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नफरती भाषणों, अल्पसंख्यकों के दानवीकरण का तेजी से बढ़ता ग्राफ

आरएसएस-भाजपा और उनसे जुड़े संगठन हर मौके का उपयोग अल्पसंख्यकों के दानवीकरण के लिए करते आए हैं

नफरती भाषणों, अल्पसंख्यकों के दानवीकरण का तेजी से बढ़ता ग्राफ
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- राम पुनियारी

चुनावों का मुख्य नारा योगी आदित्यनाथ की भाजपा को भेंट थी। नारा था 'बटेंगे तो कटेंगे'। सन्देश यह था कि हिन्दुओं को एक रहना चाहिए। उनकी बात का समर्थन करने हुए भाजपा के पितृ संगठन आरएसएस के दत्तात्रेय होसबले ने कहा, 'महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर हिन्दू एक रहेंगे तो यह सबके लिए अच्छा होगा। हिन्दू एकता स्थापित करने की संघ ने शपथ ली है'।

आरएसएस-भाजपा और उनसे जुड़े संगठन हर मौके का उपयोग अल्पसंख्यकों के दानवीकरण के लिए करते आए हैं. यद्यपि नफरत फैलाने वाले भाषण देना अपराध है, और उसके लिए सजा का प्रावधान भी है मगर अधिकांश मामलों में दोषियों के खिलाफ कोई का र्रवाई नहीं होती. पिछले एक दशक से एक सांप्रदायिक पार्टी के सत्ता में होने के कारण नफरत-भरी बातें खूब कही जा रही हैं. इससे धार्मिक अल्पसंख्यकों के बारे में आम लोगों में नकारात्मकता का भाव जड़ पकड़ रहा है. व्हाट्सएप समूहों में जिस तरह की बातें होती हैं और आम मानसिकता जैसा बनती जा रही है, उससे ऐसा लगता है कि अल्पसंख्यकों से नफरत करना एकदम सामान्य बात है. इसकी जड़ में है नफरत फैलाने वाला तंत्र, जिसके चलते नकारात्मक सामाजिक धारणाएं विकसित होती हैं और बंधुत्व व सामाजिक सद्भाव की अवधारणाओं- जो भारतीय संविधान के तीन मूलभूत आधारों में से एक हैं - को धक्का पहुंचता है।

कई नए मसले उठाए जा रहे हैं. बल्कि अब बात सिर्फ मसले उठाने तक सीमित नहीं रह गई है. अब तो सीधे कार्रवाई का आह्वान किया जा रहा है। जो बातें कही जा रही हैं वे गलत धारणाओं पर आधारित हैं और सामाजिक विभाजन को और गहरा करती हैं। 'हम दो, वो पांच, उनके पच्चीस' और 'राहत शिविर बच्चे पैदा करने की फैक्ट्रियां हैं' जैसे नारों और वक्तव्यों में इस तरह की धारणाएं जोड़ दी गईं हैं जैसे मुग़ल बादशाह बाहरी थे, उन्होंने हिन्दुओं के साथ अन्याय किया था, मंदिर तोड़े थे और तलवार की दम पर इस्लाम फैलाया था। अब यह भी कहा जा रहा है कि मुसलमानों को उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है, कि वे हमारी गौमाता के हत्यारे हैं और यह कि वे लव जिहाद के ज़रिये हमारी लड़कियों और महिलाओं को अपने जाल में फंसा रहे हैं। अब तो जिहाद की पूरी सीरीज बन गई है जिसमें लैंड जिहाद और वोट जिहाद शामिल हैं।

सन् 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान मोदी ने नफरत फैलाने वाले भाषण देने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। ह्यूमन राइट्स वाच के अनुसार, चुनाव के दौरान मोदी ने नफरत फैलाने वाले 110 भाषण दिए. रिपोर्ट कहती है, 'मोदी ने अपने भाषणों में इस्लामोफोबिक (इस्लाम के प्रति डर पैदा करने वाली) बातें कहीं। इसका एक उद्देश्य अपने राजनैतिक विपक्ष पर हमला बोलना था, जिसके बारे में मोदी ने कहा कि वह मुसलमानों के अधिकारों को बढ़ावा देता है। और दूसरा उद्देश्य दुष्प्रचार के द्वारा बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय में मुसलमानों के प्रति डर का भाव पैदा करना था।

मोदी के भाषणों का एक और नमूना भी उतना ही डरावना है। मुसलमानों को आरक्षण देने के प्रस्ताव को कांग्रेस द्वारा मुसलमानों का तुष्टीकरण बताते हुआ मोदी ने कहा: 'यह भारत के इस्लामीकरण और उसके टुकड़े-टुकड़े करने के घृणित प्रयासों का हिस्सा है। जब यूपीए सरकार सत्ता में आई, तब भी उसने ऐसे ही प्रयास किये थे। चाहे जस्टिस वर्मा समिति की रिपोर्ट हो या सच्चर समिति की। ये सब पिछड़ा वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण को लूटने के कांग्रेस के प्रयास थे।'


