति से लैस धन कुबेरों के अलावा अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवीयर मिली, इटली की प्रधानमंत्री जियार्जिया मेलोनी, जर्मनी के अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) पार्टी के टीनो श्रुपाला और ब्रिटेन की पॉपुलिस्ट पार्टी-'रिफॉर्म पाटी' के नेता नाइजल फ़राज का नाम भी शामिल है। ये सूची बताती है कि दक्षिणपंथ और पूंजीवाद को ट्रंप ने खुल कर बिना किसी झिझक के तरजीह दी है।

अपने विदाई भाषण में जो बाइडन ने जैसी चेतावनी दी थी कि अमेरिका चंद टेक अरबपतियों के दबदबे वाली ओलिगार्की (अल्पतंत्र) में तब्दील हो सकता है, तो वह चेतावनी ट्रंप के नए कार्यकाल की शुरुआत के साथ ही सच होती दिख रही है। उद्योगपति चुनावों में मदद करते हैं और सत्ताधारियों को दबाव में लेकर अपने मतलब की नीतियां बनवाते हैं, यह तो खुला सच है ही, लेकिन जिस तरह से एलन मस्क ट्रंप के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं, वह लोकतांत्रिक राजनीति में एक नए किस्म का चलन शुरु कर रहा है। हो सकता है आगामी वक्त में भारत में भी ऐसे नजारे देखने मिलें।

वैसे ट्रंप के आमंत्रितों में नरेन्द्र मोदी का नाम शामिल न होने पर भी काफी सवाल उठे। माना जा रहा है कि पिछले सितम्बर में अपनी अमेरिका यात्रा में नरेन्द्र मोदी ने ट्रंप से मुलाकात में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, इस वजह से ट्रंप ने कोई गांठ बांध ली है। हालांकि परस्पर लाभ और लेन-देन के संबंधों में ऐसी गांठें नहीं बनाई जातीं। लेकिन हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप जैसे आयोजनों के बाद नरेन्द्र मोदी को ट्रंप के शपथग्रहण में न बुलाना और वहीं शी जिनपिंग को ट्रंप द्वारा खुद निमंत्रित करना वैश्विक संबंधों में नए समीकरण की तरफ इशारा करता है। शी जिनपिंग इस समारोह में नहीं गए, उनकी जगह उप राष्ट्रपति हान झेंग पहुंचे हैं, वहीं भारत से विदेश मंत्री एस.जयशंकर इस समारोह के लिए पहुंचे हैं।

बहरहाल, डोनाल्ड ट्रंप ने अपने नए कार्यकाल की शुरुआत से पहले बड़ा दावा किया कि वे तीसरा विश्वयुद्ध रोक देंगे। यूक्रेन में युद्धविराम कराएंगे और साथ ही अमेरिका में अवैध अप्रवासियों को बाहर करने के लिए आक्रामक अभियान चलाएंगे। अपने देश की सीमाओं के भीतर ट्रंप क्या फैसले लेते हैं, यह उनका अधिकार है। लेकिन विश्वयुद्ध की आशंकाओं को रोकने का दावा वाकई बड़ा है। क्योंकि अब तक अमेरिका की शह पर ही इजरायल और यूक्रेन युद्ध क्षेत्र में बने हुए हैं, यह खुला सच है।

फिलीस्तीन पर पिछले 15 महीनों से चल रहे इस युद्ध में लाखों बेकसूर मारे गए और गज़ा तो पूरी तरह से बर्बाद ही हो गया। हमास के खात्मे के नाम पर इजरायल ने जो क्रूरता दिखाई, उसे नरसंहार के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। निर्दोष नागरिकों, पत्रकारों, मदद करने वाले संगठन, डाक्टर, नर्सें, शांति कार्यकर्ता सब इस युद्ध की चपेट में आए। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी इजरायल पर कोई अंकुश नहीं लगा पाई, लेकिन अब डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालते ही शांति के आसार बनना अच्छी बात है। मगर इस शांति की आड़ में पूंजीवाद कोई और भयानक खेल न शुरु कर दे, इस बारे में वैश्विक बिरादरी को सचेत रहना होगा।


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