लड़ोगे तो जीतोगे : झारखंड का विपक्ष को संदेश
स्थिति थोड़ी गंभीर है। लोगों को जब तक बताया नहीं जाए वे समझ नहीं पाते

- शकील अख्तर
सबक यह है कि जब विपक्ष जनता के बीच होता है। जनता को उस पर भरोसा होता है तो वह झूठ को नफरत विभाजन को स्वीकार नहीं करती। दूसरा सबक यह है कि जब कोई पार्टी मजबूती से चुनाव लड़ती है तो ईवीएम की धांधली करने की ताकत भी कम हो जाती है। जैसे अगर दीवार मजबूत हो तो चोरी के धक्कों से नहीं गिर सकती।
स्थिति थोड़ी गंभीर है। लोगों को जब तक बताया नहीं जाए वे समझ नहीं पाते। झारखंड में इंडिया की जीत बताती है कि वहां जिस तरह हेमंत सोरेन के बेगुनाह होने की बात और आम जनता के लिए किए जा रहे उनके कल्याणकारी काम रोकने के लिए गिरफ्तारी की बात लोगों तक पहुंचाई गई उसका असर हुआ। और लोगों तक यह बात सफलता पूर्वक कल्पना सोरेन ने पहुंचाई।
7 अक्टूबर को झारखंड में चुनाव की घोषणा होने के एक दिन पहले हमने यहीं देशबन्धु में इसी कॉलम में लिखा कि हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद जब झारखंड मुक्ति मोर्चा ( जेएएमएम) पर सबसे कठिन समय आया तो अचानक कल्पना सोरेन ने उठकर संघर्ष की बागडोर संभाल ली। हेमंत सोरेन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट को कुछ नहीं मिला। वे वापस आए। लेकिन एक बार जनता के बीच पहुंच गईं कल्पना सोरेन को फिर जनता खासतौर से महिलाओं ने वापस घर नहीं बैठने दिया। जेएमएम ने भी उनका सर्वोत्तम उपयोग किया। पूरे झारखंड में उसने मंईयां सम्मान यात्रा शुरू कर दी। और कल्पना सोरेन उसकी स्टार प्रचारक बन गईं। बाकी फिर इतिहास है। हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से उपजी आम जनता की सहानुभूति और महिलाओं के अकाउंट में सीधे पैसे जमा करने की मंईयां सम्मान योजना ने वहां प्रधानमंत्री मोदी के सारे भड़काऊ भाषणों को दरकिनार करते हुए गोदी मीडिया के सारे पूर्वानुमानों, एक्जिट पोल को ध्वस्त करते हुए इंडिया गठबंधन को दोबारा सत्ता सौंप दी। और इसमें खास बात यह है कि जेएमएम ने तो शानदार प्रदर्शन किया ही कांग्रेस, आरजेडी और सीपीआईएमएल का प्रदर्शन भी अच्छा रहा।
झारखंड की इस जीत का विपक्ष के लिए बड़ा सबक है कि लड़ना नहीं छोड़ना और जनता के बीच जाना ही इस मुश्किल समय में एक मात्र उपाय है। ईवीएम की गड़बड़ियां हैं। और ईवीएम क्या पूरी चुनावी प्रणाली को ही इस समय सत्ताधारी पार्टी ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। खुद पैसा पानी की तरह बहाना। और विपक्ष के सारे स्त्रोतों को बंद कर देना। चुनाव के दौरान जगह-जगह उनके जहाज, हैलिकाप्टर, सामान की तलाशी लेना। लेकिन सत्ता पक्ष के खुले आम बांटे जा रहे पैसों पर कोई एक्शन नहीं लेना। अभी महाराष्ट्र में कोई छोटा-मोटा नेता नहीं भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े पैसे बांटते हुए पकड़े गए। मगर चुनाव आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की।
आदर्श चुनाव आचार संहिता की तो खुद प्रधानमंत्री और भाजपा के आसाम, यूपी के मुख्यमंत्री अपनी हेट स्पीचों (नफरत भरी, जो केवल आदर्श आचार संहिता का ही उल्लंघन नहीं है बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसे भाषणों पर सख्ती से रोक लगाने की बात कही है) से धज्जियां उड़ाते रहे। यह सारी गड़बड़ियां हैं। वोटर लिस्ट में से अल्पसंख्यकों के नाम कटवाना, दूसरे क्षेत्रों के लोगों के जाली नाम जोड़ने से लेकर काउन्टिंग में जीत के बाद भी जीत का सर्टिफिकेट रोक कर रखना। अभी मध्य प्रदेश में भाजपा के मंत्री रामनिवास रावत जो कांग्रेस से दलबदल करके वहां गए थे के विजयपुर में हार के बाद रिजल्ट रोक लिया गया। वह तो वहां कमलनाथ जैसे भाजपा से मिले प्रदेश अध्यक्ष नहीं थे बल्कि हिम्मत से लड़ने वाले जीतू पटवारी थे जिन्होंने फौरन चेतावनी दी कि अगर कांग्रेस के जीते हुए प्रत्याशी मुकेश मल्होत्रा को जीत का सर्टिफिकेट नहीं दिया तो वे कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के साथ काउन्टिंग सेन्टर घेर लेंगे। तब जाकर कांग्रेस को विजयी घोषित किया गया।