हाल में झारखण्ड और महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनावों में नफरत फैलाने वाले भाषणों ने सभी सीमाएं पार कर लीं। भाजपा के हेमंत बिस्वा सरमा के प्रचार का प्रमुख मुद्दा था राज्य में कथित तौर पर मुस्लिम घुसपैठियों का प्रवेश। भाजपा द्वारा जारी एक निहायत ही घिनौने विज्ञापन में दिखाया गया था कि एक बड़ा मुस्लिम परिवार, एक हिन्दू घर पर हल्ला बोल पर उस पर कब्ज़ा जमा रहा है। हम सब जानते हैं कि झारखण्ड की कोई अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं है। फिर आखिर वे मुसलमान कौन हैं जो हिन्दू घर पर कब्ज़ा कर रहे हैं? अलबत्ता एक नयी चीज़ जो इस बार हुई वह यह थी कि चुनाव आयोग ने उस विज्ञापन को हटाने का आदेश जारी किया। मगर यह वीडियो उसके स्त्रोत (जहां से उसे हटा दिया गया) के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर तो हो ही सकता है। एक अन्य भड़काऊ प्रचार यह था कि मुसलमान, आदिवासी लड़कियों से शादी कर आदिवासियों की ज़मीनों पर काबिज हो रहे हैं। इस आरोप को साबित करने के लिए कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं थे। मगर इससे क्या? लोगों को बांटने का उद्देश्य तो पूरा हो रहा था। नारा यह दिया गया कि मुस्लिम घुसपैठिये, आदिवासियों से उनकी रोटी, बेटी और माटी छीन रहे हैं। और यह वक्तव्य हमारे प्रधानमंत्री का था!
इन चुनावों का मुख्य नारा योगी आदित्यनाथ की भाजपा कोभेंट थी। नारा था 'बटेंगे तो कटेंगे'। सन्देश यह था कि हिन्दुओं को एक रहना चाहिए। उनकी बात का समर्थन करने हुए भाजपा के पितृ संगठन आरएसएस के दत्तात्रेय होसबले ने कहा, 'महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर हिन्दू एक रहेंगे तो यह सबके लिए अच्छा होगा। हिन्दू एकता स्थापित करने की संघ ने शपथ ली है'।

आदित्यनाथ के 'बटेंगे तो कटेंगे' के नारे को थोड़ा संशोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने 'एक हैं तो सेफ हैं' का नारा दिया। उनके कहने का मतलब यह था कि हिन्दुओं को अगर अल्पसंख्यकों, जो उनके लिए खतरा हैं, से सुरक्षित रहना है तो उन्हें एक होना होगा।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने लैंड जिहाद और वोट जिहाद की बात की, और अन्य नारों के अलावा, यह भी कहा कि भारत जोड़ो यात्रा में अर्बन नक्सल और अति-वामपंथी लोग शामिल हुए थे।

इस सबके नतीजे में हुए सांप्रदायिक धु्रवीकरण का मतदान पर जो असर हुआ वह साफ़ दिख रहा है। सामाजिक सोच में बदलाव भी सब देख सकते हैं। व्हाट्सएप समूहों और हिन्दू घरों के ड्राइंगरूमों में इन दिनों होने वाली चर्चा भी इसकी गवाह है।

क्रिस्टोफ़ जैफ़रलॉट एक मेधावी अध्येता हैं, जिन्होंने हिन्दू राष्ट्रवाद के उत्थान का गंभीर और बारीक अध्ययन किया है। उन्होंने मार्च-अप्रैल 2024 में सीएसडीएस द्वारा किए गए अध्ययन को उद्धृत किया है। इस अध्ययन में हिन्दुओं से मुसलमानों के बारे में उनकी राय पूछी गई थी। अध्ययन से सामने आया कि अधिकांश हिन्दू मानते हैं कि मुसलमान उतने विश्वसनीय नहीं होते जितने कि अन्य लोग होते हैं, उनका तुष्टीकरण हो रहा है, आदि, आदि। इस अध्ययन से पता चलता है कि हमारा समाज, मुसलमानों के बारे में नकारात्मक सोच रखता है। अध्येता शायद हमें यह भी बता सकें कि पिछले कुछ दशकों में यह नकारात्मकता और गहरी, और गंभीर क्यों हुई है।
मजे की बात यह है कि मोदी का दावा है कि वे सांप्रदायिक भाषण नहीं देते। चुनाव प्रचार में उनकी मुस्लिम-विरोधी टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर मोदी ने पत्रकारों से कहा, 'जिस दिन मैं (राजनीति में) हिन्दू-मुस्लिम की बातें करने लगूंगा, उस दिन मैं सार्वजनिक जीवन के लिए अयोग्य हो जाऊंगा। मैं हिन्दू-मुस्लिम कभी नहीं करूंगा। यह मेरा संकल्प है।' कथनी और करनी में कितना अंतर हो सकता है!

हिन्दुओं में व्याप्त गलत धारणाओं के कारण ही देश की फिजा में जहर घुल रहा है। इससे मुसलमान अपने मोहल्लों में सिमट रहे हैं और 'दूसरे दर्जे के नागरिक' बनने के करीब पहुंच रहे हैं।

इस विभाजन से कैसे निपटा जाए? हमें एक वैकल्पिक नैरेटिव को लोगों के बीच ले जाना होगा। हमें लोगों को हमारे स्वाधीनता संग्राम के मूल्यों और हमारी साझा और बहुवादी संस्कृति के बारे में बताना होगा। हमें उन्हें बताना होगा कि सभी धर्मों के लोगों ने कंधे से कन्धा मिलाकर आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी और उसी लड़ाई के मूल्य हमारे संविधान का हिस्सा हैं।
(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

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