मुख्य निर्वाचन आयुक्त की जल्दबाजी में नियुक्ति
जिस प्रकार से लोकतांत्रिक मर्यादाओं तथा परम्पराओं को ताक पर रखकर, जल्दबाजी में केन्द्र सरकार ने 26वें मुख्य निर्वाचन आयुक्त (चीफ इलेक्शन कमिश्नर- सीईसी) की नियुक्ति की है उससे चुनाव सुधार की उम्मीदों पर फिर से पानी फिर गया है

जिस प्रकार से लोकतांत्रिक मर्यादाओं तथा परम्पराओं को ताक पर रखकर, जल्दबाजी में केन्द्र सरकार ने 26वें मुख्य निर्वाचन आयुक्त (चीफ इलेक्शन कमिश्नर- सीईसी) की नियुक्ति की है उससे चुनाव सुधार की उम्मीदों पर फिर से पानी फिर गया है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार के 18 फरवरी को सेवानिवृत्त होने से पहले ही केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री कार्यालय में 17 फरवरी की शाम एक बैठक बुलाई, जिसमें प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के अलावा नेता प्रतिपक्ष भी शामिल हुए।
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इस बैठक के लिए पहले ही आपत्ति जाहिर कर दी थी, बावजूद इसके सरकार ने उन आपत्तियों को दरकिनार करते हुए न केवल बैठक की, बल्कि सोमवार देर रात नए मुख्य निर्वाचन आयुक्त के तौर पर ज्ञानेश कुमार को नियुक्त कर दिया। इस नियुक्ति पर भी विपक्ष सवाल उठा रहा है। 1988 बैच के केरल कैडर के आईएएस अधिकारी ज्ञानेश कुमार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय में अपने कार्यकाल के दौरान जम्मू-कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 के कुछ प्रावधानों को निरस्त किये जाने के बाद निर्णय को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और 15 मार्च, 2024 को निर्वाचन आयुक्त के रूप में कार्यभार संभाला था। ये पहली बार है, जब मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पदावधि) अधिनियम, 2023 के तहत हुआ है। इससे पहले बीते साल ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू को नए क़ानून के तहत चुनाव आयुक्त चुना गया था।
निवर्तमान मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार का कार्यकाल कई किस्म के विवादों में घिरा रहा। आरोप लगे कि उनके रहते आयोग ने भाजपा की सुविधानुसार चुनावी कार्यक्रम बनाना, सिर्फ विरोधी दलों के खिलाफ कार्रवाइयां करना, भाजपा के गलत कार्यों की अनदेखी करना, आचार संहिता का प्रतिपक्ष को दबाने में इस्तेमाल करना और विरोधियों को न सुनना जैसे कार्य किए। उनके दौर में हुए लगभग हर चुनाव में गड़बड़ी की शिकायतें विपक्ष ने कीं। ईवीएम में छेड़छाड़ से लेकर मतदाता सूची की गड़बड़ी जैसे गंभीर आरोपों के सवाल उठे, मतदान खत्म होने के कुछ घंटों के बाद वोटिंग का प्रतिशत बढ़ जाना, मतगणना बीच में रुकने या धीमी होने के बाद कुछ ही मिनटों में हारती हुई भाजपा की सीटों का इतना बढ़ जाना कि वह राज्यों में सरकार बना ले आदि ऐसी घटनाएं हैं जो हमेशा संदेह के घेरे में रहेंगी। विपक्ष ने भाजपा की जेबी संस्था, चूना आयोग जैसे शब्द चुनाव आयोग के लिए किए ताकि उसके आरोपों की गंभीरता समझी जाए। लेकिन इन सबका कोई असर संभवत: सरकार पर नहीं हुआ।
लोकतंत्र के पक्ष में वे सारे लोग जो एक स्वतंत्र, मजबूत और निष्पक्ष चुनाव आयोग की उम्मीद राजीव कुमार के जाने के बाद लगाये बैठे थे, वे इसलिये मायूस हैं क्योंकि उन्हें वांछित बदलाव की अब कोई उम्मीद नहीं रह गयी है क्योंकि नये सीईसी का उसी धारा में तैरना लगभग तय माना जा रहा है। सीईसी के रूप में ज्ञानेश का कार्यकाल जनवरी, 2029 तक रहेगा। इस दौरान उनकी देखरेख में लगभग 20 विधानसभा चुनाव होंगे तथा अगली लोकसभा के लिये 2029 में होने वाली सारी भी तैयारियां वे करके जायेंगे- यदि उन्हें सेवा विस्तार नहीं मिलता तो। ऐसा तभी होगा यदि वे राजीव कुमार की बनाई लीक से हटकर काम करेंगे; जिसकी उम्मीद कम है।
केन्द्रीय निर्वाचन आयोग हमेशा भाजपा सरकार की जेब में बनी रहे, इसकी तैयारी पहले से कर ली गयी थी। 2023 में सीईसी नियुक्ति अधिनियम में संशोधन कर चयन समिति से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को हटा दिया। इसका उद्देश्य साफ था कि चयन प्रक्रिया में बहुमत सरकार का बना रहे। इसे लेकर विपक्ष, खासकर कांग्रेस आपत्ति जताती रही है। इसके खिलाफ शीर्ष कोर्ट में एक याचिका भी लगाई गयी है जिस सम्बन्ध में तीन सुनवाइयां हो चुकी हैं और अगली सुनवाई बुधवार 19 फरवरी को ही निर्धारित है। कहीं उच्चतम न्यायालय इस नियम को अवैध न ठहरा दे, इसलिये अदालती फैसले हेतु ठहरने की बजाये (और आशंका में) सोमवार को बैठक बुलाकर राहुल की कड़ी आपत्ति के बावजूद नया सीईसी घोषित किया गया।
सरकार रुक सकती थी क्योंकि फिलहाल देश में कोई चुनाव नहीं है। केवल बिहार का होगा- वह भी इस साल के अंत में। आधी रात को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने हस्ताक्षर भी कर दिये। इसलिये राहुल ने इस प्रक्रिया को 'अपमानजनक व अशिष्टÓ बतलाया है जो कि गलत नहीं है। राहुल गांधी ने अपनी आपत्ति का एक पत्र केंद्र सरकार को दिया है। वहीं कांग्रेस ने एक ट्वीट में आधी रात का तख्तापलट शीर्षक के तहत कई बिंदुओं में समझाया है कि कैसे मोदी-शाह ने मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर कब्जा किया है। कांग्रेस ने लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट को दरकिनार करने से लेकर आधी रात की नियुक्ति तक, मोदी और शाह ने दिनदहाड़े सबसे बड़े चुनावी तख्तापलट को अंजाम दिया है।
यह बेहद गंभीर आरोप है जो कांग्रेस ने लगाया है, अब देखना होगा कि अदालत इस आपत्ति का संज्ञान लेती है या नहीं।