हर स्तर पर चुनाव धांधलियां हैं। उनसे विपक्ष को लड़ना होगा। मगर साथ ही जनता के बीच उसी तरह जाना और उसे समझाना होगा जैसा झारखंड में हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन ने किया। याद रखिए आज तक का सबसे शर्मनाक नारा बेटी ले जाएंगे प्रधानमंत्री ने वहीं दिया था। जनता के बीच चूंकि हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन थे और जनता उन पर भरोसा कर रही थी इसलिए वह नारा ओंधे मुंह गिर पड़ा।
सबक यह है कि जब विपक्ष जनता के बीच होता है। जनता को उस पर भरोसा होता है तो वह झूठ को नफरत विभाजन को स्वीकार नहीं करती। दूसरा सबक यह है कि जब कोई पार्टी मजबूती से चुनाव लड़ती है तो ईवीएम की धांधली करने की ताकत भी कम हो जाती है। जैसे अगर दीवार मजबूत हो तो चोरी के धक्कों से नहीं गिर सकती।
कल्पना सोरेन पर हमने लिखा था झारखंड में कल्पना सोरेन भाजपा के लिए चुनौती! वही सही साबित हुआ। अब कल्पना सोरेन की मांग झारखंड के बाहर भी होगी। लेकिन उस समय जब हमने लिखा था तो कुछ लोगों ने कहा कि ज्यादा तो नहीं लिख दिया? आज वे स्टार बन गईं। और हेमंत सोरेन का कद तो कई गुना बढ़ गया। गिरफ्तारी के बाद जिस तरह उन्हें गया हुआ मान लिया गया था उसके बाद पहले अदालत में लड़कर और फिर भाजपा की साम दाम दंड भेद हर चाल से लड़कर उनकी वापसी विपक्ष के लिए एक प्रेरणा बन गई।
ध्यान देने की बात है कि भाजपा ने सांप्रदायिक धु्रवीकरण का सबसे तीखा प्रयास झारखंड में किया। बेटी ले जाएंगे इससे ज्यादा भड़काऊ बात कुछ हो नहीं सकती। मगर यह आदिवासियों का हेमंत सोरेन पर भरोसा था कि उन्होंने इस बात को जरा भी महत्व नहीं दिया।
झारखंड में बीजेपी ने क्या नहीं किया? इससे पहले कभी किसी राज्य के मुख्यमंत्री ने दूसरे राज्य में चार महीने बिताए होंगे? अभी हार के बाद रविवार को आसाम के मुख्यमंत्री हेमंत बिश्वा सर्मा ने खुद कहा चार महीने झारखंड में रहा। कितना जहर नहीं फैलाया। हर बात सांप्रदायिक। हिन्दू मुसलमान। घुसपैठिए। मगर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक सवाल जो उनसे किया उसका जवाब न वह, न भाजपा के दूसरे मुख्यमंत्री, न प्रधानमंत्री, न गृह मंत्री कोई नहीं दे पाया।
हेमंत सोरेन ने सीधी बात पूछी कि झारखंड की सीमा किस देश से कहां लगी हुई है? जो किसी देश से घुसपैठिए सीधे हमारे यहां आ रहे हैं? सीमा की रखवाली करना केन्द्र का काम है। उस राज्य पर आप कैसे आरोप लगा सकते हैं जो न तो सीमावर्ती हो और न ही सीमाओं की रक्षा करने का अधिकार उसके पास हो।
इसका जवाब कोई नहीं दे पाया। और यह बात जनता को पसंद भी आई और समझ में भी आई। असम के मुख्यमंत्री के चार महीने डेरा डाले रहने के अलावा उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी वहां सांप्रदायिक धु्रवीकरण के कम प्रयास नहीं किए। बटेंगे तो कटेंगे खूब बोला। मगर जहां -जहां उन्होंने रैलियां की ज्यादातर जगह भाजपा हारी।
प्रधानमंत्री मोदी ने रोटी बेटी छीनने की बात वहां कही ही थी। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तो ओ चंपई इधर आओ, बाबूलाल आगे आओ जैसी आवाजें लगाकर दंभ का ऐसा प्रदर्शन किया कि वह सीधा आदिवासियों के दिल पर लगा। पहले वनवासी कहते थे। मतलब जंगल में रहने वाले और अब पूर्व मुख्यमंत्री को गुलामों की तरह पुकारना!
मगर बात वही है कि जनता के बीच आप मौजूद हों, उन्हें आप पर विश्वास हो तो वह इन नकारात्मक बातों का बुरा मानती है। उन्हें समझती है। लेकिन अगर विपक्ष जनता में नहीं होता है तो विपक्ष के नेताओं की बात बेअसर होती है। और नफरत झुठ विभाजन की बात का भी उस पर असर हो जाता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


